वस्तु विनिमय का दौर था। गर्मियों की छुट्टियों में दादा दादी की गांव जाना जरूरी होता था।
पापा का कहना था कि अन्य धन देने वाली जन्मभूमि और अन्नपूर्णा मां के दर्शन, वंदन और चरण स्पर्श आजीवन करते रहना चाहिए।
पापा का कहना था कि अन्य धन देने वाली जन्मभूमि और अन्नपूर्णा मां के दर्शन, वंदन और चरण स्पर्श आजीवन करते रहना चाहिए।
आज मेरे चचेरे भैया को किसी कोर्स के लिए अपनी फीस जमा कराने शहर जाना था।
चाचा जी ने फीस के ₹5 देकर ताकीद किया था संभाल कर रखना।
चाचा जी ने फीस के ₹5 देकर ताकीद किया था संभाल कर रखना।
जाने कैसे वह पैसे खो गएं और भैया बेहद दुखी थे।
ले सोहन मेरे पास ₹2 तो है। अरे भाई पूरे पैसे दूंगा तभी काम होगा चलो रास्ते में कर्मों ताऊ जी के खलिहान होकर चलेंगे।
तुम्हें मस्करी सोच रही है मेरी तो जान निकल रही है बाबा खूब मारेंगे आज तो।
मैंने खलिहान की और साइकिल घुमा दी वहां ताऊ जी को गेहूं भटकते देख मेरी आंख चमक उठी।
आओ बालको तुम भी हाथ बटाओ । हमें क्योंकि ढेरों पर चढ़कर अपने स्पोर्ट्स शूज दोनों से भर लिए थे।
खुश होकर ताऊ जी बोले, बहुत काम कराया और को... शाबाश इनाम मिलेगा दोनों बालकों को, जब कहोगे ।
बस दोनों को दो-दो खोच भरकर गेहूं दे दो ताऊजी...
हम कुछ खा लेंगे खरीद कर, मैं बोला।
उन्होंने हमें एक थैले में हाथों से भर-भरकर क्यों दिए।
हम कुछ खा लेंगे खरीद कर, मैं बोला।
उन्होंने हमें एक थैले में हाथों से भर-भरकर क्यों दिए।
हमने उन्हें बनिए को वेदर पैसों का इंतजाम करके फीस चुकाई ।
दोनों भाई गले मिले। हमने धरती मां को छू कर प्रणाम किया। सचमुच अन्नपूर्ण है यह धरती मैं सोचता रहा था।