एक छोटे उम्र बच्चे की कहानी, जिसने अपनी बड़ी बहन को बचाने के लिए खुशी-खुशी अपना खून दिया।
डॉक्टर सुनील शहर के नामचीन सर्जन थे। वह स्वभाव से बहुत विनम्र थे और सब को सेवा दृष्टि से देखते थे। एक बार उन्हें एक कॉलेज में बतौर मुख्य अतिथि बनाया गया।
वहां उन्होंने कहा, एक डॉक्टर होने के नाते मैं समाज में कई तरह के लोगों से मिलता हूं। रोज मुझे अलग-अलग होते हैं। लेकिन कुछ अनुभव ऐसे होते हैं, जो जीवन भर याद रह जाते हैं।
उन्हीं में से एक अनुभव में आज आपसे बांट रहा हूं। एक बार मेरे अस्पताल में 8 वर्ष के एक लड़की रूही विराज के लिए आई। उसके शरीर का खून धीरे-धीरे खराब हो रहा था।
जिससे उसके शरीर के कई अंगों पर पड़ने लगा था। उसे रक्तदान यानी ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत थी। रूही का एक छोटा भाई था दानिश, जो 5 साल का था। लगभग 1 साल पहले दानिश को भी कुछ ऐसे ही बीमारी हुई थी।लेकिन दानिश के खून में वैसी रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं थी, जिस कारण व एकदम स्वस्थ था।
मैंने नन्हे से दानिश से पूछा, क्या वह अपनी बहन को बचाने के लिए अपना खून देने को तैयार है। कुछ देर तक चुप रहने के बाद उसने पूछा, क्या मेरी बहन मेरे खून से ठीक हो जाएगी ? जब मैंने कहा हां, तो वहां झट से तैयार हो गया।
ट्रांसफ्यूजन की तैयारी शुरू हुई। कुछ ही देर में दानिश के शरीर से खून निकालने की प्रक्रिया शुरू हो गई। दूसरी तरफ रूही को खून चढ़ रहा था। रूही के गालों में लाली देखकर दानिश मुस्कुरा रहा था। जब मैं उसके पास गया, तो उसने मुझसे पूछा, अंकल, क्या अब मैं मरने वाला हूं ?
दानिश को यह लगा रहा था कि शायद उसका सारा खून रूही को दे दिया जाएगा और वह मर जाएगा। फिर भी मुस्कुराता हुआ वह अपनी बहन को खून देने के लिए तैयार था। उस एक घटना ने मेरे अंदर बहुत कुछ बदल दिया।
छोटे-छोटे बच्चे अक्सर हमें बड़ों से बेहतर शिक्षा दे जाते हैं