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अली सरदार जाफ़री की ग़ज़लों से चुनिंदा शेर


है और ही कारोबार-ए-मस्ती
जी लेना तो ज़िंदगी नहीं है


सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें
हम को आवारगी ही रास आई


क़ैद हो कर और भी ज़िंदां में उड़ता है ख़याल
रक़्स ज़ंजीरों में भी करते हैं आज़ादाना हम


तेरा दर्द सलामत है तो मरने की उम्मीद नहीं
लाख दुखी हो ये दुनिया रहने की जगह बन जाए है


अब आ गया है जहां में तो मुस्कुराता जा
चमन के फूल दिलों के कंवल खिलाता जा


तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा
मैं वो चमन जो बहारां के इंतिज़ार में है


बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए
वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहां होगा


क्या हुस्न है दुनिया में क्या लुत्फ़ है जीने में
देखे तो कोई मेरा अंदाज़-ए-नज़र ले कर


ज़ख़्म कहो या खिलती कलियां हाथ मगर गुलदस्ता है
बाग़-ए-वफ़ा से हम ने चुने हैं फूल बहुत और ख़ार बहुत


आसमानों से बरसता है अंधेरा कैसा
अपनी पलकों पे लिए जश्न-ए-चराग़ां चलिए




उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ
- अहमद फ़राज़


आती है बात बात मुझे बार बार याद
कहता हूं दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में
- दाग़ देहलवी


उदासियां हैं जो दिन में तो शब में तन्हाई
बसा के देख लिया शहर-ए-आरज़ू मैंने
- जुनैद हज़ीं लारी


दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं
- हफ़ीज़ बनारसी


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