ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम
नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ
- लाल चन्द फ़लक
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा
- अल्लामा इक़बाल
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे
- जिगर मुरादाबादी
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
- अहमद फ़राज़
साहिर लुधियानवी
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
कैफ़ी आज़मी
इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
बशीर बद्र
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों
वसीम बरेलवी
आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
- वसीम बरेलवी
मीर तक़ी मीर
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो
- मीर तक़ी मीर
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
- मिर्ज़ा ग़ालिब
गुलज़ार
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
जौन एलिया
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊं
वगरना यूं तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
ज़ौक
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे
दाग़ देहलवी
हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के 'दाग़'
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
शाम भी थी धुआं धुआं हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं
अहमद फ़राज़
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
निदा फ़ाज़ली
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
बहादुर शाह ज़फ़र
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
क़तील शिफ़ाई
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूं पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूं
मजाज़ लखनवी
दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
दुष्यंत कुमार
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
मोमिन ख़ां मोमिन
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
शकील बदायूंनी
कांटों से गुज़र जाता हूं दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूं