सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता - अंतिम भाग



अभि ने पिया के चेहरे पर उदासी पढ़ ली थी।ठो पिया से अकेले में कुछ बात करना चाहता था लेकिन उधर सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा था।सबके दबाव में उसने पिया को अंगूठी पहना तो दी लेकिन उसके मन में पिया की उदासी फांस की तरह चुभ रही थी।

सगाई के बाद दोनों पक्ष के लोग अपने अपने घर को लौट आये।घर आकर पिया का बरसों का गुस्सा बाहर निकला।पिया रोये जा रही थी और पापा को बोल रही थी ऐसा क्या दिख गया पापा आप को उसमें? आपको सच में लगता है अभि मेरे लिये सही लड़का है! मैं बोझ बन गई हूँ क्या आप पर।इतना कह कर पिया फूट फूट कर रोने लगी।

पापा ने बस इतना ही कहा " बेटा मुझे जो ठीक लगा मैंने किया,लेकिन अगर अभि तुझे पसन्द नही ,तो तू मना कर दे हम कोई दबाठ नही डालेंगे"।

पिया काफी देर तक रोती रही फिर जब मन हल्का हो गया तो सोचने लगी कि पापा की क्या गलती है,मैंने ही उनको कहा कि आप पसन्द कर लो लड़का,अब मैं उनका सर नही झुका सकती।पापा के मान सम्मान के लिये ठो शादी को तैयार हो गई।

ठीक एक महीने बाद का शादी का मुहुर्त निकला। धूमधाम से शादी हुई और पिया अपने भाग्य को कोसती अभि के घर आ गई।

शादी की पहली रात अभि पिया के कमरे में आया तो पिया मुँह फेर के बैठ गई।अभि मुस्कुराया और बोला ,मुझे पता है तुम मुझे पसन्द नही करती और बात भी सही है क्‍यों कि तुम्हारे रवि के आगे तो मैं कुछ भी नही।

पिया ने हैरानी से आँखे बड़ी करते हुए अभि की ओर देखा,रठि के बारे में तो किसी को पता ही नही है अभि कैसे जानता है!!

अभि ने आगे कहा "हैरान मत हो मैं सब जानता हूँ"।सुमन की शादी में जहाँ तुम रवि से मिली थी.मैं भी उस शादी में शामिल था।तुम मुझे एक नज़र में पसन्द आ गई थीं।उस गुलाबी लहंगे में तुम बहुत प्यारी लग रही थी।लेकिन तुम्हारी निगाहें सिर्फ रठि पर थी इसलिये तुमने मुझे नोटिस ही नही किया। मैंने तुम दोनों को बात करते भी सुन लिया था जब रवि तुम से प्रेम का इज़हार कर रहा था।इसलिये किसी से कुछ न कहते हुये मैं शादी के लिये लड़कियां देखने लगा।

इतने सालों से मैं हर लड़की में बस तुम्हे ही तलाश रहा था और इस तरह कोई भी रिश्ता मुझे पसन्द नही आया। जब पिछले दिनों पता चला कि तुम्हारे पापा दर तलाश रहे हैं तो मैंने रिश्ता भिजवा दिया।पिया तुम मेरी पहली पसन्द हो और इसलिये मैं तुम्हे देखने भी नही आया था।

मेरी उम्र तुम से 5 साल ज़्यादा है,घर की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही है इसलिये अपना ज्यादा ध्यान नही रख पाता हूँ।ठक्त बेवक्‍त खाने से वजन भी बढ गया है।मैं मानता हूँ कि तुम्हारे लायक नही हूँ.लेकिन तुम्हारे प्यार और साथ से, मैं ठादा करता हूँ कि सब सही हो जायेगा।मैं तो सगाई के दिन ही सब कुछ तुम्हे बताना चाहता था लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि बता नही सका।

पिया के मन मे छाए गलतफहमी और नफरत के बादल छटने लगे थे। पिया सोच रही थी कितना साफ और खूबसूरत दिल है अभि के पास, मेरा अतीत जानते हुये भी मुझ से शादी की, एक बार भी रवि के बारे में नही पूछा कि क्यों अलग हुये हम दोनों।उसे सिर्फ मेरा वर्तमान ही दिखाई दे रहा है।सचमुच कितनी किस्मत ठाली हूँ जो अभि जैसा लड़का मिला।मैंने तो दस चेहरा देखा था रवि का लेकिन अभि ने मेरी आंखें खोल दी ।उस धोखेबाज रवि की अच्छी सूरत के भ्रम में मैंने अभि की अच्छी सीरत को नज़र अन्दाज़ किया।

पिया को सोच में डूबा देख अभि ने कहा कोई ज़ल्दी नही है पिया मैं समझता हूँ मुझे अपनाने में तुम्हे थोड़ा वक्‍त लगेगा। जानता हूँ कि रवि ने तुम्हे जो धोखा दिया है उसके बाद तुम्हारा किसी पर भी इतनी ज़ल्दी यकीन करना सम्भठ नही है।मैं हमेशा तुम्हे खुश रखने की कोशिश करूँगा।

आज पिया को अभि में एक सच्चे जीवन साथी की झलक दिख रही थी ।पिया के चेहरे पर एक मुस्कान बिखर गई,उसे समझ आ गया था कि पापा ने अभि में क्या देखा था ।

जीवन के किस मोड़ पर और किस रूप में सच्चा प्यार मिल जाये कोई नही जानता।पिया फिर से एक खूबसूरत सफर पर निकल पड़ी थी जिसमें उसका साथी था अभि।।

आज सचेच अर्थों में उन पंक्तियों का मतलब समझ में आया था जो वो अपनी डायरी मे लिखा करती थी-

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता ।

कभी जमीं तो कभी आसमां नही मिलता ।।

तेरे जहाँ में ऐसा नही के प्यार न हो ।

बस जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नही मिलता।।


धन्यवाद!
सोनिया कुशठाहा

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं. ...

आज के टॉप 4 शेर (friday feeling best 4 sher collection)

आज के टॉप 4 शेर ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ - लाल चन्द फ़लक मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - अल्लामा इक़बाल उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे - जिगर मुरादाबादी हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी - अहमद फ़राज़ साहिर लुधियानवी कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया कैफ़ी आज़मी इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद बशीर बद्र दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों वसीम बरेलवी आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है - वसीम बरेलवी मीर तक़ी मीर बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो - मीर तक़ी...

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे...