नासिर काज़मी वर्तमान शायरों में वे फ़िराक़ के प्रशंसक थे और उनसे बेहद प्रभावित भी। अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए नासिर साहब ने ग़ज़ल को चुना और उसे अपना एक अलग रंग दिया। नासिर काज़मी ने ज़िन्दगी की छोटी-छोटी अनुभूतियों को ग़ज़ल का विषय बनाया और एक बढ़कर एक ग़ज़लें लिखीं। पेश है नासिर काज़मी के कुछ चुनिंदा शेर...
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
तमाम रात तेरे पहलुओं से आँच आई
नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए
तारों का सफ़र ख़त्म हुआ
तन्हाइयां तुम्हारा पता पूछती रहीं
शब-भर तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
ये क्या कि एक तौर से गुज़रे तमाम उम्र
जी चाहता है अब कोई तेरे सिवा भी हो
देखते देखते तारों का सफ़र ख़त्म हुआ
सो गया चाँद मगर नींद न आई मुझ को
दिल डूबता जाता था इधर
धूप इधर ढलती थी दिल डूबता जाता था इधर
आज तक याद है वो शाम-ए-जुदाई मुझ को
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तेरी याद थी अब याद आया
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
कहां गईं वो सोहबतें
पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहां गईं वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें कि आसमान खा गया
ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ समा गया
मय-ख़ाने का अफ़्सुर्दा माहौल तो यूँही रहना है
ख़ुश्क लबों की ख़ैर मनाओ कुछ न कहो बरसातों को
मुक़द्दर में नहीं तन्हाई
यूँ तो हर शख़्स अकेला है भरी दुनिया में
फिर भी हर दिल के मुक़द्दर में नहीं तन्हाई
डूबते चाँद पे रोई हैं हज़ारों आँखें
मैं तो रोया भी नहीं तुम को हँसी क्यूँ आई
यादों की जलती शबनम से, फूल सा मुखड़ा धोया होगा
मोती जैसी शक्ल बना कर, आईने को तकता होगा
दिल मुतमइन न था
तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमइन न था
गुज़री है मुझ पे ये भी क़यामत कभी कभी
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
गिरफ़्ता-दिल हैं बहुत आज तेरे दीवाने
ख़ुदा करे कोई तेरे सिवा न पहचाने
प्यारे रस्ता देख के चल
गली गली मिरी याद बिछी है प्यारे रस्ता देख के चल
मुझ से इतनी वहशत है तो मेरी हदों से दूर निकल
मैं रो रहा था मुक़द्दर की सख़्त राहों में
उड़ा के ले गए जादू तिरी नज़र के मुझे
जब पहले-पहल तुझे देखा था दिल कितने ज़ोर से धड़का था
वो लहर न फिर दिल में जागी वो वक़्त न लौट के फिर आया,