किसी को कैसे बताएं ज़रूरतें अपनी
मदद मिले न मिले आबरू तो जाती है
- वसीम बरेलवी
इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूं गिला फिर हमें हवा से रहे
- जावेद अख़्तर
सुर्ख़-रू होता है इंसां ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद
- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी
क्या कहूं उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं
- फ़ातिमा हसन