यारो उम्र गुज़ार दी - शांती स्वरूप मिश्र की ग़ज़ल।
Hindi Ghazal | by Shanti Swaroop Mishra
यारो उम्र गुज़ार दी, अब समझने को बचा क्या है
सब कुछ तो कह चुके, अब कहने को बचा क्या है
कोई समझेगा भला क्या इस शहर की करामातें,
यहाँ बहुत कुछ सहा है, अब सहने को बचा क्या है
अब दिल की अठखेलियां बन चुकी हैं बस फ़साना
हम बहुत मचल चुके, अब मचलने को बचा क्या है
हमें तो उलझा के रख दिया बस ज़िंदगी की राहों ने,
बस बहुत भटक लिए, अब भटकने को बचा क्या है
अपनों की जादूगरी से दिल बेचैन है अब तक यारो,
सब कुछ बिखर गया, अब बिखरने को बचा क्या है
ये दुनिया तो भरी पड़ी है फ़रेबी दग़ाबाजों से "मिश्र",
सब कुछ परख लिया, अब परखने को बचा क्या है
-शांती स्वरूप मिश्र
Hindi Ghazal | Shanti Swaroop Mishra - यारो उम्र गुज़ार दी - शांती स्वरूप मिश्र की ग़ज़ल।