अहमद फ़राज़ के कलामों से रूमानी शेर
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
तू सामने है तो फिर क्यूं यक़ीं नहीं आता
ये बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे
कितना आसां था तिरे हिज्र में मरना जानां
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
दिल धड़कने की सदा आती है गाहे-गाहे
जैसे अब भी तिरी आवाज़ मिरे कान में है
ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा
कि जिस के साथ न था हम-सफ़र उसी का रहा
ग़ज़ल में जैसे तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल बोल उठें
कि जिस तरह तिरी तस्वीर बात करने लगे
तिरे बदन में धड़कने लगा हूं दिल की तरह
ये और बात कि अब भी तुझे सुनाई न दूं
इश्क़ ख़ुद अपने रक़ीबों को बहम करता है
हम जिसे प्यार करें जान-ए-ज़माना बन जाए
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आंखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
- जां निसार अख़्तर
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती
- वसीम बरेलवी
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
- जां निसार अख़्तर
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएं भेज दो हम ने ख़ताएं भेजी हैं
- गुलज़ार