Jeevan Darshan Shayari Collection | 'जीवन दर्शन' पर कहे गए शेर... |
ऐसी तारीकियाँ आँखों में बसी हैं कि 'फ़राज़'
रात तो रात है हम दिन को जलाते हैं चराग़
~अहमद फ़राज़
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
~अल्लामा इक़बाल
बुतों को पूजने वालों को क्यूँ इल्ज़ाम देते हो
डरो उस से कि जिस ने उन को इस क़ाबिल बनाया है
~मख़मूर सईदी
जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में
मैं तो बस अल्फ़ाज़ में था शाएरी में कौन था
~भारत भूषण पन्त
मैं बताऊँ फ़र्क़ नासेह जो है मुझ में और तुझ में
मिरी ज़िंदगी तलातुम तिरी ज़िंदगी किनारा
~शकील बदायुनी
हमें तो मुद्दतों से जुस्तुजू है ऐसे इंसाँ की
हमारी ज़िंदगी को भी जो अपनी ज़िंदगी समझे
~एहसान दानिश
अज़ल तो मुफ़्त में बदनाम है ज़माने में,
कुछ उनसे पूछ, जिन्हें ज़िंदगी ने मारा है।
~फ़ैज़
गर जोश पे टुक आया दरियाव तबीअत का
हम तुम को दिखा देंगे फैलाव तबीअत का
~मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना
~मुईन अहसन जज़्बी
सो तय पाया मसाइब ज़िंदगी के कम न होंगे
मगर कम ज़िंदगी से ज़िंदगी होने लगी है
~पीरज़ादा क़ासीम
ज़िंदगी ने लूटा है ज़िंदगी को दानिस्ता
मौत से शिकायत क्या मौत का बहाना था
~नसीम शाहजहाँपुरी
उस शख्स के गम का कोई अंदाजा लगाए
जिसको कभी रोते हुए देखा न किसी ने
~वकील अख्तर
मिट्टी का जिस्म ले के चले हो तो सोच लो,
इस रास्ते में एक समंदर भी आएगा।
~सलीम शाहिद
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है
कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूं।
~फ़रीद परबती
यही ज़िंदगी मिरी ज़िंदगी यही ज़िंदगी मिरी मौत है
तिरी याद बन गई इक छुरी जो मिरे गले पे धरी रही
~सूफ़िया अनजुम ताज
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है
कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूं।
~फ़रीद परबती
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं।
~अहमद फ़राज़
जहां चोट खाना, वहीं मुस्कुराना,
मगर इस अदा से कि रो दे जमाना।
~वामिक जौनपुरी
शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
~अज्ञात
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
एहसां ये कीजिए कि ये एहसां न कीजिए
- हफ़ीज़ जालंधर
मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूं
मिरे हमराह दरिया जा रहा है
- अहमद नदीम क़ासमी
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
- वसीम बरेलवी
रखना है कहीं पांव तो रक्खो हो कहीं पाँव
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो
- कलीम आजिज़