महबूब से बिछड़े शायरों के अल्फ़ाज़
Love shayari
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
- अहमद फ़राज़
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
- जौन एलिया
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
- कैफ़ भोपाली
बिछड़ के तुझ से अजब हाल हो गया मेरा
तमाम शहर पराया दिखाई देता है
- मरग़ूब अली
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
- अंजुम रहबर
कुछ दिन तो मलाल उस का हक़ था
बिछड़ा तो ख़याल उस का हक़ था
- किश्वर नाहीद
अभी बाक़ी है बिछड़ना उस से
ना-मुकम्मल ये कहानी है अभी
- तारिक़ क़मर
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है
कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी
- अहमद फ़राज़
अब के 'वक़ार' ऐसे बिछड़े हैं
मिलने का इम्कान नहीं है
- वक़ार मानवी
बिछड़ के भी वो मिरे साथ ही रहा हर दम
सफ़र के बा'द भी मैं रेल में सवार रहा
- शकील आज़मी
हम ने कांटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
- बिस्मिल सईदी
नामा-बर तू ही बता तू ने तो देखे होंगे
कैसे होते हैं वो ख़त जिन के जवाब आते हैं
- क़मर बदायूंनी
कभी 'फ़राज़' से आ कर मिलो जो वक़्त मिले
ये शख़्स ख़ूब है अशआर के अलावा भी
- अहमद फ़राज़
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
- अब्दुल हमीद अदम