Love Poems Avtar singh pash revolutionary and love poetry
उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताजा मूंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी की
देश सारा बच रहा बाक़ी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिड़की में
लोगों की आवाज़ें जम गयीं
Love Poems Avtar singh pash: भगत सिंह पर ये पंक्तियां अवतार सिंह संधू, 'पाश' ने लिखी थी। अजीब संयोग है कि आज के ही दिन देश के महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह और प्रतिरोध की कविता के सशक्त हस्ताक्षर अवतार सिंह सिंधू 'पाश', दोनों की ही पुण्यतिथि है। उन्होंने भगत सिंह की शहादत पर लिखा-
पहला चिंतक था पंजाब का
सामाजिक संरचना पर जिसने
वैज्ञानिक नज़रिये से विचार किया था
पहला बौद्धिक
जिसने सामाजिक विषमताओं की, पीड़ा की
जड़ों तक पहचान की थी
पहला देशभक्त
जिसके मन में
समाज सुधार का
एक निश्चित दृष्टिकोण था
Love Poems Avtar singh pash
भगत सिंह के समतावादी विचारों को अपनी कविता में बखूबी दर्ज करते हैं। पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है और उनकी कविताएं व्यवस्था से सीधे टकराती हैं, सवाल करती हैं। लेकिन असल में उनके इस रचनात्मक प्रतिरोध के पीछे देश और दुनिया के प्रति उनकी मोहब्बत थी।
लोगों को प्यार करने वाले कवि थे पाश। सत्तर के दशक में काव्य जगत के आकाश पर छाये रहे, एक ऐसा कवि जिसने जनआन्दोलनों को ठीक ठीक समझा फिर कलम चलाई। उनका यह क्रांतिकारी मानवतावाद उनकी शहादत तक सलामत रहा-
सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
Love Poems Avtar singh pash
पाश की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से एक...सबसे ख़तरनाक होता है आदमी के सपनों का मर जाना। पाश के ये बोल उनको एक क्रांतिकारी कवि के रूप में स्थापित करते हैं। अपनी उम्मीदों को हमेशा जवां रखने का जज़्बा रखे हुए वह शहीदे आज़म भगत सिंह के क़रीब ठहरते हैं। दोनों के विचारों के मूल में एक समतावादी समाज की स्थापना है। असमानता, ऊंच-नीच, जातीय भेदभाव, गरीबी जैसी चीजें उन्हें अंदर से झंझोड़ती थीं, अंदर का यह रोष रचनात्मक प्रतिरोध के रूप में उभरता था।
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलने वाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते
लोगों की उम्मीदें टूटती हैं तो कवि व्यवस्था को कोसता है और इसीलिये कहता है कि- सपनों का मरना सबसे बड़ी लूट है। पाश उम्मीद के टूटने को विचारों को न पनपने देने के एक षड्यंत्र के रूप में देखते हैं। उम्मीद होगी तो उसकी वैचारिक फ़सल अपने आप लहलहाएगी।
देश और दुनिया को एक समतावादी ढांचे में देखने वाले कवि पाश सपनों और उम्मीद को बहुत जरूरी मानते हैं। पाश का यह आशावाद उन्हें दुनिया को तहे दिल से प्यार करने वाले कवि की संज्ञा देता है।
पाश जब क्षुब्द होते हैं, क्रोधित होते हैं तो उससे एक उर्जा निकलती है जिसे वो कलमबद्ध करते हैं और वह कविता काव्य प्रेमियों को न केवल झंझोड़ती है बल्कि पाश से हमेशा-हमेशा के लिये जोड़ती है-
मैं पूछता हूं आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाएँ कुचलती चली जाएं
मस्त हाथी की तरह
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
कि हर प्रश्न
काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?
क्यूं सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा है
जरा सोचो -
कि हममे से कितनों का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !
भगत सिंह के बारे में एक टिप्पणी के अंत में पाश ने लिखा था कि-
जिस दिन फांसी दी गई
उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली
जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था
पंजाब की जवानी को
उसके आख़िरी दिन से
इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगे
कहते हैं ख़ालिस्तानियों की गोली से शहीद होने से पहले पाश भी जिंदगी और शायरी की जद्दोजहद की किताब का एक पन्ना मोड़ा हुआ छोड़ गए थे। उनकी कविताएं संघर्ष की जिजीविषा पैदा करती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने का साहस प्रदान करती हैं। उनकी कविताओं में उम्मीद है, वैचारिक उर्जा है, आत्मविश्वास है, संदेह भी है लेकिन साहस भी है -
क्या-क्या नहीं है मेरे पास
शाम की रिमझिम
नूर में चमकती ज़िंदगी
लेकिन मैं हूं
घिरा हुआ अपनों से
क्या झपट लेगा कोई मुझ से
रात में क्या किसी अनजान में
अंधकार में क़ैद कर देंगे
मसल देंगे क्या
जीवन से जीवन
अपनों में से मुझ को क्या कर देंगे अलहदा
और अपनों में से ही मुझे बाहर छिटका देंगे
छिटकी इस पोटली में क़ैद है आपकी मौत का इंतज़ाम
अकूत हूँ सब कुछ हैं मेरे पास
जिसे देखकर तुम समझते हो कुछ नहीं उसमें
पाश मेहनतकश मजदूरों का बहुत सम्मान करते थे। मुनाफे पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था में शोषण और श्रम ही लूट का आधार हैं, जिसका विरोध उनकी लगभग हर कविता में है। वे अपनी कविताई में खास तरह के रोमांटिसिज्म और चापलूसी से अलग कामगारों के पक्ष में तनकर खड़े होते हैं।
शब्द जो राजाओं की घाटी में नाचते हैं
जो माशूक की नाभि का क्षेत्रफल नापते हैं
जो मेजों पर टेनिस बॉल की तरह लुढ़कते हैं
जो मंचों की खारी धरती पर उगते हैं...
कविता नहीं होते।
पाश अच्छी तरह जानते थे कि कविता द्वारा कोई क्रान्ति या बदलाव नहीं हो सकता। बात अब उससे आगे बढ़ गई है, शब्दों के सामने शब्द नहीं हथियार हों तो कविता से क्या होगा, इसलियें वे कहते हैं -
मेरी दोस्त कविता बहुत ही शक्तिहीन हो गई है
जबकि हथियारों के नाख़ून बुरी तरह बढ़ गए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों से युद्ध करना ज़रूरी हो गया है।
Love Poems Avtar singh pash
पाश के शब्दों में इतनी ताकत इसलिये है कि उनका जीवन भी उनके शब्दों की तरह ही था। अपने लिखे को उन्होंने बखूबी जीवन में उतारा भी। उम्मीद की कलम थामें बेख़ौफ और बेबाक नजरिये वाला यह कवि डर, अन्याय, घुटन, गैरबराबरी के लिये हमेशा एक चुनौती बना रहेगा। पाश अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।