लेखक: संजय जैन
Nai Manjil hindi kahani नई मंज़िल |
अब श्यामली भी एक प्रशासनिक अधिकारी होगी. आख़िर श्यामली ने जो कहा था वह कर दिखाया. रंजीत और नेहा दोनों बहुत ख़ुश हैं. यूं तो समाचार पत्र में यह ख़बर देखने से पहले ही श्यामली ने इस बारे में बता दिया था, पर जब से यह ख़बर देखी है, दोनों के दिल से एक बड़ा बोझ उतर गया है. अब वह नेहा के तैयार होने का इंतज़ार कर रहा है, ताकि दोनों श्यामली से मिल आएं. फ़ोन पर श्यामली की आवाज़ में कितने अर्से बाद बेतहाशा ख़ुशी सुनाई दे रही थी. ‘‘देखो भैया, मैंने कहा जो था वो कर दिखाया. अब मैं भी क़ामयाब हूं,’’ चहकते हुए फ़ोन पर कहा श्यामली ने. ‘‘हां, श्यामली तुमने साबित कर दिया और यह तुम्हारा आत्मविश्वास ही है, जो तुम्हें इस मंज़िल तक लेकर आया है,’’ रंजीत ने उसका हौसला बढ़ाया. ‘‘बस, यह कह देने से ही नहीं चलनेवाला भैया. आपको और भाभी को घर आना है, मेरी इस ख़ुशी में शामिल होने के लिए,’’ श्यामली के आग्रह में थोड़ा लाड़ भी था. ‘‘आ रहे हैं श्यामली. अगले घंटेभर में तुम्हारे पास ही होंगे.’’ इस संक्षिप्त-सी बात के बाद फ़ोन कट गया था.
‘क्या कह रहे हो तुम, असित ऐसा कैसे कर सकता है? क्या कुछ नहीं किया श्यामली ने उसके लिए,’ नेहा तो जैसे इस बात पर विश्वास ही नहीं कर सकी थी. ‘हां, पर यही हुआ है. क्या कर सकते हैं? आजकल किसी का भरोसा ही नहीं रहा. चलो तैयार हो जाओ श्यामली के पास चलते हैं, उसे हमारी ज़रूरत महसूस हो रही होगी.’ ‘हां चलो,’ कहकर नेहा उसके साथ चल पड़ी थी तुरंत.
श्यामली के पिता की मौत बहुत पहले ही हो चुकी थी. जब विकास भी ऐक्सिडेंट के दौरान नहीं रहा तो उसके परिवार के सामने मुसीबतों का पहाड़ सा टूट पड़ा. अब श्यामली को अपनी मां के साथ-साथ ख़ुद को भी संभालना था. उन दिनों वह कॉलेज में पढ़ रही थी. शुरू-शुरू में तो उसने पढ़ाई छोड़ दी और छोटी-मोटी नौकरियां करने लगी. कुछ दिन बाद उसे एक डॉक्टर के क्लीनिक में रिसेप्शनिस्ट का जॉब मिल गया. उसने इस काम के साथ अपनी पढ़ाई प्राइवेट स्टूडेंट के रूप में जारी रखी. रंजीत से जितनी मदद हो सकी उसने की. कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब श्यामली को एक निजी स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गई तो नेहा और रंजीत दोनों बहुत ख़ुश थे. उन्हें लगा था कि अब यह परिवार संभल जाएगा. नौकरी लगने के बाद भी श्यामली रुकी नहीं उसने आगे बढ़ने की अपनी कोशिशें जारी रखी. उसने कम्प्यूटर का प्रशिक्षण ले लिया. इसके बाद कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में अतिरिक्त काम करने लगी, जिससे कुछ आय और होने लगी. नेहा और रंजीत ने इस बीच एक–दो बार उसके विवाह के संबंध में बात चलाई, पर उसने मना कर दिया था. उसका कहना था,‘अभी उसे कुछ बनना है. फिर मां की ज़िम्मेदारी भी तो है और वह किसी ऐसे लड़के से ही शादी करेगी, जो मां को उनके साथ ही रखने तैयार हो.’ उसके मन की बात जानकर रंजीत और नेहा ने इस बात को दोबारा नहीं उठाया. श्यामली और उसकी मां से बीच-बीच में मुलाक़ातें होती रहीं और समय गुज़रता रहा... ‘‘चलिए. कहां खो गए आप?’’ नेहा की आवाज़ ने रंजीत को अतीत से बाहर खींचा और कुछ ही देर बाद रंजीत और नेहा स्कूटर से श्यामली के घर की ओर जा रहे थे. श्यामली का घर शहर के दूसरे छोर पर है. लंबा रास्ता और ट्रैफ़िक... इसे पार करके वहां तक पहुंचने में क़रीब आधा घंटा तो लग ही जाता है. स्कूटर की गति के साथ रंजीत के विचारों का सिलसिला फिर शुरू हो गया था...
फिर एक दिन श्यामली ने ही उन्हें असित के बारे में बताया. असित से उसकी मुलाक़ात काम के सिलसिले में कम्प्यूटर सेंटर पर हुई थी. असित भी उसी की तरह जीवन में संघर्ष कर रहा है. काम भी कर रहा है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था. ‘वह बहुत मेहनती है,’ यह बताते हुए जिस तरह से वह असित की तारीफ़ों के पुल बांध रही थी, उससे उन दोनों को लगा कि श्यामली उसे पसंद करती है. उस बात के कुछ महीनों बाद श्यामली ने उन्हें अपना फ़ैसला बताया कि वह असित से शादी करना चाहती है और मां उन्हीं के साथ रहेंगी. उसके इस निर्णय से वो दोनों बहुत ख़ुश थे कि चलो अब श्यामली का घर बस जाएगा. कुछ दिन बाद श्यामली और असित वैवाहिक बंधन में बंध गए. कितनी ख़ुश थी उस दिन श्यामली! वह और नेहा इस बात से बहुत संतुष्ट थे कि अब श्यामली के संघर्ष का दौर समाप्त हो जाएगा. असित और वह दोनों मिलकर सब मुश्क़िलों से पार पा लेंगे. पर कुछ दिनों बाद जब श्यामली उनसे मिली तो पता चला श्यामली का संघर्ष तो और भी बढ़ गया है. उसने बताना शुरू किया,‘‘भैया, असित का शुरू से ही सपना है कि वह एक बड़ा अधिकारी बने. उसने मुझे अपना सपना बताया और अब मैंने भी उसके सपने को अपना सपना बना लिया है. अब इस सपने को पूरा करने के लिए जो कुछ भी ज़रूरी होगा हम करेंगे.’ ‘पर श्यामली ये सब इतना आसान नहीं है, बहुत मेहनत लगती है, बहुत समय लगता है और पैसा भी,’ रंजीत ने समझाया था. ‘हां भैया, हम जानते हैं, पर हम दोनों मिलकर कर लेंगे.’
फिर वह दिन भी आ गया जब श्यामली और असित की मेहनत सफल हो गई. असित चुन लिया गया. अब वह राज्य सरकार का एक अधिकारी बन जाएगा-यह ख़बर फ़ोन पर सुनाते समय श्यामली की आवाज़ ख़ुशी में समुद्र के ज्वार-भाटे जैसी महसूस हो रही थी, जैसे वह ख़ुशी के मारे सातवें आसमान पर हो.
फिर श्यामली और असित ने इस सफलता की ख़ुशी में अपने घर एक छोटी-सी पार्टी रखी. पार्टी में उन लोगों ने कुछ ख़ास लोगों को ही बुलाया था और रंजीत और नेहा भी उन्हीं में से थे. पार्टी में सबसे ज़्यादा श्यामली ही चमक-दमक रही थी. ऐसा लग रहा था मानो असित नहीं, बल्कि वह इस पद के लिए चयनित हुई है. और यही होना भी चाहिए था, क्योंकि असित ने भले ही पढ़ाई की हो पर श्यामली ने इस सब के लिए जी-जान से मेहनत की थी. असित भी पूरी विनम्रता से अपनी इस उपलब्धि का श्रेय श्यामली को ही दे रहा था. उस पूरी शाम प्रसन्नचित्त श्यामली मेहमानों को मनुहार कर के अच्छी तरह भोजन करा रही थी. मेहमानों के जाने के बाद उसने बताया अब असित को छह माह के प्रशिक्षण के लिए बाहर जाना होगा.
यह सुनकर नेहा तो ग़ुस्से से लाल-पीली हो गई थी,‘असित ऐसा कैसे कर सकता है? भूल गया क्या श्यामली की वजह से ही आज वह कुछ बन पाया है.’ थोड़ी देर बाद जब श्यामली बाहर आई तो दु:खी लग रही थी, पर गंभीर भी थी. नेहा ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बात शुरू की,‘श्यामली अब, छोड़ना नहीं है उस कृतघ्न इंसान को. और घबराना भी नहीं. तेरे भैया और मैं किसी अच्छे वक़ील से बात करेंगे.’ और भी बहुत कुछ कहा था नेहा ने. श्यामली जानती थी कि हम उसके हितैषी हैं. वो चेहरे पर फीकी मुस्कान लिए हमारी बात सुनती रही. मैंने भी कहा,‘श्यामली तुम बिल्कुल मत घबराना. हम दोनों तुम्हारे साथ हैं.’
श्यामली एक बार फिर जी-जान से जुट गई. पहली बार अपने ख़ुद के लिए. पिछले सालभर में उसने दिन रात एक कर उसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की. और आज नतीजा सामने था. उसका चयन हो गया था. पिछली बातों को याद करते-करते नेहा और वह कब श्यामली के घर के सामने पहुंच गए उसे पता ही नहीं चला. मुझे और नेहा को अपनी इस बहन पर हमेशा से नाज़ था और आज की तो बात ही और थी! मेरे स्कूटर रोकते ही नेहा ने जल्दी से श्यामली के घर की बेल बजा दी.