सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Hindi Kahani 'Ghamasan घमासान' - hindi shayari h



घमासान
चुनाव भले ही नगर निगम के थे पर हार की कालिख तो पार्टी के मुंह पर पुती. भई, जब देश का मैंगो पीपुल यानी आम जनता महंगाई और भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूब रही हो तो फिर क्या नगर निगम और क्या लोकसभा चुनाव, सियासी कुरसी तो हिलेगी ही.





चुनाव भले ही नगर निगम के थे पर हार की कालिख तो पार्टी के मुंह पर पुती. भई, जब देश का मैंगो पीपुल यानी आम जनता महंगाई और भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूब रही हो तो फिर क्या नगर निगम और क्या लोकसभा चुनाव, सियासी कुरसी तो हिलेगी ही.

ऐसा लग रहा था जैसे वे सब तैयार बैठे थे. मतगणना अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि पार्टी के बड़बोले महासचिव का बयान आ गया, ‘‘ये नगर निगम के चुनाव हैं. इन के परिणामों को किसी भी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जाना चाहिए. इन चुनावों में स्थानीय मुद्दे हावी रहते हैं, इसलिए इन चुनावों को राष्ट्रीय राजनीति का दिशासूचक नहीं माना जाना चाहिए. हम परिणामों को ले कर आशान्वित हैं, फिर भी जनता जो भी निर्णय देगी, हमें स्वीकार होगा, शिरोधार्य होगा.’’

अब तक मतगणना शुरू हो गई थी. इलैक्ट्रौनिक वोटिंग मशीन तत्परता से वोटों की गिनती में व्यस्त थी, प्रारंभिक रुझान आने भी शुरू हो गए थे. प्रारंभिक रुझानों के अनुसार, सभी क्षेत्रों में पार्टी उम्मीदवार पीछे चल रहे थे. प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों ने बढ़त बना ली थी.

इस बार टीवी चैनल्स पर पार्टी के चुनाव प्रभारी का बयान आया, ‘‘यदि हम चुनाव हार भी जाते हैं तो इस की पूरी जिम्मेदारी मेरी और पार्टी संगठन की होगी, युवराज को इन परिणामों के लिए कतई जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. युवराज ने पूरी क्षमता व उत्साह से इन चुनावों में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया, माहौल बनाया. उन की आम जनसभाओं में, उन के रोड शो में लोगों की भीड़ तो आप सब ने देखी ही है, आप लोगों ने ही तो अपनेअपने टीवी चैनल्स पर दिखाया था कि किस तरह उन्हें देखने, सुनने के लिए जनसैलाब उमड़ा था? अब यदि उन की इस मेहनत का फायदा हमारे प्रत्याशी नहीं उठा पाए, लोगों को अपने पक्ष में वोटिंग करने के लिए मतदान केंद्रों पर नहीं पहुंचा पाए तो इस में दोष हमारा है, पार्टी संगठन का है. युवराज और मैडम को लोगों ने नकार दिया हो, ऐसा कतई नहीं है.’’


समय तेजी से गुजरता जा रहा था और उस के साथ ही तेज हो गया था रुझानों व परिणामों का आना. अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि अपनी सारी कोशिशों, उठापठक, अपराधियों से गठजोड़, दागियों को टिकट के बाद भी पार्टी इन चुनावों में बुरी तरह हार रही थी, हालांकि विभिन्न टीवी चैनलों पर पार्टी के प्रवक्ताओं ने अभी भी अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी थी. ‘जब तक सांस, तब तक आस’ के सिद्धांत पर चलते हुए वे अभी भी पार्टी की हार मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन का अभी भी कहना था कि अंतिम परिणाम आने तक सभी को इंतजार करना चाहिए. विरोधी उम्मीदवारों की बढ़त की स्थिति अभी भी बदल सकती है, इसलिए कोई भी निर्णय लेने के पहले थोड़ा इंतजार कर लेना अधिक उचित होगा. ऐसा कहते हुए भी वे इस जनादेश को प्रत्याशियों या पार्टी के प्रति लोगों में आक्रोश मानने से साफ इनकार कर रहे थे. हां, दबे शब्दों में वे अब यह अवश्य स्वीकार कर रहे थे कि विपक्षी शायद अपने दुष्प्रचार में सफल हो गए.

उन पर बढ़ रहे बोझ को कम करने के लिए शायद पार्टी प्रदेश अध्यक्ष का यह बयान आ गया, लेकिन यह क्या? बयान तो अपनी ही प्रदेश सरकार के विरुद्ध था. प्रदेश अध्यक्ष महोदय ने फरमाया, ‘‘लोगों में प्रदेश सरकार के विरुद्ध क्रोध था, जिस का खमियाजा पार्टी को नगर निगम चुनावों में उठाना पड़ा है. इसलिए पार्टी के इस निराशाजनक प्रदर्शन के लिए पार्टी संगठन से कहीं अधिक जिम्मेदार, पार्टी की प्रदेश सरकार है, जिस के क्रियाकलापों से जनता में गहरा असंतोष है. यह पार्टी संगठन की नहीं, पार्टी की प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री की हार है.’’

पूरे नतीजे आने के पहले ही प्रदेश अध्यक्ष के इस बयान ने मानो पार्टी की आंतरिक राजनीति में भूचाल ला दिया, प्रदेश में पार्टी की एकता की कलई खोल कर रख दी. इस बात पर भी मुहर लगा दी कि सरकार और संगठन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ गड़बड़ है, मनमुटाव है.


अपने ऊपर लगे इस आरोप को राज्य की मुख्यमंत्री भला क्यों सहतीं? वे तीसरी बार प्रदेश में पार्टी की सरकार चला रही थीं. स्वयं को पार्टी का बड़ा आधार स्तंभ मानती थीं. उन की स्पष्ट सोच थी कि यदि प्रदेश में पार्टी की सरकार है तो इस का पूरा श्रेय सिर्फ और सिर्फ उन्हें जाता है, इसलिए अपने ऊपर लगे इस आरोप का प्रतिकार करने के लिए उन्होंने अपने एक समर्थक मंत्री को आगे बढ़ाया, ‘‘प्रदेश में पार्टी की सरकार बहुत अच्छा कार्य कर रही है. प्रदेश सरकार के कार्यों से कोई भी, कहीं भी असंतुष्ट नहीं है. लेकिन पार्टी संगठन ने सरकार द्वारा किए जा रहे लोककल्याणकारी कार्यों को जनता तक नहीं पहुंचाया, साथ ही पार्टी संगठन द्वारा गलत उम्मीदवारों का चयन भी पार्टी के खराब प्रदर्शन का एक बड़ा कारण है. इसलिए उचित होगा कि पार्टी अध्यक्ष सरकार पर आरोप लगाने के बदले आत्मनिरीक्षण कर लें,’’ मंत्री ने उलटे संगठन तथा पार्टी अध्यक्ष पर आरोप लगाया.

मतगणना अभी भी जारी थी लेकिन अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि पार्टी नगर निगम चुनाव में न केवल हार रही है बल्कि बहुत बुरी तरह हार रही है. अब  टीवी चैनल्स पर बैठे पार्टी प्रवक्ताओं का धैर्य भी जवाब देने लगा था, दबेढके शब्दों में वे भी अब पार्टी की हार स्वीकार कर रहे थे, हालांकि उन की झिझक अभी भी बाकी थी, ‘‘गलत टिकट वितरण और असंतुष्ट सहयोगी चलते हमारी हार का एक प्रमुख कारण बने. हम विपक्षियों या जनअसंतोष के कारण नहीं, बल्कि अपनों के कारण कहीं अधिक हारे हैं. हमारे अपनों ने ही हमें हरवाने में प्रमुख भूमिका निभाई है. उन्होंने हमारे अधिकृत उम्मीदवारों के वोट काट कर विपक्षियों की जीत का मार्ग प्रशस्त किया. यह विपक्षी पार्टी की जीत नहीं, हमारे अपनों द्वारा पार्टी को दी गई हार है…’’ पार्टी के युवा सांसदजी, जो संयोग से मुख्यमंत्री के पुत्र भी थे, ने अपने विचार व्यक्त किए.


मतगणना अपने अंतिम चरण में थी. तकरीबन सभी सीटों के नतीजे आ गए थे. विपक्षी पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की थी. वे इसे जहां अपनी नीतियों, अपने कार्यक्रमों की विजय बता रहे थे वहीं अपनी इस विजय को केंद्र सरकार के विरुद्ध जनादेश की संज्ञा दे रहे थे. वे इसे महंगाई व भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता का फैसला बता रहे थे, साथ ही इसे अगले आम चुनावों का ट्रेलर भी बता रहे थे.

जब इस विषय पर पार्टी के इस स्थानीय केंद्रीय मंत्री से पत्रकारों ने राय जाननी चाही तो उन का वक्तव्य था, ‘‘नगर निगम के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े व जीतेहारे जाते हैं, ऐसे में यह जनादेश केंद्र की सरकार के विरुद्ध कैसे हो गया? भ्रष्टाचार और महंगाई से लड़ने के उपाय खोजे जा रहे हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस स्तर के चुनावों में ये मुद्दे कोई माने रखते हैं? पूरे नतीजे आने के बाद, इन नतीजों की पार्टी द्वारा समीक्षा की जाएगी. लेकिन जनता हम से नाराज है, या उस का हम से मोहभंग हो गया हो, ऐसी कोई बात नहीं है. हमें अपनी नीतियों पर विश्वास है. आप देखिएगा, नगर निगम में हार के बावजूद हम आगे जीतेंगे.’’

शाम तक पूरे नतीजे आ गए. तसवीर स्पष्ट हो गई. जीतने वाले जश्न मना रहे थे, पटाखे फोड़ रहे थे, नाचगा रहे थे. इस सारे माहौल के बीच पार्टी के एक और बड़े नेता का बयान आ गया. दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कहा, ‘‘चुनावों में हारजीत तो लगी ही रहती है.’’

इतने सारे बयान, ढेर सारे बहाने, बरगलाने, असली मुद्दों से मुंह चुराने वाली ढेर सारी बातें, लेकिन आप ही बताइए, शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति से समस्याओं से सामना किया जा सकता है क्या? जनता की समस्याएं हल की जा सकती हैं क्या? उस का विश्वास जीता जा सकता है क्या? ये लोग यह क्यों नहीं समझते कि जनता के सुखदुख को न समझने पर, उस में सहभागी न होने पर आप बहाने चाहे लाख बना लें, चुनाव नहीं जीत सकते.


संजय अय्या











best story best story in hindi crime story crime story online ghamasaan ghamasaan best story ghamasaan hindi kahani ghamasaan hindi story ghamasaan story in hindi hindi kahani hindi kahani online hindi story hindi story online story in hindi thriller story thriller story online

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं. ...

आज के टॉप 4 शेर (friday feeling best 4 sher collection)

आज के टॉप 4 शेर ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ - लाल चन्द फ़लक मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - अल्लामा इक़बाल उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे - जिगर मुरादाबादी हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी - अहमद फ़राज़ साहिर लुधियानवी कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया कैफ़ी आज़मी इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद बशीर बद्र दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों वसीम बरेलवी आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है - वसीम बरेलवी मीर तक़ी मीर बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो - मीर तक़ी...

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे...