Kitne Gambhir Sawal : मुझे चारों ओर से सवालों ने घेर रखा है । बहुत सारे सवाल । तरह - तरह के सवाल । हर जगह सवाल । संख्या में कहा जाए तो अनगिनत हैं । एक बैठ भी नहीं पाता है कि दूसरा खड़ा हो जाता है । सभी सवाल दावा करते हैं ।
कि वे अत्यधिक गंभीर प्रवृत्ति के हैं और बेहद ही चिंतनीय । देश सवालों से घिरा हुआ है । कभी जाति - धर्म के सवाल तो कभी नागरिकता का सवाल । कभी भ्रष्टाचार का स्थाई सवाल तो कभी मंहगाई का सवाल । कभी भाषावाद तो कभी मूल्यों की गिरावट । सवाल बहुत हैं , पर हल भी असंख्य है । हर आदमी के हाथ में एक हल है । हर आदमी अपने हल को सवालों के हल के लिए एकमात्र समाधान बता रहा है ।
वो हल लिए घूम रहा है , फिर भी सवाल हैं कि खड़े हो रहे हैं । सवालों की चुभन अक्सर लोगों को गहराई तक काटती रहती है और पीड़ा पहुंचाती रहती है , पर कहीं कोई उपचार नहीं मिलता । सवाल इसी उम्मीद में डंक मारता हुआ पैदा ही होता है कि कहीं से कोई मरहम रूपी समाधान तो आएगा । वह आते ही देश के पटल पर छा जाता और चंद लम्हों में सभी सवालों का हल निकल जाता । मैं भी आश्वस्त हो जाता ।
सब आश्वस्त हो जाते । लगता है कि बस अब सुलझा कि तब सुलझा । पर पता नहीं क्यों , हर सवाल फिर भी वहीं का वहीं खड़ा मिलता है । हलों की लंबी श्रृंखला सवालो को बहुत ही उलझा देती है । सवाल हैं कि जितने हाथों में जाते हैं , उतने ही नए सवाल खड़े कर देते हैं । सवाल की गहनता से हर क्षेत्र पीड़ित है । हर क्षेत्र में सवाल । कितनी डिग्री पर राष्ट्रभक्ति का पानी देशप्रेम की भाप में परिवर्तित होता है , कब सामाजिक नैतिकता अनैतिकता में बदल जाती है , इन सब को लेकर अलग - अलग बातें हैं , अलग - अलग मत हैं । साहित्य में तो बहुत ही गहरे सवाल हैं । परसाई का पैमाना लिए हर व्यंग्य के आकलन का सवाल है ।
पर परसाई बने तो जो घर फूंके आपनौ का ज्वलंत सवाल । घर भरने के दौर में घर फूंकने का सवाल ही कहां खड़ा होता है । धर्म में भी सवाल । प्रांतों में चले जाओ तो स्थानीयता का सवाल । सब एक - दूसरे को समाधान बता रहे हैं , पर किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं मिल पाता । बस यही पीड़ा मन को सालती रहती है ।