Tel wale pani ka swad तेल वाले पानी का स्वाद
उसी रात पूनाची को बुखार आ गया । उसका शरीर जल रहा था और होंठ धूप में जलकर काले पड़ गए थे । पलकें एक - दूसरे से चिपकी पड़ी थीं । जख्म का खून सूखकर पपड़ी बन चुका था । जब बूढी ने अपनी हथेली पूनाची के शरीर पर रखी तो उसके शरीर को तपता पाया । बकरी के बच्चों की कनछिदाई के बाद आमतौर पर उनको बुखार आ ही जाता था , लेकिन बूढ़ी ने पहली बार किसी बच्चे को इतना तेज बुखार आते देखा था ।
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Tel wale pani ka swad Kahani
ऐसे में तो बकरी के बच्चे मर भी जाते होंगे । जो बेचारे बच जाते होंगे , उनके जख्मों को भरने में भी न जाने कितना वक्त लगता होगा । " हाय , बेचारी । तूने क्या उससे झगड़ा कर लिया था ? देखो तो जरा कैसे नस छेद दी है उसने ! तुम जहां भी जाती हो , मुसीबत क्यों मोल लेती हो ? " बूढ़ा अपनी बीवी पर चिल्लाया । बूढ़ी दौड़ती हुई आई और उसने फिर से बकरी के कान देखे । जख्म से अब तो मवाद निकलने लगा था । बेचारी जमीन पर मरणासन्न पड़ी हई थी । " मन कुछ नहीं कहा । बस इतना कहा कि सई जरा बचाकर लगाना , " बढी ने कहा । " हम जैसे लोग तभी बच पाएंगे , अगर हम अपनी जुबान पर काबू रखना सीख जाएं । वे लोग हमें मारें - पीटें , तो भी हमें सिर्फ अपने में बदबुदाना चाहिए , ऐसे कि हमारे पड़ोसियों को भी हमारी सांसों की खबर न मिले ।
Hindi Kahani Tel wale pani ka swad Kahani
फिर बूढ़ी थोड़ा सा गर्म पानी लेकर आई और एक दीये की मदद से पूनाची को ऐसे पिलाने लगी , जैसे किसी नवजात को दूध पिला रही हो । उसने सोचा कि पूनाची क्या पता बचे न बचे , लेकिन वह अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ेगी । वैसे उसे पूरा यकीन था कि पूनाची बच जाएगी , क्योंकि उसने अपने कुलदेवता मेसय्यन से उसकी लंबी उम्र की मन्नत मांगी थी । बकरी बच गई ।
लेकिन जख्म भरने में बहुत वक्त लगा । बार - बार घाव फूटकर रिसने लगता था । बूढ़ी अलग - अलग पत्तियां और जड़ी - बूटियां लगाने की कोशिश करती , लेकिन फिर घाव में मवाद भर जाता और रिसता रहता । " अगर कोई राह चलता कुत्ता किसी के माथे कुछ डाल दे तो क्या उसे उठाकर घर ले आना चाहिए ? उस वक्त उसकी अक्ल कहां चली गई थी ? अब उसने इस मरियल को मेरे माथे लाद दिया है और खुद खेतों में आराम फरमाने चला गया है , " बूढ़ी अपने पति पर बहुत नाराज होती थी , लेकिन पूनाची की सेवा - सुश्रुषा में कोई कमी नहीं छोड़ती थी । एक महीने के बाद जाकर मवाद सूखने लगा ।
धीरे - धीरे जख्म भी भरने लगा । उस एक महीने में पूनाची एक लम्हे के लिए भी बूढ़ी के बगल से नहीं हटी थी । बूढ़ी जहां - जहां जाती , पूनाची उसके पीछे - पीछे हो लेती । यहां तक कि खाना बनाते हुए भी और झाडू लगाते हुए भी । " यह तुम्हारे लिए नहीं है । मैं तुम्हें कुछ और देती हूं , " खाना खाते हुए उसका मुंह ताकती पूनाची को वह प्यार से कहती थी । और फिर वाकई में रात भर पानी में डूबी तेल की डिबिया से पानी निकालकर , एक बोतल में भरकर वह पूनाची को धीरे - धीरे ट्यूब के सहारे पिलाया करती थी । पुनाची को तेल वाले पानी का स्वाद अच्छा लगता था । बूढ़ी के हाथों को अपनी मां का थन समझकर वो उससे चिपककर धीरे - धीरे हिलते हुए अपना पेट भर लिया करती ।
" अरे तू ऐसे नहीं भी डोलेगी तो खाना निकलेगा , कन्नू । चल धीरे - धीरे पी ले , " बूढ़ी उससे कहा करती थी ।
लेकिन जख्म भरने में बहुत वक्त लगा । बार - बार घाव फूटकर रिसने लगता था । बूढ़ी अलग - अलग पत्तियां और जड़ी - बूटियां लगाने की कोशिश करती , लेकिन फिर घाव में मवाद भर जाता और रिसता रहता । " अगर कोई राह चलता कुत्ता किसी के माथे कुछ डाल दे तो क्या उसे उठाकर घर ले आना चाहिए ? उस वक्त उसकी अक्ल कहां चली गई थी ? अब उसने इस मरियल को मेरे माथे लाद दिया है और खुद खेतों में आराम फरमाने चला गया है , " बूढ़ी अपने पति पर बहुत नाराज होती थी , लेकिन पूनाची की सेवा - सुश्रुषा में कोई कमी नहीं छोड़ती थी । एक महीने के बाद जाकर मवाद सूखने लगा ।
धीरे - धीरे जख्म भी भरने लगा । उस एक महीने में पूनाची एक लम्हे के लिए भी बूढ़ी के बगल से नहीं हटी थी । बूढ़ी जहां - जहां जाती , पूनाची उसके पीछे - पीछे हो लेती । यहां तक कि खाना बनाते हुए भी और झाडू लगाते हुए भी । " यह तुम्हारे लिए नहीं है । मैं तुम्हें कुछ और देती हूं , " खाना खाते हुए उसका मुंह ताकती पूनाची को वह प्यार से कहती थी । और फिर वाकई में रात भर पानी में डूबी तेल की डिबिया से पानी निकालकर , एक बोतल में भरकर वह पूनाची को धीरे - धीरे ट्यूब के सहारे पिलाया करती थी । पुनाची को तेल वाले पानी का स्वाद अच्छा लगता था । बूढ़ी के हाथों को अपनी मां का थन समझकर वो उससे चिपककर धीरे - धीरे हिलते हुए अपना पेट भर लिया करती ।
" अरे तू ऐसे नहीं भी डोलेगी तो खाना निकलेगा , कन्नू । चल धीरे - धीरे पी ले , " बूढ़ी उससे कहा करती थी ।
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