परिचय :- Poet D.H. Lawrence Famous Poem
अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि । कई कविता संग्रह प्रकाशित । कहानी , नाटक , संस्मरण और उपन्यास भी लिखा ।
Poet D.H. Lawrence
प्रार्थना मेरे पांव के पास चांदनी बिछाओ भगवान !
दूज के चांद पर मुझे खड़ा करो
किसी महाराजा के समान ।
टखने डूबे हों चांदनी में ,
मेरे मोजे मुलायम , चमकदार हों ,
और मेरे मस्तक पर
चांदनी की झरती फुहार हो ।
शीतलता पर इतराऊं , चमक पर मचलूं
चांदनी में तैरता हुआ मंजिल की ओर चलूं ।
क्योंकि सूरज काल हो गया है ।
उसका चेहरा शेर के समान लाल हो गया है ।
अकेलेपन का आनंद
यह भी पढ़े:- एक और जंजीर तड़कती है | बोलो भारत मां की जय
अकेलेपन से बढ़कर
आनंद नहीं , आराम नहीं ।
स्वर्ग है वह एकांत ,
जहां शोर नहीं , धूमधाम नहीं ।
देश और काल के प्रसार में ,
शून्यता , अशब्दता अपार में
चांद जब घूमता है , कौन सुख पाता है ?
भेद यह मेरी समझ में तब आता है ,
होता हूं जब मैं अपने भीतर के प्रांत में ,
भीड़ से दूर किसी निभृत एकांत में ।
और तभी समझ यह पाता हूं
पेड़ झूमता है किस मोद में
खड़ा हुआ एकाकी पर्वत की गोद में ।
बहता पवन मंद - मंद है ।
पत्तों के हिलने में छंद है ।
कितना आनंद है !
शून्यता , अशब्दता अपार में
चांद जब घूमता है , कौन सुख पाता है ?
भेद यह मेरी समझ में तब आता है ,
होता हूं जब मैं अपने भीतर के प्रांत में ,
भीड़ से दूर किसी निभृत एकांत में ।
और तभी समझ यह पाता हूं
पेड़ झूमता है किस मोद में
खड़ा हुआ एकाकी पर्वत की गोद में ।
बहता पवन मंद - मंद है ।
पत्तों के हिलने में छंद है ।
कितना आनंद है !
यह भी पढ़े:- Amitabh bachchan poetry in hindi