गधे संग सेल्फी लेने का सुख
राजेश सेन
एक कहावत है कि बुरे वक्त में गधे को भी ए बाप बनाना पड़ता है । मतलब यह है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए वक्त के हिसाब से बदलना पड़ता है ।
स्वार्थ की धुरी पर घूम रही बाप - बेटे की . यह प्रतीकात्मक रिश्तेदारी आज के मौकापरस्त जीवन का शाश्वत सत्य बन चुकी है ।
Hindi kids story
वे लोग बदकिस्मत हैं , जिन्होंने कभी किसी गधे को बाप नहीं बनाया है और वे गधे भी बदकिस्मत हैं , जिन्होंने अब तक किसी इंसान को बेटे के रूप में पाने का गौरव हासिल नहीं किया है । अव्वल तो बनने - बनाने का काम गधे का नहीं , इंसानों का है , फिर भी न जाने कितने गधे व इंसान बाप - बेटे बनने के इंतजार में यूं ही जीवन काट रहे हैं ।
मजबूरी देखिए कि इस करार की हम खुशी भी नहीं मना सकते , क्योंकि इस स्थिति में गधे की पदवी तो बाइज्जत बरकरार रहेगी , जबकि आदमी की पदवी गिरकर गये के समकार हो जाने का खतरा आखड़ा होगा । इसके ठीक उलट दोनों को ' निरे आदमी ' भी नहीं कह सकते , क्योंकि तब यहाँ आदमी तो तटस्थ होकर आदमी ही बना रहेगा , जबकि गधा आदमी के रूप में पदोन्नति पाकर फायदे में आ जाना ।
Hindi short story
गधे का आदमी कहलाना , आदमी के लिए एक अस्वीकार्य घटना होगी । गथा विशुद्ध मुर्खता का प्रतीक होता है । वह आदमी की मूर्खता को प्रतीकात्मक रूप से परिभाषित करने का अंतिम प्रचलित बिंदु भी है । ' बरे समय में गधे को भी बाप बनाना पड़ता है ' कहावत से यह कतई सिद्ध नहीं होता कि गधा बाप बनने की नैतिक पात्रता रखता है । हां , आदमी अपने फायदे के लिए कहावत के निहित मंतव्य के अनुसार समय - समय पर गधे की पात्रता अवश्य रखता है । गधा बेचारा तो स्वार्थ सिद्धि की ' एबीसीडी ' भी नहीं जानता ।
बेहतर है कि अपना काम निकालने के लिए किसी गधे को अपना बाप बनाया जाय और काम निकल जाने पर अपने पुत्र होने की पदवी से त्यागपत्र दे दिया जाय । मसला यह है कि इंसान अपने पुत्र होने की पदवी से भले ही इस्तीफा दे दे , मगर गधा त्यागपत्र नहीं दे सकता । यही मजबूरी उसे निःस्वार्थ और आदमी को काम - निकालू घोषित करती है ।
Hindi kahani
आप त्याग की दृष्टि से तो गधे को बड़ा बता सकते हैं , मगर यदि गधा बड़ा हुआ तो उस स्वार्थ सिद्धि का क्या , जिसके सिद्ध हो जाने पर इंसान गधे सरीखों मनुष्यों को भी बाप या हुक्म परस्त पालतू जीव बना लेते हैं । अब आप कहेंगे कि भाई तब तो आदमी ही बड़ा हुआ ! तब प्रश्न यह पूछा जाएगा कि यदि आदमी बड़ा है , तो वह अपनी स्वार्थ - सिद्धि के लिए गधे जैसे मनुष्यों की जी - हुजूरी करने को क्यों विवश है ?
राजेश सेन
एक कहावत है कि बुरे वक्त में गधे को भी ए बाप बनाना पड़ता है । मतलब यह है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए वक्त के हिसाब से बदलना पड़ता है ।
स्वार्थ की धुरी पर घूम रही बाप - बेटे की . यह प्रतीकात्मक रिश्तेदारी आज के मौकापरस्त जीवन का शाश्वत सत्य बन चुकी है ।
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वे लोग बदकिस्मत हैं , जिन्होंने कभी किसी गधे को बाप नहीं बनाया है और वे गधे भी बदकिस्मत हैं , जिन्होंने अब तक किसी इंसान को बेटे के रूप में पाने का गौरव हासिल नहीं किया है । अव्वल तो बनने - बनाने का काम गधे का नहीं , इंसानों का है , फिर भी न जाने कितने गधे व इंसान बाप - बेटे बनने के इंतजार में यूं ही जीवन काट रहे हैं ।
मजबूरी देखिए कि इस करार की हम खुशी भी नहीं मना सकते , क्योंकि इस स्थिति में गधे की पदवी तो बाइज्जत बरकरार रहेगी , जबकि आदमी की पदवी गिरकर गये के समकार हो जाने का खतरा आखड़ा होगा । इसके ठीक उलट दोनों को ' निरे आदमी ' भी नहीं कह सकते , क्योंकि तब यहाँ आदमी तो तटस्थ होकर आदमी ही बना रहेगा , जबकि गधा आदमी के रूप में पदोन्नति पाकर फायदे में आ जाना ।
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गधे का आदमी कहलाना , आदमी के लिए एक अस्वीकार्य घटना होगी । गथा विशुद्ध मुर्खता का प्रतीक होता है । वह आदमी की मूर्खता को प्रतीकात्मक रूप से परिभाषित करने का अंतिम प्रचलित बिंदु भी है । ' बरे समय में गधे को भी बाप बनाना पड़ता है ' कहावत से यह कतई सिद्ध नहीं होता कि गधा बाप बनने की नैतिक पात्रता रखता है । हां , आदमी अपने फायदे के लिए कहावत के निहित मंतव्य के अनुसार समय - समय पर गधे की पात्रता अवश्य रखता है । गधा बेचारा तो स्वार्थ सिद्धि की ' एबीसीडी ' भी नहीं जानता ।
बेहतर है कि अपना काम निकालने के लिए किसी गधे को अपना बाप बनाया जाय और काम निकल जाने पर अपने पुत्र होने की पदवी से त्यागपत्र दे दिया जाय । मसला यह है कि इंसान अपने पुत्र होने की पदवी से भले ही इस्तीफा दे दे , मगर गधा त्यागपत्र नहीं दे सकता । यही मजबूरी उसे निःस्वार्थ और आदमी को काम - निकालू घोषित करती है ।
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आप त्याग की दृष्टि से तो गधे को बड़ा बता सकते हैं , मगर यदि गधा बड़ा हुआ तो उस स्वार्थ सिद्धि का क्या , जिसके सिद्ध हो जाने पर इंसान गधे सरीखों मनुष्यों को भी बाप या हुक्म परस्त पालतू जीव बना लेते हैं । अब आप कहेंगे कि भाई तब तो आदमी ही बड़ा हुआ ! तब प्रश्न यह पूछा जाएगा कि यदि आदमी बड़ा है , तो वह अपनी स्वार्थ - सिद्धि के लिए गधे जैसे मनुष्यों की जी - हुजूरी करने को क्यों विवश है ?