Hindi Kahani Khabardar Jo Pair Chhuye
पैर छूने और चापलूसी की महिमा के बीच आखिर क्या है कनैक्शन?
आलोक सक्सेना
Hindi Kahani Khabardar Jo Pair Chhuye
प्यारे बंधुओ, वर्षों से पैर छूने की कला में पारंगत अपने सांसद सदमे में आ गए हैं. प्रधानमंत्रीजी ने सार्वजनिक रूप से नसीहत देते हुए कह दिया है कि कोई भी उन के न तो पैर छुए और न ही चापलूसी करे. प्रधानमंत्रीजी ने अपने भाषण के दौरान कहा, ‘‘जब कोई मेरे पैर छूता है तो मुझे गुस्सा आता है. मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आया हूं. संघ के सरसंघचालक गुरुजी कहते थे कि एक बार पैर छूने पर उन की उम्र एक दिन घट जाती है.’’
प्रधानमंत्रीजी ने यह भी कहा, ‘‘सभी सांसद जनता से सीधे संवाद करें. सदन में ज्यादा से ज्यादा मौजूद रहें. प्रवक्ता की तरह न बोलें. बहस में ज्यादा हिस्सा लें. संसदीय क्षेत्र की बात करें. क्षेत्र के विकास की चिंता करें. मुद्दे उठाने का होमवर्क करें, किसी भी सीनियर नेता के पांव न छुएं, संसद के सभी सत्रों में मौजूद रहें और सदन में बोलने से पहले पूरी तैयारी कर के आएं. प्रत्येक सांसद अपना काम पूरी ईमानदारी और लगन से करे. यही उन का सच्चे तौर पर पैर छूना समझा जाएगा.’’ जी हां, प्रधानमंत्रीजी ने सच ही तो कहा है, भला इस में बुरा भी क्या है? आप यदि बुरा न मानें तो मैं यहां पर पूरी तरह से अपने प्रधानमंत्रीजी के साथ हूं और मैं भी अपने भारतवासियों से कहना चाहूंगा कि अपने भारत के सभी नागरिक यदि उन की इन बातों पर अमल करें तो भावी पीढ़ी पैर छूने का सच्चा अर्थ भूल कर बस अपना काम से काम रखना सीख जाएगी. परिणामस्वरूप वह बातबात पर केवल अपना उल्लू ही सीधा करती हुई नजर आएगी.
मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों मुझे दिल्ली के रजिस्ट्रार कार्यालय में अपने एक 75 वर्षीय सेवानिवृत्त आला अधिकारी के फ्लैट की रजिस्ट्री के लिए उन के गवाह के रूप में पेश होना पड़ा. तो उन से मिलने पर जैसे ही मैं पूरे सम्मान के साथ उन के पैर छूने हेतु झुका, उन्होंने तुरंत मेरे कंधों को स्नेह से पकड़ कर मुझे उठा लिया और बोले, ‘‘अरे सक्सेना साहब, यह क्या कर रहे हैं? आज आप का वक्त है, आप हमारे काम के लिए अपने कीमती सरकारी समय में से समय निकाल कर यहां आए हैं. इसलिए आज हम आप के आभारी हुए, आप नहीं. आज मैं आप का साहब नहीं, आप हमारे साहब हैं. वैसे भी तो अब मैं रिटायर हो चुका हूं. पैर छू कर आप ने तो मुझे भावुक कर दिया. मुद्दत हो गई किसी ने पैर नहीं छुए. शासन में था तो रोजाना ही कोई न कोई पैर छुए बिना मानता ही नहीं था. अब तो अपना सगा बेटा भी पैर नहीं छूता है. हैलो, हाय, डैड कह कर काम चलाता है. धन्य हैं आप के संस्कार जो आप ने निसंकोच हो कर पैर छूने के आचरण को अभी तक अपने जीवन में बनाए रखा.’’
उन की स्नेहिल बातें सुन कर मैं मन ही मन गौरवान्वित और धन्य महसूस करने लगा और सोचने लगा कि यहां आ कर हम ने इन पर भला कौन सा एहसान कर दिया? कौन सा हम पैदल चल कर यहां आए हैं? अपने निदेशालय के वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी से पहली बार सम्मान के साथ इजाजत और सरकारी वाहन पर सवार हो कर शान से इन के काम के लिए निकले हैं. वैसे भी हमें तो आला अधिकारियों के कामकाज के लिए अपने सरकारी समय में से समय चुराने की पुरानी आदत है. इस परमसुख कार्य का हमें बहुत अभ्यास भी है. इसलिए दिक्कत नहीं आती है. इस बार फर्क सिर्फ इतना था कि अब की बार जिन सेवानिवृत्त आला अधिकारी की मदद करने हेतु हम अपने सरकारी कार्यालय से बाहर निकले थे वे हमारे वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी के समकक्ष आला अधिकारी थे.
एक आला अधिकारी दूसरे आला अधिकारी की मदद न करे, यह तो हो ही नहीं सकता. वह आला अधिकारी ही क्या जो अपने और अपने सगेसंबंधियों व परिचितों के निजी कामकाज के लिए अपने अधीनस्थों का जम कर प्रयोग ही न कर पाए. भला भाईचारा भी कोई चीज होती है. वे भी भूतपूर्व आला अधिकारी थे इसलिए वर्तमान आला अधिकारी ने हमें अपने सरकारी समय में ही उन का जरूरी निजी कामकाज निबटा देने हेतु बिना नाकभौं सिकोड़े हुए अपनी सहमति के साथसाथ हमारे जाने और आने हेतु ससम्मान अपनी सरकारी गाड़ी भी प्रदान करा दी थी. सरकारी कार्यालय के सरकारी समय में कार्यालय में रहते हुए फाइलों पर कामकाज करो या आला अधिकारियों के निजी कामकाज हेतु कार्यालय से बाहर निकल जाओ, ये दोनों ही कार्य दफ्तरी संस्कृति में सरकारी कार्यकुशलता के दायरे में आते हैं. इन दोनों कार्यों में पारंगत होने वाला सरकारी अधिकारी हो या कर्मचारी या फिर चपरासी, तीनों ही उत्कृष्टता का खिताब पाते हैं.
बंधु, आप ने यह भी सुना ही होगा कि अब आजकल पैर न छुए जाने की नई कला की बदौलत अपना इंडिया ‘स्कैम इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘स्किल इंडिया’ बनने जा रहा है. सरकारी दफ्तरी संस्कृति में आला अधिकारियों के पैर छूना चमचागीरी का परिचायक माना जाता है, तो वहीं यह बात अलग है कि अपने से बड़ों के पैर छूना हमारी परंपरा भी है, जो व्यक्तिगत सम्मानसूचक है.खैर, फिलहाल लगता है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए पैर छूने की वर्षों पुरानी परंपरागत कला के दिन अब खत्म होने वाले हैं. जल्दी ही यह कला विलुप्त हो जाएगी. वैसे भी, वर्तमान में आधुनिक युवा पैर कम, थोड़ा सा झुक कर घुटने छू ने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. अपने देश के कुछेक सांसदों को छोड़ कर, युवाओं को तो पैर छूना फजीहत का काम ही लगता है. वे तो मौकापरस्ती का फायदा उठाने के लिए ही पैर छूने में विश्वास रखते हैं, इस से अधिक कुछ नहीं.
अरेअरे बंधु, यह सब पढ़ कर आप किस सोच में पड़ गए? क्या आप को लगता है कि भविष्य में पैर छूना भी घोटालों यानी कि स्कैम में शामिल कर लिया जाएगा? या फिर भविष्य में यदि कोई भी सांसद पैर छूता हुआ दिखाई दे गया या फिर गुप्तरूप में प्रयास भी करता हुआ पाया गया तो उस को 2 साल की जेल या फिर 1 लाख रुपए जुर्मानारूपी सजा हो सकती है? नहींनहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा परंतु यदि यही हाल रहा तो मेरा विश्वास है कि अपने देश में अब एक नया पैर न छुओ नियंत्रण बोर्ड अवश्य बन सकता है. इस के लिए ट्रैफिक नियंत्रण इंस्पैक्टर और अधिकारियों की तरह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टरों व अधिकारियों की भरती की जाएगी. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों पर नियंत्रण रखने के लिए पैर नियंत्रण महानिदेशालय खोला जाएगा. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों की पोस्ंिटग संसद भवन और संसदीय कार्यालयों में की जाएगी.
पैर नियंत्रण महानिदेशालय ऐसे बेरोजगार शिक्षित युवाओं की भरती पर विशेष ध्यान देगा जिन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान एक भी अध्यापक व प्रवक्ता के कभी भी पैर न छुए हों. इस बात की पुख्ता पहचान के लिए कोई विशेष सर्टिफिकेट तो अभी तक नहीं बना है मगर भरती हेतु चयनित हुए युवाओं को नंगा कर के उन्हें साष्टांग दंडवत होने हेतु कहा जाएगा जो जितनी जल्दी साष्टांग दंडवत हो जाएगा, बस, वह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के टैस्ट में फेल कर दिया जाएगा अर्थात स्पष्ट शब्दों में कहूं तो इस परीक्षा में फेल हो जाने के बाद में लाख बार पैर पकड़ने पर भी उस का देश के इस नए पद यानी पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर हेतु चयन नहीं होगा.
पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के बाद आप की इस संबंध में अगली आवश्यक जानकारी के लिए बता दूं कि पैर नियंत्रण अधिकारी हेतु नए पदों की भरती की निस्वार्थ चयन प्रक्रिया में 2 टैस्ट होंगे.
पहला, सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट व दूसरा मैडिकल द्वारा रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों की जांच. पहले सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट में केवल साष्टांग दंडवत प्रणाम प्रदर्शन द्वारा जांच कर ली जाएगी कि किस अभ्यार्थी का पैर छूने का किस प्रकार का अभ्यास है और अभ्यास है भी या नहीं. दूसरे टैस्ट में सीटी स्कैन और एमआरआई के द्वारा उस की रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों के बारबार मुड़ने की कोणीय टैंडेंसी तथा सैंसिटिविटी को परखा जाएगा. यहां भरती होने के चक्कर में भी यदि किसी युवा ने एक भी बार किसी वरिष्ठ चिकित्सक या फिर परीक्षाभवन में उपस्थित पर्यवेक्षक के पैर छूने की कोशिश की या छूता हुआ दिखाई दिया तो वह अगले ही पल अपने पैरों को सिर पर रख कर भागता हुआ ही नजर आएगा क्योंकि परीक्षा भवन और आसपास गैलरी आदि में लगे हुए खुफिया कैमरे उस पर अपनी पारखी नजर बनाए रखेंगे.
कैमरा नियंत्रण कक्ष में उपस्थित सीनियर अफसर ऐसे अभ्यर्थी को परीक्षा में बैठने से वंचित करार दे कर परीक्षा भवन से बाहर कर देने का धक्कारूपी अधिकार रख कर भगा भी सकते हैं. किसी के भी पैर छूना या फिर परीक्षा भवन या कक्ष में अपने पैरों के आसपास मंडराते मच्छर, मक्खियों को हटाने हेतु भी झुकने पर उसे पैर छूने का अभ्यासकर्म मान कर परीक्षा नियमों का उल्लंघन ही माना जाएगा. जो युवा अपनी परीक्षा देने भवन में अंदर जाते समय भी यदि बाहर खड़े अपने पिताजी, चाचाजी, ताऊजी इत्यादि बड़े बुजुर्गों के पैर छूते हुए दिखाई दिए तो उन के भी भरती न होने के प्रतिशत की दर बढ़ सकती है.
अब आप सोच रहे होंगे कि पैर छूना तो भारतीय परंपरा का हिस्सा है. अपने यहां तो भारतीय परंपरा में हर मौके पर ही पैर छुए जाते हैं. अपने देश में स्त्री के आंसू और पुरुष का पैरों पड़ना कठिन से कठिन काम भी आसान बना देता है. दरअसल, अपने देश में बिना मौके आंसू निकालना और पैर पड़ना दोनों ही सामाजिक कला के पारंपरिक उत्कृष्ट नमूने हैं. इन उत्कृष्ट कलाओं में पारंगत होने वाले को ही अब तक अपने देश में महान पद हासिल हुआ करते थे, जो शायद अब आसानी से नहीं मिलेंगे. अपने यहां एक कहावत है कि ‘अफसर के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं आना चाहिए.’ तो बंधु, यहां भी कला आड़े आ गई और प्रधानमंत्रीजी के आगे भरी सभा में पैरी पौना हुए सांसद वर्षों की पारंपरिक कला का उपयोग करने से वंचित हो गए. उन्हें आशीर्वाद का वह लड्डू नहीं मिल पाया जिस की उन्होंने तमन्ना की थी. उन का पैर छूने का संपूर्ण हुनरमंद फार्मूला, आत्मविश्वास व अभ्यासकर्म इस बार पहली बार सब फेल हो गया.
आप भी यदि अपने बड़े होते हुए, राजनीति में हुनरमंद बच्चों को सांसद बनाना चाहते हैं तो आप को उन की बेहतरीन सफलता के लिए चुनाव के दौरान ही जम कर प्रशिक्षण देना होगा कि वे आप के और अपने महल्ले के समस्त बड़ेबुजुर्गों के पैर छूना तुरंत बंद कर दें. यदि उन्हें भारतीय परंपरा के अंतर्गत पैर छूने की लत लगी हुई हो तो उन्हें किसी पहलवान के अखाडे़ में भेज कर शारीरिक मल्लयुद्ध का अभ्यास करवाएं ताकि वे तमाम बार परास्त हो कर भी अपनी जीत और आशीर्वाद के लिए कभी भी किसी के पैर न छुएं. बातबात पर पैर छूना उन के भविष्य के राजनीतिक कैरियर को समाप्त कर सकता है. सो, पैर छूने से बचें. पैर से जा लगना, पैर पर सिर रखना, पैरा हुआ होना, पैरों में पर लगना, पैरों में बेडि़यां डालना, पैरों में मेहंदी लगा कर बैठना, पैरों चलना आदि के वास्तविक मूल अर्थ को भुला कर अब अपना इंडिया स्कैम नहीं स्किल इंडिया बनने जा रहा है. जहां पर प्रधानमंत्रीजी और सीनियरों के पैर छूना मना है. आप भी अपना संयम बनाए रख कर, देश की तरक्की में अपना योगदान दें और यदि आप पैर छूने का विकल्प ढूंढ़ रहे हों तो आप की जानकारी के लिए मैं ने आप के लिए अपना शोधकार्य पहले ही पूरा कर लिया है.
मेरे शोधकार्य का निष्कर्ष जनहित में जारी किया जा रहा है, ‘‘भाइयो, जहां पर पैर छूना मना हो वहां अपने चेहरे की बनावटी हंसी व गरदन हिलाने यानी हिनहिनाने के अभ्यासोपरांत आसानी से काम चलाया जा सकता है.’’ इसलिए पैर छूने के चक्कर में न पड़ कर आज से ही अपने चेहरे पर बनावटी हंसी व गरदन हिलाने का अभ्यास शुरू कर दें. इस अभ्यास से भविष्य में अवश्य लाभ होगा. तो बंधु, अब टैंशन किस बात की है, जो पैरों में अपनी आंखें गड़ाए बैठे हो. उठिए और मुसकराइए. बेझिझक हो कर विश्वास के साथ आगे बढ़ जाइए. मेरा विश्वास है कि आप को पैर छू कर मिलने वाले लाभ से ज्यादा स्नेहिल और मनचाही सफलता अवश्य हाथ लगेगी. आखिर अपने प्रधानमंत्रीजी द्वारा मिली नई जानकारी के तहत एक बार पैर छूने पर पैर पूजे जाने वाले की उम्र 1 दिन घट जाती है. आप को इस बात का खयाल भी तो अवश्य रखना ही होगा ना. तभी तो आप को उन के पैरों पर पड़ने की जगह, उन के सीने से लगने का लंबा मौका मिलेगा.
पैर छूने और चापलूसी की महिमा के बीच आखिर क्या है कनैक्शन?
आलोक सक्सेना
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प्यारे बंधुओ, वर्षों से पैर छूने की कला में पारंगत अपने सांसद सदमे में आ गए हैं. प्रधानमंत्रीजी ने सार्वजनिक रूप से नसीहत देते हुए कह दिया है कि कोई भी उन के न तो पैर छुए और न ही चापलूसी करे. प्रधानमंत्रीजी ने अपने भाषण के दौरान कहा, ‘‘जब कोई मेरे पैर छूता है तो मुझे गुस्सा आता है. मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आया हूं. संघ के सरसंघचालक गुरुजी कहते थे कि एक बार पैर छूने पर उन की उम्र एक दिन घट जाती है.’’
प्रधानमंत्रीजी ने यह भी कहा, ‘‘सभी सांसद जनता से सीधे संवाद करें. सदन में ज्यादा से ज्यादा मौजूद रहें. प्रवक्ता की तरह न बोलें. बहस में ज्यादा हिस्सा लें. संसदीय क्षेत्र की बात करें. क्षेत्र के विकास की चिंता करें. मुद्दे उठाने का होमवर्क करें, किसी भी सीनियर नेता के पांव न छुएं, संसद के सभी सत्रों में मौजूद रहें और सदन में बोलने से पहले पूरी तैयारी कर के आएं. प्रत्येक सांसद अपना काम पूरी ईमानदारी और लगन से करे. यही उन का सच्चे तौर पर पैर छूना समझा जाएगा.’’ जी हां, प्रधानमंत्रीजी ने सच ही तो कहा है, भला इस में बुरा भी क्या है? आप यदि बुरा न मानें तो मैं यहां पर पूरी तरह से अपने प्रधानमंत्रीजी के साथ हूं और मैं भी अपने भारतवासियों से कहना चाहूंगा कि अपने भारत के सभी नागरिक यदि उन की इन बातों पर अमल करें तो भावी पीढ़ी पैर छूने का सच्चा अर्थ भूल कर बस अपना काम से काम रखना सीख जाएगी. परिणामस्वरूप वह बातबात पर केवल अपना उल्लू ही सीधा करती हुई नजर आएगी.
मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि पिछले दिनों मुझे दिल्ली के रजिस्ट्रार कार्यालय में अपने एक 75 वर्षीय सेवानिवृत्त आला अधिकारी के फ्लैट की रजिस्ट्री के लिए उन के गवाह के रूप में पेश होना पड़ा. तो उन से मिलने पर जैसे ही मैं पूरे सम्मान के साथ उन के पैर छूने हेतु झुका, उन्होंने तुरंत मेरे कंधों को स्नेह से पकड़ कर मुझे उठा लिया और बोले, ‘‘अरे सक्सेना साहब, यह क्या कर रहे हैं? आज आप का वक्त है, आप हमारे काम के लिए अपने कीमती सरकारी समय में से समय निकाल कर यहां आए हैं. इसलिए आज हम आप के आभारी हुए, आप नहीं. आज मैं आप का साहब नहीं, आप हमारे साहब हैं. वैसे भी तो अब मैं रिटायर हो चुका हूं. पैर छू कर आप ने तो मुझे भावुक कर दिया. मुद्दत हो गई किसी ने पैर नहीं छुए. शासन में था तो रोजाना ही कोई न कोई पैर छुए बिना मानता ही नहीं था. अब तो अपना सगा बेटा भी पैर नहीं छूता है. हैलो, हाय, डैड कह कर काम चलाता है. धन्य हैं आप के संस्कार जो आप ने निसंकोच हो कर पैर छूने के आचरण को अभी तक अपने जीवन में बनाए रखा.’’
उन की स्नेहिल बातें सुन कर मैं मन ही मन गौरवान्वित और धन्य महसूस करने लगा और सोचने लगा कि यहां आ कर हम ने इन पर भला कौन सा एहसान कर दिया? कौन सा हम पैदल चल कर यहां आए हैं? अपने निदेशालय के वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी से पहली बार सम्मान के साथ इजाजत और सरकारी वाहन पर सवार हो कर शान से इन के काम के लिए निकले हैं. वैसे भी हमें तो आला अधिकारियों के कामकाज के लिए अपने सरकारी समय में से समय चुराने की पुरानी आदत है. इस परमसुख कार्य का हमें बहुत अभ्यास भी है. इसलिए दिक्कत नहीं आती है. इस बार फर्क सिर्फ इतना था कि अब की बार जिन सेवानिवृत्त आला अधिकारी की मदद करने हेतु हम अपने सरकारी कार्यालय से बाहर निकले थे वे हमारे वर्तमान कार्यरत आला अधिकारी के समकक्ष आला अधिकारी थे.
एक आला अधिकारी दूसरे आला अधिकारी की मदद न करे, यह तो हो ही नहीं सकता. वह आला अधिकारी ही क्या जो अपने और अपने सगेसंबंधियों व परिचितों के निजी कामकाज के लिए अपने अधीनस्थों का जम कर प्रयोग ही न कर पाए. भला भाईचारा भी कोई चीज होती है. वे भी भूतपूर्व आला अधिकारी थे इसलिए वर्तमान आला अधिकारी ने हमें अपने सरकारी समय में ही उन का जरूरी निजी कामकाज निबटा देने हेतु बिना नाकभौं सिकोड़े हुए अपनी सहमति के साथसाथ हमारे जाने और आने हेतु ससम्मान अपनी सरकारी गाड़ी भी प्रदान करा दी थी. सरकारी कार्यालय के सरकारी समय में कार्यालय में रहते हुए फाइलों पर कामकाज करो या आला अधिकारियों के निजी कामकाज हेतु कार्यालय से बाहर निकल जाओ, ये दोनों ही कार्य दफ्तरी संस्कृति में सरकारी कार्यकुशलता के दायरे में आते हैं. इन दोनों कार्यों में पारंगत होने वाला सरकारी अधिकारी हो या कर्मचारी या फिर चपरासी, तीनों ही उत्कृष्टता का खिताब पाते हैं.
बंधु, आप ने यह भी सुना ही होगा कि अब आजकल पैर न छुए जाने की नई कला की बदौलत अपना इंडिया ‘स्कैम इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘स्किल इंडिया’ बनने जा रहा है. सरकारी दफ्तरी संस्कृति में आला अधिकारियों के पैर छूना चमचागीरी का परिचायक माना जाता है, तो वहीं यह बात अलग है कि अपने से बड़ों के पैर छूना हमारी परंपरा भी है, जो व्यक्तिगत सम्मानसूचक है.खैर, फिलहाल लगता है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए पैर छूने की वर्षों पुरानी परंपरागत कला के दिन अब खत्म होने वाले हैं. जल्दी ही यह कला विलुप्त हो जाएगी. वैसे भी, वर्तमान में आधुनिक युवा पैर कम, थोड़ा सा झुक कर घुटने छू ने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. अपने देश के कुछेक सांसदों को छोड़ कर, युवाओं को तो पैर छूना फजीहत का काम ही लगता है. वे तो मौकापरस्ती का फायदा उठाने के लिए ही पैर छूने में विश्वास रखते हैं, इस से अधिक कुछ नहीं.
अरेअरे बंधु, यह सब पढ़ कर आप किस सोच में पड़ गए? क्या आप को लगता है कि भविष्य में पैर छूना भी घोटालों यानी कि स्कैम में शामिल कर लिया जाएगा? या फिर भविष्य में यदि कोई भी सांसद पैर छूता हुआ दिखाई दे गया या फिर गुप्तरूप में प्रयास भी करता हुआ पाया गया तो उस को 2 साल की जेल या फिर 1 लाख रुपए जुर्मानारूपी सजा हो सकती है? नहींनहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा परंतु यदि यही हाल रहा तो मेरा विश्वास है कि अपने देश में अब एक नया पैर न छुओ नियंत्रण बोर्ड अवश्य बन सकता है. इस के लिए ट्रैफिक नियंत्रण इंस्पैक्टर और अधिकारियों की तरह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टरों व अधिकारियों की भरती की जाएगी. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों पर नियंत्रण रखने के लिए पैर नियंत्रण महानिदेशालय खोला जाएगा. इन इंस्पैक्टरों और अधिकारियों की पोस्ंिटग संसद भवन और संसदीय कार्यालयों में की जाएगी.
पैर नियंत्रण महानिदेशालय ऐसे बेरोजगार शिक्षित युवाओं की भरती पर विशेष ध्यान देगा जिन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान एक भी अध्यापक व प्रवक्ता के कभी भी पैर न छुए हों. इस बात की पुख्ता पहचान के लिए कोई विशेष सर्टिफिकेट तो अभी तक नहीं बना है मगर भरती हेतु चयनित हुए युवाओं को नंगा कर के उन्हें साष्टांग दंडवत होने हेतु कहा जाएगा जो जितनी जल्दी साष्टांग दंडवत हो जाएगा, बस, वह पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के टैस्ट में फेल कर दिया जाएगा अर्थात स्पष्ट शब्दों में कहूं तो इस परीक्षा में फेल हो जाने के बाद में लाख बार पैर पकड़ने पर भी उस का देश के इस नए पद यानी पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर हेतु चयन नहीं होगा.
पैर नियंत्रण इंस्पैक्टर के बाद आप की इस संबंध में अगली आवश्यक जानकारी के लिए बता दूं कि पैर नियंत्रण अधिकारी हेतु नए पदों की भरती की निस्वार्थ चयन प्रक्रिया में 2 टैस्ट होंगे.
पहला, सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट व दूसरा मैडिकल द्वारा रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों की जांच. पहले सामान्य प्रयोगात्मक टैस्ट में केवल साष्टांग दंडवत प्रणाम प्रदर्शन द्वारा जांच कर ली जाएगी कि किस अभ्यार्थी का पैर छूने का किस प्रकार का अभ्यास है और अभ्यास है भी या नहीं. दूसरे टैस्ट में सीटी स्कैन और एमआरआई के द्वारा उस की रीढ़ की हड्डी और दोनों हाथों की कोहनियों व पंजों के बारबार मुड़ने की कोणीय टैंडेंसी तथा सैंसिटिविटी को परखा जाएगा. यहां भरती होने के चक्कर में भी यदि किसी युवा ने एक भी बार किसी वरिष्ठ चिकित्सक या फिर परीक्षाभवन में उपस्थित पर्यवेक्षक के पैर छूने की कोशिश की या छूता हुआ दिखाई दिया तो वह अगले ही पल अपने पैरों को सिर पर रख कर भागता हुआ ही नजर आएगा क्योंकि परीक्षा भवन और आसपास गैलरी आदि में लगे हुए खुफिया कैमरे उस पर अपनी पारखी नजर बनाए रखेंगे.
कैमरा नियंत्रण कक्ष में उपस्थित सीनियर अफसर ऐसे अभ्यर्थी को परीक्षा में बैठने से वंचित करार दे कर परीक्षा भवन से बाहर कर देने का धक्कारूपी अधिकार रख कर भगा भी सकते हैं. किसी के भी पैर छूना या फिर परीक्षा भवन या कक्ष में अपने पैरों के आसपास मंडराते मच्छर, मक्खियों को हटाने हेतु भी झुकने पर उसे पैर छूने का अभ्यासकर्म मान कर परीक्षा नियमों का उल्लंघन ही माना जाएगा. जो युवा अपनी परीक्षा देने भवन में अंदर जाते समय भी यदि बाहर खड़े अपने पिताजी, चाचाजी, ताऊजी इत्यादि बड़े बुजुर्गों के पैर छूते हुए दिखाई दिए तो उन के भी भरती न होने के प्रतिशत की दर बढ़ सकती है.
अब आप सोच रहे होंगे कि पैर छूना तो भारतीय परंपरा का हिस्सा है. अपने यहां तो भारतीय परंपरा में हर मौके पर ही पैर छुए जाते हैं. अपने देश में स्त्री के आंसू और पुरुष का पैरों पड़ना कठिन से कठिन काम भी आसान बना देता है. दरअसल, अपने देश में बिना मौके आंसू निकालना और पैर पड़ना दोनों ही सामाजिक कला के पारंपरिक उत्कृष्ट नमूने हैं. इन उत्कृष्ट कलाओं में पारंगत होने वाले को ही अब तक अपने देश में महान पद हासिल हुआ करते थे, जो शायद अब आसानी से नहीं मिलेंगे. अपने यहां एक कहावत है कि ‘अफसर के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी कभी नहीं आना चाहिए.’ तो बंधु, यहां भी कला आड़े आ गई और प्रधानमंत्रीजी के आगे भरी सभा में पैरी पौना हुए सांसद वर्षों की पारंपरिक कला का उपयोग करने से वंचित हो गए. उन्हें आशीर्वाद का वह लड्डू नहीं मिल पाया जिस की उन्होंने तमन्ना की थी. उन का पैर छूने का संपूर्ण हुनरमंद फार्मूला, आत्मविश्वास व अभ्यासकर्म इस बार पहली बार सब फेल हो गया.
आप भी यदि अपने बड़े होते हुए, राजनीति में हुनरमंद बच्चों को सांसद बनाना चाहते हैं तो आप को उन की बेहतरीन सफलता के लिए चुनाव के दौरान ही जम कर प्रशिक्षण देना होगा कि वे आप के और अपने महल्ले के समस्त बड़ेबुजुर्गों के पैर छूना तुरंत बंद कर दें. यदि उन्हें भारतीय परंपरा के अंतर्गत पैर छूने की लत लगी हुई हो तो उन्हें किसी पहलवान के अखाडे़ में भेज कर शारीरिक मल्लयुद्ध का अभ्यास करवाएं ताकि वे तमाम बार परास्त हो कर भी अपनी जीत और आशीर्वाद के लिए कभी भी किसी के पैर न छुएं. बातबात पर पैर छूना उन के भविष्य के राजनीतिक कैरियर को समाप्त कर सकता है. सो, पैर छूने से बचें. पैर से जा लगना, पैर पर सिर रखना, पैरा हुआ होना, पैरों में पर लगना, पैरों में बेडि़यां डालना, पैरों में मेहंदी लगा कर बैठना, पैरों चलना आदि के वास्तविक मूल अर्थ को भुला कर अब अपना इंडिया स्कैम नहीं स्किल इंडिया बनने जा रहा है. जहां पर प्रधानमंत्रीजी और सीनियरों के पैर छूना मना है. आप भी अपना संयम बनाए रख कर, देश की तरक्की में अपना योगदान दें और यदि आप पैर छूने का विकल्प ढूंढ़ रहे हों तो आप की जानकारी के लिए मैं ने आप के लिए अपना शोधकार्य पहले ही पूरा कर लिया है.
मेरे शोधकार्य का निष्कर्ष जनहित में जारी किया जा रहा है, ‘‘भाइयो, जहां पर पैर छूना मना हो वहां अपने चेहरे की बनावटी हंसी व गरदन हिलाने यानी हिनहिनाने के अभ्यासोपरांत आसानी से काम चलाया जा सकता है.’’ इसलिए पैर छूने के चक्कर में न पड़ कर आज से ही अपने चेहरे पर बनावटी हंसी व गरदन हिलाने का अभ्यास शुरू कर दें. इस अभ्यास से भविष्य में अवश्य लाभ होगा. तो बंधु, अब टैंशन किस बात की है, जो पैरों में अपनी आंखें गड़ाए बैठे हो. उठिए और मुसकराइए. बेझिझक हो कर विश्वास के साथ आगे बढ़ जाइए. मेरा विश्वास है कि आप को पैर छू कर मिलने वाले लाभ से ज्यादा स्नेहिल और मनचाही सफलता अवश्य हाथ लगेगी. आखिर अपने प्रधानमंत्रीजी द्वारा मिली नई जानकारी के तहत एक बार पैर छूने पर पैर पूजे जाने वाले की उम्र 1 दिन घट जाती है. आप को इस बात का खयाल भी तो अवश्य रखना ही होगा ना. तभी तो आप को उन के पैरों पर पड़ने की जगह, उन के सीने से लगने का लंबा मौका मिलेगा.