Mission Mohabbat: bhaag-1 मिशन मोहब्बत: भाग-1
कैंपस सिलैक्शन में राहुल का चयन गुजरात की एक बहुत बड़ी कैमिकल ऐंड फर्टिलाइजर फैक्टरी में हो गया था.
कुमुद भटनागर
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कैंपस सिलैक्शन में राहुल का चयन गुजरात की एक बहुत बड़ी कैमिकल ऐंड फर्टिलाइजर फैक्टरी में हो गया था. फैक्टरी की अपनी आवासीय कालोनी थी, मनोरंजन के सभी साधन थे, शहर जाने के लिए फैक्टरी की गाडि़यां थीं, कुछ लोगों से दोस्ती भी हो गई थी, फिर भी अभी राहुल का दिल नहीं लग रहा था. लेकिन कुछ सप्ताह से आवाज में मायूसी के बजाय उत्साह झलकने लगा था.
एक शाम यह सुन कर विशाल और मानसी ने राहत की सांस ली कि अगली सुबह विशाल टूर पर जयपुर जा रहा था. राहुल ने चहक कर कहा, ‘‘सच पापा, मजा आ गया.’’
‘‘जयपुर मैं जा रहा हूं, मजा तुझे किस खुशी में आ गया, भई?’’ विशाल ने चौंक कर पूछा.
‘‘अब क्या बताऊं पापा, आप फोन कौन्फ्रैंस मोड पर लगा दीजिए ताकि मम्मी भी सुन लें.’’
‘‘फोन कौन्फ्रैंस मोड पर ही है, बोल क्या सुना रहा है मुझे,’’ मानसी ने उतावलेपन में कहा.
‘‘मेरे बौस हैं न सलिल मेहरा, उन की ससुराल है जयपुर में, उन की साली भी मेरे साथ ही ट्रेनिंग ले रही है. सो, सलिल साहब के घर पर आनाजाना हो गया है. यह सुन कर कि पापा टूर पर जयपुर जाते रहते हैं, अर्पिता दीदी, मेरा मतलब है श्रीमती मेहरा ने कहा कि अब जब जाएं तो बताना, मम्मीपापा से कहूंगी उन से मिलने को. मैं उन को आप का मोबाइल नंबर दे देता हूं. प्रेम सर्राफ आप को फोन कर लेंगे, वे मेरे बौस के ससुर हैं, पापा.’’
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‘‘सीधे से कह न, मेरे होने वाले ससुर हैं…’’
‘‘आप भी न पापा…’’ और राहुल ने फोन काट दिया.
‘‘थोड़े में ही बहुत कुछ कह गए, बरखुरदार,’’ विशाल ने उसांस ले कर कहा, ‘‘मगर यह रिश्तेविश्ते की
बात मुझ से नहीं होगी. तुम भी साथ चलो, मानसी.’’
इतने शौर्ट नोटिस पर और वह भी बेटे की संभावित ससुराल जाना, मानसी कैसे मान सकती थी. टालने के स्वर में बोली, ‘‘जब लड़की ही वहां नहीं है तो मैं जा कर क्या करूंगी?’’
mission mohabbat part 1 hindi kahani ‘‘यह बात भी ठीक है, मैं भी
काम का बहाना बना कर टालने की कोशिश करूंगा.’’
अगली सुबह प्लेन से बाहर आते ही जैसे विशाल ने अपना मोबाइल स्विच औन किया, घंटी बजने लगी.
‘‘नमस्कार विशाल सहगल साहब, मैं कामिनी सर्राफ बोल रही हूं. राहुल ने आप को बताया होगा कि मेरे पति प्रेम सर्राफ आप को फोन करेंगे लेकिन वे तो आजकल अजमेर गए हुए हैं, सो मैं फोन कर रही हूं.’’
विशाल आवाज की मधुरता और खनक से अभिभूत हो गया.
‘‘नमस्कार जी, बड़ी खुशी हुई आप से बात कर के. कहिए, मेरे लिए क्या हुक्म है?’’
‘‘गुजारिश करने की हिमाकत कर रही हूं,’’ कामिनी की हंसी ने विशाल के मनमस्तिष्क को एक बार फिर झंकृत कर दिया, ‘‘आज की शाम मेरे साथ बरबाद कीजिए.’’
‘‘हुक्म करिए, अपनी शाम संवारने के लिए कब और कहां हाजिर होना है?’’
‘‘जब आप को फुरसत हो, आप फोन कर दीजिएगा, मैं गाड़ी भिजवा दूंगी.’’
‘‘वैसे तो आप जब कहें फुरसत निकाल सकता हूं लेकिन 6 बजे के बाद तो खाली हूं.’’
‘‘आप जब, जहां कहें, गाड़ी पहुंच जाएगी.’’
‘‘मेरे पास बैंक की गाड़ी है, आप पता बता दीजिए, मैं शाम साढ़े 7 बजे हाजिर हो जाऊंगा.’’
‘‘रेलवे औफिसर कालोनी में किसी से भी चीफ इंजीनियर का घर पूछ लीजिएगा. शाम को मिलते हैं फिर, हैव ए गुड डे,’’ कह कर कामिनी ने फोन रख दिया.
विशाल सिटपिटा गया. गुड डे का आगाज जो कामिनी की आवाज से हुआ था, यह सुनते ही कि प्रेम सर्राफ रेलवे के चीफ इंजीनियर हैं, गायब हो गया. राहुल पर गुस्सा भी आया, बताना तो चाहिए था कि किस के यहां मिलने भेज रहा है ताकि वे उस के अनुरूप कपड़े तो लाता. अभी तो औफिस में पहनने वाले कपड़े ही लाया है. वैसे अमेरिकन बैंक मैनेजर के औफिस के कपड़े भी बढि़या ही रहते हैं, फिर भी किसी खास जगह जाने और खास हस्ती से मिलने के लिए तो कुछ खास होना चाहिए. खैर, अब जो भी हैं उन्हें कड़क प्रैस करवा लेगा.
गैस्ट हाउस पहुंच कर बैग खोलते ही वह फड़क उठा. मानसी ने खास कपड़ों के अलावा, दुबई के सूखे मेवों का गिफ्ट हैंपर भी रख दिया था. कमाल की व्यवहारकुशलता थी मानसी में. बगैर कहे वक्त की नजाकत को समझ कर वक्त के साथ चलना तो उस की खासीयत थी. लेकिन आज मानसी के बारे में सोचने के बजाय उसे कामिनी सर्राफ की आवाज के बारे में सोचना अच्छा लग रहा था. शाम को फुरसत मिलने पर जब मानसी को फोन किया तो यह तो बताया कि वह सर्राफ के यहां जा रहा है लेकिन यह बताना टाल गया कि प्रेम सर्राफ शहर में नहीं हैं.
कामिनी की आवाज ही आकर्षक नहीं थी, व्यक्तित्व में भी अजीब चुंबकीय कशिश थी. पहली बार संभावित समधी से अकेले मिलने की हिचक भी नहीं थी उस में जबकि विशाल को समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करे.
‘‘प्रेम साहब अकसर टूर पर रहते हैं?’’ न चाहते हुए भी घिसापिटा सा सवाल पूछा.
‘‘महीने में 2-3 बार जाना पड़ ही जाता है. सुना है आप अकसर जयपुर आते रहते हैं?’’
‘‘जी हां, जयपुर का जिस तेजी से विकास हो रहा है उस के मुताबिक हम भी अपने बैंक की सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं. उसी सिलसिले में आता रहता हूं. कभीकभी मानसी भी साथ आ जाती है.’’
‘‘अगली बार उन्हें जरूर साथ लाइएगा,’’ कह कर कामिनी ने मेज पर रखा लैपटौप उठा लिया, ‘‘आप को उस फैक्टरी की तसवीरें तो दिखा दूं जहां आप का बेटा काम करता है.’’
लैपटौप पर फैक्टरी और कालोनी की तसवीरें थीं. कुछ देर बाद तसवीरों को आगे बढ़ाते हुए कामिनी बोली, ‘‘अब अपने बेटे को भी देख लीजिए, कालोनी के क्लब की तसवीरें हैं,
यह बैडमिंटन खेल कर आता हुआ आप का बेटा है और इस के साथ मेरी छोटी बेटी निकिता और यह रहा मेरा दामाद सलिल और यह बड़ी बेटी अर्पिता.’’
‘‘अरे, परिवार के मुखिया से तो मिलवाया ही नहीं?’’
‘‘अभी साइड टेबल पर रखी तसवीर ही देख लीजिए, फिर कोई सीडी लगाऊंगी.’’
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तभी एक युवक और युवती आ गए. कामिनी ने परिचय करवाया, ‘‘मेरा भतीजा राघव और इस की पत्नी ऋतु, ये दोनों कोठारी कैपिटल में काम करते हैं यानी आप की तरह ही पैसे के लेनदेन का धंधा करने वाले.’’
‘‘आजकल तो चाची, बस, देने का ही काम रह गया है,’’ राघव हंसा.
‘‘ठीक कह रहे हैं, लेने का तो दूरदूर तक पता नहीं है,’’ विशाल ने जोड़ा.
‘‘इस लेनेदेने के लेखेजोखे में उलझने से पहले बेहतर रहे, राघव, कि तुम अजयजी से उन की पसंद पूछ लो,’’ कामिनी ने कहा, ‘‘विशालजी, ऋतु और राघव लजीज व्यंजन बनाने में माहिर हैं. बस अपनी पसंद बता दीजिए.’’