Top 25 love and ishq sher by top 5 shayar -series-5
कुछ शायरों के नाम ऐसे हैं कि जिनको सुनते ही मन में इश्क़ और हौसलों की हलचल पैदा होने लगती हैं। हम एक सीरीज चला रहे हैं जिसमें ऐसे ही 5 बड़े शायरों के 25 लोकप्रिय शेरों से आपका परिचय कराते हैं। इस सीरीज में उबैदुल्लाह अलीम,ख़ुमार बाराबंकवी, परवीन शाकिर, बशर नवाज़ और मुनीर नियाज़ी के लोकप्रिय शेर आपकी नज़र...
उबैदुल्लाह अलीम
उबैदुल्लाह अलीम
इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो
ये जब उठा ज़मीर की आवाज़ से उठा
मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते...
एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते
तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
मुझ में तो ज़िंदगी का कोई हौसला न था
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत...
ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत
ख़ुमार बाराबंकवी
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं...
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं...
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
परवीन शाकिर
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की...
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया
कितना तन्हा होगा चाँद...
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
बशर नवाज़
कहते कहते कुछ बदल देता है क्यूँ बातों का रुख़
क्यूँ ख़ुद अपने-आप के भी साथ वो सच्चा नहीं
कोई यादों से जोड़ ले हम को
हम भी इक टूटता सा रिश्ता हैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं...
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं
बहुत था ख़ौफ़ जिस का फिर वही क़िस्सा निकल आया
मिरे दुख से किसी आवाज़ का रिश्ता निकल आया
ये अब की फ़स्ल में खिलते गुलाब कैसे हैं...
वही है रंग मगर बू है कुछ लहू जैसी
ये अब की फ़स्ल में खिलते गुलाब कैसे हैं
मुनीर नियाज़ी
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ
उन में जा कर मगर रहा न करो...
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
उन में जा कर मगर रहा न करो
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं...
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं