Hindi Shayari Collection Of Markaz Shayari | Ghalti Sher ‘ग़लती’ पर शायरों के अल्फ़ाज़ |
शायरों के अल्फ़ाज़ ‘ग़लती’ पर
कभी ये ग़लत कभी वो ग़लत कभी सब ग़लत
ये ख़याल-ए-पुख़्ता जो ख़ाम थे मुझे खा गए
- लियाक़त अली आसिम
क्यूं सबा की न हो रफ़्तार ग़लत
गुल ग़लत ग़ुंचे ग़लत ख़ार ग़लत
- बाक़ी सिद्दीक़ी
हम डूब जाएं अपने ही ग़म के बहाव में
हां हां ग़लत ग़लत मिरे यारा बहुत ग़लत
- नबील अहमद नबील
मैं एक बात बताता मगर बुज़ुर्गों ने
हर एक बात बताना ग़लत बताया है
- अक़ील शाह
अव्वल वो ग़लत बनाने वाला
आख़िर को ग़लत मिटा रहा है
- शाहीन अब्बास
ये ग़लत क्या है तजरबे को अगर
हासिल-ए-हादसात कहते हैं
- द्वारका दास शोला
बहस ग़लत होने पर 'शाहीं'
आप ही पीछे हट जाता हूँ
- जावेद शाहीन
रास्ता भी ग़लत हो सकता है मंज़िल भी ग़लत
हर सितारा तो सितारा भी नहीं हो सकता
- सलीम कौसर
वादा ग़लत पते भी बताए हुए ग़लत
तुम अपने घर मिले न रक़ीबों के घर मिले
- क़मर जलालवी
हम ग़लत एहतिमाल रखते थे
तुझ से क्या क्या ख़याल रखते थे
- मीर असर
'मरकज़' पर कहे गए शेर...
यही चक्कर मुझे मरकज़ से अलग रखता है
ख़ुश-नसीबी है कि गर्दिश में है तारा मेरा
- सुहैल अख़्तर
ठहर गया है सर-ए-मरकज़-ए-फ़लक सूरज
ये वक़्त वो है कि दीवार में भी साया नहीं
- फ़रासत रिज़वी
दिल को तजल्लियात का मरकज़ बना लिया
अब उन का नाम लेने के क़ाबिल हुआ हूँ मैं
- अब्दुल रहमान ख़ान वस्फ़ी बहराईची
ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे
फिर कैसे भला तेरी कहानी से निकलते
- सलीम कौसर
अब मरकज़ी किरदार तुम्हारा है मिरे दोस्त
तुम मेरी कहानी को ज़रा ध्यान में रखना
- इसहाक़ विरदग
तुम जिसे मरकज़ी किरदार समझ बैठे हो
वो फ़साने में अगर था तो कहाँ था क्या था
- वसी शाह
यही जो शहर का है आज मरकज़
यहाँ सन्नाटे पैहम बोलते थे
- भारत भूषण पन्त
हर एक मेहवर हर एक मरकज़
अभी तक उस कज-कुलाह पर है
- मुमताज़ मालिक
मरने वाला है मरकज़ी किरदार
आख़िरी मोड़ पर कहानी है
- आलोक मिश्रा
सुब्ह मरकज़ बनी उमीदों का
शाम मायूसियों के काम आई
- शुजा ख़ावर
मिरा था मरकज़ी किरदार इस कहानी में
बड़े सलीक़े से बे-माजरा किया गया हूँ
- इरफ़ान सत्तार
मैं चल पड़ूँगा सितारों की रौशनी ले कर
किसी वजूद के मरकज़ को दरमियान लिए
- रफ़ीक़ संदेलवी
एक मरकज़ पर ठहरता ही नहीं है
ज़ेहन की आवारगी चारों तरफ़ है
- मासूम अंसारी
ज़ाहिर है हक़ का जल्वा गर आँख हो तो देखे
'मरकज़' ख़ुदा को आलम भूले पुकारते हैं
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़
अपने मरकज़ पे रक़्स करती हुई
इक मुसलसल सफ़र है ये दुनिया
- नाज़िम नक़वी
पहले भी तिरी बात ही मरकज़ थी सुख़न का
अब याद तिरी सर्फ़-ए-सुख़न होने लगी है
- हुसैन ताज रिज़वी
अपने मरकज़ की महक चारों तरफ़ बिखराई है
फड़फड़ा कर भी तिरे संदल से मैं निकला नहीं
- अफ़ज़ाल नवेद
मैं जैसे मरकज़ी किरदार हूँ कहानी का
कोई फ़साना हो वो मेरी दास्ताँ ही लगे
- जे. पी. सईद
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
सौ बार मैं फ़रेब से बीमार हो चुका
- अमीर मीनाई
तुम्हारे हिज्र में आंखें हमारी मुद्दत से
नहीं ये जानतीं दुनिया में ख़्वाब है क्या चीज़
- नज़ीर अकबराबादी
अदब लाख था फिर भी उन की तरफ़
नज़र मेरी अक्सर रही देखती
- अज्ञात
हम भटकते रहे अंधेरे में
रौशनी कब हुई नहीं मालूम
- बेकल उत्साही