Hindi Shayari Faraghat |
'फ़राग़त' ( फ़ुर्सत) पर शायरों के अल्फ़ाज़
फ़राग़त से दुनिया में हर दम न बैठो
अगर चाहते हो फ़राग़त ज़ियादा
- अल्ताफ़ हुसैन हाली
इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम
- अहमद फ़राज़
क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात को
वो दिन भी थे कि तेरे सिवा कोई ग़म न था
- अज़ीम मुर्तज़ा
दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
वो फ़राग़त तमाम रखता है
- ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ये क्यूं कहते हो राह-ए-इश्क़ पर चलना है हम को
कहो कि ज़िंदगी से अब फ़राग़त चाहिए है
- फ़रहत नदीम हुमायूं
खुल के रो भी सकूँ और हँस भी सकूँ जी भर के
अभी इतनी भी फ़राग़त में नहीं रह सकता
- ज़फ़र इक़बाल
इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना
कौन कहता है मोहब्बत नहीं कर सकते हम
- सरफ़राज़ ज़ाहिद
ये जितने मसअले हैं मश्ग़ले हैं सब फ़राग़त के
न तुम बे-कार बैठे हो न हम बे-कार बैठे हैं
- अंजुम रूमानी
कहीं सर फोड़ के मर रहिए 'बयाँ'
इक जहाँ से तो फ़राग़त होगी
- बयान मेरठी
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे
इश्क़ भी जैसे कोई ज़ेहनी सुहुलत है मुझे
- अंजुम सलीमी
'सख़ी' रोते ही रोते दम निकल जाए
फ़राग़त हो कहीं गंगा नहाएँ
- सख़ी लख़नवी
क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात को
वो दिन भी थे कि तेरे सिवा कोई ग़म न था
- अज़ीम मुर्तज़ा