Kaifi azmi best sher collection Books sher collection |
‘किताबों’ पर कहे शायरों के अल्फ़ाज़
जाम गिरने लगा तो बहका शैख़
थामना थामना किताब किताब
- कशफ़ी मुल्तानी
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है
- राजेश रेड्डी
दिल मिरा साफ़ आइने की तरह
एक सादा किताब है यारो
- दानिश फ़राही
'मुनीर' तेरी ग़ज़ल अजब है
किसी सफ़र की किताब जैसी
- मुनीर नियाज़ी
दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगा-रंग
उस को सादा किताब होना था
- जिगर मुरादाबादी
पढ़ लिया हम ने हर्फ़ हर्फ़ उसे
उस का चेहरा किताब कैसा था
- हफ़ीज़ बनारसी
हर शख़्स है इश्तिहार अपना
हर चेहरा किताब हो गया है
- क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ौर से पढ़ सको तो समझोगे
एक दिलकश किताब है दुनिया
- अहसन इमाम अहसन
नक़्श हैं अब वरक़ वरक़ दिल पर
चंद यादें किताब की सूरत
- ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
'सदा' के पास है दुनिया का तजरबा वाइज़
तुम्हारी बात में बस फ़ल्सफ़ा किताब का है
- सदा अम्बालवी
कैफ़ी आज़मी के चुनिंदा शेर
बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को
तुझे भी अपने पे ये ए'तिबार है कि नही
जिन ज़ख़्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो
नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई
रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे
फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ
रोज़ बस्ते हैं कई शहर नए
रोज़ धरती में समा जाते हैं
एक तारा एक दीपक एक जुगनू ही सही
रात की दीवार में कोई तो दर बाक़ी रहे
- शफ़ीक़ सलीमी
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
- बशीर बद्र
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है
- नुशूर वाहिदी
शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली
रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई
- जलील मानिकपूरी