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शमा खान
जलते अलाव
जो शख्सीयत लहू बन कर नलिन की रगों में बरसों से दौड़ रही थी उस के साथ उस की कौम ने जो किया यह जानने के बाद भी वह उस के सिर पर तसल्ली भरा हाथ रखने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा सका?
जलते अलाव: भाग 1
तुम्हारा मतलब जरी से है,’ बहुत दिनों से मेरे बदलते हावभाव को ताड़ने में उन्हें देर नहीं लगी, ‘सुन बाल्या, आज कहा सो कहा, फिर कभी मत कहना. कहना तो क्या, सोचना भी नहीं.
सुपर मार्केट से होली के त्योहार का सामान खरीद कर पार्किंग में गाड़ी के पास पहुंचा तो बगल में ही किसी को गाड़ी पार्क करते देखा. पीछे से हुलिया जानापहचाना सा लगा. महिला ने रिमोट से गाड़ी को लौक किया और चाबी को पर्स में डाल कर जैसे ही मेरी तरफ पलटी, मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया-
‘‘अरे जरी, आप? यहां कब आईं?’’
‘‘नलिनजी,’’ अभिवादन के लिए दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘‘नमस्ते, कैसे हैं आप? नैना कैसी है? मैं पिछले महीने ही यहां आई हूं.’’
वही 30 साल पुराना शालीन अंदाज. आवाज में वही ठहराव. चेहरे पर वही चिरपरिचित सौम्य सी मुसकराहट. जरा भी नहीं बदली जरी.
‘‘आप 1 महीने से यहां हैं और हमें खबर तक नहीं दी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए अधिकारपूर्वक जवाब तलब किया.‘‘दरअसल, वो घर को व्यवस्थित करने में…’’ विषम परिस्थितियों की पीड़ा का कभी भी खुलासा न करने का वही बरसों पुराना अंदाज. इसलिए मैं ने नहीं कुरेदा.
‘‘मैं घर ही जा रहा हूं, आप भी साथ चलिए न. नैना आप के लिए बहुत चिंतित है,’’ मैं ने आग्रह किया.
‘‘जी, अभी तो मुमकिन नहीं हो सकेगा. यह मेरा फोन नंबर है. नैना जब भी फुरसत में हो कौल कर लेगी तो मैं हाजिर हो जाऊंगी,’’ पर्स से विजिटिंग कार्ड निकाल कर मेरी तरफ बढ़ाते हुए वह बोली और धीमेधीमे कदम बढ़ाते हुए बाजार की भीड़ में खो गई. मैं स्तब्ध खड़ा उसे आंखों से ओझल होने तक देखता रहा.
किसी गाड़ी के हौर्न ने चौंका दिया, और मैं खुद को असमंजस की स्थिति से बाहर निकालने की नाकाम कोशिश करते हुए गाड़ी स्टार्ट करने लगा.
घर पहुंचा तो नैना से सामना होते हुए मैं उसे जरी के बारे में न बतला सका, जानता था कि जरी के इसी शहर में होने की खबर पा कर वह खुद को रोक नहीं पाएगी. उस की जिद मुझे लाचार कर देगी. पिछले 5 सालों में लगभग 5 हजार बार वह जरी की कोई खबर न मिलने की शिकायत कर के चिंता जाहिर कर चुकी है. उस रात कौर गले से नीचे नहीं उतरा. अनमना सा छत पर आ गया. साफशफ्फाक आसमान के टिमटिमाते सितारों ने दिल को सुकून दिया. मेरी जिंदगी के आसमान का ऐसा ही रोशन सितारा तो है जरी. कहने को 3 दशक बीत गए. स्याह बालों में सफेदी ने भी कब्जा जमा लिया मगर लगता है जैसे कल की ही बात हो.
मैं ने एमए में ऐडमिशन लिया तो मेरी छोटी बहन नैना ने भी उसी कालेज में बीए में ऐडमिशन ले लिया. पहले दिन क्लास अटैंड कर के आई तो मां को बतलाने लगी, ‘आई (मां), पता है आज कालेज में एक लड़की से भेंट हो गई. उस के सब्जैक्ट भी मेरे जैसे ही हैं. मैं पूरे 2 घंटे उस के साथ कालेज कैंपस में घूमती रही. लाइब्रेरी का कार्ड बनवाया. औडिटोरियम में टैनिस कोर्ट भी देख लिया और कौन से लैक्चरार किस सब्जैक्ट को पढ़ाएंगे, यह भी जान लिया.’
‘देख, इतनी जल्दी किसी लड़की से इतना घुलनामिलना ठीक नहीं. पता नहीं कैसी है वह लड़की.’
मां ने हिदायत दी तो नैना का उत्साह बर्फीली पहाड़ी के तापमान की तरह तेजी से नीचे आ गया.
‘अच्छा तो यह बात है. क्या नाम है उस का? कहां रहती है? उस के पिताजी क्या काम करते हैं?’ मां ने नैना की उदासी भांप ली.
‘नाम तो मैं ने पूछा ही नहीं, आई. अच्छा, कल पूछ कर तुम्हारे सारे सवालों का जवाब दे दूंगी,’ नैना हिरणी की तरह छलांगें मारते हुए दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई.
दूसरे दिन मैं नैना को साइकिल पर पीछे बैठा कर कालेज ले जा रहा था. रास्ते में एक लड़की को पैदल चलते देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘नीलू भैया, मुझे यहीं पर उतार दीजिए. वह जा रही है मेरी कल वाली सहेली. मैं उस के साथ चली जाऊंगी.’
नैना धम्म से साइकिल से कूदी और दौड़ती हुई उस लड़की के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी. तब मैं ने पहली बार उस को देखा था. सुडौल काया, तीखे नैननक्श वाली उजली रंगत की लड़की.
कालेज से लौटते ही नैना अपनी क्लास के अलावा अपनी सहेली की चर्चा करना नहीं भूलती. आई को बतलाती, ‘आई, मेरी सहेली का नाम जरीना हमीद है. 11वीं की मैरिट होल्डर है. उस के अब्बू फौरेस्ट औफिस में रेंजर हैं. बहुत ही शांत और सौम्यस्वभाव की है. सब से ज्यादा मजे की बात यह है कि वह मेरी बकबक पर जरा भी इरिटेट नहीं होती. मुसकराती हुई सुनती है मेरी सारी बातें.’
‘पूरे कालेज में एक मुसलमान लड़की ही मिली तुझे दोस्ती करने के लिए?’ धार्मिक असहिष्णु आई अपना अवसाद अधिक समय तक भीतर नहीं रख पाईं.
सुन कर नैना तिलमिला गई, ‘आई, हमारे घरों में ही हिंदू व मुसलमान में भेदभाव किया जाता है. जानती हो कालेज में कोई किसी की जात नहीं पूछता. सब एकदूसरे को नाम से जानते हैं और आपस में टिफिन शेयर करते हैं.’
‘तो क्या तू भी उस के साथ खाना…?’
‘हां, आई, बहुत अच्छा खाना बनाती हैं उस की मम्मी. चटक मसाले वाला टेस्टी खाना. आई, जरी तो पढ़ाई में सब से तेज है और व्यवहार में दूसरी लड़कियों की तरह न तो चंचल है न ही लड़कों की बातें करती है. और रखरखाव, आई, वह सिर्फ एक सादी सी चोटी बनाती है. उस की बातों में न कोई बनावट है न ही कोई दिखावा, इसलिए वह मुझे सब से अच्छी लगती है.’
नैना ने कब जरीना का नाम संक्षिप्त कर के जरी रख दिया, यह खुद उसे याद नहीं.
नैना की जबानी सुना जरी के व्यक्तित्व का विवरण मेरे दिलोदिमाग पर भविष्य का एक सलोना और दिलकश खाका खींचने लगता. ऐसी ही सीधीसाधी, समझदार लड़की की तसवीर मेरे ख्वाबों के महल में अपनी बड़ी सी जगह बनाने लगती. कभी नैना के लिए नोट्स लेने, कभी कोई कालेज संबंधी सूचना देने जरी को नोटबुक या नैना का खत थमाते हुए मैं उस में गुलाब का फूल रखना नहीं भूलता. जरी देखती मगर उस की बड़ीबड़ी आंखें कोई प्रतिक्रिया नहीं करतीं.
बीए करते ही नैना की शादी तय हो गई. नैना की बड़ी मिन्नतों के बाद जरी को मेहंदी की रात के लिए हमारे घर आने की इजाजत मिली. मेरे तो पंख लग गए और मैं अपने दिल की बात कहने के लिए मंसूबों के कभी इस पहाड़ की चोटी पर जा बैठता, कभी उस चोटी पर. नैना को मेहंदी लगाती जरी, मुझे दुलहन की पोशाक में सजी अपने घर के इस कोने से उस कोने तक छमछम चलतीफिरती दिखाई देने लगी.
रस्म अदायगी के समय नैना के इसरार करने पर जरी की भजन की स्वरलहरी ने पूरे परिवार को हैरान कर दिया. जरी के कंठ में इतनी मधुरता है, यह पहली बार पता चला. आई की आवाज ने चौंका दिया, ‘मुसलमान लड़की और इतना सुंदर भक्तिभाव से ओतप्रोत भजन. कहां से सीखा?’
‘कहीं से नहीं, आई. बस, कुदरत की देन है संगीत. जरी की रोमरोम में बहता है,’ नैना ने गर्व से बतलाया.
रात गहराती गई और भजनों के बाद गीतों, गजलों का सिलसिला पौ फटने तक चलता रहा. दिनभर के थकेहारे अतिथि धीरेधीरे नींद की आगोश में समाने लगे. जरी ने चाय का कप हाथ में थाम कर तारोंभरे आकाश को देखा तो मेरे मुंह से बरसों की दबी आरजू शब्द बन कर निकल ही गई, ‘जरी, इन तारों ने काली रातों को उजाला बख्शा है बिलकुल ऐसे जैसे तुम्हारे खयालों ने मेरी अंधेरी रातों को रोशनी से जगमगा दिया.’ सुन कर उस की पलकें झुक गईं लेकिन हमेशा की तरह चुप रही. कोई प्रतिक्रिया नहीं.
नैना की विदाई के बाद मेरी शादी की चर्चा की गरम हवा मेरे कानों में चुभने लगी. एक दिन आई को अच्छे मूड में देख कर कह दिया मैं ने, ‘आई, क्यों ढूंढ़ती हो बहू यहांवहां? बहू तो तुम्हारे सामने है.’
‘तुम्हारा मतलब जरी से है,’ बहुत दिनों से मेरे बदलते हावभाव को ताड़ने में उन्हें देर नहीं लगी, ‘सुन बाल्या, आज कहा सो कहा, फिर कभी मत कहना. कहना तो क्या, सोचना भी नहीं. मराठा ब्राह्मण के घर मुसलमान लड़की को बहू बना कर लानेका पाप मैं नहीं कर सकती.’
‘लेकिन आई, है तो वह लड़की न. मुसलमान हो या हिंदू, इस से क्या फर्क पड़ता है? जरी में वे सारी खूबियां हैं जो एक अच्छी पत्नी और बहू में होनी चाहिए,’ मैं ने पहली बार आई से जिरह की थी.
‘पड़ता है फर्क. बहुत फर्क पड़ता है. बिरादरी हुक्कापानी बंद कर देगी. तुम्हारी औलादों को न हिंदू अपनाएंगे न मुसलमान. तब समझ में आएगा जब तुम से बच्चे अपनी जात पूछेंगे. और क्या हिंदू समाज में संस्कारी लड़कियों का अकाल पड़ गया है? शादी 2 लोगों को ही नहीं, 2 खानदानों को जोड़ती है. आने वाली पीढ़ी के संस्कारों और धर्मों को सुनिश्चित करती है.’
‘आई, किस जमाने की बात कर रही हो? यह तंग सोच अब खत्म हो रही है. अब जात, बिरादरी, धर्म शादी के मापदंड नहीं. शादी 2 दिलों का विश्वास और प्रेम की बुनियाद पर किया गया फैसला होता है,’ मैं ने आई को समझाने की कोशिश की.
‘देख नीलू, मेरे जीतेजी तू ऐसा नहीं करेगा और अगर करना ही है तो पहले मुझे श्मशान घाट पहुंचा दे,’ आई के मर्माहत शब्दों ने मेरी रहीसही हिम्मत भी पस्त कर दी.
6 महीने बाद मैं बिरादरी की रूपवान लड़की की मांग का सिंदूर बना दिया गया. जरी रिसैप्शन में अपने परिवार के साथ आई थी. ऊपर से बिलकुल ठहरी हुई झील की तरह शांत. लेकिन मेरे हाथ में गिफ्ट थमा कर बधाई देते हुए उस की नजरों में बलि होने वाले बकरे की निरीहता देख कर अंतस तक आहत हो गया मैं.
30 साल से भी ज्यादा अरसा गुजर गया इस हादसे को लेकिन मैं आज तक इस अपराधबोध से खुद को उबार नहीं सका हूं. तिलतिल जलता हूं. पलपल मरता हूं.
जलते अलाव: भाग 2
विद्यालय का बदलता रूप और विद्यार्थियों के मन में उपजी शिक्षा व पुस्तकप्रेम की भावना को जगा कर भविष्य की आशाओं के नए अंकुर प्रस्फुटित करने में जरी कामयाब रही.
पूरे 30 सालों तक अनगिनत हादसों ने मेरी, नैना और जरी की जिंदगी को कई दर्दीले पड़ावों तक पहुंचा दिया.
2 बच्चों के बाद मेरी बेहद अहंकारी और खर्चीली पत्नी कमर से धनुष की तरह मुड़ कर पलंग के साथ पैबस्त हो गई. नैना के पति को लकवा मार गया और वह नौकरी करने के लिए मजबूर हो गई. जरी के पति भोपाल गैस कांड के शिकार हो गए. 2 मासूम बच्चों के साथ रोजीरोटी की जुगाड़ ने उसे भी दहलीज के बाहर कदम रखने को मजबूर कर दिया.
जरी के अम्मीअब्बू जिंदा थे. हर गरमी की छुट्टियों में बच्चों के साथ अपने शहर आती तो नैना अपने दुखदर्द में, शिकवेशिकायतें करने में जरी के अलावा किसी को शामिल नहीं करती.
मेरी पत्नी धनुषवात रोग को लंबे समय तक झेल नहीं सकी. दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी नौकरी के अतिरिक्त मुझे ही संभालनी पड़ती. पूरा दिन भागदौड़, व्यस्तता में कट तो जाता मगर रात, जैसे कयामत की तरह आग बरसाती. पनीली आंखों में जरी का चेहरा तैरने लगता. उस की नरम, नाजुक हथेली का हलकाहलका दबाव अकसर अपने माथे पर महसूस करता. रोज रात आंखें बरसतीं. तकिया भिगोतीं और तीसरे पहर कहीं आंख लगती तो जरी ख्वाब में आ जाती. मैं शादी के बाद भी एक पल के लिए उसे भूला नहीं.
6 कमरों की कोठी खाने को दौड़ती थी, इसलिए नैना को अपने पास बुला लिया. बच्चे बूआ से हिलमिल गए. गोया नैना ने मेरी गृहस्थी संभाल ली.
दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर मैं ने नैना के हाथों में जरी का कार्ड थमा दिया था.
‘‘दादा, कब मिली थी जरी आप से? कैसी है वह?’’ नैना ने बेचैन हो कर सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, अभी चलिए, प्लीज उठिए न.’’ नैना की जरी के प्रति आतुरता ने मुझे भी भावविह्वल कर दिया पर मैं ऊपर से शांत बना रहा.
‘‘पहले फोन तो कर लो,’’ मैं ने कहा.
‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं फोन की. क्या आप जानते नहीं कि वह 1 महीने से यहां है, फिर भी उस ने कोई खबर नहीं दी. इस का मतलब क्या है? हमेशा की तरह वह कोई न कोई जहर चुपचाप पी रही होगी.’’
नैना मुझ से भी ज्यादा जरी की खामोशी की जबान को समझती है. यह देख कर मैं उस की दोस्ती को सलाम करने लगा और जरी के घर चल दिया.
कौलबैल बजते ही जरी के छोटे बेटे ने दरवाजा खोला, नैना और मैं अंदर गए. जरी भी ड्राइंगरूम में आ गई. उदास आंखें, निस्तेज चेहरा और पतलेपतले होंठों पर जमी चुप्पी की मोटी पपड़ी. नैना ने उस के गले लगते ही शिकायत की, ‘‘यहां 1 महीने से कैसे? क्या इतनी लंबी छुट्टी मिल गई?’’
‘‘मैं ने वीआरएस ले लिया है,’’ चट्टान से व्यक्तित्व की कमजोर आवाज गूंजी.
‘‘व्हाट? वीआरएस लेने की क्या जरूरत पड़ गई?’’ नैना ने जरी का हाथ अपने हाथों में ले कर उतावलेपन से पूछा.
जरी हमेशा की तरह सूनी दीवार को घूरने लगी.
‘‘बच्चों की जिम्मेदारी अभी पूरी कहां हुई है. ऐसी कौन सी मजबूरी थी जरी जो तुम जैसी दूरदर्शिता और समझदार ने ऐसा बचकाना फैसला ले लिया?’’ नैना के सब्र का बांध टूटने लगा था.
‘‘यह मेरा फैसला नहीं था? मेरी मजबूरी थी,’’ जरी की भर्राई आवाज का शूल मेरे कलेजे में धंस गया. मैं पत्थर की तरह बैठा, सन्न सा उसे अपलक देखता रहा. उस की दर्दीली आवाज का एकएक शब्द मुझ पर हथौड़े की चोट करता रहा.
1 साल पहले जरी का प्रमोशन उत्तर प्रदेश के ऐसे शहर में हो गया, जो अपनी मिट्टी को सांप्रदायिकता के खून की होली से रंगता रहा और देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कलंकित करता रहा. जरी उस शहर की बलिदानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से बहुत प्रभावित थी लेकिन रैस्टहाउस में कुछ दिन बिताने के बाद जब अपने लिए मकान तलाशने निकली तो लोग उस के चुंबकीय व्यवहार से प्रभावित हो कर किराया और अन्य औपचारिकताएं तय कर लेते. लेकिन जैसे ही उन्हें उस के धर्म का पता चलता, वे कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते. पूरे 1 महीने की कोशिश के बावजूद किराए का मकान नहीं मिला.
स्टाफ मैंबर कोरी हमदर्दी जताते हुए व्यंग्य से पूछते, ‘मिल गया मकान मैडम?’
‘जी नहीं,’ जरी का संक्षिप्त जवाब उसे खुद को बुरी तरह आहत कर देता.
‘मुसलिम इलाके में क्यों नहीं ट्राइ करतीं?’
‘ऐक्चुअली वह काफी दूर है. बच्चों का काफी वक्त आनेजाने में ही बरबाद हो जाएगा.’
‘यह क्यों नहीं कहतीं मैडम कि मुसलमान बस्ती की गंदगी और परदेदारी की पाबंदी को आप खुद ही नहीं झेल पाएंगी,’ मिसेज खुराना ठहाका लगाते हुए व्यंग्य करतीं. हिंदू बहुसंख्यक स्टाफ, अल्पसंख्यक एक अदद महिला कर्मचारी पर, कभी लंच टाइम में, कभी कैंटीन में कोई न कोई कठोर उपहास भरा जुमला उछाल कर आहत करने का अवसर हाथ से न जाने देता.
वतन के लिए शहीद होने वाले मंगल पांडे जैसे जांबाज सिपाही का साथ सिर्फ हिंदुओं ने ही नहीं, मुसलमानों ने भी दिया था. तब कहीं तिरंगा शान से लालकिले पर लहराया था. लेकिन आज कौमपरस्ती की तंगदिली ने उस शहर के गलीकूचों में नफरत की आग जला कर देश के इतिहास को रक्तरंजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. सांप्रदायिक दंगों में कितने बेगुनाहों के घर जले, कितने बेकुसूरों को नाहक मौत के घाट उतारा गया, कितनी बेवाएं, कितने यतीमों की चीखें शहर का कलेजाहिलाती रहीं. इस का हिसाब तो खुद उस शहर की जमीन, हवाओं और आसमान के पास भी नहीं है. नफरत की आग में नाहक वे लोग भी झुलसने लगे जो रोजीरोटी की आस में मजबूरन उस शहर के बाश्ंिदे बने थे.
जरी की परेशानी देख कर जल्द ही रिटायर्ड होने वाली महिला प्राचार्या ने अपने क्वार्टर में शेयरिंग में रहने की लिखित इजाजत दे कर अपनी सहृदयता दिखाई.
जरी ने साइलैंट वर्कर के रूप में प्राचार्या के दिल में जल्द ही जगह बना ली. उन्होंने जरी को ऐडमिशन इंचार्ज बना दिया. इस बदलाव ने स्टाफ में आग में घी का काम किया. प्राचार्या के विरोधियों को उन की आलोचना करने का एक शिगूफा मिल गया.
जरी की कर्मठता और अनुशासन ने आर्ट्स 11वीं, 12वीं के बिगड़े बच्चों को आपराधिक और उद्दंड जीवनशैली त्याग कर शिक्षा के प्रति समर्पित एवं अनुशासित जीवन जीने और महत्त्वाकांक्षी विद्यार्थी बनने की प्रेरणा दी. विद्यालय में होने वाले नित नए अर्थपूर्ण बदलावों ने, अकर्मण्य शिक्षकों के मन में, जरी के प्रति ईर्ष्या और द्वेष की भावना भर दी.
विद्यालय का बदलता रूप और विद्यार्थियों के मन में उपजी शिक्षा व पुस्तकप्रेम की भावना को जगा कर भविष्य की आशाओं के नए अंकुर प्रस्फुटित करने में जरी कामयाब रही.
प्राचार्या की रिटायरमैंट पार्टी में शामिल नए प्राचार्य के कानों में जरी को प्राचार्या का दायां हाथ बताने वाले स्तुतिभरे वाक्य पड़े तो उस के प्रति उपजी सहज उत्सुकता ने स्टाफ के कुछ धूर्त एवं मक्कार शिक्षकों को अपनी कुंठा की भड़ास निकालने का मौका दे दिया. 2 दिन में ही प्राचार्य ने जरी की पर्सनल फाइल का एकएक शब्द बांच लिया. 28 साल के सेवाकाल में प्राथमिक शिक्षिका के 2 प्रमोशन, इन सर्विस कोर्स की रिसोर्स पर्सन, पिछले स्कूलों में 10 सालों से ऐडमिशन इंचार्ज, ऐक्टिव, पजेसिव, रिसोर्सफुल, प्रोगैसिव शब्द, प्राचार्य की आंखों के कैनवास पर छप कर खटकने लगे. ‘तमाम मुसलमान, एक तरफ देश की जडे़ं खोद रहे हैं अपनी असामाजिक और गैरकानूनी गतिविधियों से, दूसरी तरफ अपनी ईमानदारी और कर्मठता का ढोल पीट कर खुद को देशभक्त साबित करने का ढोंग करते हैं,’ रात को अंगूरी के नशे के झोंक में प्राचार्य के मुंह से निकले इन शब्दों ने जरी के विरोधियों को उस के खिलाफ जहर उगलने के सारे मौके अता कर दिए.
चौथे दिन ही प्राचार्य क्वार्टर छोड़ने और उस के पद से नीचे का क्वार्टर का एलौटमैंट लेटर चपरासी ने जरी को थमा दिया. जरी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया.
शांत, कर्मठ जरी का कोई भी कमजोर पहलू प्राचार्य के हाथ नहीं लगा तो इंस्पैक्शन के बहाने अकसर उस की कक्षा में आ कर बैठने लगे. बच्चों को अलगअलग बुला कर ‘जरी के टीचिंग मैथड से सैटिस्फाइड हैं या नहीं?’ लिखित में जवाब मांगने लगे.
28 साल का अध्यापन अनुभव प्राचार्य की बारबार नुक्ताचीनी के कारण धीरेधीरे अपना विश्वास खोने लगा. प्राचार्य वक्त- बे-वक्त उसे कक्षा से बुला कर ऐडमिशन के सिलसिले में नित नए सवाल पूछ कर, कभी टीचिंग को ले कर बच्चों के सामने अपमानित करने का मौका ढूंढ़ने लगे. जरी पलपल आहत होती रही पर अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया.
प्राचार्य और उन के मुंहलगे चमचे एक तरफ तो शिक्षा को व्यापार बनाने पर तुले हुए थे दूसरी तरफ कर्म के प्रति कटिबद्ध और समर्पित जरी भीड़ में भी एकदम तन्हा रह गई थी.
‘तुम प्राचार्य की कंप्लेन क्यों नहीं करतीं असिस्टैंट कमिश्नर से?’ सहेली, दिल्ली की उपप्राचार्या ने फोन पर सलाह दी थी.
‘मेरे रिटायरमैंट को 2 साल रह गए हैं. मेरी कंप्लेन पर इन्क्वायरी होगी. ऐसे में हो सकता है प्राचार्य कोई नया झूठा केस बना दें क्योंकि वे मालिक हैं स्कूल के, गवाह भी उन्हीं के, वकील भी उन्हीं के. नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? केस के चलते मेरे फंड के पैसे रोक दिए जाएंगे. मेरी पैंशन भी लागू नहीं होगी. नैनी, एक नौकरी ही तो है मेरा सहारा. पैसे न होंगे तो बच्चों को कैसे पढ़ा सकूंगी? उन का भविष्य अंधेरे से घिर जाएगा. इसलिए चुपचाप सहती रही…’ बोलते हुए गला
भर्रा गया जरी का.
‘लेकिन नैना, उस दिन तो हद हो गई. जब चपरासी को भेज कर शाम 6 बजे मुझे अपने चैंबर में बुलवाया प्राचार्य ने,’ जरी ने हिचकियों के बीच अपने पर किए गए जुल्म की कहानी का एक और पृष्ठ खोला.
‘गुड ईवनिंग सर.’
‘गुड ईवनिंग.’
‘सर, आप अभी तक औफिस में?’
‘यस, कुछ कौन्फिडैंशियल रिपोर्ट हैडक्वार्टर भेजनी है, इसलिए…’
‘सर, मुझे क्यों बुलाया आप ने?’
‘फर्स्ट औफ औल, लेट मी क्लीयर मिसेज जरीना हमीद. वी आर सैंट्रल गवर्नमैंट एंप्लाई. वी कुड बी कौल ऐट एनीटाइम. वी आर द सर्वेंट औफ ट्वंटीफोर औवर्स, अंडरस्टैंड?’ प्राचार्य की आवाज का खुरदरापन चुभ गया जरी को.
जलते अलाव: भाग 3
‘अब तुम्हीं बतलाओ नैना, मैं तुम्हें कैसे बतलाती कि मेरी 30 साल की ईमानदारी, काम के प्रति पूरा डिवोशन और 10वीं, 12वीं के मासूम बच्चों को कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाने के बदले में मुझे क्या मिला
‘यस सर.’
‘मैडम, हैव ए लुक औन दीज पेपर्स,’ कागजों का पुलिंदा जरी की तरफ बढ़ाते हुए बोले प्राचार्य.
‘ह्वाट इज दिस, सर?’
‘आप के खिलाफ पेरैंट्स ने कंप्लेन की है कि आप क्लास में पढ़ाते समय बच्चों के मन में सांप्रदायिकता के कड़वे बीज बो रही हैं,’ प्राचार्य कुटिलता से मुसकराए.
‘नो, दिस इज एब्सौल्यूटली रौंग. आई हैड नैव्हर डन दिस टाइप औफ चीप टौक इन द क्लासरूम,’ जोर से चीखने के कारण जरी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया, ‘दिस इज अ प्लान्ड कौंस्पिरेसी अगेंस्ट मी.’
‘आवाज धीमी कीजिए मैडम जरीना हमीद, ये लिखित कंप्लेंट्स हैं आप के खिलाफ, 1 नहीं 10-12. इन्क्वायरी से पहले स्कूल का हैड होने के नाते मुझ से रिपोर्ट मांगी गई है.’
सुन कर जरी की आंखों में हजारों अलाव सुलगने लगे.
‘सर, ये सारी कंप्लेंट्स फर्जी हैं. आई नो इट वैरी वैल. मैं एक सोशल स्टडीज की टीचर हूं. बच्चों को स्वस्थ सोच देना मेरी जिम्मेदारी है. छोटीछोटी घटनाओं के माध्यम से बच्चों के मन में धर्म निरपेक्षता की फीलिंग भरना मेरी मौरल ड्यूटी है. मैं अब तक 14 प्राचार्यों के साथ काम कर चुकी हूं. 7 अलगअलग शहरों में. मेरी पर्सनल फाइल उठा कर देखिए. कोई मैमो, कोई वार्निंग लेटर नहीं है. सर, बहुत सोचसमझ कर मेरे खिलाफ बनाई गई है यह साजिश. आई नो दैट वैरी वैल.’
‘इट मींस यू आर ब्लेमिंग टू मी? मैं ने कोई साजिश रची है? जानती हैं, आप के द्वारा अथौरिटी की इंसल्ट करने और उस पर बेबुनियाद ब्लेम लगाने के जुर्म में मैं आप को सस्पैंड कर सकता हूं,’ प्राचार्य ने जहरीला फन फुफकारा.
‘आप कुरसी पर हैं, इसलिए जो जी चाहे कर सकते हैं और अल्पसंख्यक महिला शिक्षिका को अपनी सचाई साबित करने की दलील पर सस्पैंड कर सकते हैं. सर, इट इज एनफ. आप ने जब से यहां जौइन किया है, मेरा नौकरी करना मुश्किल कर दिया है क्योंकि मेरा नाम जरीना हमीद है और मैं मुसलमान हूं और आप की दुश्मनी पूरी मुसलिम कौम से है,’ बोलते हुए हांफने लगी जरी.
‘आप की बेटी और बीवी को सांप्रदायिक दंगों में जिंदा जला दिया गया तो क्या उस की सजा आप मुझे देंगे? आप की जिंदगीभर की कमाई दंगाइयों ने लूट ली तो उस का बदला आप मुझ से मेरी नौकरी छीन कर लेंगे? क्योंकि मैं मुसलमान हूं. नो, नो, यू कांट डू दिस. आप चंद गुमराह लोगों की वहशियाना हरकत की सजा मुझे गुनाहगार साबित कर के देना चाहते हैं. अपने मन की धधकती आग को ठंडा करना चाहते हैं तो यह मैं किसी हाल में होने नहीं दूंगी. खुद को नीचा दिखलाने का कोई मौका आप को कतई नहीं दूंगी, नहीं दूंगी,’ कहती हुई जरी चैंबर से बाहर निकल गई और दूसरे दिन अपनी वीआरएस लेने की ऐप्लिकेशन हैडक्वार्टर भिजवा कर एक कौपी प्राचार्य को थमा आई.
प्राचार्य ने उस रात मुंह लगे चमचों के साथ अपनी कामयाबी का जश्न मनाया. ‘इसी तरह एकएक का सफाया कर दूंगा. और तब तक करता रहूंगा जब तक भारत में एक भी मुसलमान बाकी रहेगा.’
2 महीने बाद जरी की ऐप्लिकेशन हैडक्वार्टर ने मंजूर कर ली और वह बच्चों को अपने कमजोर पंखों में समेटे अपने पैतृक घर में वापस आ गई.
‘‘अब तुम्हीं बतलाओ नैना, मैं तुम्हें कैसे बतलाती कि मेरी 30 साल की ईमानदारी, काम के प्रति पूरा डिवोशन और 10वीं, 12वीं के मासूम बच्चों को कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाने के बदले में मुझे क्या मिला…बेइज्जती, जिल्लत, जिंदगीभर के लिए लाचारी और मजबूरियां. धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा कर मैं ने छात्रों के दिल से दूसरी कौम के प्रति उपजने वाली नफरत को जड़मूल से नष्ट करने की कोशिश की, उन्हें सांप्रदायिकता का घिनौना पाठ भला मैं कैसे पढ़ा सकती हूं, नैना.’’
जरी की आंसुओं से भीगी आवाज सुन कर मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख सका. लड़खड़ाते कदमों से कमरे से बाहर निकल कर दोनों हाथों से छाती को दबा लिया. दर्द का गुबार उठा और मैं बालकनी की रेलिंग पकड़ कर नीचे फर्श पर गिर सा गया. चेतनाशून्य होता दिमाग, चक्कर खाती आंखें, धौंकनी की तरह चलती सांसें सवाल करने लगीं, ‘जो शख्सीयत लहू बन कर मेरी रगों में 30 सालों से दौड़ रही है, जिस का तसव्वुर मेरी सांसों को जिंदगी देता रहा है उसे मैं ने और मेरी कौम ने धर्म और जाति के नाम पर क्या दिया? अपमान, तिरस्कार और अविश्वास. जीवनभर का घोर मानसिक आघात. वह मुसलमान होने से पहले एक इंसान है, सिर्फ इंसान, यह कभी नहीं सोचा किसी ने.’
बरसों बाद भी मैं अपनी कंपकंपाती उंगलियों से उस के आंसू पोंछ कर उस के सिर पर तसल्लीभरा हाथ रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका.