Mujhe Bachcha Nahi Chahiye Latest Hindi Kahani 19 Din Main 19 Kahaniya 19 दिन 19 कहानियां: मुझे बच्चा नहीं चाहिए
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19 दिन 19 कहानियां: मुझे बच्चा नहीं चाहिए
‘अपना घर बनाने के लिए शादी की थी. क्या पता था कि घर नहीं, होटल मिलेगा. जहां हर चीज चमचमाती हुई होगी. करीने से रखी हुई कि मैं उसे हिला भी न सकूं.’ अर्शी ने धीरे से जवाब दिया.
अर्शी की आए-दिन मियां से लड़ाई हो जाती है. झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि अर्शी सोचने लगती कि इस आदमी के साथ पूरी जिन्दगी कैसे काटेगी. डर लगता है कि कहीं किसी दिन आदिल उसे तलाक ही न दे दे. बड़ी असुरक्षित सी जिन्दगी जी रही थी. हर वक्त सीने में धुकधुकी सी लगी रहती. लड़ाई भी ऐसे मुद्दे पर कि कोई सुने तो हंसी निकल जाए.
आदिल को सफाई की सनक थी. सनक भी ऐसी-वैसी नहीं, बहुत बड़ी. उसे भी और उसकी मां को भी. वो घर को किसी होटल की तरह चमचमाता हुआ देखना चाहते थे. धूल का कण न मिले कहीं, हर चीज चमकती हुई हो, फर्श पर हर वक्त फिनाइल का पोछा. बाहर से आओ तो लगता कि घर में नहीं, किसी अस्पताल में घुसे हो. अर्शी यहां हर काम ऐसे संभाल-संभाल कर करती थी कि कहीं उससे कोई चूक न हो जाए. कहीं कुछ गिर न जाए, कुछ टूट न जाए. वह किचेन को कई-कई बार पोंछती कि कहीं पानी की कोई बूंद पड़ी न दिख जाए आदिल को.
बेडरूम में कोई कपड़ा, सामान, कागज, अखबार इधर-उधर न पड़ा हो. सबकुछ भलीभांति व्यवस्थित हो. आदिल के आफिस से आते ही वह उसकी हर चीज जल्दी-जल्दी करीने से लगा देती, ताकि उसके गुस्से से बची रहे. सात साल हो गए शादी को और अर्शी को इंसान से रोबोट बने हुए. वह आज तक इस घर को अपना नहीं समझ पायी. समझे भी कैसे, वह कभी अपने तरीके से कुछ कर ही नहीं पायी यहां. घर को सुविधानुसार और अपने अनुरूप तो वह रख ही नहीं पाती है.
आदिल की मां ने घर में जो चीज जहां सजा दी हैं, वह बस उसे वहीं देखना चाहता है. अर्शी अपने मन से कोई चीज इधर से उधर नहीं कर सकती. यहां तक कि अपने बेडरूम तक में वह अपने अनुसार तस्वीरें, फूल या अन्य चीजें नहीं लगा पाती है. जरा सा चेंज करो तो सौ सवाल खड़े हो जाते हैं. यह क्यों किया? इस घर में अर्शी खुद को एक नौकरानी समझने लगी है. एक नौकरानी की तरह घर की तमाम चीजों को रोजाना झांड-पोंछ कर साफ तो करती है मगर इन्हें बदल कर इनकी जगह कुछ और सजाने का हक उसको नहीं है.
शादी के बाद दो साल तक तो उसे लगता रहा कि शायद एडजेस्मेंट प्रॉब्लम हो रही है. शायद उसके घर में साफ-सफाई का इतना ध्यान नहीं रखा जाता, जैसे यहां रखते हैं. नया घर, नये लोग हैं तो धीरे-धीरे वह इनके तौर-तरीके सीख लेगी. मगर बीते पांच साल से वह इस बात को शिद्दत से महसूस करने लगी थी कि आदिल और उसकी मां सफाई के मामले में बहुत ज्यादा सनकी हैं. उसे लगने लगा था कि आदिल से शादी करके उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है. मां का घर तो छूटा ही, जो मिला वह अपना नहीं है.
इन सात सालों में उसके अंदर ही अंदर बहुत कुछ टूट चुका है, एक सन्नाटा सा बिखर गया है अर्शी के शरीर और आत्मा में. सात सालों में वह बिल्कुल अकेली हो गयी है. हाथ भी खाली, मन भी खाली और कोख भी खाली. कोख इसलिए खाली क्योंकि अर्शी गर्भनिरोधक दवाएं लेती है, आदिल को बताए बिना.
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सोचती थी कि इस घर में एडजेस्ट हो जाऊं तब फैमिली बढ़ाऊंगी. फिर आदिल के गुस्से और लड़ाई-झगड़े की वजह से सोचती दो-चार साल में जब दोनों को एकदूसरे की आदत हो जाएगी, एक दूसरे को समझने लगेंगे और झगड़े कम हो जाएंगे तब वह अपनी बगिया में नये फूल का स्वागत करेगी. मगर अब तो लगता ही नहीं कि कभी ऐसा हो पाएगा.
उस दिन आदिल का मूड कुछ रोमांटिक सा था. बिस्तर पर लेटते ही उसने अर्शी को बांहों में जकड़ा और बोला, ‘अब हमें फैमिली बढ़ाने की सोचनी चाहिए. तुम किसी लेडी डॉक्टर से मशवरा क्यों नहीं करती, आखिर कब तक इंतजार करोगी?’
अर्शी उसकी बात सुन कर खामोश ही रही. आदिल अपनी रौ में बोलता रहा, ‘देखो, मैं बहुत आजाद ख्याल का आदमी हूं. तुम इलाज के चक्कर में अगर नहीं पड़ना चाहती तो हम बच्चा गोद भी ले सकते हैं.’
अर्शी को खामोश देखकर उसे खीज सी हुई. ‘कुछ तो कहो…’ उसने उसकी चुप्पी पर खिसियाते हुए कहा.
‘मुझे बच्चा नहीं चाहिए.’ अर्शी ने धीरे से जवाब दिया. आदिल इस जवाब पर चौंक कर उठ बैठा. अर्शी के चेहरे की ओर उसने गौर से देखा और पूछा, ‘बच्चा नहीं चाहिए? क्यों? फिर शादी क्यों की तुमने?’ उसकी आवाज कठोर हो गयी.
‘अपना घर बनाने के लिए शादी की थी. क्या पता था कि घर नहीं, होटल मिलेगा. जहां हर चीज चमचमाती हुई होगी. करीने से रखी हुई कि मैं उसे हिला भी न सकूं.’ अर्शी ने धीरे से जवाब दिया.
‘क्या… मतलब क्या है तुम्हारा? ये घर नहीं होटल है?’ आदिल चिल्लाया.
‘हां, होटल ही है… चमचमाता हुआ होटल… कभी देखा है उन घरों को जहां बच्चे होते हैं… कैसे होते हैं वह घर… वहां हर तरफ खिलौने बिखरे होते हैं, चॉकलेट-टॉफियां बिखरी पड़ी रहती हैं. घर वह होता है जहां बच्चों की किताबें पड़ी होती हैं… उनके कपड़े यहां वहां सूख रहे होते हैं… कहीं वह खेल रहे होते हैं… कहीं खाना खा कर फैला रहे होते हैं तो कहीं पॉटी करके बैठे होते हैं… वो होता है घर, जहां जिन्दगी होती है, जहां हलचल होती है, शोर-शराबा, हंसी-मजाक होता है… ऐसा नहीं जैसा यहां है… फिनाइल की महक से भरा सन्नाटा… सिर्फ सन्नाटा… अंदर भी और बाहर भी… मुझे होटल में बच्चा पैदा नहीं करना है… तुम चाहो तो मुझे तलाक दे दो…’
आदिल बिस्तर पर सन्न बैठा था और अर्शी को आज इतने सालों बाद यह सच्चाई कहने के बाद बहुत हल्का महसूस हो रहा था. यह बात आदिल से कह पाने की हिम्मत उसमें आयी थी तलाक का कठोर फैसला लेने के बाद. आदिल को उसी हाल में छोड़कर वह छत पर चली गयी. आखिरी बार इस होटल के ऊपर का आकाश देखने के लिए क्योंकि कल सुबह उसे वहां से उड़ जाना था.