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Read Hindi Kahani Aankhon Ka Indradhanush Part 1 आंखों में इंद्रधनुष: भाग 1 हिंदी कहानी पढ़ो

अगर आपको कहानी पढ़ने के शौकीन है तो आज मैं आपके लिए मनोरंजन सहाय सक्सेना की कहानी लाया हूँ
आंखों में इंद्रधनुष: भाग 1


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गुलाबी रंग की आँखों में बेस इंद्रधनुषी रंग को किस ने बदरंग कर दिया ?


Aankhon Ka Indradhanush
उस की आंखों में इंद्रधनुष था. उस के जीवन में पहली बार वसंत के फूल खिले थे, पहली बार चारों तरफ बिखरे हुए रंग उस की आंखों को चटकीले, चमकदार और सुंदर लगे थे, पहली बार उसे पक्षियों की चहचहाहट मधुर लगी थी, पहली बार उस ने आमों में बौर खिलते देखे थे और रातों को उन की खुशबू अपने नथुनों में भरी थी, पहली बार उस ने कोयल को कूकते हुए सुना था और पहली बार उसे आसमान बहुत प्यारा व शीतल लगा था. अपने चारों तरफ बिखरे हुए प्रकृति के इतने सारे रूप और रंग उस ने पहली बार देखे थे और उन्हें बाहरी आंखों से ही नहीं, मन की आंखों से भी अपने अंदर भर कर उन की सुंदरता और शीतलता को महसूस किया था, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.



उस का मन अब पुस्तकों में नहीं लगता था. सफेद कागज पर छपे काले अक्षरों पर अब उस की निगाह नहीं टिकती थी. अब उस का मन पता नहीं कहांकहां, किन जंगलों, पर्वतपहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानों और बीहड़ों में भटकता रहता था. उस के मन को निगाहों के रास्ते पता नहीं किस चीज की तलाश थी कि वह रातदिन बेचैन रहती थी, खोईखोई रहती थी. लोगों के टोकने पर उसे होश आता कि वह स्वयं में ही कहीं खो गई थी. उस की अवस्था पर लोग हंसते, परंतु वह तनिक भी विचलित न होती. वह खोई रहती एक ऐसी दुनिया में, जहां केवल वह थी, फूल थे, नाना प्रकार के रंग थे और आंखों को शीतलता प्रदान करने वाला खुला आसमान था.





आसमान पर उस की निगाहें टिकी रहतीं. वहां धुनी हुई रुई से सफेद बादलों के टुकड़े हलकेहलके तैरा करते. उन बादल के टुकड़ों की मंद गति उस के मन को बहुत भाती. देखतेदेखते आषाढ़ आ गया और आसमान में बादलों की घटाएं घिरने लगीं. घटाओं ने नीले आसमान को अपनी काली, घनी जुल्फों से ढक लिया. परंतु उसे बुरा न लगा क्योंकि काली घटाएं भी उस के मन को बहुत भाने लगी थीं. फिर घटाओं ने अपनी जुल्फों को लहराते हुए छोटीछोटी बूंदें प्यासी धरती के आंचल पर बिखरा दीं. बूंदों के धरती पर गिरते ही सोंधी सी खुशबू उस के नथुनों में समा गई और वह बावली सी हो गई. वह और ज्यादा भटक गई और इसी भटकन के दौरान उस ने आसमान में एक शाम को इंद्रधनुष देखा, जो इतना मोहक और सुंदर था कि वह उस इंद्रधनुष के गहरे रंगों में बहुत देर तक खोई रही और फिर उसे पता ही न चला कि धीरेधीरे वह इंद्रधनुष कब उस की आंखों में आ कर बैठ गया. आंखों में इंद्रधनुष के आते ही वह अपने में खो सी गई. उस का मन कुछ पाने की तलाश में भटकता रहा, और फिर एक दिन उस की आंखों के सात रंगों में एक और रंग आ कर बैठ गया, यह उसे बहुत भला लगा, परंतु अपनी आंखों में बसे इंद्रधनुष के कारण वह यह नहीं देख सकी कि जो नया रंग उस की आंखों में आ कर बस गया है, उस का रंग बहुत ही भद्दा और काला सा है. इस अवस्था में एक मासूम और जवान हो रही लड़की के लिए केवल रंग महत्त्वपूर्ण होते हैं. वह उन के प्रभाव से अपरिचित होती है. उसे पता नहीं चलता कि उन रंगों के साथ वह एक खतरनाक खेल खेलने जा रही है.

खैर, उस वक्त उसे वह काला रंग भी इंद्रधनुष के सात रंगों में से एक लगा… इतना मोहक, सुंदर, सुखद और प्यारा कि वह उस के रंग में रंग गई. वह काला रंग उस की आंखों के इंद्रधनुष के रंगों में इस कदर घुलमिल गया था कि वह उसे गुलाबी रंग जैसा लगता. अपनी सपनीली आंखों से जब वह उस काले रंग को देखती तो वह गुलाबी रंग बन कर उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर जाता, क्योंकि वह स्वयं सुनहरे रंग की होती हुई भी दूसरों की निगाहों को गुलाबी रंग जैसी लगती थी. उस ने उस रंग को अपने जीवन के हर पल में सम्मिलित कर लिया था. काले रंग ने एक दिन उस से कहा, ‘‘क्या हम यों ही इंद्रधनुष देख कर अपने मन को बहलाते रहेंगे, बादलों के उमड़नेघुमड़ने से क्या हमारे मन को सुख प्राप्त हो सकेगा? बारिश की फुहारों से भीग कर क्या हम अपने मन को तृप्त करते रहेंगे? क्या यही हमारा जीवन है?’’

‘‘तो हम और क्या करें?’’ गुलाबी रंगवाली लड़की ने, जिस की आंखों में इंद्रधनुष था, उदास स्वर में कहा.

आजकल घर में उसे डांट पड़ने लगी थी. उस की उदासीभरी चुप्पी से घर वालों को उस के चरित्र के ऊपर संदेह होने लगा था और कई चौकन्नी आंखें उस के इर्दगिर्द मंडराने लगी थीं. उन सतर्क और जासूस निगाहों से उसे कोई कष्ट नहीं होता था क्योंकि उस की स्वयं की निगाहें ही इस कदर भटकी हुई थीं कि दूसरों की निगाहों को वह देख नहीं पाती थी, परंतु जब उस के आचारव्यवहार को देख कर घर वाले, विशेषकर उस की मां उसे बारबार टोकतीं, बातोंबातों में कुछ ऐसा कह देतीं कि उस के कोमल हृदय को गहरी ठेस लगती और वह कराह कर रह जाती.

उस की कराह को मम्मी नहीं सुन पातीं या सुन कर भी अनसुना कर देतीं और उसे डांटती ही चली जातीं, उस के दिल में होने वाले घावों की परवा किए बिना. तब उस को बेहद कष्ट होता, परंतु अपने दिल का हाल न वह मां को बता सकती थी न किसी और को. अपने मन की तकलीफ को वह काले रंग से भी कैसे कहती, क्योंकि वह जब भी उस से अकेले में मिलता, उस के अपने रंग होते और वह उन रंगों को चटकदार बनाने के प्रयास में लगा रहता. वह कुछ ऐसे रंगों की बात करता जो गुलाबी रंगवाली लड़की के रंगों से मेल नहीं खाते थे.


‘‘प्यार के कुछ रंग हम अपने जीवन में भी भर लें, तो…’’ काले रंग ने उसे अपनी जद में लेते हुए कहा.

‘‘वे तो हमारे जीवन में हैं, इतने सारे रंग, जो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, मेरी आंखों में बस गए हैं, वे सब प्यार के ही तो रंग हैं जिन के सहारे हम जी रहे हैं,’’ उस ने भोलेपन से कहा. वह सचमुच भोली थी, क्योंकि उस का रंग गुलाबी था और गुलाबी रंग प्यार का प्रतीक होता है. इस रंग में छलकपट नहीं होता. परंतु काला रंग बहुत शातिर, चतुर और चालाक था. उसे पता था कि गुलाबी रंग को किस प्रकार मटियामेट कर के काला बनाया जा सकता है. ‘‘तुम बहुत भोली हो,’’ काले रंग ने उस के ऊपर घटाओं की तरह छाते हुए कहा. उस ने उस का हाथ पकड़ लिया और अपने सीने पर रखते हुए आगे कहा, ‘‘इतने सारे रंग जो प्रकृति में चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, इन्हें देख कर हम अपने मन को संतोषभरा सुख प्रदान कर सकते हैं, परंतु हमारे तन को सुख देने वाले रंग कुछ और ही होते हैं.’’





आंखों में इंद्रधनुष:भाग 2
फिर अपनी आंखों में इंद्रधनुष लिए वह यहांवहां भटकती रही. जंगल के वीरान सन्नाटे में, होटल के बदबूदार नीमअंधेरे कमरे में, बगीचों के पौधों के पीछे की नरम मिट्टी पर उगी गुदगुदी घास पर और न जाने कहांकहां.




‘‘वे रंग कहां मिलेंगे?’’ गुलाबी रंग वाली लड़की ने उत्साह से उस के हाथ को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से दबा दिया, ‘‘चलो, मुझे वहां ले चलो. मैं उन रंगों को भी अपने तनमन में बसा लेना चाहती हूं.’’ लड़की सचमुच बहुत भोली थी और काले रंग की चाल को नहीं समझ पा रही थी. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष बसा लेती हैं तो उन की आंखों में जीवन के वास्तविक रंग खो जाते हैं और वे ऐसे काल्पनिक रंगों की विविधता में खो जाती हैं कि उन को पाने के चक्कर में अपना बहुतकुछ गंवा देती हैं.




काले रंग ने उसे अपने रंग में रंगते हुए कहा, ‘‘इन रंगों को पाने के लिए हमें एकांत की अंधेरी गलियों में जाना होगा. वहां हमें कुछ दिखाई नहीं देगा, परंतु हम अपने हाथों से उन रंगों को प्राप्त कर सकते हैं. अगर तुम सहमत हो तो हम चलें और उन रंगों को खोज कर अपने हाथों से अपने तनबदन में भर लें. देखना, बहुत अच्छे लगेंगे तुम को वे रंग, जब वे तुम्हारी पकड़ में आ जाएंगे.’’ गुलाबी रंग वाली लड़की को काले रंग की मंशा का अंदाजा नहीं था. वह बस जीवन को सुख प्रदान करने वाले कुछ और रंगों को अपने तनबदन में समेट लेना चाहती थी. इंद्रधनुष के रंग उस की आंखों में कम पड़ने लगे थे. अब उसे उन रंगों की तलाश थी जो उस के तनबदन से लिपट कर उसे जीवन के अभी तक अपरिचित सुख से सराबोर कर दें. वह भोली थी, परंतु उत्सुक थी. और जहां ये दोनों चीजें हों वहां बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती, सतर्कता नाम की किसी चीज से इन का कोई वास्ता नहीं होता.





और फिर अपनी आंखों में इंद्रधनुष लिए वह यहांवहां भटकती रही. जंगल के वीरान सन्नाटे में, होटल के बदबूदार नीमअंधेरे कमरे में, बगीचों के पौधों के पीछे की नरम मिट्टी पर उगी गुदगुदी घास पर और न जाने कहांकहां. उसे जीवन के सुखद रंगों की तलाश थी और इस तलाश में वह बहुतकुछ भूल गई थी, अपने घरपरिवार को, नातेरिश्तेदारों को, सगेसंबंधियों को और कालेज के दोस्तों को… उसे कुछ रंग पाने थे. वे रंग जिन को उस ने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था. वह उस काले रंग के माध्यम से उन रंगों को खोजने निकली थी, परंतु वह स्वयं भटक गई थी, ऐसी अंधेरी गलियों में जहां काले रंग ने अपने खुरदरे हाथों से उस के बदन में कुछ ऐसे बीज बो दिए थे, जो धीरेधीरे उग रहे थे और उस के बदन में कुछ ऐसी मिठास भर रहे थे कि वह दिनोदिन मदहोश होती जा रही थी.




उस के होशहवास गुम थे और उसे पता नहीं था कि वह किस दुनिया में विचरण कर रही थी. परंतु जो भी हो रहा था, उसे अच्छा लग रहा था. फिर एक दिन काले रंग ने उस के बदन के सारे रंग चुरा लिए और उस के अंदर एक काला रंग भर दिया. गुलाबी रंग को पता नहीं चला कि उसे सुख प्रदान करने वाले कौन से रंग प्राप्त हुए थे, परंतु ये जो भी रंग थे, उसे सुखद ही लग रहे थे. उन रंगों को वह पहचान नहीं पा रही थी और शायद जीवन के अंत तक न पहचान पाए, परंतु इन बदरंग रंगों में खोने का उसे कोई अफसोस नहीं था. उस की आंखों के इंद्रधनुष में काला रंग पूरी तरह से घटाओं की तरह छा गया और वह भी उन घटाओं की फुहारों में भीग कर प्रफुल्लित अनुभव कर रही थी.




एक दिन गुलाबी रंग के अंदर एक दूसरा काला रंग उभरने लगा. वह चिंतित हुई और उस ने काले रंग को इस संबंध में बताया कि वह अपने अंदर कुछ परिवर्तन अनुभव कर रही थी और उसे लग रहा था कि उस के अंदर एक काला रंग धीरेधीरे कागज पर फैली स्याही की तरह फैलने लगा था. काला रंग थोड़ी देर के लिए सन्न सा रह गया. उस ने अविश्वसनीय भाव से गुलाबी रंग को देखा, उस की आंखों में इंद्रधनुष ढूंढ़ने का प्रयास किया, परंतु उस की आंखों का इंद्रधनुष फीका सा लगा. वह भयभीत हो गया, परंतु चतुराई से उस ने अपने चेहरे के भावों को गुलाबी रंग वाली लड़की से छिपा लिया. फिर धीरे से जमीन की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘नहीं, कुछ नहीं हुआ. तुम ठीक हो.’’




‘‘नहीं, कुछ तो हुआ है. मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई है. मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता. मेरे शरीर में कुछ परिवर्तन हो रहा है, जिसे मैं ठीक से समझ नहीं पा रही हूं.’’


‘‘यह तुम्हारा भ्रम है. तुम ने ढेर सारे रंग एकसाथ अपने हाथों से समेट कर अपने बदन में भर लिए हैं, इसीलिए तुम्हें ऐसा लग रहा है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ ‘‘काश, सबकुछ ठीक हो जाए, परंतु मैं अपने मन को कैसे समझाऊं? मेरे घर वाले भी अब तो और ज्यादा सतर्क व चौकन्ने हो कर मेरी हरकतों पर नजर रख रहे हैं. उन की आंखों में ऐसे रंग उभर आते हैं कि कभीकभी मैं डर जाती हूं,’’ उस ने काले रंग को जोर से पकड़ते हुए कहा. काला रंग यह बात सुन कर और अधिक भयभीत हो गया. अगर गुलाबी रंग के घर वालों को सबकुछ पता चल गया तो उस का क्या होगा? वह तो बेमौत मारा जाएगा. वे लोग पता नहीं क्या करेंगे उस के साथ? कहीं यह मासूम लड़की घर वालों के दबाव में आ कर सबकुछ बता न दे. उस ने लड़की की पकड़ से धीरे से अपने को छुड़ाया और चौकन्नी निगाहों से चारों तरफ इस तरह देखने लगा जैसे उसी वक्त वहां से भाग जाना चाहता हो.





उस दिन लड़की को ढेर सारी सांत्वना और झूठे आश्वासन दे कर उस ने अपने को उस के चंगुल से छुड़ाया और फिर वह काला रंग पता नहीं कहां गुम हो गया. प्रत्यक्ष रूप से तो वह अवश्य लुप्त हो गया था परंतु पूरी तरह से कैसे गुम हो सकता था? उस का प्रतिरूप लड़की के अंदर धीमी गति से अपने पैर पसारने लगा था और गुलाबी रंग वाली लड़की यह बात अच्छी तरह समझ गई थी कि उस के जीवन में अब कुछ ठीक नहीं होने वाला था. अपनी निगाहों और हाथों से सुख प्रदान करने वाले जितने रंग उस ने पकड़ कर अपने बदन में भरे थे, वे सारे पिघल कर बह गए थे और अब केवल एक ही रंग बचा था, जो उस के अंदर धीरेधीरे गाढ़ा होता जा रहा था, वह था काला रंग.




#coronavirus: आंखों में इंद्रधनुष: भाग 3
उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे,


संसार में बहुत सारे रंग होते हैं और ये सारे रंग सभी को खुशियां प्रदान करते हैं. परंतु कभीकभी कुछ रंग किसी के जीवन में कष्ट और आंखों में आंसू भर जाते हैं. वह काला रंग, जिस ने उस की आंखों से इंद्रधनुष के सारे रंग चुरा लिए थे और उस के बदन के खिले हुए फूलों को तोड़ कर मसल दिया था, आजकल कहीं नजर नहीं आता था. वह उस से मिलने के लिए बेताब थी. बेकरारी से उस से मिलने के लिए निर्धारित स्थल पर इंतजार करती, परंतु वह न आता. वह निराश हो जाती और हताश हो कर घर वापस लौट आती. वह उस की गली में भी कई बार गई परंतु वह एक बार भी अपने कमरे पर नहीं मिला. पड़ोस में किसी से पूछने का साहस वह न कर पाई. फोन पर भी वह नहीं मिलता था. अकसर उस का फोन बंद मिलता, कभी अगर मिल जाता तो बहाना बना देता कि काम के सिलसिले में कुछ अधिक व्यस्त है, खाली होते ही मिलेगा और वह उसे स्वयं ही फोन कर लेगा, वह परेशान न हो.

परंतु वह परेशान क्यों न होती. काले रंग ने उस के लिए परेशान होने के बहुत सारे रास्ते खोल दिए थे. वह उन रास्तों से गुजरने के लिए बाध्य थी. उस के शरीर में व्याप्त काला रंग अपना आकार बढ़ाता जा रहा था. वह इतना ज्यादा चिंतित रहने लगी थी कि उस की सुंदर काली आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे, चेहरा मुरझाने लगा था, होंठ सूख कर पपडि़यां बन गए थे, जैसे पूरे चेहरे पर किसी ने बहुत सारी बर्फ डाल दी हो. उस की यह स्थिति देख कर उस के घर के लोगों के चेहरों के रंग भी बदल गए थे. उस की निगाह उन लोगों की तरफ नहीं उठ पाती थी, परंतु जब भी उठती तो उसे अपने ही परिजनों के चेहरों पर इतने सारे रंग नजर आते कि वह डर जाती… उन सभी की आंखों में घृणा, क्रोध, आक्रोश, वितृष्णा, तिरस्कार और अविश्वास के गहरे रंग भरे हुए थे और ये सभी रंग उस से एक ही प्रश्न बारबार पूछ रहे थे, ‘क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्या कर डाला है तुम ने? इतना सारा काला रंग कहां से ले आई हो कि हम सब का दम घुटने लगा है. कुछ बताओ तो सही.’ परंतु वह कुछ न बता पाती. किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का साहस उस के पास नहीं था. उस ने जो किया था, वह किसी भी तरह क्षम्य नहीं था.


वह एक संपन्न, सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सभ्य परिवार था. उस परिवार के लोग भयभीत थे, इस बात से नहीं कि उस के घर के गुलाबी रंग ने अपने ऊपर बहुत सारा काला रंग डाल लिया था और उस ने इस कदर इस रंग को ओढ़ रखा था कि उस का प्राकृतिक गुलाबी रंग कहीं खो गया था. काले रंग के अलावा कोई और रंग उस में नजर भी नहीं आता था. वे इस बात से डर रहे थे कि अगर यह काला रंग घर के बाहर फैल गया तो समाज में किस प्रकार अपना मुंह दिखाएंगे और किस प्रकार अपने सिर को ऊंचा कर के चल सकेंगे. किसी भी परिवार के लिए ऐसे क्षण आत्मघाती होते हैं.

स्थिति दयनीय ही नहीं, भयावह भी थी. सब को किसी न किसी दिन एक विस्फोट की प्रतीक्षा थी. कब होगा यह विस्फोट, कोई नहीं जानता था. विस्फोट हो जाता तो उस के प्रभाव से होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता था, परंतु यहां तो सभीकुछ अनिश्चित सा था और अनिश्चय की घडि़यां बहुत कष्टदायी होती हैं. कुछ न कुछ तो करना ही होगा. यों डरेसहमे से, आंखों में संदेह के बादलों का गांव बसा कर किस तरह जिया जा सकता था. उस घर के 3 रंगों-लाल, पीले और हरे ने आपस में सलाह की. नीला रंग अभी छोटा था और वह बहुत सारी चिंताओं से मुक्त था, सो उसे चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया. लाल रंग गुस्सैल स्वभाव का था. उस ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं अभी उस की हड्डीपसली तोड़ कर एक कर देता हूं. पूछता हूं कि कौन है वह, जिस के साथ उस ने अपना मुंह काला किया है.’’





‘‘यह कोई समस्या का समाधान नहीं है. इस से बात बिगड़ सकती है और बाहर तक जा सकती है. मैं उस से बात करती हूं,’’ पीले रंग वाली स्त्री ने शांत भाव से कहा. ‘‘मुझे बस एक बार पता चल जाए कि वह कौन कमीना रंग है जिस ने हमारे घर के रंग के साथ काले रंग से होली खेली है, उस को चलनेफिरने लायक नहीं छोड़ूंगा,’’ हरे रंग ने अपनी युवावस्था के जोश में कहा. ‘‘तुम अपने हथियारों को संभाल कर रखो. उन से बाद में काम लेना. अभी तो हमें अहिंसा के साथ मामले को सुलझाने का प्रयास करना है, जब बात नहीं बनेगी तो आप दोनों को कमान सौंप दूंगी.’’ और अंत में, पीले रंगवाली स्त्री ने कमान अपने हाथ में संभाल ली. वह परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए कमर कस कर गुलाबी रंग वाली लड़की, जो उस की बेटी थी, के कमरे में जा पहुंची.

गुलाबी रंग वाली लड़की काले रंग के प्रभाव और चिंता में स्वयं बहुत पीली हो गई थी, जैसे पीलिया की रोगी हो. उस की अधिकतर दिनचर्या उस के कमरे और बिस्तर तक ही सीमित हो कर रह गई थी. उस ने पीले रंग को कमरे में आते देखा तो उस का रंग और अधिक पीला हो गया. वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अनायास उस के मुख से निकला, ‘‘आप?’’ उस की आंखें हैरत से फट सी गई थीं. ‘‘हां, मैं? क्या मैं तुम्हारे कमरे में नहीं आ सकती?’’ पीले रंग ने कठोर स्वर में कहा. वह सच का सामना करने आई थी और आज उसे किसी भी तरह गुलाबी रंग से सच उगलवाना था. सच प्रकट नहीं होगा तो अनिश्चय की स्थिति में सभी लोग घुलते हुए भयंकर रोगी बन जाएंगे.

गुलाबी रंग की आंखों में भय की परत और अधिक गहरी हो गई. पीला रंग पलंग पर बैठ गया, ‘‘बैठो न, तुम से कुछ बातें करनी हैं.’’ वह बैठ गई, नीची निगाहें, हृदय में असामान्य धड़कन, शरीर में अजीब सी सनसनी भरा कंपन…पता नहीं आज क्या होने वाला है? उस ने इस दिन की कल्पना कभी नहीं की थी, तब भी नहीं जब उस ने अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरने शुरू किए थे और तब भी नही, जब काला रंग उस के जीवन के रंगों के साथ घुलने लगा था और तब भी नहीं जब काले रंग ने मीठीमीठी बातों के रंग उस के ऊपर बिखरा कर उसे मदहोश कर दिया था और उस के कोमल बदन के सारे फूल चुरा लिए थे. वह एक वीरान बगीचे के समान हो गई थी, जहां से अभीअभी पतझड़ गुजर कर गया था.

पीले रंग के चेहरे के भाव और उस के स्वर की कठोरता ने गुलाबी रंग पर यह स्पष्ट कर दिया था कि आज हर प्रकार की ऊहापोह और अविश्वास की डोर कटने वाली थी, अनिश्चय का अंत होने वाला था. आज हर वह बात खुल जाएगी, जिसे उस ने अभी तक अपने हृदय की तमाम परतों के भीतर छिपा रखा था. उस ने भले ही बहुत सारे रहस्य अपने बदन की परतों के अंदर छिपा रखे हों, परंतु उस के बदन में होने वाले बाहरी परिवर्तनों ने बहुत सारे रहस्यों को सुबह की रोशनी की तरह स्पष्ट कर दिया था. सब की धुंधलाई आंखों में चमक आ गई थी. वह डरतेसहमते पीले रंग के पास बैठ गई. आज उसे उस के पास बैठते हुए डर लग रहा था. वह इसी रंग की कोख से पैदा हुई थी, उस के आंचल का दूध पिया था और उस की बांहों में झूलते हुए लोरियों को सुना था. बचपन से ले कर जवान होने तक बहुत सारी बातों को दोनों ने साथ जिया था, परंतु आज इस अनहोनी बात से मांबेटी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं. वे एकदूसरे से अपरिचित हो गई थीं.

मां फिर भी मां होती है. पीले रंग ने उस का सिर सांत्वना देने वाले भाव से सहलाया. गुलाबी रंग कांप गया. पीले रंग का स्थिर स्वर उभरा, ‘‘घबराओ मत, सबकुछ साफसाफ बता दो. अब छिपाने से कोई फायदा नहीं है. घर के सभी लोगों को तुम्हारी स्थिति का आभास है, परंतु हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं कि यह सब कैसे हुआ? क्या किसी ने जोरजबरदस्ती की है तुम्हारे साथ या तुम ने पूरी समझदारी को ताक पर रख कर यह कालिख अपने मुंह पर पोत ली है और अब यह कालिख तुम्हारे पेट में फैल कर बड़ी हो रही है.’’



गुलाबी रंग का बदन कांपने लगा. उस के मन में बहुत सारे चित्र उभरने लगे, जैसे मन के परदे पर बाइस्कोप चल रहा हो. इन विभिन्न चित्रों के रंग उसे और ज्यादा डराने लगे और उस ने एक निरीह चिडि़या, जो बाज के पंजों में फंसी हो, की तरह पीले रंग की आंखों में देखा. पीले रंग वाली स्त्री उस की भयभीत आंखों की बेबसी और लाचारी देख कर पिघल गई और उस ने सिसकते हुए गुलाबी रंग को अपने अंक में समेट लिया. इस के बाद कमरे में केवल करुण कं्रदन का दिल दहला देने वाला स्वर भर गया और पता नहीं चल रहा था कि दोनों महिलाएं एकसाथ इतने सुर, लय और ताल में किस प्रकार रो सकती थीं कि दोनों का स्वर एकजैसा लगे. यह संभव भी था क्येंकि वे दोनों नारियां थीं और सब से बड़ी बात यह थी कि वे दोनों आपस में मांबेटी थीं. वे एकदूसरे के दर्द को बिना किसी शब्द और स्वर के भी तीव्रता के साथ महसूस कर सकती थीं.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो. रंगों की चकाचौंध में मैं भटक गई थी. मुझे पता नहीं था कि जीवन के कुछ रंग चमकीले और लुभावने होने के साथसाथ जहरीले भी होते हैं. यौवन के उसी एक रंग ने मुझ में जहर घोल दिया और मैं उसे जीवन का अद्भुत सुख समझ कर जीती रही. जीवन में ऐसी खुशियां भरती रही, जो बाद में मुझे दुख देने वाली थीं.’’ ‘‘जवानी के रंगों के बीच भटक कर लड़कियां जो जहर पीती हैं, वह उन के मुंह पर ही कालिख नहीं पोतता, बल्कि उस के घरपरिवार के ऊपर भी एक बदनुमा दाग छोड़ जाता है. खैर, इन सब बातों पर चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है. यह बताओ, वह कौन है, कहां रहता है और क्या करता है?’’ ‘‘पहले मैं ने उस के बारे में अधिक कुछ जानने का प्रयास नहीं किया था. मेरी आंखों में इतने सारे रंग भरे हुए थे कि वह मुझे हर कोण से सुंदर, शिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत लगा, परंतु जब रंग फीके पड़ने लगे और मेरी आंखों के ऊपर से परदे उठे तो पता चला कि वह एक ऐसा युवक था, जिस का कोई सामाजिक या आर्थिक आधार नहीं था. वह एक कंपनी का साधारण सा सेल्समैन है और शहर की एक गंदी बस्ती के एक छोटे से कमरे में किराए पर रहता है.’’

पीले रंग वाली स्त्री यह सुन कर और ज्यादा पीली पड़ गई, परंतु मुसीबत की इस घड़ी में उसे अपने धैर्य को बचाए रखना था. वह मां थी और बेटी के जीवन की सुरक्षा के लिए उसे हर संभव उपाय करने थे, वरना कलंक का अमिट धब्बा उस की बेटी के माथे पर सदा के लिए चिपक कर रह जाता. तब उसे धोना असंभव हो जाता. उस ने पूछा, ‘‘क्या वह तुम से ब्याह करने के लिए राजी है?’’ गुलाबी रंग की आंखों में अविश्वास के रंग तैर गए, ‘‘पता नहीं, कई दिनों से वह मुझ से कतराने लगा है. फोन पर बात नहीं करता. कभी बात हो भी जाए तो मिलने नहीं आता. काम का बहाना बना देता है.’’

‘‘तब तो मुश्किल है,’’ वह चिंतित हो उठी.

‘‘क्या मुश्किल है?’’ बेटी का शरीर फिर कांपने लगा.

‘‘तुम दोनों का मिलन…तुम्हारा कलंक मिटाने के लिए मैं उस साधारण युवक से भी तुम्हारी शादी कर देती, परंतु लगता है कि उस के मन में पहले से ही छल था. वह तुम्हारे यौवन और सौंदर्य का रसपान करना चाहता था. वह उसे प्राप्त हो गया, तो अब तुम से दूर हो गया. जो लड़कियां जवानी में अपनी आंखों में प्रेम का इंद्रधनुष बसा लेती हैं उन की आंखों और बदन के रंगों को चुराने के लिए मानवरूपी दैत्य राजकुमार का भेष बना कर यौवन से भरपूर राजकुमारियों को प्रेम के जादू से अपने वश में कर के उन के सतीत्व का धन छीन कर उन के दीप्त यौवन का रसपान करते हैं. तुम जानेअनजाने, एक दैत्य की कुटिल चालों के जाल में फंस गईं और अपना सबकुछ लुटा बैठीं. इस गलती की सजा केवल तुम्हें ही नहीं, हमें भी जीवनभर भुगतनी पड़ेगी.’’ ‘‘काश, मैं उसे पहचान पाती,’’ गुलाबी रंग ने अफसोस जताते हुए कहा. परंतु अब अफसोस करने से भी क्या फायदा था? जवानी में कोई भी विवेक से काम नहीं लेता.


‘‘गलती हमारी भी है. हर जवान हो रही बेटी की मां को इतना ध्यान रखना ही चाहिए कि जवानी में उस की बेटी के कदम बहक सकते हैं. सचेत रह कर मुझे तुम्हारी हर गतिविधि का ध्यान रखना चाहिए था. तुम्हारी आंखों में गलत रंग भरते, इस के पहले ही अगर हमें पता चल जाता…’’ मां भी अफसोस करने लगीं.

गुलाबी रंग चुप.

‘‘तुम ने उस का कमरा देखा है?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो चलो.’’

उन्हें विश्वास नहीं था, फिर भी अविश्वास की घड़ी में मनुष्य विश्वास का दामन नहीं छोड़ता. वे उस काले रंग के कमरे पर गईं. वहां जा कर पता चला कि वह उस कमरे में अकेला रहता था. कहीं बाहर का रहने वाला था और अब उसे छोड़ कर पता नहीं कहां चला गया था. किसी को भी उस के गांव का पता नहीं मालूम था और न यही मालूम था कि वह कहां गया था. मकानमालिक को भी उस ने कुछ नहीं बताया था. अब तो उस का फोन नियमित रूप से बंद था. काले रंग की मंशा का पता चल गया था. लड़कियां जब अपनी आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरती हैं तो रंगों की चकाचौंध में वे उन के पीछे छिपे काले रंग को नहीं देख पाती हैं. काश, वह देख पाती तो उस की आंखों में इंद्रधनुष के रंगों की जगह केवल आंसू न होते.


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एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं. ...

आज के टॉप 4 शेर (friday feeling best 4 sher collection)

आज के टॉप 4 शेर ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ - लाल चन्द फ़लक मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - अल्लामा इक़बाल उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे - जिगर मुरादाबादी हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी - अहमद फ़राज़ साहिर लुधियानवी कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया कैफ़ी आज़मी इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद बशीर बद्र दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों वसीम बरेलवी आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है - वसीम बरेलवी मीर तक़ी मीर बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो - मीर तक़ी...

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे...