Ye Machchhar Tu Mahan Hain New Kahani |
ऐ मच्छर, तू महान है: अदने से मच्छर की महिमा अपरंपार
परिवर्तन ने तेरे अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाला. और भविष्य में ऐसी कोई संभावना नजर भी नहीं आती. तुझ से वैसे तो हर जीव को प्रेरणा लेनी चाहिए पर मनुष्यों के लिए तेरा विशेष महत्त्व है.ऐ मच्छर, तू महान है
विनय कुमार पाठक
ऐ मच्छर, तू महान है. तेरी महिमा का क्या वर्णन करूं? तू मनुष्यों के लिए प्रेरणास्रोत भी है तो मनुष्यों का पालक भी है. तू ने साबित कर दिया है कि कदकाठी और आकार के आधार पर किसी को हीन नहीं समझना चाहिए. कोई न कोई कवि कह डालेगा, ‘मच्छर कबहुं न निंदिए, जो होय सूक्ष्म आकार. इन की ही कृपा से, कितनों के सपने होय साकार.’ तुझ से सौ गुणे, हजार गुणे, लाख गुणे, करोड़ गुणे लंबेचौड़े प्राणी परिवर्तन के दंश से लुप्त हो गए पर तू है कि सदियों से, सहस्त्राब्दियों, लक्षाब्दियों से डटा हुआ है, अड़ा हुआ है, अडिग रह कर खड़ा हुआ है.
किसी भी परिवर्तन ने तेरे अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाला. और भविष्य में ऐसी कोई संभावना नजर भी नहीं आती. तुझ से वैसे तो हर जीव को प्रेरणा लेनी चाहिए पर मनुष्यों के लिए तेरा विशेष महत्त्व है. शायद, भारतवासियों ने तुझ से ही प्रेरणा ले कर हर परिवर्तन को सहना सीखा है. महंगाई कितनी भी बढ़ जाए, भ्रष्टाचार कितना भी बढ़ जाए, कानून व्यवस्था की जो भी हालत हो उस में भारतवासी खुशीखुशी जीना सीख चुके हैं.
तेरी खून चूसने की आदत ने भारतवासियों को खून चुसवाने का अभ्यस्त बना दिया है. तू तो फिर भी कितना खून चूस पाएगा-एक मिलीलिटर न डेढ़ मिलीलिटर. हम तो अब इस कदर अभ्यस्त हो गए हैं कि कोई हमारे शरीर का सारे का सारा खून भी चूस ले तो भी कोई फर्क न पड़े, शायद. शिक्षण संस्थान, अस्पताल, व्यवसायी, सरकार सभी खून चूसते हैं आम जनता का और लोग बगैर किसी गिलाशिकवा के अपना खून प्रस्तुत करते हैं सभी को, चुसवाने के लिए. इस प्रकार, हम देशवासियों को अनुकूलन की प्रक्रिया अपनाने में तू काफी मददगार रहा है.
मनुष्यों के लिए तू रोजगार का साधन है. तू ने मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने कितनी बीमारियां मनुष्यों को दान में दी हैं. और अब तो ‘बाय वन गेट वन’ की तर्ज पर किसी को डेंगू के साथ मलेरिया तो किसी को मलेरिया के साथ चिकनगुनिया दे रहा है. सुना है, अब तू कौंबो पैक में तीनों बीमारियां साथसाथ भी परोसने वाला है.तेरे द्वारा दिए गए मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया को लोग मनुष्यों के लिए हानिकर मानते हैं, विनाशकारक मानते हैं. लेकिन तेरी इन्हीं भेंटों के चलते न जाने कितनी पैथोलौजी लैब, कितने डाक्टर, कंपाउंडर, नर्स, अस्पताल, दवा दुकान आदि चल रहे हैं.
सुनने में आया है कि कई डाक्टरों की तो सैटिंग है पैथोलौजी लैब से. जांच की फीस में उन का हिस्सा तो होता ही है, कई बार मौसमी बुखार में भी वे डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की जांच के लिए सलाह दे देते हैं. यदि उन की पसंद की लैब के अलावा अन्य लैब से जांच करवाई जाए तो उसे वे मान्यता नहीं देते. उन की पसंद की लैब से हुई जांच रिपोर्ट को ही उन के द्वारा मान्यता दी जाती है. सुनने में यह भी आया है कि कई बार नियोजित तरीके से नैगेटिव रिपोर्ट को भी पौजिटिव दिखाया जाता है ताकि प्लेटलेट्स की गणना के लिए बीचबीच में जांच करवाई जाए और पैथोलौजी लैब तथा डाक्टर व उन के सहयोगियों की दालरोटी चलती रहे और उस में घी भी डलता रहे.
इतना ही नहीं, तू ने कितनों को भांतिभांति की अगरबत्तियां, कार्ड और क्रीम बनाने को प्रेरित किया. इन वस्तुओं के निर्माण में लगे पूंजीपतियों, श्रमिकों, परिवहन संचालकों, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं की आजीविका में तेरा अप्रतिम योगदान है. और तो और, तुझ से बचाव के लिए भांतिभांति के विज्ञापन बनते हैं, उन के द्वारा भी कई कलाकार, विज्ञापन एजेंसियां आदि रोजगार पाते हैं. कई कलाकारों को तेरे कारण रजत पटल पर आने का मौका मिलता है. तेरी मेहरबानी से सरकार ने मलेरिया विभाग बना कर कई लोगों को रोजगार दिया है. आगे चल कर डेंगू विभाग, चिकनगुनिया विभाग बनने की भी संभावना है. इस से भी कई लोग रोजगार पाएंगे. वहीं, फौगिंग के नाम पर, गड्ढे भरने के नाम पर, दवा छिड़काव के नाम पर न जाने कितने सरकारी कर्मचारियों, ठेकेदारों को तू सुखीसंपन्न बनाता है.
पर यार, तू थोड़ा सा नैगेटिव भी है वरना अभी तक तो तेरी पूजा शुरू हो चुकी होती. मनुष्य जिन चीजों से डरता है उस की पूजा करने लगता है. विनाशक नदियों को मां और भगवान का दरजा दिया जाता है. मनुष्य जिन व्यक्तियों से डरता है उन्हें माननीय, आदरणीय, परमादरणीय आदि कहने लगता है. यदि तेरा प्रकोप और बढ़ जाए तो शायद तेरी भी पूजा होने लगे. तेरे नाम के साथ भी माननीय, पूज्यनीय, आदरणीय. परमादरणीय जैसे शब्द प्रयुक्त होने लगें. तेरे नाम का भी चालीसा, सहस्त्रानाम, पुराण आदि का निर्माण हो. औल द बैस्ट, यार.
पर यार, मेरी एक सलाह मानना- आरक्षण की मांग मत करना. अभी देश में स्थिति यह है कि जो दबंग है, अमीर है वह भी दबंगई से आरक्षण की मांग करने लगता है. विनाशलीला कर कहता है कि मैं कमजोर हूं, मुझे आरक्षण चाहिए. तू मसला जाता है, कुचला जाता है, लोग तुझ से नफरत करते हैं, तुझे अनेक रोगों का कारण मानते हैं. इन आधारों पर तू आरक्षण का हकदार तो है पर यह भी सोच, तेरे से कितने घर चल रहे हैं, कितने लोग प्रेरणा पा रहे हैं. इसलिए आरक्षण मत मांगना, भले ही दोचार बीमारियां और बढ़ा देना.