Movie Hindi Review: घूमकेतू |
Movie Hindi Review: घूमकेतू
कलाकार: इला अरुण, रघुवीर यादव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अनुराग कश्यप, रागिनी खन्ना आदि।
निर्देशक: पुष्पेंद्र मिश्रा
निर्माता: सोनी पिक्चर्स एंटरटेनमेंट, फैंटम फिल्म्स
ओटीटी: जी5
रेटिंग: **
घूमकेतू movie review
पांच छह साल कोई फिल्म बनके तैयार पड़ी रहे और फिर एक दिन देश में कोरोना आ जाए तो ऐसी फिल्मों के दिन भी बहुर ही जाते हैं। संतो बुआ से पूछो तो वह उसको और थोड़ा डकार लेकर समझा सकती हैं। इन्हीं का भतीजा घूमकेतू उनमें अपनी मां की छवि पाता है। रात को बुआ को डरावानी कहानियां सुनाता है। दिन में गुदगुदी नाम के एक अखबार में नौकरी के लिए चक्कर लगाता है।
घूमकेतू हिंदी सिनेमा के दर्शकों के लिए इस साल की कोरोना काल से भी बड़ी आफत है। जनवरी से घोस्ट स्टोरीज से शुरू हुआ ये मर्ज लाइलाज होता जा रहा है। अभी तक नेटफ्लिक्स वाले भारतीय दर्शकों को हिंदी कंटेंट का डंपिंग ग्राउंड समझकर खराब फिल्मे और सीरीज दिखाते रहे। अब लगता है नेटफ्लिक्स में कंटेंट टिकाने वाला फॉर्मूला जी5 में भी किसी ने सीख लिया है। घूमकेतू फिल्म को बनाने वाली सोनी पिक्चर्स का अपना खुद का ओटीटी है सोनी लिव और फिल्म दिखाई जा रही है जी5 पर। कमाल है!
ये कमाल कुछ ऐसा ही है जैसा वॉयकॉम 18 की सीरीज ताजमहल 1989 के साथ हुआ इसके नेटफ्लिक्स पर प्रकट होने के समय। इसी सीरीज के निर्देशक पुष्पेंद्र नाथ मिश्रा की फिल्म है घूमकेतू। फिल्म की कास्टिंग में इस्तेमाल एनीमेशन और क्लाइमेक्स से ठीक पहले इसी एनीमेशन का एक्सटेंशन छोड़ फिल्म में अगर कुछ देखने सुनने लायक है तो वह हैं संतो बुआ। वो ऐसी बुआ हैं, जैसी आपने हमने अपने घरों में बचपन से देखी हैं। घूमकेतू के पिता यानी दद्दा जी के किरदार वाले रघुवीर यादव का पिनकना भी सबने खूब देखा होगा लेकिन इस किरदार का दूसरी शादी कर लेना उनकी पूरी मेहनत की हवा निकाल गया। चाचा के रूप में गीतकार स्वानंद किरकिरे हैं और इंस्पेक्टर बदलानी के रूप में निर्देशक अनुराग कश्यप। दोनों को एक्टिंग की क्यों सूझी, ये दोनों ही जानें या इनका बैंक एकाउंट।
अगर आप जिद करते हो तो कहानी भी बता ही देते हैं। मोहाना के हैं घूमकेतू। सामूहिक विवाह में बीवी बदल गई। इतनी मोटी मेहरारू है कि उसे बिठाके ये साइकिल नहीं चला सकते। पिताजी के गल्ले से ज्यादा इनको फिल्मों की स्टोरी लिखने में दिलचस्पी है और एक दिन प्रेम प्रताप पटियालेवाला की तरह संदूक लेकर ये पहुंच जाते हैं बंबई। टारगेट है तीन दिन में फिल्म राइटर बनना। अब इसके डायरेक्टर को कोई ये समझाए कि वह छह साल में अपनी फिल्म रिलीज करा पाए और अपनी कहानी के नायक को टारगेट दिए हैं 30 दिन का। खैर घूमकेतु का लिखा कोई रद्दी में बेच आता है और रद्दी का वो पन्ना मिलता है अमिताभ बच्चन को। घूमकेतू को घर लौटने पर बीवी बिल्कुल शिल्पा शेट्टी जैसी फिट मिलती है। दोनों फिल्म देखने जाते हैं तो परदे पर वही डॉयलॉग चलता मिलता है जो घूमकेतू की चोरी हुई स्क्रिप्ट का हिस्सा था।
फिल्म यहीं खत्म हो जाती है। आप भी बस रिव्यू में इतने से ही संतोष कीजिए। फिल्म में टेक्निकल टाइप की कोई चीज बताने या यहां लिखने लायक है नहीं। एक ठो आइटम नंबर है और उसका भी गीत संगीत और अभिनय बेहद कमजोर दर्जे का है। जीवन के 102 मिनट किसी ढंग के काम में लगाने हो तो ये रिव्यू आपके ही लिए लिखा गया है।