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शायरी की रवायतों और रिवाजों को निभाता एक शायर | पवन कुमार | हिन्दी शायरी एच


Pawan Kumar Shayari
Pawan Kumar Shayari



शायरी की आज तक न जाने कितनी परिभाषाएं दी जा चुकीं हैं और आज तक दी जा रही हैं लेकिन ये सारी परिभाषाएं जब ठीक से यह परिभाषित नहीं कर सकीं कि शायरी क्या है, तो सोचिये अच्छी शायरी को परिभाषित करना कितना कठिन होगा?. Read more about shayari, radeef, kafiya on hindi shayari h  shayari.




क्यूँ जल गया ना ताब-ए-रुख-ए-यार देखकर
जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देखकर

इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं
जी खुश हुआ है राह को पुरख़ार देखकर








हम हुये तुम हुये कि मीर हुये
उसकी जुल्फ़ों के सब असीर हुये
- मीर
....
ब़स यूँ ही मुझको गाल रखने दे
मेरी जाँ आज गाल पर अपने
- जौन एलिया

इक लड़का था इक लड़की थी
आगे अल्लाह की मर्ज़ी थी
- मुहम्मद अल्वी
दरकार था सफ़र तो कोई हमसफ़र ना था









दरकार था सफ़र तो कोई हमसफ़र ना था
जब हम सफ़र मिला तो मसाफ़त नहीं रही।
.....
कल जो किया था वैसा ही फिर आज किया
शाम की ख़ातिर सारा दिन ताराज किया
....
ऐसे इक तपते सफ़र की दास्ताँ थी जि़ंदगी
धूप थी साये में लेकिन धूप में साया ना था।
...
बीनाईयों की वुस्अतें अल्लाह की पनाह
जिसकी ना कोई शक्ल थी देखा किये उसे।

मशहूर शायर उर्दू,






कब तलक मैं ख़म रखूं गर्दन को सीने की तरफ़
आसमां इक चाहिये मुझको कि सर मेरा भी है।।





आ गया जिस्म में ख़म झुक गयी गर्दन अपनी
उसपे खुशफ़हमी कि दस्तार सँभाले हुये हैं


पवन कुमार शायरी,

शाम हुई दफ़्तर से निकला
आख़िर चिड़िया घर से निकला






किसी ने रक्खा है बाजा़र में सजा के मुझे
कोई ख़रीद ले क़ीमत मिरी चुका के मुझे

इसी ग़ज़ल से एक और खू़बसूरत शेर--

उसी की याद के बर्तन बनाये जाता हूँ
वही जो छोड़ गया चाक पर घुमा के मुझे

ये राज़ पूछना है जज़ीरे से मुझको आज






ये राज़ पूछना है जज़ीरे से मुझको आज
वह किस तरह बचा है समंदर के फेर से


famous shayar,


याद तेरी आई जीने की इजाज़त मिल गई
हिज्र के तपते हुये लम्हों से राहत मिल गई।

अब इसमें क्या कुसूर समंदर का है अगर
काग़ज़ की कश्तियों को किनारा नहीं मिला







जुनू में रेत को यूं ही नहीं निचोड़ा था
किसी की प्यास ज़्यादा थी पानी थोड़ा था




मिला ना पानी तो तेज़ाब पी लिया हम ने
बला की प्यास थी हर हाल में बुझाना था

pawan kumar shayari,

धीरे धीरे दर्द फना हो जाता है
धीरे धीरे जी हल्का हो जाता है

धीरे धीरे ज़ख्म फज़ा के भरते हैं
धीरे धीरे रंग हरा हो जाता है

धीरे धीरे आंख समंदर होती है
धीरे धीरे दिल सेहरा हो जाता है

धीरे धीरे मौसम रंग बदलते हैं
धीरे धीरे क्या से क्या हो जाता है

धीरे धीरे लगती जाती हैं चोटें
धीरे धीरे दिल पक्का हो जाता है

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