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लघुकथा – गेट नंबर चार
गार्ड की आंखों में आंसू थे जो आधी कहानी तो ऐसे ही कह रहे थे. फिर कुछ थोड़ा स्थिर हो कर वह बोला, "साहब ये नौकरी तो नौकर से भी बद्तर है. रात भर जाग कर पहरेदारी करो,

 लघुकथा – गेट नंबर चार

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लेखक- अनुराग चतुर्वेदी

अशोक सुबह उठ कर व्यायाम कर रहा था. सुबह उठने की उस की बचपन की आदत है. आज भी उसी क्रम मे लगा हुआ था. तब तक रीमा भी उठ कर आ गई और बोली, “चाय का इंतजार तो नहीं कर रहे हो?” “हां, वह तो स्वाभाविक है” अशोक बोल पड़ा.“तो जाओ दूध ले आओ, रात ही बोला था कि दूध खत्म हो गया है.”

“ओह, मैं तो भूल ही गया था. अभी लाया,” कहता हुआ अशोक अपना मास्क लगा कर चल दिया.





जब से कोरोना की महामारी आई है सोसायटी में बिना मास्क लगाये घूमने और निकलने की इजाजत नहीं है.

जैसे ही अशोक लिफ्ट से बाहर निकल कर सोसायटी में अंदर बने मार्केट की ओर चला तभी गेट नंबर चार के पास बैठे गार्ड के सामने खड़े सोसायटी के पदाधिकारियों को खरीखोटी सुनाते हुए देख अशोक के कदम रुक गए.





किस बात पर वे लोग गार्ड को बातें सुना रहे थे यह जानने की थोड़ी उत्सुकता उसे जरुर हो रही थी, पर दूध लाने की जल्दी में ज्यादा समय न बर्बाद करते हुए अशोक दूध लेने चल दिया. दूध ले कर लौटते समय देखा तो वह गार्ड उस गेट से नदारद था.




अशोक ने चारो तरफ निगाह दौड़ाई तो उसे वह गार्ड जाता हुआ दिखाई दिया. लगभग दौड़ते हुए अशोक उस के पास पहुंच गया और पूछ ही लिया, “क्या कह रहे थे वे लोग आप से? अरे, भई बोलो तो सही …” अशोक ने दो बार कहा तो कुछ अस्फुट से शब्द गार्ड के मुंह से निकले जो अशोक को समझ नहीं आए, तो अशोक ने फिर पूछा, “भाई क्या हुआ?”




गार्ड की आंखों में आंसू थे जो आधी कहानी तो ऐसे ही कह रहे थे. फिर कुछ थोड़ा स्थिर हो कर वह बोला, “साहब ये नौकरी तो नौकर से भी बद्तर है. रात भर जाग कर पहरेदारी करो, फिर इन सब की चार बात सुनो.”




“हुआ क्या यह तो बताओ,” अशोक ने फिर पूछा तो वह कहने लगा, “सर जी, चार नंबर गेट के पास कुछ मजदूर परिवार रहते हैं. रोज उन के बच्चों को दूध के लिए बिलखता हुआ मुझ से  देखा नहीं जाता है तो रोज एक दूध का पैकेट और ब्रैड उन्हें अपने पैसों से खरीद कर देता हूं. शायद सीसीटीवी कैमरा में यही कई दिन से रिकौर्ड हो रहा होगा तो सिक्योरिटी वाले साहब तक बात पहुंच गई कि मैं सुबह इन सब से पैसे ले कर इन सब को दूध और ब्रैड बेच रहा हूं,” कहते कहते वह रोने लगा. “साहब इन गरीबो की कौन सुनेगा जो दिन भर एक ब्रेड के सहारे अपना दिन काटते हैं और बड़ी मुश्किलों से रात काट कर सुबह का इंतजार करते हैं कि मैं कब इन्हें दूध और ब्रैड दे दूं.”






अब तक अशोक की आंखों में भी पानी भर चुका था पर गार्ड की बात अभी खत्म नहीं हुई थी. “साहब, आप ये लो पैसे और उन को दूध और ब्रैड दे आइए, उन के बच्चे इंतजार कर रहे होंगे.”

अशोक ने उस को कहा, “आप बिल्कुल परेशान न हों.  उन बच्चों को दूध और ब्रैड जरुर मिलेगी,” और अशोक घर जाने के बजाय गेट नंबर  चार की ओर चल दिया.



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