लोकतंत्र में ड्रोन से मिली फुटेज
निर्मल गुप्त राजधानी तथा कुछ अन्य जगहों पर घटित हालिया घटनाओं की ड्रोन के जरिए प्राप्त फुटेज ने सबको भली प्रकार से बता दिया है कि शांति और भाईचारे वाले मुल्क में लोगों का हिंसक हो उठना कोई हैरत की बात नहीं । उसमें कुछ भी ऐसा नहीं कि अप्रत्याशित कह दिया जाए । यह सब तो होना ही था , सो हुआ । अब तो यह कहना ही होगा कि धर्म की जय हो , अधर्म का नाश हो , विश्व में शांति हो , ताकि लोग जान लें कि सत्य , अहिंसा और शांति के लिए सम्यक हिंसा किस कदर अपरिहार्य हो चली है ।
धर्म की जय हो या न हो , पर सर्वग्राही - सरोकारी तोड़फोड़ अवश्य हो । कुछ और हो या न हो , लेकिन लठैती व बकैती का प्रचार तो हर हाल में हो । आगजनी का फुलड्रेस रिहर्सल हो । पत्थरबाजी का शानदार प्रदर्शन हो । यह बात सर्वविदित है कि यदि हिंसा न होगी तो खौफ न होगा ।
भय न रहा तो प्रीति भी नहीं होगी । थानेदार का डंडा मजबूत न होगा , तो उसका रुतबा क्या रहेगा । सभी जान गए हैं कि जब डिजिटल होने लायक कारनामों की क्लिप होगी , तभी वायरल होने योग्य स्टेट्स अपडेट होगा ।
निर्भीक आदमी देश दुनिया और समाज के सबसे बड़ा खतरा होता है । वह हर अनुशासन को नकारता है और चुभते हुए इतने सवाल उठाता है कि तमाम न्याय , सुशासन और सदाचार के हिमायतियों की देह लहुलुहान हो जाती है । मेरी मानें तो इस सभ्य समाज को सबसे बड़ा खतरा हिंसा से नहीं , वरन लोगों के स्वेच्छापूर्वक अहिंसक हो जाने से है ।
जब आदमी अहिंसक होना ठान लेता है तो वह अधिक घातक शिकारी बन जाता है । समय बदल रहा है , हिंसा के लिए नए बहाने और मुहावरे खोजे जा रहे हैं । हिंसा को भी तरह - तरह के मुखौटे पहना दिए जाते हैं । शांति सदभाव वाली हिंसा , शोकाकुल हिंसा , सेकुलर हिंसा , कम्युनल हिंसा , चुनाव जिताऊ हिंसा , अपरिहार्य हिंसा , देशभक्त हिंसा , देशद्रोही हिंसा , कानूनी हिंसा और निशब्द हिंसा । अब हिंसा का अरबों - खरबों का सुसंगठित बाजार है ।