हिंदी कहानी शरीफ गवाह |
घर लौटते समय कभी शाम हो जाती, कभी आधी रात भी. जब से मोबाइल फोन का चलन हुआ था, एक फायदा यह हुआ था कि वे घर पर देर से लौटने की खबर कर देते थे.
नरेंद्र कुमार टंडन
‘जमालपुर जाने वाली 2746 डाउन रेलगाड़ी प्लेटफार्म नंबर 1 के बजाय प्लेटफार्म नंबर 3 पर आएगी.’ लाउडस्पीकर से जब यह आवाज आई, तो प्लेटफार्म नंबर 1 पर रेलगाड़ी का इंतजार कर रहे मुसाफिरों में अफरातफरी मच गई. सब पुल की सीढि़यां चढ़ कर प्लेटफार्म नंबर 3 पर पहुंचे.
अवतार शरण भी अपना ब्रीफकेस थामे हांफतेहांफते सीढि़यां चढ़ रहे थे. उन की उम्र 50 साल थी. शरीर थोड़ा सा भारी था. किसी नौजवान के समान सीढि़यां चढ़नाउतरना उन की उम्र के माफिक नहीं था, मगर मजबूरी थी. सफर के दौरान ऐसी बातें होना आम है.अवतार शरण का मोटर के कलपुरजों और स्पेयर पार्ट्स का थोक का कारोबार था. हफ्ते के आखिर में और्डर लेने और पिछली उगाही के लिए वे आसपास के कसबों और शहरों के लिए निकलते थे. घर लौटते समय कभी शाम हो जाती, कभी आधी रात भी. जब से मोबाइल फोन का चलन हुआ था, एक फायदा यह हुआ था कि वे घर पर देर से लौटने की खबर कर देते थे.
‘खेद से सूचित किया जाता है कि जमालपुर वाली रेललाइन की फिश प्लटें निकल गई हैं, इसलिए आज जमालपुर वाली 2746 डाउन रेलगाड़ी रद्द की जाती है,’ लाउडस्पीकर पर यह सुन कर सब के चेहरे लटक गए.
अब क्या करें? रेलगाड़ी रद्द हो गई थी. बस से जाने का समय भी नहीं था. यह कसबा छोटा सा था. रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम ठीकठाक था, मगर कोई इंतजार नहीं कर सकता था.
‘‘चौक से शायद मैक्सी कैब मिल जाएगी,’’ एक मुसाफिर ने कहा. सब फिर से पुल की सीढि़यां चढ़ कर रेलवे स्टेशन के मेन गेट की ओर लपके.
अवतार शरण भी धीमी चाल से चल रहे थे. रेलवे स्टेशन से कसबे के चौक का 5 मिनट का पैदल रास्ता था. स्टेशन के बाहर एक कतार में कई रिकशे वाले सवारी की आस में खड़े थे. रिकशे वालों ने उम्मीद भरी नजरों से मुसाफिरों की तरफ देखा.
‘‘पैदल चलो जी. 5 मिनट की तो बात है. ये रिकशे वाले भी जरा से रास्ते के लिए 10-20 रुपए मांग लेते हैं,’’ एक मुसाफिर के कहने पर रिकशा करने की तैयारी कर रहे लोग भी पीछे हट गए.
मगर अवतार शरण के लिए पैदल चलना मुश्किल था. उन्होंने एक रिकशे वाले से पूछा, ‘‘चौक का क्या लोगे?’’
‘‘10 रुपए,’’ रिकशे वाले ने कहा.
‘‘10 रुपए…’’ वह कुछ सोचते हुए रिकशे में बैठ गए.
‘‘चौक में कहां जी?’’ रिकशे वाले ने पूछा.
‘‘जमालपुर के लिए मैक्सी कैब पकड़नी है.’’
‘‘मिल जाएगी जी. चौक में हर तरफ की कैब तैयार मिलती हैं,’’ रिकशे वाले ने कहा.
2 मिनट बाद चौक की तरफ कतार में खड़ी कई मैक्सी कैब के पास रिकशा रोक कर रिकशे वाले ने एक कैब की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘लालाजी, वह कैब जमालपुर जाएगी.’’
कैब के समीप पहुंचते ही एक नौजवान बोला, ‘‘आइएआइए सेठजी, सिर्फ 2 सवारियों की जगह बाकी है.’’
अवतार शरण ने पिछले दरवाजे से मैक्सी कैब के अंदर झांका. ठसाठस सवारियां भर रखी थीं, मानो सब भेड़बकरियां हों, मगर किसी सवारी को एतराज नहीं था.
अवतार शरण कैब के भीतर दाखिल हुए. एक सीट अभी भी खाली थी. उन के बैठते ही एक आदमी और आया. उस के बैठते ही एक नौजवान ने दरवाजा अच्छी तरह बंद किया और पायदान पर पैर टिका कर छत का सिरा पकड़ कर खड़ा हो गया और छत थपथपाई. कैब का इंजन एक झटके से चल पड़ा. कसबे के बाजारों से निकल कर कैब शहर के बाहर जाती डाबर की पक्की सड़क पर आई और सरपट दौड़ने लगी.
‘‘जमालपुर कितनी देर में आ जाएगा?’’ एक मुसाफिर ने अवतार शरण से पूछा.
‘‘गाड़ी तो पौना घंटा लेती है.’’
‘‘इस में भी पौन घंटा ही लगता है,’’ दरवाजे से लटका वह नौजवान बोला.
अभी 15-20 मिनट का ही सफर हुआ था कि एकाएक कैब धीमी होती थम गई. सड़क के बीचोंबीच एक पुलिस की जिप्सी खड़ी थी. तीनसितारा वरदी पहने एक पुलिस इंस्पैक्टर जिप्सी से टेक लगाए खड़ा था. 3 सिपाही हाथ में ‘ठहरें’ का सिगनल थामे थे. कैब के रुकते ही सिपाहियों ने कैब को घेर लिया. अवतार शरण के सामने बैठे अधेड़ उम्र के एक आदमी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.
‘‘सब उतर कर एक तरफ खड़े हो जाओ. तलाशी होगी,’’ पुलिस इंस्पैक्टर की रोबदार आवाज गूंजी. सब धीरेधीरे उतर कर एक तरफ खड़े हो गए.
औरतों की तरफ एक सरसरी नजर डाल कर उन को कैब में बैठने का इशारा किया. फिर सब मर्दों की तलाशी शुरू हुई. अवतार शरण गंभीर हो गए. हाथ में थामे ब्रीफकेस में उगाही से आई अच्छी रकम थी.
एक सिपाही ने अवतार शरण को ब्रीफकेस खोलने का इशारा किया और ब्रीफकेस में रखी रकम देख कर चौंका.
‘‘कहां से आए हैं आप?’’
‘‘जी, मैं जमालपुर का हूं?’’
‘‘क्या काम करते हैं?’’
‘‘स्पेयर पार्ट्स का कारोबारी हूं.’’
‘‘ठीक है, बंद कीजिए.’’
इस के बाद साथ खड़े मुसाफिर के हाथ में पकड़ा एयर बैग खोलने का इशारा किया. वह हिचकिचाया और बोला, ‘‘इस में कुछ नहीं है.’’
‘‘कोई बात नहीं, आप खोल कर तो दिखाइए.’’
उस एयर बैग से पौलिथिन की थैलियों में बंद अफीम मिली. उस को हिरासत में ले कर हथकडि़यां डाल दी गईं. पुलिस को किसी मुखबिर ने खबर दी थी, इसलिए पुलिस की चैकिंग चल रही थी. अफीम तस्कर पकड़ा गया था. साथ में दूसरे मर्द मुसाफिरों के लिए परेशानी हो गई थी. औरतों को जाने दिया गया. मर्द मुसाफिरों को बतौर गवाह अपना नामपता, मोबाइल नंबर दर्ज कराने के लिए कहा गया. एक डायरी में एक सिपाही सब के नामपते दर्ज करता गया और मुसाफिर कैब में बैठते गए. अफीम तस्कर को ले कर पुलिस की जिप्सी चली गई.
कैब भी अपनी मंजिल की ओर चल पड़ी. अपने घर जमालपुर पहुंच कर इस घटना को एक मामूली सा वाकिआ समझ कर अवतार शरण भूल गए. मगर क्या यह वाकिआ सचमुच मामूली था? एक दोपहर स्थानीय अदालत से एक चपरासी एक समन ले आया.
‘‘अवतार शरण आप ही हैं न?’’
‘‘जी हां, क्या बात है?’’ अवतार शरण ने चौंक कर पूछा.
‘‘आप के नाम समन है.’’
‘‘समन…?’’ चौंक कर अवतार शरण ने पूछा.
‘‘जी हां, चमनगढ़ की फौजदारी अदालत से है.’’
‘‘फौजदारी अदालत, चमनगढ़…’’
‘‘मेरा मतलब मजिस्ट्रेट के कोर्ट से,’’ चपरासी ने कहा.
‘‘क्यों? मैं ने क्या किया? मैं तो कभी चमनगढ़ नहीं गया.’’
‘‘कियाधरा का मामला नहीं है. आप को शिनाख्त करनी है और गवाही देनी है,’’ चपरासी बोला.
‘‘किस की शिनाख्त? किस की गवाही?’’
‘‘यह आप कोर्ट जा कर पता करना,’’ चपरासी ने समन थमाया और डायरी खोल कर सामने रख दी.
अवतार शरण ने बेमन से दस्तखत किए और समन ले लिया. अवतार शरण का वास्ता कभी किसी अदालत और मुकदमे से नहीं पड़ा था, इसलिए वे उलझन में थे. पास के दुकानदार उम्रदराज थे, अनुभवी थे. वे समन ले कर उन के पास गए.
‘‘अवतार शरण, यह मामला शिनाख्त और गवाही का है. धाराएं नहीं लिखी हैं. सिर्फ मुकदमा नंबर, तारीख और मुलजिम का नाम है,’’ पड़ोसी दुकानदार नारायण दास ने समन पढ़ कर कहा.
‘‘चमनगढ़ की अदालत से समन आया है. मैं वहां कभी नहीं गया. अब मैं क्या करूं.’’
‘‘समन तुम्हें मिल गया है. तारीख पर कोर्ट में जा कर शिनाख्त कर आना और गवाही दे आना.’’
‘‘मैं मुलजिम को जानतापहचानता नहीं. मुझे इस मामले का कुछ भी नहीं पता.’’
‘‘पुलिस अदालत के बाहर आवाज पड़ने से पहले शिनाख्त करवा देगी और गवाही जैसे पुलिस कहे वैसे ही दे देना.’’
‘‘और अगर मैं नहीं गया तो…?’’
‘‘तब तो कोर्ट से तेरे नाम जमानती वारंट आएगा.’’
‘‘जमानती वारंट?’’ यह सुन कर अवतार शरण घबरा गए.
‘‘हां, पहले जमानती वारंट, फिर भी नहीं गए, तो गैरजमानती वारंट. तुम्हें गिरफ्तार कर के अदालत में पेश करेंगे,’’ नारायण दास उस के मुश्किल हालात के मजे ले रहे थे.
उतरा हुआ चेहरा लिए अवतार शरण अपनी दुकान पर जा बैठे. थोड़ी देर बाद उन का बेटा टिफिन ले कर आया और अपने पापा का उतरा हुआ चेहरा देख कर चौंका.
‘‘पापाजी, क्या हुआ? क्या तबीयत खराब है?’’ बेटे ने पूछा.
‘‘नहीं, यह कोर्ट का समन चपरासी दे गया है,’’ अवतार शरण ने कहा.
बेटे ने उस समन को लिया और पढ़ने लगा. उस की भी समझ में कुछ नहीं आया. बेटा बोला, ‘‘पापाजी, किसी वकील से सलाह करते हैं.’’
‘‘वकील से सलाह? कौन से वकील से? इस में तो काफी खर्चा होगा.’’
‘‘सलाह की क्या फीस? ऐसा तो बड़े शहरों के बड़े वकील करते हैं.’’
पड़ोसी दुकानदार नारायण दास के एक परिचित वकील ने यही कहा. समन मिलने पर अवतार शरण को कोर्ट जाना ही पड़ेगा. तय तारीख पर अवतार शरण अपने बड़े बेटे के साथ पड़ोस के कसबे चमनगढ़ की अदालत में पहुंचे. कसबा एक तहसील था, इसलिए वहां एक फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट ही बैठते थे. अदालत परिसर पुराने जमाने का साफसुथरा था. अवतार शरण को देखते ही एक दोसितारा वरदीधारी सबइंस्पैक्टर उन के पास आया.
‘‘अवतार शरण जमालपुर वाले?’’
‘‘जी हां,’’ उन्होंने समन दिखाते हुए कहा.
‘‘आप को अफीम के तस्कर शमशेर सिंह की शिनाख्त करनी है.’’
‘‘अफीम का तस्कर? ओह वही, जो मैक्सी कैब में पकड़ा गया था?’’
‘‘जी हां, वही.’’
‘‘मगर मैं उस को अब कैसे पहचानूंगा. 3 महीने पहले मैं ने उसे थोड़ी देर ही देखा था.’’
‘‘हम यहां हवालात में उसे आप को दिखा देते हैं. आप अदालत में मजिस्ट्रेट के सामने शिनाख्त कर देना.’’
अदालत परिसर की हवालात में कई मुलजिम बंद थे. एक को इशारा कर के थानेदार ने सीखचों के नजदीक बुलाया. दाढ़ी वाला अधेड़ उम्र का आदमी सीखचों के पास आ कर खड़ा हुआ.
अवतार शरण ने उस को पहचान लिया. वह वही था, जो मैक्सी कैब में उन के सामने बैठा था. उस के बैग में से अफीम बरामद हुई थी. उस आदमी ने मायूसी से उन की तरफ देखा. उस की आंखों में उदासी का भाव था. अवतार शरण ने उसे गौर से देखा और फिर मुड़ आए. अदालत का समय होने में अभी देर थी. दरवाजे के ऊपर मजिस्ट्रेट के नाम व पद की नेमप्लेट लगी थी. पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी दूर ही खड़ा था. पेशी के लिए आसामी इधरउधर बैठे गपशप कर रहे थे.
‘‘इस मुकदमे में क्या मैं अकेला गवाह हूं?’’ इधरउधर देखते हुए अवतार शरण ने पूछा.
‘‘जी नहीं, 3 गवाह और हैं.’’
‘‘सिर्फ 4 गवाह. मैक्सी कैब में तो 15-20 आदमी थे,’’ तनिक हैरानी से उन्होंने कहा.
‘‘कुल 6 गवाह नामजद थे, मगर 12 के नामपते फर्जी निकले थे.’’
इंस्पैक्टर के इस जवाब से अवतार शरण और उन के साथ खड़ा बड़ा बेटा और दूसरे लोग हैरान हो गए. अवतार शरण खामोश हो गए. यह पूछने का फायदा नहीं था कि उन सब ने अपना नामपता क्यों फर्जी बताया था. वे सब समझदार थे. दुनियादार थे. भला कौन कोर्टकचहरी के पचड़े में फंसना चाहता है.अवतार शरण सोच रहे थे कि उन्होंने भी क्यों नहीं दुनियादारी दिखाते हुए अपना नामपता फर्जी लिखवा दिया, वरना वे भी इस कोर्टकचहरी और गवाही के चक्कर में फंसने से बच जाते. तभी अदालत का समय हो गया. चपरासी कमरे से बाहर आया. मुकदमों से संबंधित लोगों के नाम ले कर आवाज देने लगा.
अफीम के तस्कर के नाम से आवाज पड़ी. 2 सिपाही उसे ले कर आगे बढ़े. एक कठघरे में अवतार शरण खड़े हो गए. सामने वाले कठघरे में मुलजिम शमशेर सिंह था.
नौजवान मजिस्ट्रेट ने गवाह और मुलजिम की तरफ देखा. सरकारी वकील आगे बढ़ा और बोला, ‘‘आप का नाम?’’
‘‘अवतार शरण.’’
‘‘कहां रहते हैं आप?’’
‘‘जमालपुर.’’
‘‘काम क्या करते हैं?’’
‘‘मेरा स्पेयर पार्ट्स का थोक का कारोबार है.’’
‘‘मुलजिम को पहचानते हैं?’’
‘‘जी हां.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘एक महीने पहले जमालपुर जाने वाली मैक्सी कैब में मेरे साथ था.’’
‘‘पहले से जानते थे?’’
‘‘नहीं.’’
इस के बाद सवालों का सिलसिला चला. सब सवालजवाब एक तरफ बैठा रीडर सादा कागज पर लिखता जा रहा था. शिनाख्त और गवाही पूरी हुई. अवतार शरण ने सांस भरी कि चलो, मामला निबटा. मगर मामला कहां निबटा था. रीडर ने अगली तारीख डालते हुए कहा, ‘‘आप अगली पेशी पर आइए.’’
‘‘अगली पेशी पर क्यों?’’ अवतार शरण ने पूछा.
‘‘आप से बचाव पक्ष का वकील जिरह करेगा.’’
अवतार शरण का चेहरा फिर से गंभीर हो चला. वे बेटे के साथ बाहर चले आए. अगली पेशी पर मजिस्टे्रट छुट्टी पर था. नई तारीख पड़ गई. नई तारीख पर बचाव पक्ष का वकील बीमार था. फिर तारीख पड़ गई. फिर यह सिलसिला बन गया. तकरीबन 3 साल तक अदालत जाना पड़ा. उस के बाद उन का यह पचड़ा निबट गया. अपने कारोबार के सिलसिले में अवतार शरण पहले की तरह कभी बस से, कभी रेलगाड़ी से और कभी मैक्सी कैब से भी आतेजाते रहे. इस दौरान उन की मुलाकात मैक्सी कैब में अफीम तस्कर के खिलाफ गवाह बनाए आदमियों से भी हुई. वे सब कम पढ़ेलिखे और देहाती थे. मगर अवतार शरण जैसे काफी पढ़ेलिखे और शहरी के मुकाबले में ज्यादा दुनियादार थे.
इस मामले पर पूछने पर उन में से एक ने कहा, ‘‘पुलिस और थाना कचहरी के चक्कर में कौन पड़ता है जी. हम ने अपना नामपता फर्जी दे दिया. हमारा पिंड छूट गया. जिन का नामपता असली था, वे भी थाने के मुंशी को 2-4 सौ रुपए टिका कर अपना नाम कटवा आए थे. कोर्ट की पेशी को कौन भुगते?’’ अवतार शरण एकटक उन समझदार देहातियों को देख रहे थे.