Hindi Short Story: हुनर की कीमत |
हुनर चाहे डाक्टरी का हो या मैकेनिक का, हुनर तो हुनर होता है और उसी की कीमत होती है. एकएक पेशैंट से हजारों की वसूली करने वाले डाक्टर रमेश को एक प्लंबर ने कैसे समझाया हुनर की कीमत का फलसफा?
अनीता सक्सेना
डा. रमेश शहर के एक नामीगिरामी और्थोपैडिक सर्जन थे. शहर में उन का खूब नाम था. उन के द्वारा किए गए औपरेशनों की चर्चा हर जगह होती थी. कैसा भी फ्रैक्चर हो वे टूटी हुई हड्डियों को बढि़या से जोड़ देते थे, लेकिन आज एक टूटे हुए नल ने उन्हें गहन चिंतन में डाल दिया था. उन के सारे दांवपेंच फेल हो गए थे, उन के सारे प्रयत्न नाकामयाब हुए थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन को कभी मुंह की खानी पड़ सकती है. हुआ यों कि उन के घर के फ्लश के टैंक का नल खराब हो गया. रमेश की पत्नी उमा ने बताया कि टैंक का वौल खराब हो गया है और पानी रुक नहीं रहा है, तो उन्होंने सोचा कि यह तो उन के बाएं हाथ का खेल है. उन्होंने उसे बंद करने के कई उपाय किए, लेकिन पानी था कि बहता ही चला जा रहा था.
फिर उन्होंने सोचा कि मेन नल के कनैक्शन को जहां से पानी उस में आता है, बंद कर दिया जाए पर उसे बंद करने की भी जब कोशिश की गई तो वह भी टस से मस न हुआ, बुरी तरह जाम हुआ पड़ा था वह. लिहाजा, प्लंबर को बुलाया गया.
कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी, ‘‘जी, मैं मुकुंद हूं, प्लंबर,’’ दरवाजे पर एक दुबलापतला, लाल रंग की शर्ट और नीली जींस पहने किशोर खड़ा था. उस की पैंट में कई सारी पौकेट थीं. हर पौकेट में से कोई न कोई औजार बाहर झांक रहा था.
डा. रमेश की घूरती नजरों से बिन घबराए वह बोला, ‘‘मेरे औजार,’’ फिर उन की आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए प्रश्नवाचक नजरों से पूछा, ‘‘बाथरूम कहां है?’’ मानो कह रहा हो पेशैंट कहां है?
डा. रमेश ने उसे बाथरूम का दरवाजा दिखा दिया. उस के बाथरूम में घुसते ही सब लोग उस के साथ ही बाथरूम में घुस गए मानो नल को ठीक होते देखना और सीखना, दोनों एकसाथ चाहते हों.
मुकुंद ने टैंक का ढक्कन खोला, अंदर तरहतरह की पट्टियों से नल बंधा पड़ा था, लेकिन पानी फिर भी बह रहा था.
‘‘देखिए न, कब से पानी बहे जा रहा है, कितनी कोशिश की पर रुक ही नहीं रहा,’’ रमेश की पत्नी उमा दरवाजे के बाहर से ही बोलीं, उन्हें अंदर जाने की जगह ही नहीं मिल पाई थी.
‘‘सब से पहले तो आप लोग बाहर निकलिए, मुझे जरा नल का मुआयना करने दीजिए,’’ मुकुंद ने एक डाक्टर की तरह सभी को वार्ड से बाहर यानी बाथरूम से बाहर खदेड़ दिया. फिर मुकुंद ने नल को हिलाडुला कर देखा, दाएं से देखा, बाएं से देखा, ऊपर से देखा, नीचे से देखा. फिर बाहर आ कर बोला, ‘‘वायसर खराब हो चुका है उसे बदलना होगा, टैंक में बहुत कचरा जमा हो गया है, एसिड से उस की सफाई करनी होगी और जो मुख्य नल है. जहां से पानी आता है वह जाम हो गया है. उसे भी बदलना होगा. कुल खर्च 500 रुपए आएगा.’’
‘‘500 रुपए?’’ डा. रमेश हैरानी से बोले, ‘‘अरे, इतना खर्च कैसे? बताओ तो जरा कितने का आएगा वायसर और नल?’’
मुकुंद ने अपना जवाब तैयार कर रखा था बोला, ‘‘वायसर 20 रुपए का आएगा, एसिड की बोतल 30 रुपए तक की, कुल 50 रुपए. 200 रुपए का नल और 250 रुपए मेरी मजदूरी.’’
‘‘हैं?’’ डाक्टर साहब की आंखें फटी की फटी रह गईं, ‘‘इतने से काम के 250 रुपए?’’
‘‘जी हां.’’
‘‘लूट मचा रखी है, इतने से काम के इतने पैसे? मुझे नहीं कराना काम,’’ डाक्टर रमेश बोले. लेकिन तभी उमाजी बोल पड़ीं, ‘‘कराना तो पड़ेगा, नहीं तो टंकी का पानी रातभर में खाली हो जाएगा और सुबह पानी का टैंकर बुलाना पड़ेगा.’’
डा. रमेश ने घूर कर प्लंबर को देखा. वह उन को ही एकटक देख रहा था.
‘‘यह नल जो तुम लगाओगे वह कितने दिन चलेगा?’’
‘‘यह तो नहीं कह सकता कि कितने दिन चलेगा, लेकिन साहब, खूब चलेगा.’’
‘‘अच्छा, एक बात बताओ. यह जो लगा हुआ है देखने में तो एकदम नया है. फिर खराब क्यों हुआ?’’
प्लंबर मुसकराया और बोला, ‘‘इस के लिए आप का गणित ही आप को समझाना पड़ेगा सर.’’
‘‘सो कैसे?’’
‘‘देखिए, आप ही कहते हैं न कि शरीर को ठीक रखने के लिए रोज कसरत जरूरी है. यदि कसरत नहीं करेंगे तो शरीर बेकार होता चला जाएगा. पिछले महीने मेरे बड़े भैया का आप ने इलाज किया था, उन को फ्रोजन शोल्डर बताया था आप ने. कहा था कि कंधों की बराबर ऐक्सरसाइज न करने से कंधे जाम होने लगते हैं, कभी घुटने भी ऐसे ही जाम हो जाते हैं. बस, इसी तरह से यह नल है. अब इस को दोचार दिन में घुमाया जाए तो इस में मौजूद पानी में कैल्शियम जमा होने लगता है जो धीरेधीरे इसे जाम कर देता है. यदि हम दिन में कम से कम एक बार ही इसे खोलते बंद करते रहें तो यह कभी भी जाम नहीं होगा.’’
डा. साहब हतप्रभ से प्लंबर को देख रहे थे. बहुत बड़ी बात कह गया था वह बातोंबातों में. वह फिर बोला, ‘‘अब देखिए, आप कहते हैं कि मैं ज्यादा पैसे मांग रहा हूं, लूट रहा हूं, तो बताइए जरा आप एक औपरेशन में कितने वसूलते हैं? हजारों में लेते हैं आप और मैं तो सिर्फ 250 रुपए मांग रहा हूं. सवाल समय का नहीं है बल्कि हुनर का है साहब. आप का हुनर यदि हुनर है तो मेरा भी हुनर, हुनर ही है. आप शरीर का दर्द दूर करते हैं, तो मैं बहते हुए पानी को रोकूंगा, उस के जोड़ों को खोलूंगा, उस की सफाई करूंगा और नया नल लगाऊंगा.’’
डा. रमेश चुप रहे, उन के मौन को उन की स्वीकृति मान मुकुंद ने बिना समय गंवाए अपना थैला नीचे रखा, पैंट की जेब से औजार निकाले और जुट गया नल ठीक करने में. उसे पूरा एक घंटा लगा. काम पूरा कर के उस ने बाथरूम की सफाई की और बोला, ‘‘आइए, चैक कर लीजिए.’’
इस बार रमेश की पत्नी उमा अंदर गईं, डा. साहब बाहर सोफे पर ही बैठे रहे. संतुष्ट हो कर वह बाहर आईं और बोलीं, ‘‘तुम्हारा काम बहुत अच्छा है मुकुंद, नल एकदम ठीक हो गया है. और हां, सुनो अभी जाना नहीं. बैठो, चाय पी कर जाना,’’ कह कर वह किचन में चली गईं.
मुसकराता हुआ मुकुंद बाहर सीढ़ी पर बैठ गया.
डा. साहब चुपचाप उठे और बाथरूम में चल दिए, आज एक प्लंबर ने उन्हें जिंदगी का नया पाठ पढ़ाया था.