मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?
मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या
समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’
समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों में मेलमिलाप कराने का बहुत प्रयत्न किया किंतु असफल रही. दोनों तरफ से काफी अपशब्द सुनाए गए. समीर ने मुझे अपनी कसम देते हुए कहा, ‘‘मीरा, भविष्य में तुम इस बारे में प्रयास नहीं करोगी.’’ इस तरह दोनों परिवारों में मेलमिलाप होने की उम्मीद समाप्त हो गई.
सोमू के पालनपोषण में हम दोनों पूरी तरह व्यस्त हो गए. सोमू बचपन से ही मधुर स्वभाव एवं कुशाग्र बुद्धि की थी. समीर गर्व से कहते, ‘‘मीरा, हमारी सोमू जरूर कुशल इंजीनियर बनेगी, बड़ी तेज बुद्धि की है.’’
मैं कहती, ‘‘क्यों नहीं, जरूर बनेगी. उसे थोड़ा बड़ा होने दीजिए, तब समझ में आएगा कि उस की रुचि किस ओर है.’’
समीर बोले, ‘‘तुम ने सही कहा, यह जो बनना चाहेगी, हम उस में उस को पूरा सहयोग देंगे.’’ समीरा 9 वर्ष की ही हुई थी कि कार ऐक्सिडैंट में समीर की मृत्यु हो गई. मेरी तो मानो दुनिया ही उजड़ गई, उन्हीं से तो मेरी दुनिया गुलजार थी.
नन्हीं सोमू का रोरो कर बुरा हाल था, ‘‘मम्मा, मैं पापा को नहीं जाने दूंगी. पापा को क्या हो गया, वे जरूर ठीक हो जाएंगे.’’ मैं उसे अपने कलेजे से सटाए शांत करने का असफल प्रयास करती रही. अपनी सोमू के लिए मैं ने अपने दर्द को अंदर ही अंदर दबा लिया. जाहिर तौर पर मैं सामान्य रहने का प्रयास करने लगी. मैं ने स्वयं से प्रण किया कि मैं सोमू को उस के पापा की कमी महसूस नहीं होने दूंगी. आज समीर की बात याद करती हूं, उन्होंने अपनी सोमू के लिए कितना सही कहा था. आज वह सौफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत है. उस के सहकर्मी सार्थक से मैं ने उस का विवाह पक्का कर, मंगनी की रस्म कर दी है. सार्थक एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में अमेरिका गया है. वहां से लौटने पर दोनों की शादी कर दी जाएगी. शनिवार व रविवार को सोमू की छुट्टी रहती है. किंतु शनिवार को मेरा कालेज रहता है. साधारणतया मैं 4 बजे तक कालेज से लौट आती हूं. एक शनिवार को कालेज से लौटने पर सोमू ने कौफीस्नैक्स के साथ अपने हाथों से बनाए स्वादिष्ठ उपमा के साथ मेरा स्वागत करते हुए कहा, ‘‘मम्मा, साथसाथ कौफी पीने का मजा कई गुना बढ़ जाता है.’’
‘‘हंड्रैड पर्सैंट सही. लेकिन रोज तो मैं कालेज से लौट कर अकेले ही कौफीस्नैक्स लेती हूं.’’
‘‘मम्मा, कल संडे है, हम सैंट्रल मौल चलेंगे, वहां सभी चीजों पर सेल चल रही है.’’
‘‘ठीक है बेटा, मुझे ज्वैलर के पास भी जाना है. तेरे तो सारे गहने तैयार हो गए हैं, बस सार्थक के लिए चेन और ब्रेसलैट लेना है.’’
सैंट्रल मौल में सोमू ने मेरे लिए कुछ ड्रैसेस और साडि़यां पसंद कीं. मैं ने देखा सभी ब्राइट कलर्स की थीं. मैं ने इनकार करते हुए कहा, ‘‘बेटा, इतने ब्राइट कलर्स मुझ पर बड़े अटपटे लगेंगे.’’
‘‘ओह मम्मा, आप पहनती नहीं हैं, यदि पहनने लगेंगी तब आदत हो जाएगी, फिर अटपटे नहीं लगेंगे.’’
‘‘बेटा, मेरी वार्डरोब तो कपड़ों से भरी पड़ी है. उसी में से तू अपनी पसंद के निकाल देना. जब घर में इतने कपड़े हैं ही, तब और नए क्यों लेना.’’
‘‘मम्मा, अब मौल से खाली हाथ तो नहीं लौटेंगे, एकदो तो ले लीजिए,’’ उस ने आग्रह करते हुए कहा.
‘‘खाली हाथ भला क्यों लौटेंगे, अपनी सोमू के लिए जींस, टौप, सूट्स वगैरा ले लेंगे. तू शादी के बाद भी साड़ी तो कभीकभी ही पहनेगी.’’
उस ने इतराते हुए कहा, ‘‘मम्मा, अभी शादी में 4 महीने बाकी हैं. मैं तो कपड़े उसी समय लूंगी.’’
‘‘अच्छा तो लगेज सैक्शन में चल, वह सब अभी ले लेती हूं,’’ मैं उस का हाथ पकड़ कर ले चली.
कई सालों से मेरी वार्डरोब बंद पड़ी थी. अपनी बिटिया की जिद के कारण खोलनी पड़ी. वह मेरे कपड़ों के कलैक्शन से खुश हो कर बोली, ‘‘वाओ मम्मा, कितना बढि़या कलैक्शन है आप के पास. और आप एकदम सादे व सिंपल ही पहनती हैं.’’
‘‘हां बेटा, तेरे पापा को मेरे लिए कपड़े खरीदने का बेहद शौक था. किंतु उन के जाने के बाद मुझे ये सब पहनने का शौक नहीं रहा. सो, सब रखे हुए हैं.’’
‘‘नहीं मम्मा, अब आप वैसी ही रहेंगी जैसी पापा के सामने रहती थीं. मम्मा, मुझे आप की और पापा की कई प्यारभरी चुहलें याद हैं.’’
‘‘उस दिन आप पापा की पसंद की ड्रैस, हेयरस्टाइल, ज्वैलरी पहन कर तैयार हुई थीं. पापा दिल पर हाथ रख कर धम्म से सोफे पर बैठ गए थे. आप दौड़ कर पापा के पास आ कर पूछने लगी थीं, ‘क्या हुआ समीर, आप ठीक तो हैं?’
‘‘पापा ने कहा था, ‘यार, दिल इतना तेज धड़क रहा है कि उसे हाथों से थामना पड़ रहा है.’
‘‘मुझे उन की बात पर हंसी आ गई थी. उन्होंने मुझे अपने पास बैठाते हुए कहा था, ‘क्यों सोमू, मम्मा जंच रही हैं न?’
‘‘मैं ने कहा था, ‘मम्मा तो हमेशा ही जंचती हैं. वैसे पापा, आप भी कोई कम नहीं हैं.’ उन्होंने मुझे यह कहते हुए गले से लगा लिया था, ‘वाह मेरी नन्हीं सोमू, तू तो खूब बातें बनाने लगी.’’’
‘‘हां बेटा, पापा हर बात, हर काम में पूरी रुचि लेते थे. वे माहौल एकदम खुशनुमा बनाए रखते थे.’’
समीरा ने बातों का रुख वर्तमान की तरफ करते हुए कहा, ‘‘वह सब तो ठीक है मम्मा, अब आप वैसे ही तैयार होंगी जैसी आप पापा के सामने तैयार होती थीं.’’
‘‘यह तो मुझ से न हो सकेगा बेटा.’’
‘‘क्यों मम्मा, आप अपनी बेटी का मन नहीं रखेंगी?’’
‘‘ओह, बेटा, यह बात है, तब मैं पूरी कोशिश करूंगी.’’
मुझे समीरा के आज के व्यवहार से अत्यधिक आश्चर्य हुआ. समीर के जाने के बाद मैं ने खुद ही सादगी से रहना पसंद किया था. समीर को मेरे साजशृंगार का विशेष शौक था.
उन्हें दिखानेरिझाने की इच्छा से, मैं सजतीसंवरती थी. अब वे ही नहीं रहे, इच्छा खुद ही विलुप्त हो गई. इस के अलावा समाज का भी खयाल करना पड़ता है, एक विधवा का निरीक्षणपरीक्षण समाज कुछ ज्यादा ही पैनी नजर से करता है.
औफिस से लौट कर, कौफी पीते हुए सोमू ने कहा, ‘‘मम्मा, कल शाम कोनी ने हमें अपने घर पर बुलाया है.’’
‘‘अरे, वह बंगालन कोनी, कितना मीठा बोलती है, एकदम रसगुल्ले की तरह.’’
‘‘मम्मा, आप की वह जबरदस्त फैन है, कहती है, भले ही आंटी कालेज में लेक्चरर हैं, किंतु देखने में एकदम कालेज गर्ल सी लगती हैं.’’
हम शाम को 6 बजे कोनी के घर पर पहुंच गए थे. उस के पापा भी थे. उन से मेरी पहली मुलाकात थी. कोनी ने अपने पापा से आग्रह करते हुए कहा, ‘‘पापा, मुझे और समीरा को थोड़ा औफिस का काम है, प्लीज, आप आंटी को घर एवं अपना टेरेस गार्डन दिखा दीजिए.’’ घर दिखाते हुए कोनी के पापा ने कहा, ‘‘मेरी बेटी, आप की बहुत बड़ी फैन है. वह आप के हाथ के खाने से ले कर आप के सारे तौरतरीकों की बहुत प्रशंसा करती है. आप की सुंदरता की प्रशंसा करते हुए तो वह कवयित्री ही बन जाती है.’’
मां की शादी- भाग 2: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर के जानें के बाद अकेली मीरा को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें.
‘‘ये बच्चियां बहुत भोली हैं. अपने भोलेपन से कुछ सोचती हैं एवं बोलती हैं.’’
‘‘मेरा मानना है कि कोनी ने जो वर्णन किया था, आप उस से अधिक प्रशंसा के योग्य हैं,’’ उन्होंने कहा.
मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा.
‘‘गार्डन और घर बहुत सुंदर है तथा तुम ने सजाया भी बहुत सुंदर है,’’ मैं ने कोनी की प्रशंसा करते हुए कहा.
‘‘आंटी, इस तारीफ के हकदार तो पापा हैं. उन्हें भी आप की तरह घर की साजसज्जा में बहुत दिलचस्पी है.’’
कोनी ने कौफी, समोसे, रसगुल्ले काफी कुछ हमारे लिए तैयार कर रखा था. दोनों दोस्त औफिस के काम के बहाने अपनीअपनी प्लेट ले कर सरक लीं. जब काफी देर तक नहीं लौटीं, तो मुझे बेहद आश्चर्य हो रहा था कि ये दोनों लड़कियां, हम दोनों को क्यों ज्यादा से ज्यादा एकसाथ छोड़ने का प्रयास कर रही हैं. सारा माहौल ही मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था. मैं ने समीरा को फोन कर के बुलाया. वह हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मा, फोन कर के क्यों बुला लिया. यहीं पर तो थी, आ जाती थोड़ी देर में.’’
‘‘तुम मुझे अकेली छोड़ कर क्यों चली जाती हो. तुम दोनों भी यहीं हमारे साथ बैठो.’’
‘‘ओह, मम्मा, अकेली कहां हैं, अंकल तो हैं न आप के साथ.’’
‘‘लगता है आप की मम्मा को मेरी कंपनी पसंद नहीं आ रही है. ये काफी शांत एवं गंभीर स्वभाव की हैं,’’ कोनी के पापा ने कहा.
‘‘अब आज्ञा दीजिए हम चलते हैं,’’ मैं ने विदा लेने हेतु कहा.
‘‘आंटी, अभी रुकिए, आज डिनर हमारे साथ लीजिए,’’ कोनी ने तत्परता से कहा.
‘‘आज माफी चाहती हूं, बेटा. डिनर फिर कभी,’’ मैं ने उठते हुए कहा.
रात को सोते समय समीरा ने मेरी राय लेते हुए कहा, ‘‘मम्मा, अंकल अच्छे हैं न?’’
मैं ने पूछा, ‘‘कौन अंकल, बेटा?’’
‘‘ओह मम्मा, आज आप कोनी के पापा से मिली हैं न, उन्हीं के बारे में पूछ रही हूं.’’
‘‘ओह, मुझे खयाल ही नहीं रहा, आने के बाद मैं ने उन के बारे में कुछ सोचा भी नहीं, अच्छे ही हैं.’’
‘‘हां मम्मा, अंकल बहुत अच्छे हैं. मैं जब भी उन के घर जाती हूं, मेरा बहुत खयाल रखते हैं.’’
‘‘अच्छी बात है बेटा, खैर छोड़ ये सब बातें, यह बता कि सार्थक का प्रोजैक्ट बढि़या चल रहा है न?’’
‘‘हां मम्मा, हो सकता है प्रोजैक्ट समय से पहले ही पूरा हो जाए तब वह पहले ही इंडिया लौट आएगा.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी खबर है. अब तो सार्थक का फोन आने ही वाला होगा. मैं सोती हूं, गुडनाइट बेटा.’’ इतने में सोमू का फोन बज उठा. सार्थक का फोन आ चुका था. 2 दिनों बाद मैं कालेज से लौट कर, कौफी, स्नैक्स ले कर टीवी के सामने बैठी ही थी कि सोमू का फोन आया, ‘‘मम्मा, मैं 6 बजे तक घर पहुंच जाऊंगी. मेरी फ्रैंड रीतू भी आ रही है मेरे साथ.’’
‘‘अच्छी बात है, बेटा.’’
‘‘मम्मा, आप मेरी पसंद की गहरे नीले रंग की साड़ी पहन कर तैयार रहना.’’
‘‘अरे बेटा, वह मेरे घर पर आ रही है. मुझे उस के घर थोड़े जाना है, जो मैं सजधज कर तैयार हो जाऊं. अरे, घर पर एक मम्मी जैसे रहती है, वैसे रहती हूं.’’
‘‘ओह मम्मा, प्लीज मेरा मन रख लो,’’ सोमू ने आग्रह करते हुए कहा.
‘‘ठीक है, खाने में कुछ खास बनाना है?’’
‘‘नहीं मम्मा, मैं ने पिज्जा और कोल्डडिं्रक और्डर कर दिया है. वह मेरे पहुंचने के बाद ही पहुंचेगा. आप तो बस तैयार हो जाओ.’’
‘‘चल, ठीक है बेटा, मैं कोशिश करती हूं.’’ मुझे थोड़ी खीझ सी हो रही थी सोमू के व्यवहार पर. इस लड़की को क्या हो गया है. यह मेरी साजशृंगार के लिए क्यों परेशान होने लगी है.
6 बजे सोमू अपनी सहेली रीतू के साथ पहुंच गई थी. साथ ही, मेरे हमउम्र, रीतू के सर्जन भैया भी आए थे. सोमू ने सभी से मेरा परिचय करवाया. हम सभी ने साथसाथ पिज्जा का आनंद लिया. दोनों दोस्त कोल्डडिं्रक के साथ औफिस के काम के बहाने दूसरे कमरे में चली गईं.
रह गए मैं और रीतू के सर्जन भैया. वे अपने बारे में खुद ही बताने लगे, ‘‘दो बेटियां हैं मेरी. दोनों की मां 15 साल पहले गुजर गई थीं. मातापिता की भूमिका निभाते हुए दोनों का पालनपोषण किया. उन्हें उच्चशिक्षा दिलवाई. अब दोनों अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं.’’
‘‘आप ने बहुत अच्छा किया. बेटियों का समय से विवाह कर, घरगृहस्थी में बांध दिया.’’
‘‘वह तो ठीक है. मैं ने बेटियों के कारण दूसरा विवाह नहीं किया. किंतु अब अकेलापन बहुत खटकता है, घर काटने को दौड़ता है.’’
मैं ने सुझाव देते हुए कहा, ‘‘आप स्वयं को व्यस्त रखिए, कभीकभी बेटियों से उन के घर जा कर मिल आया कीजिए. मन तो लगाना ही होता है. वरना वह तो उदास हो जाता है. मैं जरा दोनों सहेलियों को देख कर आती हूं.’’ सोमू के कमरे में दोनों सहेलियां गपशप में मस्त थीं. मैं ने रीतू का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम दोनों भी हमारे साथ ही बैठो.’’ उन के जाने के बाद सोमू दोचार इधरउधर की बातों के बाद बोली, ‘‘मम्मा, रीतू के भैया बहुत बड़े सर्जन हैं. उन का अपने क्षेत्र में बहुत नाम है.’’
मां की शादी- भाग 3: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मीरा के मन में हमेशा यह बात चलता था कि सोमू अपने नए पापा को स्वीकार कर पाएगी या नहीं.
‘‘अच्छी बात है, बेटा.’’
‘‘मम्मा, वे दिल के भी बहुत अच्छे हैं, कई गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं.’’
‘‘करना ही चाहिए, आखिर समाज के प्रति भी हमारे कुछ कर्तव्य हैं कि नहीं.’’
‘‘हां मम्मा, उन का स्वभाव आप से बहुत मेल खाता है. जिस तरह आप दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहती हैं, वे भी.’’ कुछ पल रुक कर वह फिर बोली, ‘‘मम्मा, वे हैं भी बहुत स्मार्ट. उन को देख कर नहीं लगता कि उन की इतनी बड़ीबड़ी बेटियां होंगी, जैसे आप को देख कर कोई नहीं समझ सकता कि मेरे उम्र की आप की बेटी है मम्मा, आप…’’ इतने में सोमू का फोन बज उठा. वह उस में व्यस्त हो गई.
इस इतवार, सोमू ने अपनी फ्रैंड कीर्ति के घर चलने का प्रोग्राम बनाते हुए कहा, ‘‘मम्मा, कीर्ति का बर्थडे है, उस ने घर पर ही छोटी सी पार्टी रखी है. आप को भी बुलाया है. अच्छा है कि इतवार है. आप चलेंगी न?’’
‘‘बेटा, मैं तुम बच्चियों के बीच क्या करूंगी. तुम ही चली जाना. बस, रात में समय से लौट आना. मेरे रहने से तुम लोग खुल कर मस्ती भी नहीं कर सकोगी,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.
‘‘ओह, मम्मा, वह मुझे कच्चा खा जाएगी. उस ने बहुत कहा है कि आंटी को जरूर लाना. मम्मा, वह आप से मिलने का बहाना ढूंढ़ती रहती है. प्लीज, चलिएगा मम्मा, उस का दिल टूट जाएगा.’’
‘‘ठीक है, चलूंगी. उसे उपहार क्या देना है. मैं सोचती हूं, वह चांदी और अमेरिकन डायमंड वाला सैट दे देते हैं.’’
‘‘ठीक है मम्मा, उस की मिल्की व्हाइट रंगत पर जंचेगा भी बहुत.’’
इतवार को सोमू मेरी साजशृंगार में लग गई. ऐसा हेयरस्टाइल तो ऐसा मेकअप, ये ड्रैस तो वह ज्वैलरी, तो यह सैंडिल, बड़ी मुश्किल से बीच का रास्ता अपना कर मैं तैयार हुई.
मुझे एकटक देखती हुई बोली, ‘‘सच कहूं मम्मा, आप से तो मुझे तक जलन हो रही है, औरों का क्या हाल होगा.’’
‘‘ओह, मेरी बिटिया, तू बहुत बातें बनाने लगी है. तुझ नवयौवना के सामने मुझ प्रौढ़ा की क्या बिसात, फिर तेरामेरा रिश्ता तुलना करने या ईर्ष्या करने का है भी नहीं.’’
‘‘सच कहती हूं मम्मा, आप की उम्र में मैं न जाने कैसी लगूंगी, आप की फिगर तो परफैक्ट है, न एक इंच ज्यादा, न ही एक इंच कम.’’
काम करने के लिए बिंदिया आ गई थी. सो, हम मांबेटी की छेड़छाड़ में विराम लग गया. बिंदिया को काम बता कर मैं सोमू के कमरे की तरफ आ गई. वह फोन पर लगी हुई थी. बारबार मेरे नाम की ध्वनि आने के कारण मैं ध्यान से सुनने लगी, ‘‘हां यार, मम्मा तो लाजवाब लगती ही हैं. आज मेरा मन रखते हुए उन्होंने थोड़ा मेकअप भी कर लिया है. गजब ढा रही हैं यार, आज तो. और हां, चाचाजी समय पर पहुंच रहे हैं न. हांहां, उन के पहुंचतेपहुंचते मैं और मम्मा भी पहुंच जाएंगे. हां, यही ठीक रहेगा. खेल के बहाने मम्मा और चाचाजी का एकसाथ डांस करवा देंगे. यह आइडिया परफैक्ट है न. जरूर बात बन जाएगी.’’
मैं बातें सुन कर अवाक थी. आखिर माजरा क्या है? मैं ने सोमू से कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, मेरे बारे में क्या बात हो रही है?’’
उस की मानो चोरी पकड़ी गई हो, किंतु स्वयं को संभालते हुए बोली, ‘‘कुछ भी तो नहीं, मम्मा.’’
‘‘नहीं, बेटा, कुछ बात तो है, यह चाचाजी कौन हैं, फिर उन के साथ डांस वाली क्या बात है?’’
‘‘ओह मम्मा, कुछ भी नहीं, हम फ्रैंड्स तो कुछ भी आपस में बात करते हैं. आप बिंदिया से कहिए कि वह जल्दी काम खत्म करे. हमें निकलना चाहिए. हम लेट हो रहे हैं.’’
‘‘सोमू, सब से पहले कीर्ति को फोन से कह दो कि हम लोगों को थोड़ी देर हो जाएगी. गैस्ट आ गए हैं या कुछ भी कारण बोल दो. और मुझे मेरे सवालों का जवाब चाहिए वरना मैं नहीं जाने वाली.’’ मेरा यह अल्टीमेटम सुन सोमू एकदम शांत, मुझे एकदम देखने लगी. मैं ने उसे गले से लगा कर सस्नेह कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से मैं ने तेरी शादी पक्की की है, तब से मैं देख रही हूं, तू मेरी साजशृंगार पर बहुत ध्यान देने लगी है. फिर कभी किसी के विधुर पापा, तो कभी सर्जन भैया, फिर आज यह चाचाजी, बात क्या है बेटा, तेरे दिल में क्या चल रहा है, अपनी मम्मा को नहीं बताएगी?’’
सोमू ने धीरे से कहा, ‘‘मम्मा, मुझे आप की बहुत चिंता है. मेरी शादी के बाद आप एकदम अकेली हो जाएंगी. मैं ने आप को इन लोगों से इसीलिए मिलवाया कि आप इन में से किसी से शादी करने के लिए तैयार हो जाएं. मम्मा, हर उम्र में अपने हमउम्र साथी की आवश्यकता होती है, जो हमारी बात सुने और समझे, जिस के साथ हम सुखदुख बांट सकें. जीवन जीने का कुछ उत्साह तथा मकसद तो होना चाहिए न, मम्मा.’’
उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मा, आप ने मेरी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति तत्परता से की है. कभी पापा की कमी महसूस होने नहीं दी. किंतु मैं ने आप के अकेलेपन के लिए कभी सोचा ही नहीं. कुछ दिनों बाद मेरी शादी होने वाली है. सैक्स मेरे जीवन का अहम हिस्सा बन जाएगा, आज मुझे यह बात बहुत कचोटती है कि आप ने मेरे लिए अपनी इच्छा का दमन कर लिया होगा. प्लीज मम्मा, बुरा नहीं मानिएगा मेरी बातों का.’’
‘‘अरे बेटा, तू मेरे लिए कितना सोचती है, एक बार तो मुझ से कहा होता. देख बेटा, समीर की मृत्यु के बाद मेरे सारे हितैषियों ने मुझे पुनर्विवाह की सलाह दी थी. किंतु मैं स्वयं को दूसरे विवाह के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी. एक तो दिलोदिमाग में समीर ही छाए हुए थे तथा कई बार अकेलेपन से घबरा कर पुनर्विवाह का विचार करती तो यह भय उठ खड़ा होता कि नया जीवनसाथी मेरी सोमू को, या सोमू अपने नए पापा को स्वीकार कर पाएगी या नहीं. इस के अलावा पढ़नेसुनने को कभीकभी मिल जाता है कि सौतेला पिता, जवान होती सौतेली बेटी पर ही बुरी नजर रखने लगता है. मेरी सोमू को किसी तरह का कष्ट हो, यह मुझ से बरदाश्त नहीं होता. मुझे तो अपनी सोमू का सही पालनपोषण कर एक योग्य नागरिक बनाना था. सो, मैं ने पुनर्विवाह का विचार ही छोड़ दिया था.’’
मैं ने रहस्य खोलते हुए कहा, ‘‘बेटा, सोमू, जब आज यह विषय तू ने छेड़ ही दिया है तो मैं तुझे अपने जीवन की एक सचाई बता देना उचित समझती हूं. मेरे कालेज में रमेशजी, गणित के प्रोफैसर हैं. तू उन से कई बार मिल चुकी है तथा उन की बहुत बड़ी फैन है और तुझे मालूम ही है कि 4 साल पहले कार ऐक्सिडैंट में उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. उन के दोनों बेटे पवन और पीयूष अमेरिका में सैटल हो गए हैं. उन्हीं रमेश ने मुझ से शादी करने की इच्छा व्यक्त की थी. मैं ने भी उन्हें यह कहते हुए सहमति दी थी कि मैं, समीरा की शादी के बाद ही आप से शादी कर सकूंगी. मुझे लगा था कि मेरी बिटिया असहज न महसूस करे, किंतु मुझे क्या मालूम था कि मेरी बिटिया, मेरे लिए वर की तलाश कर रही है.’’ मैं ने ये सब सोमू की आंखों में झांकते हुए कहा. सोमू, प्रसन्नचित्त मुद्रा में बैठी, मुझे निहारने लगी. मैं ने कहा, ‘‘रमेशजी काफी सभ्य एवं शालीन स्वभाव के हैं. उन का यही स्वभाव मुझे आकर्षित कर गया. उन्होंने मुझ से शादी का प्रस्ताव रखा, मैं ने तेरी शादी तक इंतजार करने को कहा. हां, जब मैं तेरी शादी तय करने लगी, तब उन्होंने मुझ से कहा, ‘मीरा, हम साथ हो जाते हैं, यह जिम्मेदारी ज्यादा कुशलता से पूरी कर सकेंगे,’ किंतु मैं हां नहीं कर सकी, तेरी सकुचाहट थी मुझे.
‘‘यह सत्य है कि पिछले लगभग 2 सालों से हम अपने दिल की बातें आपस में कह लेते हैं, पारिवारिक मुद्दों पर भी हम खुल कर बातें करते हैं. उन के दोनों बेटों ने उन से फोन पर बात करनी तक बंद कर दी है. वे दोनों अपनी दुनिया में व्यस्त और मस्त हैं. रमेशजी उन लोगों के व्यवहार से बहुत दुखी भी हैं. मैं अपनी समझ एवं सामर्थ्य से उन्हें सांत्वना देती हूं. उन का अकेलापन मुझे भी अखर जाता है, दिल करता है उन का हाथ थाम लूं.’’
मैं आज सब बोल देना चाहती थी, ‘‘जब मैं ने तेरे लिए सार्थक को पसंद किया, उन्हें विस्तार से सब बताया किंतु वे सार्थक को देखना एवं उस से मिलना चाहते थे. इसी विचार से मैं ने सार्थक से मिलने के लिए सैंट्रल मौल को उचित समझा एवं उन्हें भी वहां बुला लिया, जिस से वे भी उसे…’’
सोमू ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘मम्मा, एक मिनट, मुझे अच्छे से याद है उस दिन मौल में रमेश अंकल भी मिल गए थे. हम सब ने समझा यह मात्र सुखद इत्तफाक है, किंतु वह आप का और अंकल का तय प्रोग्राम था. एमआई राइट, मम्मा?’’
‘‘ऐब्सोल्यूटली राइट, बेटा,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.
‘‘अंकल हमारे साथ पूरे समय रहे थे तथा उन्होंने सार्थक से एवं उस के मम्मीपापा से भी खूब बातें की थीं. मम्मा, सार्थक व उस के परिवार को भी अंकल बहुत पसंद आए थे. मम्मा, अब आप उन्हें सहमति दे दीजिए. अब हम एकसाथ एक घर में रहेंगे तथा पूरे उत्साह एवं समर्पण से एकदूसरे का साथ निभाएंगे.’’ सोमू ने अति उत्साह से कहा.
‘‘ठीक है बेटा, यही सही, मेरे कालेज में सारे सहकर्मी हमारे रिश्ते से परिचित हैं. हमारे शालीन व्यवहार की सभी प्रशंसा करते हैं तथा हमारे निर्णय का सभी ने स्वागत किया है. किंतु बेटा, मुझे तामझाम नहीं चाहिए, कुछ अपने परिचितों की उपस्थिति में कोर्ट मैरिज कर ली जाए,’’ मैं ने अपने विचार रखे. ‘‘ठीक है मम्मा, जैसी आप की मरजी. मुझे तो अपने पापा का साथ चाहिए. कितना मजा आएगा. मम्मा, आप ने तो मेरी सारी चिंता ही खत्म कर दी,’’ कहते हुए वह मेरे गले लग गई.
मैं ने प्यार से उसे थपथपाते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, कीर्ति की बर्थडे पार्टी में चला जाए. दो बार उस का फोन भी आ चुका है. वह हमारा इंतजार कर रही होगी.’’ हम दोनों हंसते हुए कार में जा बैठीं.
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