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Kahani Sanpati Ke Liye Sajish P1 संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

 

संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
Kahani Sanpati Ke Liye Sajish P1

 

 

Kahani Sanpati Ke Liye Sajish P1 संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.
 





यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.



संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
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संपत्ति के लिए साजिश- भाग 2: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा.








बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

लोग यह न समझें कि थाना यहां से दूर है, मैं झगड़ालू लोगों का जीना मुश्किल कर दूंगा. मेरे इस ऐलान से लोगों पर ऐसा डर सवार हुआ कि सब सहयोग करने पर तैयार हो गए. अब लोग आआ कर उमरां, भागभरी और दाई रोशी को बुराभला कह रहे थे. मैं ने उन के बयान लिए, सब से पहले दाई रोशी का बयान लिया.

उस ने अपने बयान में बताया कि वह काफी समय से दाई का काम करती है और उस ने नरसिंग की ट्रेनिंग खुशाब के अस्पताल से ली थी. उस ने अस्पताल से क्लोरोफार्म चुरा कर रखा था. जब कभी किसी महिला को प्रसूति के दौरान ज्यादा तकलीफ होती थी, वह क्लोरोफार्म सुंघा देती थी, जिस से उस महिला को बच्चा पैदा होने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

‘‘सरकार, मैं लालच में आ गई थी. उमरां और भागभरी के कहने में आ कर मैं ने नूरां बीबी को थोड़ी ज्यादा क्लोरोफार्म सुंघा दी. नूरां की बेहोशी को हम ने मौत समझा. गांव के किसी भी आदमी ने उस की नाड़ी नहीं चैक की, वैसे भी हम ने अफवाह फैला दी थी कि नूरां मर गई है.’’ रोशी ने कहा.

‘‘तुम ने बच्चे को जिंदा क्यों छोड़ दिया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सच कहूं तो मुझे मेरे जमीर ने डरा दिया था, इसलिए मैं ने बच्चे को भड़ोले में डाल दिया था.’’ वह रोते हुए बोली.

मैं ने क्लोरोफार्म की शीशी बरामद करा कर सीलबंद कर दी और गवाहों के हस्ताक्षर करा लिए. उमरां और भागभरी को पूछताछ के लिए बुलाया तो वे कांप रही थीं. उन्होंने कुछ बोलने के बजाय रोना शुरू कर दिया, साथ ही दोनों मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अपने किए पर पछताने लगीं. उस के बाद मैं ने रांझा, दत्तो और रमजो को जांच की चक्की में डालने का फैसला किया. उन से सच उगलवाना आसान नहीं था. मैं सभी अपराधियों को थाने ले आया और हवालात में बंद कर दिया.

अगले दिन सभी को पुलिस रिमांड पर लेने के लिए खुशाब के मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 8 दिनों के रिमांड पर लिया. औरतों से तो कुछ पूछने की जरूरत नहीं थी, इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया. क्लोरोफार्म का लेबारेट्री में भेजा गया, जहां से रिपोर्ट आई कि वह बेहोश करने वाला कैमिकल था. लेकिन अगर अधिक मात्रा में दिया जाता तो मौत भी हो सकती थी.

बख्शो के बेटे गुलनवाज को गुम हुए 2 महीने हो गए थे. मुझे लगा कि अब वह जिंदा नहीं होगा. मैं ने रांझा, रमजो और दत्तो को पूछताछ के लिए बुलाया. मैं ने बारीबारी से तीनों से सवाल किए, लेकिन तीनों बड़े ढीठ निकले. वे कुछ बोलने को तैयार नहीं थे.





संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
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संपत्ति के लिए साजिश- भाग 3: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
मलंग ने कब्रिस्तान में एक झुग्गी बना रखी थी, उस का काम कब्रों की हिफाजत करना और कब्रें खोदना था.





मैं ने उन्हें हर तरह से चक्कर दे कर पूछा, लेकिन मैं उन से कुछ भी नहीं उगलवा सका. उन के 2 भाई ताजा और मानी अभी लापता थे. वे पुलिस के डर से कहीं छिप गए थे. मैं ने चारों ओर मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. मैं यातना देने पर यकीन नहीं रखता था, लेकिन लातों के भूत बातों से कहां मानते हैं. मैं ने उन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया. वे चीखते रहे, लेकिन कोई भी बात नहीं बताई.

तीनों भाइयों में रांझा सब से बड़ा और समझदार था. वह बोला, ‘‘आप हमारे पीछे क्यों पड़े हैं? उस के गुम होने का कोई और कारण भी हो सकता है.’’

‘‘तुम लोग उस की जायदाद पर कब्जा करना चाहते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘इसीलिए तुम्हारी बहनों ने उस की पत्नी और बच्चे की हत्या करने की साजिश रची. सीधी सी बात है कि जब गुलनवाज का बच्चा नहीं रहता तो तुम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते.’’

उस ने कहा, ‘‘उस के गायब होने का दूसरा कारण है, जिस पर आप ने ध्यान नहीं दिया.’’

‘‘क्या कारण है.’’

‘‘गुलनवाज बहुत सुंदर जवान था, उस पर तमाम लड़कियां मरती थीं. उसे लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था. हो सकता है, वह किसी लड़की के चक्कर में मारा गया हो.’’ रांझा ने कहा.

मैं ने उसे हवालात भेज दिया और इस बारे में विचार करने लगा. मुझे याद आया कि बख्शो ने कहा था कि वह ऊंट खरीदने के लिए गया था. उस के पास काफी रकम भी थी. ऐसा भी हो सकता था कि इस की भनक किसी अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को लग गई हो और उस ने मौका देख कर गुलनवाज की हत्या कर के उसे कहीं दबा दिया हो और रकम ले उड़ा हो.

मैं ने उस इलाके के अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को बुलाने का फैसला किया. मैं यह तफ्तीश थाने में नहीं, बल्कि डेरा गांजा में बख्शो के दिए हुए एक कमरे से कर रहा था. मैं ने एएसआई से कहा कि डेरा गांजा और आसपास के इलाके के सभी बदमाशों को ला कर मेरे सामने पेश करो.

2-3 घंटे बाद एएसआई 3 लोगों को ले आया. पता चला कि वे उस इलाके के बदमाश थे और छोटामोटा अपराध करते थे. मैं ने उन से कहा कि अगर उन्होंने यह काम किया है तो बक दें, नहीं तो मैं बहुत बुरा व्यवहार करूंगा. वे कान पकड़ कर कहने लगे, ‘‘हमें इस बारे में कुछ पता नहीं है. हत्या का तो प्रश्न ही नहीं उठता.’’

ऐसे लोग आसानी से नहीं माना करते. मैं ने एएसआई से कहा कि इन्हें ले जा कर रगड़ा लगाए. वह उन्हें ले गया और कुछ देर बाद ले आया तो तीनों की हालत बड़ी खराब थी. तीनों ने रोरो कर कहा, ‘‘माईबाप, आप हम से कैसी भी कसम ले लें, हम ने यह काम नहीं किया है. यह सच है कि हम अपराध करते हैं, लेकिन छोटामोटा करते हैं, मुझे लगा कि वे सच बोल रहे हैं. मैं ने उन्हें यह कह कर जाने दिया कि वे अपने स्तर पर इस बारे में पता लगाएं.

मैं ने एएसआई से कहा कि वह उस इलाके में पता करे कि गुलनवाज की दोस्ती किसकिस लड़की से थी. अगले दिन मैं टहल रहा था कि एएसआई आ गया. उस ने बताया कि इलाके के लोगों से पूछा तो सब ने यही बताया कि गुलनवाज बहुत शरीफ लड़का था. वह इलाके की सभी लड़कियों को अपनी बहन समझता था.

उस की शादी भी उस के मातापिता की मर्जी से हुई थी. मैं ने सोचा कि रांझा ने गलत रास्ते पर डाल कर मुझे धोखा देने की कोशिश की है. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि वह रांझा को मेरे पास ले आए. मैं समझ गया कि असली अपराधी रांझा और उस के भाई हैं. अब मैं उन की हड्डियां तोड़ दूंगा.

मैं गुस्से से टहल रहा था, तभी एक खबरी अपने साथ एक आदमी को ले आया, जो बहुत गरीब लग रहा था. उस ने जो कुछ बताया, उस से मुझे लगा कि सारी समस्या ही सुलझ गई है.

उस खबरी ने बताया कि वह गरोट गांव का रहने वाला है, जो झेलम नदी के किनारे पर है. वह भांग पीने का शौकीन है. एक कब्रिस्तान में एक मलंग रहता है, वह उस के पास जा कर भांग पीता है. वहां कुछ और लोग भी भांग पीने आते हैं.

मलंग ने कब्रिस्तान में एक झुग्गी बना रखी थी, उस का काम कब्रों की हिफाजत करना और कब्रें खोदना था. वह लाल रंग का कुर्ता पहने रहता था और लोगों में लाल बाबा के नाम से मशहूर था. एक दिन भांग के नशे में मलंग ने बताया था कि कुछ दिनों पहले कुछ आदमी आए थे और एक गड्ढा खोद कर एक लाश को दबा कर चले गए थे. अंधेरा होने की वजह से वह उन्हें पहचान नहीं सका था.

वह आदमी किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी था. उस ने गुलनवाज के गुम होने का इश्तहार पढ़ा था. एक दुकान पर कुछ आदमियों के बीच वह मलंग वाली बात कह रहा था. वहां मेरा खबरी भी खड़ा था, उस ने वहां जो सुना, आ कर मुझे बता दिया था.

मैं ने उस आदमी से 2-3 बातें और पूछीं और उसे यह कह कर जाने दिया कि वह किसी को भी न बताए कि वह यहां आया था. उस के जाने के बाद मैं ने एएसआई से कहा कि वह लाल बाबा को बड़े प्यार से मेरे पास ले आए. कुछ ही देर में वह उसे ले कर आ गया. मलंग के लंबेलंबे बाल थे, जो उस के कंधे पर पड़े थे, उस के हाथ में एक डंडा था.

वह आते ही बोला, ‘‘या अली, थानेदार बादशाह दी खैर.’’

मैं ने उस से कब्रिस्तान में दबाने वाली लाश की बात पूछी तो उस ने बताया कि 2 महीने पहले कुछ लोग कब्रिस्तान में एक लाश दबा गए थे. लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं सका था. उस ने उन्हें ललकारा भी था, लेकिन वे भाग गए थे. उस ने वहां जा कर देखा तो ताजी मिट्टी थी. वह समझ गया कि ये डाकू होंगे और यहां लूट का माल दबा कर गए होंगे.




संपत्ति के लिए साजिश- भाग 1: बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?
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संपत्ति के लिए साजिश- भाग 4 : बख्शो की बहू के साथ क्या हुआ था?

 
रांझा और रमजो के बयान पता चला कि उसके दो भाई भी शामिल थें.
 







उस ने मिट्टी हटाई तो उस में एक लाश थी. वह भाग कर लालटेन लाया, उस की रोशनी में देखा तो एक जवान आदमी की लाश थी, उस के सारे कपड़े खून से सने थे. उस ने जल्दी से मिट्टी डाल कर बराबर कर दी और इस डर से अपनी झुग्गी में आ गया कि कहीं वह हत्या के केस में न फंस जाए.

‘‘तुम उस जगह को दिखा सकते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जी, थानेदारजी मैं उस जगह को कैसे भूल सकता हूं?’’

मैं ने मलंग के साथ एक नाटक खेलने का फैसला किया. अगर मैं वहां जा कर लाश बरामद कर लेता और बाद में रांझा और उस के भाइयों से कहता तो वे मना कर देते. मैं चाहता था कि वे स्वयं वहां से लाश बरामद कराएं. मैं ने मलंग को पूरी बात समझाई और उसे इनाम का लालच भी दिया. उस ने अपना पाठ अच्छी तरह याद कर लिया.

यह जरूरी नहीं था कि कब्रिस्तान में दफन की गई लाश गुलनवाज की ही हो, वह किसी और की भी हो सकती थी. मैं ने नाटक खेलने का फैसला किया. मैं ने मलंग को शरबत पिलवाया और उसे दूसरे कमरे में बिठा कर समझाया कि उसे कब मेरे पास आना है. फिर मैं ने तीनों भाइयों को बुला कर पूछताछ शुरू कर दी. वे पहले की तरह इनकार करते रहे.

मैं ने कहा, ‘‘तुम खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर लोगे तो फायदे में रहोगे. देखो मेरे पास मौके का गवाह मौजूद है, जिस ने तुम्हें लाश दबाते हुए देखा था.’’

यह कहते हुए मैं ने अपनी नजर उन की आंखों पर रखी. इतना सुन कर वे चौंके, लेकिन फिर सामान्य हो गए. मैं ने रांझा को गिरेबान से पकड़ कर अलग किया और उस की आंखों में आंखें डाल कर धीरे से पूछा, जिस से कि उन दोनों को कुछ पता न चले.

‘‘बोलो, गरोट के कब्रिस्तान में किस की लाश को दबा कर आए थे?’’

मेरी बात सुन कर रांझा का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखें डर से फैल गईं. उसी समय मैं ने मलंग को इशारा कर के बुलवाया. वह नारा लगा कर डंडा नचाता हुआ आया और उस के चारों ओर घूम कर अंगारे जैसी आंखों से घूर कर उस ने कहा, ‘‘अच्छा पकड़े गए ना.’’

मलंग डंडा हिला कर उछलकूद करने लगा. मैं ने उसे रोका नहीं. उस के गले में पड़ी माला और हाथ में पड़े कड़े छल्ला छनछन करने लगे और वहां अजीब सा स्वांग होने लगा. रांझा और उस के भाइयों की हालत खराब होने लगी, वे सब समझ गए

कि अब बचने वाले नहीं हैं.

रांझा बोला, ‘‘आप को अल्लाह का वास्ता देता हूं थानेदारजी, इस मलंग को रोक लें.’’

रांझा अपना सिर पकड़ कर नीचे बैठ गया. मैं ने मलंग को इशारे से मना कर दिया. मलंग को मैं ने दूसरे कमरे में भेज दिया. रांझा बेहोश होने लगा. मैं ने पानी मंगा कर उसे पिलाया तो उसे होश आया. मैं ने कहा, ‘‘बोलो, अब क्या कहते हो?’’

तीनों लाश की बरामदगी के लिए तैयार हो गए. मैं ने उसी समय कब्रिस्तान जाने का फैसला किया. नंबरदार, 2 गवाह और बख्शो को ले कर मैं कब्रिस्तान पहुंचा. कब्रिस्तान पहुंचने पर मैं ने रांझा और उस के भाइयों को आगे कर के कहा, ‘‘बताओ, कहां दबाया था उसे?’’

वे आगे आए और वह जगह बताई. उस जगह को खोदा गया तो वहां से सड़ीगली लाश निकली. बख्शो को बुला कर शिनाख्त कराई. उस के पांव कांप रहे थे. उस का एकलौता बेटा था. उसी को मार दिया गया था. ऐसे में एक बाप की हालत क्या हो सकती थी, यह वही जान सकता था.

लाश के हाथ में कड़ा था, गले में कंठियों की मोटी माला थी. मैं ने यह सब निकलवा कर रखवा दिए. बूढ़ा बाप अपने बेटे की लाश देख कर चीखचीख कर रो पड़ा. मैं ने कागज तैयार कर के गवाहों के हस्ताक्षर करवाए और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर अपराधियों को ले कर थाने आ गया.



मैं ने तीनों के बयान लिए, जिस में रांझे का बयान इस तरह था—

गुलनवाज और रांझा के बाप सगे भाई थे. गुलनवाज का बाप छोटा और रांझा का बाप बड़ा था. बड़े भाई के 5 बेटे और 2 बेटियां थीं. जबकि छोटे भाई बख्शो के केवल एक ही बेटा था. रांझा का बाप 2 साल पहले मर गया था. वह बहुत व्यभिचारी था, पैसा पानी की तरह खर्च करता था.

उस ने अपनी सारी जमीन अय्याशी पर खर्च कर दी थी. अब उस की नजर अपने भाई बख्शो की जमीन पर थी, तब तक उस के कोई संतान नहीं थी. फिर उस के एक बेटा हुआ, जो उस की जायदाद का वारिस बना.

रांझा के बाप ने अपने बेटों के सामने कई बार यह बात कही थी कि अगर बख्शो के बेटा न होता तो हम उस की जायदाद पर कब्जा कर लेते. यह बात रांझा और उस के भाइयों के दिमाग में बैठ गई थी. बाप के मरने के बाद उन्होंने बहाने से बख्शो की कुछ जमीन पर कब्जा कर भी लिया था.

बख्शो शांतिप्रिय था, उस ने थोड़ी जमीन जाने का बुरा नहीं माना तो उन लोगों की हिम्मत बढ़ गई. अब उन्होंने बख्शो के बेटे गुलनवाज को रास्ते से हटाने की योजना बनानी शुरू कर दी.

उसी योजना के तहत उन्होंने गुलनवाज से दोस्ती कर ली और मौके की ताक में रहने लगे. एक दिन उन्हें पता चला कि गुलनवाज ऊंट खरीदने जा रहा है. उन्होंने योजना बनाई कि अब उसे रास्ते से हटा दिया जाए. उन्होंने यह पता कर लिया कि वह किस रास्ते से जाएगा.

वह एक वीरान इलाका था, शाम के समय अंधेरा छा जाता था. उन्होंने कब्जा गरोट से पहले गुलनवाज को पकड़ लिया. उन के पास कुल्हाडि़यां थीं, उस के सिर पर कुल्हाड़ी का पहला वार रांझा ने किया. वह लड़खड़ाया तो दूसरे भाइयों ने उस की गरदन और कंधे पर कुल्हाडि़यों की बारिश कर दी.

इतने गंभीर घावों के कारण वह गिर पड़ा और मर गया. रांझा ने उस की जेब से रकम निकाल ली और फिर सब मिल कर उस की लाश को कब्रिस्तान ले गए. अंधेरे में उन्होंने कुल्हाड़ी से गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी बराबर कर दी. तभी मलंग ने उन्हें ललकारा तो वे वहां से भाग खड़े हुए.

मैं अपराधियों को ले कर घटनास्थल पर गया. अब वहां ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस से यह पता चलता कि वहां किसी की हत्या की गई थी. क्योंकि एक तो 2 महीने हो गए थे और फिर बारिश भी कई बार हुई थी. इसलिए खून वाली मिट्टी भी मुझे नहीं मिल सकी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में उस की मौत किसी तेज धार हथियार से की गई बताई गई थी. वह रिपोर्ट मैं ने रख ली और लाश बख्शो के हवाले कर दी.

रांझा के बाद मैं ने रमजो और दत्तो के बयान लिए, जो रांझा के बयान की पुष्टि कर रहे थे. उन के बयान से यह भी पता चला कि इस घटना में 2 भाई मानी और ताजा भी शामिल थे, जो अमुक गांव में मिल सकते थे, वहां वे अपने मित्र के घर ठहरे थे. मैं ने एएसआई से कहा कि वह सादे कपड़ों में अपने साथ 2 कांस्टेबलों को ले कर वहां जा कर उन के मित्र के घर छापा मारे.

शाम तक एएसआई उन दोनों भाइयों को भी ले कर आ गया. उन के बयान भी उन के भाइयों से मिलतेजुलते थे. मैं ने उन्हें घटनास्थल पर ले जा कर उन से भी पहचान कराई.

मैं ने बहुत मेहनत से कागज तैयार कर के मुकदमा अदालत में पेश कर दिया. मौके का गवाह मलंग था, जिस ने अपना बयान बहुत अच्छी तरह से दिया. इस मुकदमे की चारों ओर चर्चा थी. अदालत ने पांचों भाइयों को मौत की सजा दी. उन्होंने आगे अपील की. उन के वकील ने बहुत अच्छी बहस की, जिस से उन की मौत की सजा आजीवन कारावास में बदल गई. भागभरी और उमरा चूंकि पेशेवर हत्यारिन नहीं थीं, इसलिए उन्हें 3-3 साल की सजा हुई.

कहानी तो यहां खत्म हो गई, लेकिन एक रोचक बात सुनानी रह गई. गुलनवाज का वह बच्चा जो भड़ोले में डाल दिया गया था और हत्या होने से बच गया था, उस का नाम उस के दादा बख्शो ने फतेह खान रखा था. कोई 20-25 साल बाद मैं एफआईए का चार्ज लेने मठ नवाना गया.

मैं यहां अपने थानेदारी के गुजारे दिनों को याद कर रहा था कि मुझे गुलनवाज का केस याद आ गया. मैं अपने पुराने थाने गया और वहां के थानेदार से गुलनवाज के बेटे फतेह खान के बारे में पूछा. उस ने बताया कि वह बहुत बड़ा जमींदार बन चुका है और बड़ा सुंदर गबरू जवान है.

उस ने अपने ताऊ के लड़कों से अपनी सारी जमीन छीन ली थी और उन्हें दबा कर रखता था. थानेदार ने यह भी बताया था कि वह अकसर थाने आता रहता था और आप की बात करता था. आप से मिलना भी चाहता था.

मैं ने थानेदार से अपना काम कर के 2 दिनों बाद आने को कहा और उसे फतेह खान को बताने के लिए कहा. उस दिन फतेह खान काफी लोगों को ले कर थाने आया और मेरे घुटनों पर हाथ रख कर मेरी इज्जत की. वह मेरे लिए ढेर सारे तोहफे ले कर आया था, जो मैं ने बड़े प्यार से वापस कर दिए थे.

मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई थी कि भड़ोले से बच जाने वाला बच्चा आज कितना सुंदर जवान, बिलकुल अपने बाप गुलनवाज की तरह लग रहा था.

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