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Hindi Kahani Naye Ristey: नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा

 

नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा
नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा

 

 
नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा
नंदा और प्रदीप ने अपने मान अपमान और अहंपूर्ति के लिए रानो के जीवन को मिलते प्रकाश और हवा के रास्ते बंद कर दिए थे लेकिन कौन सा अदृश्य धागा था, जो.
शशि जैन




रानो घर में दौड़ती हुई घुसी. बस्ता एक तरफ पटक कर वह सरला से लिपट गई. ‘‘दादी बूआ, दादी बूआ, आज हमें मम्मी मिली थीं. हमें मम्मी मिली थीं, दादी बूआ.’’

रानो बड़े उत्तेजित स्वर में बताती जा रही थी कि मम्मी ने उसे क्याक्या खिलाया, क्याक्या कहा.

सरला उस की बातें सुनती रही, उस के सिर और शरीर को सहलाती रही. न रानो के स्वर की उत्तेजना कम हुई थी और न ही सरला के शरीर पर उस के नन्हे हाथों की पकड़ ढीली पड़ी थी. वह अपनी समस्त शक्ति से दादी बूआ के शरीर से चिपटी रही जैसे वही एकमात्र उस का सहारा थी. कुछ ही देर में रानो की उत्तेजना आंसू बन कर टपकने लगी.


‘‘मम्मी घर क्यों नहीं आतीं, दादी बूआ? वे दूसरे घर में क्यों रहती हैं? सब की मम्मी घर में रहती हैं, मेरी मम्मी क्यों नहीं रहतीं? मैं भी यहां नहीं रहूंगी, मैं भी मम्मी के पास जाऊंगी, दादी बूआ.’’

रानो का रोना बढ़ता ही जा रहा था. सरला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे चुप कराए. वह उसे चिपटाए हुए उस का शरीर सहलाती रही. रानो की व्यथा उस की स्वयं की व्यथा बनती जा रही थी. उस की आंखें रहरह कर भरी आ रही थीं. रानो की मम्मी घर पर क्यों नहीं रहतीं, यह क्या वह स्वयं ही समझ सकी थी?

जब वह बूढ़ी होने पर यह बात नहीं जान पाई थी कि रानो की मम्मी उस के साथ क्यों नहीं रहती तो बेचारी रानो ही कैसे समझ सकती थी. वह और रानो तो अल्पबुद्धि थे, यह सब नहीं समझ सकते थे, परंतु प्रदीप तो अपने को बड़ा बुद्धिमान समझता था. क्या उस के पास ही इस बात का कोई उत्तर था और नंदा ही क्या इस का उत्तर जानती थी? वे दोनों समझते हैं कि वे जानते हैं, पर शायद वे भी नहीं जानते कि वे दोनों मिल कर क्यों नहीं रह सके.

वह रानो को कस कर छाती में दबाए रही, जैसे इसी से वह उसे दुनिया के सारे दुखों से बचा लेगी. उस के हाथों के नीचे नन्हा सा शरीर सुबकता हुआ हिचकोले ले रहा था. वह मन ही मन अपना सारा स्नेह और ममता रानो पर उड़ेल रही थी. धीरेधीरे रानो शांत होने लगी और कुछ ही देर में वह बचपन की शांत गहरी नींद में खो गई. उस का आंसुओं की लकीरों से भरा मासूम चेहरा वेदना की साकार मूर्ति लग रहा था.

जिस नन्ही सी कोमल कली को मां की छाया में पलना चाहिए था, उसे मांविहीना कर के कड़ी धूप में झुलसने को छोड़ दिया गया था.

सरला किचन की टेबल पर सब्जी काटने लगी. मन बहुत सी उलझी हुई गुत्थियों में उलझने लगा.

सत्य क्या है, कौन जान सकता है? वह जीवन में बहुत सी कमियों को झेलती रही थी. उस ने विवाह नहीं किया था. एक छोटी नौकरी के चक्कर में कितने ही लड़कों को न कर दिया था. बाद में मातापिता की मृत्यु के बाद वह इन अभावों को सहती हुई अकेली जीवन व्यतीत करती रही थी. परंतु नंदा को तो सबकुछ मिला था – एक स्वस्थ, सुंदर पति तथा फूल सी प्यारी बिटिया. उस ने किस तरह, कैसे उन्हें हाथ से निकल जाने दिया, क्या उस के लिए पति तथा पुत्री का कोई महत्त्व नहीं था? कुछ तो होगा बहुत ही बड़ा, बहुत ही महत्त्वपूर्ण, जो इन अभावों की पूर्ति कर सका होगा.

वह तो अपने पतिविहीन तथा संतानहीन जीवन को एक यातना समझ कर जी रही थी, परंतु नंदा के लिए इन दोनों का होना ही शायद यातना बन गया था, तभी वह अपने खून और जिगर के टुकड़े को छोड़ कर जा सकी थी. अन्य दिनों की तरह वह आज भी इस प्रश्न को टटोलती रही, पर कोई उत्तर न पा सकी.

प्रदीप आ गया था.

‘‘रानो कहां है, बूआ? दिखाई नहीं दे रही, क्या बाहर खेलने गई है?’’

‘‘सो रही है.’’

‘‘इस समय? तबीयत तो ठीक है?’’ प्रदीप चिंतातुर हो उठा.

‘‘तबीयत तो ठीक है पर उस का मन ठीक नहीं है,’’ बूआ की बात सुन कर प्रदीप प्रश्नचिह्न बना उसे देखता रहा.

‘‘आज उसे उस की मम्मी मिली थी.’’

‘‘क्या नंदा यहां आई थी?’’

‘‘नहीं. वह स्कूल के बाद उसे मिली थी. रानो लौटी तो बेहद उत्तेजित थी. घर आ कर मम्मी को याद करती रोतेरोते सो गई.’’

‘‘कैसी नादानी है नंदा की. बच्ची से मिल कर उसे इस तरह हिला देने का क्या मतलब है? यह तय हो चुका है कि बिना मेरी अनुमति के वह रानो से मिलने की चेष्टा नहीं करेगी. उस ने ऐसा क्यों किया?’’ क्रोध के मारे प्रदीप की कनपटी की नसें फड़क रही थीं.

सरला चुपचाप बैठी सब्जी काटती रही. वह क्या उत्तर दे इन प्रश्नों का. या तो वह पागल है या ये लोग, प्रदीप और नंदा, जो प्राकृतिक सत्य को झुठला कर कोई दूसरा सत्य स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं. मां अपनी कोखजायी बेटी से बिना अनुमति नहीं मिल सकती? यह कैसा और कहां का नियम है? क्या खून के रिश्तों को कानून के दायरे से घेरा जा सकता है?

प्रदीप दनदनाता हुआ बाहर जाने लगा.

बूआ ने रोका, ‘‘प्रदीप, कहां जा रहा है? चाय तो पी ले, सुबह का भूखाप्यासा है.’’

‘‘नहीं, बूआ, भूख नहीं है. जरा काम से जा रहा हूं.’’

‘‘मुझे पता है तू कहां जा रहा है. क्रोध कर के मत जा, प्रदीप. सब संबंध तोड़ देने के बाद तुझे क्रोध करने का हक भी कहां रह गया है?’’

‘‘नहीं बूआ, अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा. वह एकदो बार पहले भी ऐसा कर चुकी है. खुशी से रह रही रानो से मिल कर वह उसे कितने दिनों के लिए तोड़ जाती है, रानो अपनी जिंदगी से दूर जा कर अलग हो जाती है. रानो के दिमाग पर इस का कितना गहरा और स्थायी असर पड़ सकता है. मैं ऐसा नहीं होने दे सकता.’’


नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा
नए रिश्ते -भाग 2: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा






नए रिश्ते -भाग 2: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा

 
कौफीहाउस के वातानुकूलित वातावरण में भी प्रदीप के माथे पर पसीना उभर रहा था. उसे लगा कि उस का सख्ती से सहेजा गया जीवन फिर उखड़ने लगा है.





सरला बड़ी अनमनी सी हो उठी.

‘‘तुम लोग पढ़ेलिखे हो और होशियार, पर मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि रानो की जिंदगी आज नहीं, तुम और नंदा दोनों मिल कर बहुत पहले ही तोड़ चुके हो. जिस पौधे को कुशल माली की देखरेख में यत्नपूर्वक सुरक्षित रख कर पाला जाना चाहिए था उसे तो तुम झंझावात में अकेला छोड़ चुके हो. मां से मिलने पर कुछ नया घटित नहीं होता, केवल उस के अंदर दबाढंका विद्रोह ही उभरता है. बच्चा चाहे कुछ और न समझे, पर मां से गहरे लगाव की बात उसे समझनी नहीं पड़ती. इस बेचारी की तो मां है, यह कैसे भूल सकती है? तेरी मां तो तुझे 10-12 साल का छोड़ कर इस लोक से चली गई थी, क्या तुझे कभी उस की याद नहीं आई?’’

प्रदीप क्षणभर को शर्मिंदा सा हो उठा, ‘‘नहीं, बूआ, यह ठीक नहीं है. रानो नंदा से मिलेगी तो उस की कमी और भी ज्यादा महसूस करेगी. उसे भूल नहीं सकेगी. जो मिल नहीं सकता, उसे भूल जाना ही अच्छा है.’’

सरला चुप हो गई. बहस करना बेकार था. मानअपमान का प्रश्न इस घर को तोड़ चुका था, पर वह अब भी खत्म नहीं था. सबकुछ देखतेबूझते भी वह मन ही मन यह उम्मीद करती रहती है कि किसी तरह इस टूटे घर में फिर से बहारें आ जाएं.

बूआ की बात से प्रदीप के दिमाग में उबलता हुआ लावा कुछ ठंडा होने लगा था, परंतु फिर भी वह नंदा के व्यवहार से जरा भी प्रसन्न नहीं था. उस ने नंदा का फोन मिलाया :

‘‘नंदा.’’

‘‘कौन? आप?’’

‘‘तुम रानो के स्कूल गई थीं?’’

‘‘हां,’’ नंदा का सूक्ष्म उत्तर था.

‘‘तुम जानती हो, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. रानो स्कूल से लौटी तो बेहद उत्तेजित थी. वह रोतेरोते सो गई. कम से कम अब तो तुम्हें हम लोगों को शांति में रहने देना चाहिए,’’ न चाहने पर भी प्रदीप के स्वर में सख्ती आ गई थी.

उत्तर में उधर से दबीदबी सिसकियां सुनाई पड़ रही थीं.

‘‘हैलो, हैलो, नंदा.’’

नंदा रोती रही. प्रदीप का भी दिल सहसा बहुत भर आया. उस का दिल हुआ कि वह भी रोने लगे. उस ने कठिनाई से अपने को संयत किया.

‘‘नंदा, क्या कुछ देर को मौडर्न कौफीहाउस में आ सकती हो?’’

‘‘वहां क्या कहोगे? कहीं तमाशा न बन जाए?’’

‘‘जरा देर के लिए आ जाओ, जो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं. वह फोन पर न हो सकेगा.’’

‘‘अच्छा, आती हूं.’’

कौफीहाउस के वातानुकूलित वातावरण में भी प्रदीप के माथे पर पसीना उभर रहा था. उसे लगा कि उस का सख्ती से सहेजा गया जीवन फिर उखड़ने लगा है और भावनाओं की आंधी में सूखे पत्ते सा उड़ता चला जा रहा है. दिमाग विचित्र दांवपेंच में उलझने लगा. वह नंदा के साथ बिताए गए जीवन में घूमने लगा. उसे लगा सभी कुछ उलटपुलट गया है.

उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. शीघ्र ही नंदा उस के सामने बैठी थी. पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक, हमेशा की तरह आसपास के लोगों की दृष्टि उस के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगी. और हमेशा की तरह उस के हृदय में ईर्ष्या की नन्ही चिनगारी जलने लगी. उस ने तुरंत अपने को संयत किया. नंदा का सौंदर्य व आकर्षण और उस की स्वयं की ईर्ष्या प्रवृत्ति एक घर को नष्ट कर के काफी आहुति ले चुकी थी. उसे अब स्वयं को शांत रखना था.

यत्नपूर्वक छिपाने पर भी नंदा के चेहरे पर रुदन के चिह्न मौजूद थे. वह अनदेखे की चेष्टा करने पर भी बारबार नंदा को देखता रहा. नंदा की बड़ीबड़ी आंखें उस पर स्थिर हो गई थीं और वह बेचैनी सी महसूस करने लगा था.

अस्थिरता की दशा में उस ने काफी चीजों का और्डर दे दिया था. वह उस से बात शुरू करने के लिए कोई सूत्र ढूंढ़ने लगा.

‘‘रानो ठीक रहती है?’’  नंदा ने ही झिझकते हुए पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘ज्यादा याद तो नहीं करती?’’ नंदा का स्वर भीगने लगा था.

‘‘तुम से मिलने से पहले तो नहीं करती.’’

नंदा को देख कर उसे लगा कि अब वह रो देगी.

‘‘मुझे पता नहीं था कि मैं रानो को इतना याद करूंगी. हर समय उसी के बारे में सोचती रहती हूं. उसे देख कर मन को कुछ शांति मिली, पर क्षणभर को ही.’’

‘‘यह सब तो पहले सोचना चाहिए था,’’ प्रदीप का स्वर बेहद ठंडा था.

‘‘उस समय तो हर चीज, हर व्यक्ति और हर भाव के प्रति मन में कटुता व्याप्त हो गई थी. रानो मुझ से इस तरह छिन जाएगी, यह स्वप्न में भी नहीं सोचा था. कभीकभी मन बेहद भटक जाता है. वह नन्ही सी जान कैसे अपनी देखभाल करती होगी?’’ नंदा की आंखों से आंसू टपकने लगे थे.

नंदा से मिलना पूर्णतया सामान्य नहीं हो सकेगा, इस की तो प्रदीप को संभावना थी. परंतु फिर भी एक सार्वजनिक स्थान पर इस तरह से भाव प्रदर्शन के लिए वह तैयार नहीं था. वह काफी परेशान सा हो उठा.

‘‘आजकल क्या कर रही हो,’’ वह रानो की बात छोड़ कर व्यक्तिगत धरातल पर उतर आया.

‘‘मुंबई की एक फर्म में प्रौडक्ट मैनेजर हूं.’’

‘‘तनख्वाह तो खूब मिलती होगी?’’

‘‘बड़ी फर्म है, अच्छा देते हैं. फिर भी रुचि अच्छी तनख्वाह में नहीं, काम में है. मुझ अकेली को कितना चाहिए. काम अच्छा है. नएनए चेहरे, काफी लोगों से मुलाकात, मन की भटकन से बची रहती हूं.’’

‘‘दोबारा शादी करने की सोची?’’

‘‘एक बार का अनुभव क्या काफी नहीं?’’ स्वर में व्यंग्य छिपा था.

‘‘फिर भी, कभी तो सोचा होगा. तुम अभी जवान हो, खूबसूरत भी, कुछ समय बाद यह स्थिति नहीं रहेगी.’’

‘‘जवान दिखने पर भी इस तरह के अनुभव स्त्री को मन से बूढ़ी बना देते हैं. फिर जो कभी न सोचा था वह हो गया, अब सोच कर ही क्या कर पाऊंगी?’’

‘‘काम भी ऐसा है. लोग तुम्हारी ओर आकर्षित तो होते होंगे,’’ प्रदीप अपनी बात पर अड़ा रहा. न चाहने पर भी ईर्ष्या की बेमालूम चिनगारी हवा पाने लगी.

नंदा उदास सी हंसी हंस दी, ‘‘मेरातुम्हारा चोरसिपाही वाला रिश्ता तो खत्म हो चुका है, फिर छिपा कर भी क्या करना है. मैं स्वयं किसी की तरफ आकर्षित नहीं हूं, पर मेरे चारों ओर घूमने वालों की कमी नहीं है. जैसा कि तुम ने कहा, मैं अभी खूबसूरत भी हूं, जवान भी.’’

नए रिश्ते -भाग 1: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा
नए रिश्ते -भाग 3: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा







नए रिश्ते -भाग 3: रानो को आखिर किस अदृश्य धागे ने जोड़ा

 
नंदा की आंखें रहरह कर भर आ रही थीं. जिस रानो को उस ने जन्म दिया था, दिनरात गोदी में झुलाया था, उस से क्या सचमुच ही उस का रिश्ता टूट गया है.





‘‘इस के लिए तुम क्या करती हो?’’

‘‘कुछ नहीं. मैं उन्हें घूमने देती हूं.’’

‘‘शादी के पैगाम भी आते होंगे?’’

‘‘हां, कई,’’ नंदा नेपकिन को खोल लपेट रही थी.

‘‘फिर शादी क्यों नहीं की?’’ चिनगारी को फिर हवा मिली.

‘कहा न, अनुभव कड़वा है. विवाह में आस्था नहीं रही.’’

‘‘बौस कैसा है?’’

‘‘अच्छा है. वह भी मुझ से विवाह के लिए निवेदन कर चुका है.’’

‘‘मान लेतीं. बड़ा बिजनैस है, रुपएपैसे की बहार रहती.’’

उन के आपसी अनेक मतभेदों में एक कारण नंदा का बेहद खर्चीला स्वभाव भी था.

‘‘खयाल बुरा नहीं. वह 55 वर्ष का  है. विधुर और गंजा. 1 लड़का और 2 लड़कियां हैं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘उस के बच्चों को यह विचार पसंद नहीं. सोचते हैं कि मैं उन के पिता के धन की ताक में हूं. वे लोग इस विचार से काफी परेशान रहते हैं.’’

‘‘तुम क्या सोचती हो?’’

‘‘कुछ सोचती नहीं, सिर्फ हंसती हूं. अच्छा, अपनी बताओ, क्या कर रहे हो आजकल?’’

‘‘बस, नौकरी.’’

‘‘विवाह?’’

‘‘अभी तक तो चल रहा है. नहीं चलेगा तो मजबूरी है. रानो के खयाल से डर लगता है. उस ने रानो को पसंद न किया तो वह मासूम मारी जाएगी. मैं तो दिनभर दफ्तर में रहता हूं. उसे देख नहीं पाता. अभी तो बूआ उस की देखरेख करती हैं, पता नहीं बाद में बूआ रहना पसंद करें या न करें.’’

‘‘तुम यह नहीं कर सकते कि रानो को मुझे दे दो. तुम शादी कर लो. इस से सभी सुखी होंगे,’’ नंदा का स्वर काफी उत्तेजित हो आया था.

‘‘रानो को तुम्हें दे दूं? कभी नहीं, हरगिज नहीं. तुम उस की ठीक से देखभाल नहीं कर सकोगी. अदालत में इतना झगड़ा कर के रानो को लिया है, तुम्हें नहीं दे सकता.’’

नंदा हंसी, ‘‘यह तो अदालत नहीं है. अदालत रानो को खुशियां नहीं दे सकी. तुम्हारी जिद थी, पूरी हो गई. अब तुम्हें स्वयं लग रहा है कि रानो तुम्हारे विवाह में बाधा है या विवाह के बाद वह सुखी नहीं रह सकेगी. रानो को मुझे देने के बाद इस का भय न रहेगा, तुम सुख से रहना.’’

‘‘रानो को तुम्हें दे कर सुख से रहूं? तुम क्या अच्छी तरह उसे रख पाओगी?’’ प्रदीप का स्वर तेज हो गया था.

‘‘मैं उस की मां हूं. बड़े कष्ट से उसे जन्म दिया है. मैं उसे ठीक से नहीं रख पाऊंगी? कम से कम विमाता से तो अच्छी तरह ही रखूंगी.’’

 

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‘‘नहीं, नंदा, रानो का भला मेरे पास रहने में ही है. तुम्हारा जिम्मेदारी का काम तुम्हें समय ही कम देगा. फिर तुम्हारे पास रह कर उसे वह शिक्षा कहां से मिलेगी, जो अच्छे बच्चे को मिलनी चाहिए. ऐश और आराम का जीवन बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा नहीं है.’’

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं. बेकार की बातें सुन कर मन और खराब होता है. यह विडंबना ही है कि रानो मेरे और तुम्हारे संयोग से पैदा हुई. मातापिता की गलती का परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ता है. इस बात का इस से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है,’’ नंदा उठ कर जाने लगी.

‘‘वह बात तो तुम से कही ही नहीं जिसे कहने को तुम्हें बुलाया था. तुम रानो से मत मिला करो. वह तुम से मिल कर अस्थिर हो जाती है, टूट जाती है, जीवन से जुड़तेजुड़ते कट सी जाती है. फिर उसे सामान्य करना कठिन हो जाता है.’’

‘‘कैसी विडंबना है कि मां के होते हुए बेटी मातृहीना की तरह पल रही है,’’ नंदा की आंखों से मोटेमोटे आंसू गिरने लगे. उस ने उन्हें पोंछने का कोई उपक्रम नहीं किया. आतेजाते और बैठे लोग उसी की तरफ देखने लगे थे.

प्रदीप स्थिति से काफी त्रस्त हो उठा. अपनी बात दोबारा कहने या बढ़ाने का मौका नहीं था. वह जल्दी से बिल दे कर उठ खड़ा हुआ. नंदा वहीं मेज पर कोहनी टिका कर, सिर छिपा कर फफकने लगी.

उस ने नंदा को बांह का सहारा दे कर उठाया. नंदा रूमाल से मुंह पोंछती उस का सहारा ले कर लड़खड़ाती सी चलने लगी.

 

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दोनों बाहर आ कर कार में बैठ गए. प्रदीप का हाथ नंदा को घेरे रहा.

प्रदीप के अंदर घुमड़ता क्षोभ हर क्षण गलता जा रहा था. वर्षों पहले हुए झगड़े उसे नाटक से लग रहे थे. उन नाटकों का अंत हुआ था अदालत में संबंधविच्छेद के रूप में.

उसे महसूस हुआ कि अपनीअपनी राह जाने के प्रयास के बाद भी वे एक राह के ही राही बने रहे थे. नंदा प्रदीप को भूल सकी, पर रानो को नहीं भूल सकी थी. प्रदीप भी नंदा को भूलने की कोशिश करता रहा, पर रानो का हितअहित उस के जीवन का प्रथम प्रश्न बना रहा, जो उस का रक्त अंश थी, नंदा के शरीर में पली थी.

रानो उन दोनों के मध्य हमेशा ही बनी रही है, बनी रहेगी. चाहे वह और नंदा दुनिया के अलगअलग कोनों पर कितने ही दूर चले जाएं, पर रानो के माध्यम से एक धागा उन दोनों को परस्पर बांधे ही रहेगा.

प्रदीप को लगा वह और नंदा अपनी निर्धारित भूमिका को छोड़ कर किसी और की ही भूमिका अदा कर रहे थे. वे दोनों ही अपने रास्ते से हट गए थे. पतिपत्नी का रिश्ता झुठलाना कठिन नहीं, किंतु मांबेटी का और पितापुत्री का रिश्ता कोई शक्ति झुठला नहीं सकती. बूआ जो कहती हैं, वह शायद ठीक ही है.

उस ने कार स्टार्ट कर दी और घर की तरफ मोड़ दी. नंदा चिरपरिचित रास्ते को पहचान रही थी. वह सीधी हो कर बैठ गई.

 

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‘‘वहां नहीं, रानो को देख कर मेरा कठिनाई से सहेजा हुआ दिल फिर छिन्नभिन्न हो जाएगा. जिस रास्ते को पीछे छोड़ आई हूं उस पर यदि चल ही नहीं सकती तो चाहे जैसे भी हो उस का मोह तो छोड़ना ही होगा.’’

रानो को फिर से देखने की, छाती से चिपटाने की अदम्य इच्छा उस के कलेजे में घुमड़ने लगी.

‘‘क्या तुम रानो से नहीं मिलोगी? वह तुम्हें याद करती, रोतेरोते सो गई है. जागने पर तुम्हें देखेगी तो कितनी खुश होगी.’’


‘‘तुम्हीं तो कह रहे थे कि मुझ से मिल कर वह टूट सी जाती है. दिल से और छलावा करने से क्या लाभ? उसे अब इस टूटे रिश्ते को स्वीकार करना सीख ही लेना चाहिए.’’

नंदा की आंखें रहरह कर भर आ रही थीं. जिस रानो को उस ने जन्म दिया था, दिनरात गोदी में झुलाया था, उस से क्या सचमुच ही उस का रिश्ता टूट गया है? नाता तो उस ने प्रदीप से तोड़ा था. रानो से कब, क्यों और किस तरह उस का नाता टूट गया?

प्रदीप चुपचाप कार चलाता रहा. कार रुकते ही नंदा पागलों की तरह अंदर भागी. रानो अब भी सो रही थी. उस का दिल हुआ वह उसे उठा कर सीने से चिपटा ले, पर वह उस के सिरहाने बैठी उसे देखती रही. आंखों से वात्सल्य छलकाती रही.

उस ने देखा कि प्रदीप की बूआ कमरे में आ रही हैं. उस ने उठ कर उन के पैर छुए. सरला ने नंदा को छाती से लगा लिया. नंदा का अपने पर रहासहा नियंत्रण भी समाप्त हो गया. वह बच्चों की तरह फूट पड़ी. सरला रानो की तरह नंदा को सहलाने लगी.

 

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‘‘नंदा, मैं सब जानती हूं. बस, एक ही बात पूछना चाहती हूं कि तुम और प्रदीप आपस में झगड़ कर अपनीअपनी राह पर चल दिए. आपस में बनी नहीं, संबंध तोड़ दिया. ठीक ही किया, पर रानो को अकेला क्यों छोड़ दिया? तुम दोनों इतनी बड़ी दुनिया में रह भी लोगे, खुशियां भी ढूंढ़ लोगे, अपनेअपने घर भी बसा लोगे, पर क्या रानो का टूटा जीवन कभी साबुत हो सकेगा? कोई भी कुसूर न होने पर भी सब से ज्यादा सजा रानो को ही मिल रही है. बोलो क्यों? ऐसा क्यों हो रहा है?’’

प्रदीप भी कमरे में आ गया था.

सरला का प्रवाह रुक नहीं रहा था. वर्षों से मन में दबे प्रश्न अपना जवाब मांग रहे थे

‘‘मैं तो अविवाहिता निपूती हूं. पति और संतान की चाहना क्या होती है, यह मुझ से ज्यादा कोई नहीं जानता. तुम लोग रुपएपैसों को संभाल कर बटुए और तिजोरी में रखते हो, पर एक अमूल्य जीवन को पैरों तले रौंद रहे हो. रानो अभी एक अविकसित, मुरझाई कली है, बड़ी होने पर वह सिर्फ एक अविकसित मुरझाया फूल बन कर रह जाएगी.

‘‘तुम लोगों ने अपने मानअपमान और अहंपूर्ति के चक्कर में रानो के जीवन को मिलते प्रकाश और हवा के रास्ते क्यों बंद कर दिए? क्यों उस नन्हे से जीवन को दम घोट कर मार रहे हो? यदि तुम दोनों, जो वयस्क और समझदार हो, परस्पर समझौता नहीं कर सकते तो नासमझ रानो की जिंदगी से किस स्तर पर समझौता करने की अपेक्षा करते हो?’’

प्रदीप और नंदा दोनों अपराधी से सिर झुकाए खड़े थे.

‘‘प्रदीप, क्या तू अपनी जिद नहीं छोड़ सकता? बहू, तुम ही क्या अपने मानअपमान के प्रश्न को नहीं पी सकतीं? तुम लोग जो अपना जीवन जी चुके हो, रानो के जीवन और खुशियों की बलि क्यों ले रहे हो? क्या तुम उसे जीने का मौका नहीं दे सकते?’’

 

 

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सरला को लगा कि वह सहसा बहुत थक चुकी है और अपनी बात उन तक पहुंचाने में असमर्थ है.

उन्होंने अंतिम प्रयास किया, ‘‘प्रदीप और बहू, क्या तुम लोग फिर से एकसाथ नया जीवन नहीं शुरू कर सकते? पुरानी गलतियों को भूल कर नए तरीके से अपने लिए न सही, रानो के लिए क्या यह टूटा घर फिर से साबुत नहीं बनाया जा सकता? ऐसा घर जहां रानो प्रसन्न रह सके, संपूर्ण जीवन जी सके?’’

सरला धीरेधीरे कमरे से बाहर चली गई. प्रदीप और नंदा सोती हुई रानो को देख रहे थे. उन्हें महसूस हुआ कि एक अदृश्य धागा अपने में लपेट कर नए रिश्तों में बांध रहा है- प्रदीप को, नंदा को और रानो को. सहसा लगा कि नन्ही रानो के जीवन का प्रश्न बहुत बड़ा है और उन दोनों के आपसी रिश्ते उस के आगे बिलकुल तुच्छ, नगण्य हो कर रह गए हैं.

  

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Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे...