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Mahatma Gandhi Par Kavita 2020 | Shayari In Hindi (महात्मा गांधी पर शायरी) गांधी जयंती पर शायरी, कविताएं, संदेश व गीत

 

(महात्मा गांधी पर शायरी) गांधी जयंती पर शायरी, कविताएं, संदेश व गीत यहां पढ़ें
Mahatma Gandhi Par Kavita



Mahatma Gandhi Par Kavita 2 अक्टूबर यानी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस। महात्मा गांधी को पूरा देश बापू के नाम से जानता है। बापू का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने आजीवन अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। बापू की हिंदू धर्म में घोर आस्था थी। उन्होंने अपना सारा जीवन देश सेवा में लगा दिया। लंदन से वकालात करने के बाद बापू 1893 में दक्षिण अफ्रीका चले गए, जहां उन्होंने गोरों द्वारा हिंदू प्रवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आंदोलन चलाया। अपने आंदोलन की बदौलत गांधी विश्वभर के तमाम अखबारों की सुर्खियां बनते चले गए और यहीं से शुरू हुआ उनका देश सेवा का सफर।



आइये पढ़ते हैं महात्मा गांधी पर शायरी

बस जीवन में ये याद रखना,

सच और मेहनत का सदा साथ रखना,

बापू तुम्हारे साथ हैं,

हर बच्चे के पास,

सच्चाई जहाँ भी है वहाँ उनका वास है।

Happy gandhi Jayanti 2020


बापू के सपने को फिर से सजाना है,

देकर लहू का कतरा इस चमन को सजाना है।

बहुत गाना गाया हमने आज़ादी का,

अब हमे देशभक्ति का फ़र्ज़ निभाना है।



 

G = Great

A = Amazing

N = Nationalist

D = Daring

H = Honest

I = Indian


Happy Birthday ‘Father of the Nation’



रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम

सबको सन्मति दे भगवान

गाँधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।


खादी मेरी शान है

करम ही मेरी पूजा है

सच्चा मेरा कर्म है

और हिंदुस्तान मेरी जान है

गाँधी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।









2 अक्टूबर यानी महात्मा गांधी की जयंती पर बापू के अनमोल वचन

कमजोर कभी मांफी नहीं मांगते, क्षमा करना तो ताकतवर व्यक्ति की विशेषता है।

कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के जीने वाले हो।

एक आदमी ही सोच को जन्म देता है और वो क्या सोचता है वही बनता है।

अपने आपको पाने का सबसे सही तरीका है कि अपने आपको दूसरों की सेवा में खो दिया जाये।

खुशियां वही हैं जो आप सोचते हैं, आप कहते हैं, और जो आप स्वाध्याय के लिए करते हैं।

संतोष पूर्ण  प्रयास से मिलता है न कि फल प्राप्ति से। पूरा प्रयास ही पूर्ण विजय है।

तुम मुझे बांध सकते हो, तुम मुझे यातनाएं दे सकते हो, तुम इस शरीर को ख़त्म भी कर सकते हो, पर तुम मेरे दिमाग को बांध नहीं सकते।

प्रकृति आपकी जरूरतों को पूरा कर सकती है आपकी विलाषिताओं को नहीं।

आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।

व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, उसके चरित्र से होती है।

आजादी का कोई मतलब नहीं, अगर  इसमें गलती करने की आजादी शामिल न हो।

हो सकता है कि हम ठोकर खाकर गिर पड़ें, पर हम उठ सकते हैं। लड़ाई से भागने से तो इतना अच्छा ही है।

आपको इंसानियत पर कभी भी भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए, क्योंकि इस दुनिया में इंसानियत एक ऐसा समुद्र है, जहां अगर कुछ बूंदें गंदी हो भी जाएं तो समुद्र गंदा नहीं हो सकता।


गांधी जी पर लिखीं कविताएं


जिसको पाकर मुक्त हुआ था, भारतमाता का उपवन।

आओ आज सुनाएं तुमको, बापू का निर्मल जीवन।।

अठ्ठारह सौ उनहत्तर में, अक्टूबर महीना आया।

तभी हुलसकर पुतली माता ने, प्यारा बेटा जाया।।


पोरबंदर, दीवान करमचंद के, घर में खुशियां छाईं।

नित्य नए आनंद और फिर, पढ़ने की बेला आई।।



 

उम्र अभी छोटी ही थी पर, पिता स्वर्ग सिधार गए।

करके मैट्रिक पास यहां, फिर मोहन भी इंग्लैंड गए।।


पढ़-लिख मोहन हो गए, बुद्धिवान-गुणवान।

ज्ञानवान, कर्तव्य प्रिय, रखे आत्मसम्मान।।


जिसको पाकर……………………………………….।।1।।


दक्षिण अफ्रीका में लड़ने को, एक मुकदमा था आया।

पगड़ी धारण करके गांधी, उस वक्त अदालत में आया।।


कितनी उंगली उठीं कोई, गांधी को न झुका पाया।

मैं भारतवासी हूं, संस्कृति का, मान मुझे प्यारा।।


थे रोज देखते, कालों का, अपमान वहां होता रहता।

यह देख-देखकर मोहन का मन, जार-जार रोता रहता।।


तभी एक दिन ठान ली, दूर करूं अन्याय।

चाहे कुछ करना पड़े, दिलवाऊंगा न्याय।।


जिसको पाकर……………………………………….।।2।।


कितने ही आंदोलन करके, गांधी ने बात बढ़ाई थी।

जितने भी काले रहते थे, उन सबकी शान बढ़ाई थी।।


फिर भारत में वापस आकर, वे राजनीति में कूद पड़े।

प्रथम युद्ध में, शामिल होकर अंग्रेजों के साथ रहे।।



 

अंग्रेजों का यह कहना था, यदि विजय उन्हें ही मिल जाए।

तो भारत को आजाद करें, और अपने वतन पलट जाएं।।


लेकिन हमको क्या मिला, जलियांवाला कांड।

सुनकर के जिसकी व्यथा, कांप उठा ब्राह्मण।।


जिसको पाकर……………………………………….।।3।।


नमक और भारत छोड़ो आंदोलन को, फिर अपनाया।

फिर शामिल होकर गोलमेज में, भारत का हक बतलाया।।


भारत छोड़ो का नारा अब, घर-घर से उठता आता था।

इस नारे को सुन-सुनकर अब, अंग्रेज राज थर्राता था।।


सारे नेता जेलों में थे, कर आजादी का गान रहे।

हो प्राण निछावर अपने पर, इस मातृभूमि का मान रहे।।


देख यहां की स्थिति, समझ गए अंग्रेज।

यह फूलों की है नहीं, यह कांटों की सेज।।


जिसको पाकर……………………………………….।।4।।


पन्द्रह अगस्त सैंतालीस को, भारत प्यारा आजाद हुआ।

दो टुकड़ों में बंट गया, यही सुख-दु:ख पाया था मिला-जुला।।


दंगे-फसाद थे शुरू हुए, हर गली-गांव कुरुक्षेत्र हुआ।

गांधी बाबा ने अनशन कर, निज प्राण दांव पर लगा दिया।।



 

फिर 30 जनवरी आई वह, छ: बजे शाम की बात रही।

प्रार्थना सभा में जाते थे, बापू को गोली वहीं लगी।।


डूबे सारे शोक में, गांधी महाप्रयाण।

धरती पर सब कर रहे, बापू का गुणगान।।


जिसको पाकर……………………………………….।।5।।


जो कुछ था देय, दिया तुमने, सब लेकर भी

हम हाथ पसारे हुए खड़े हैं आशा में;

लेकिन, छींटों के आगे जीभ नहीं खुलती,

बेबसी बोलती है आँसू की भाषा में।वसुधा को सागर से निकाल बाहर लाये,

किरणों का बन्धन काट उन्हें उन्मुक्त किया,

आँसुओं-पसीनों से न आग जब बुझ पायी,

बापू! तुमने आखिर को अपना रक्त दिया।


रामधारी सिंह दिनकर


अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के

पुस्तक-अख़बार जलाएँगे, हम वंशज गाँधी केजनता की पीर हुई बासी, क्या मिलना गाकर भी

बस वंशावलियां गाएँगे, हम वंशज गाँधी केबापू की बेटी बिकी अगर, इसमें हम क्या कर लें

कुछ नारे नए सुझाएँगे, हम वंशज गाँधी केखाली हाथों से शंका है, अपराध न हो जाए

इन हाथों को कटवाएँगे, हम वंशज गाँधी केरथ यात्रा ऊँची कुर्सी की, जब-जब भी निकलेगी

पैरों में बिछते जाएँगे, हम वंशज गाँधी के


ऋषभ देव शर्मा


उसने कहा

बुरा मत देखो

और हमने आंखें

बंद कर लीं

धृतराष्ट्र तो अंधा था

हमने साबुत आंखों

के बावजूद पसंद किया

अंधे की तरह जीना

हम कुछ नहीं देखते

पता नहीं क्या

बुरा दिख जाये

हमारी आंखें बंद हैं

तो मन भला-चंगा है

हमारी कठौती में गंगा हैउसने कहा

बुरा मत सुनो

और हमने सुनना

बंद कर दिया

बहरे हो गय हमे

नहीं पहुंचतीं हम तक

अब किसी की चीखें

किसी पीड़ित की

व्याकुल पुकार

अत्याचार से दम

तोड़ते आदमी का

करुण आर्तनाद

विचलित नहीं करता हमेंउसने कहा

बुरा मत बोलो

मसीहे की बात

कैसे नहीं मानते हम

हम जो भी बोलते हैं

भला बोलते हैं

लोग न समझें तो

हमारा क्या दोष

गूंगे नहीं बन सकते हम

उसकी विरासत

संभालनी है हमें

आजादी बचानी है

लोकतंत्र जमाना है

बहुत भार है हमारे

नाजुक कंधों पर

निभाना तो पड़ेगा

बेजुबान होकर

कैसे रह सकेंगे

कभी अक्षरधाम

कभी कारगिल

कभी दांतेवाड़ा

बहादुरों के जनाजों पर

राष्ट्रगान गाना तो पड़ेगावह मसीहा था

बहुत समझदार

नेक और ईमानदार

उसका चौथा बंदर

कभी आया ही नहीं

हमसे यह कहने

कि कुछ करो भी

जनता के लिए

देश के लिए

फिर भी हम नहीं भूले

अपना करणीय

कर्म पथ से नहीं हटेआइए कभी हमारे

गांव, हमारे शहर

कोई दिक्कत नहीं होगी

जहाज उतर सकता है

ट्रेन भी जाती है वहां से

जगमग, जगमग

जहां दिखे, समझना

हमारा घर आ गया

होटल हैं, स्कूल हैं

अस्पताल हैं

गांव में अब कहां

किस चीज का अकाल हैकर्मयोगी रहे हम

गांधी के सच्चे अनुयायी

सुख-संपदा तो यूं ही

बिन बुलाये चली आयी

सब बापू का है

सब बापू के नाम

उस महात्मा को प्रणाम


सुभाष राय


साढ़े सात सेंटीमीटर चौड़े और

सत्रह सेंटीमीटर लंबे कागज के टुकड़े पर

खिलखिलाते हुए गाँधी

एक तरफ़ हैं

दूसरी तरफ़ दस अनुयायियों के साथ

लाठी थामे खड़े हैं

एक तरफ मुस्कान

दूसरी तरफ जाग्रत अवस्थागलियों-सड़कों-पार्कों और

गंदी बस्तियों के नाम के साथ

जोड़ दिया गया है गाँधी का नाम

और तेजाब की भूमिका निभाने वाले

काग़ज़ के टुकड़े को भी

गाँधी के चित्र से वंचित नहीं रखा गया हैजब यह काग़ज़ का टुकड़ा

रौंद डालता है सत्य को

आदर्श को, जीवन-मूल्यों को

जब यह काग़ज़ का टुकड़ा

निगल जाता है भविष्य की संभावनाएँ

तब भी खिलखिलाते रहते हैं गाँधी


महात्मा गांधी पर गीत


 प्रसिद्ध फिल्मी गीत फिल्म जागृति से

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल


आँधी में भी जलती रही गाँधी तेरी मशाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल



 

धरती पे लड़ी तूने अजब ढंग की लड़ाई

दागी न कहीं तोप न बंदूक चलाई

दुश्मन के किले पर भी न की तूने चढ़ाई

वाह रे फ़कीर खूब करामात दिखाई

चुटकी में दुश्मनों को दिया देश से निकाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम


लगता था मुश्किल है फ़िरंगी को हराना

टक्कर थी बड़े ज़ोर की दुश्मन भी था ताना

पर तू भी था बापू बड़ा उस्ताद पुराना

मारा वो कस के दांव के उलटी सभी की चाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम


जब जब तेरा बिगुल बजा जवान चल पड़े

मज़दूर चल पड़े थे और किसान चल पड़े

हिंदू और मुसलमान, सिख पठान चल पड़े

कदमों में तेरी कोटि कोटि प्राण चल पड़े

फूलों की सेज छोड़ के दौड़े जवाहरलाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम


मन में थी अहिंसा की लगन तन पे लंगोटी

लाखों में घूमता था लिये सत्य की सोंटी

वैसे तो देखने में थी हस्ती तेरी छोटी

लेकिन तुझे झुकती थी हिमालय की भी चोटी

दुनिया में भी बापू तू था इन्सान बेमिसाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम



 

जग में जिया है कोई तो बापू तू ही जिया

तूने वतन की राह में सब कुछ लुटा दिया

माँगा न कोई तख्त न कोई ताज भी लिया

अमृत दिया तो ठीक मगर खुद ज़हर पिया

जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

रघुपति राघव राजा राम

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