अमीर मीनाई के कुछ शेर इन हिंदी
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
कौन सी जा है जहां जल्वा-ए-माशूक़ नहीं
शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर
कश्तियां सब की किनारे पे पहुंच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन
मरता हूं मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
हुए नामवर बे-निशां कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे
'अमीर' अब हिचकियां आने लगी हैं
कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूं
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
आया न एक बार अयादत को तू मसीह
सौ बार मैं फ़रेब से बीमार हो चुका