ujala par shayari, |
उजाला रोशनी या रौशनी Shayari
शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
लौट आए हैं सभी एक परिंदा कम है
- फ़हीम जोगापुरी
दिल की बस्ती में उजाला ही उजाला होता
काश तुम ने भी किसी दर्द को पाला होता
- अशोक साहिल
अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा
- सलीम कौसर
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये सर्द-मेहर उजाला ये जीती-जागती रात
तिरे ख़याल से तस्वीर-ए-माह जलती है
- महबूब ख़िज़ां
इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शमां जलाने से रही
- निदा फ़ाज़ली
मेरी तारीक शबों में है उजाला इन से
चांद से ज़ख़्मों पे मरहम ये लगाते क्यूं हो
- लईक़ आजिज़
यही दिन में ढलेगी रात 'अख़्तर'
यही दिन का उजाला रात होगा
- अख़्तर होशियारपुरी
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी