Top 10 Majrooh Sultanpuri Selected Shayari | मजरूह सुल्तानपुरी चयनित शायरी Majrooh sultanpuri sher, majrooh sultanpuri shayari, majrooh sultanpuri ke sehr, majrooh sultanpuri ki shayari, majrooh sultanpuri,
तिश्नगी ही तिश्नगी है किस को कहिए मय-कदा
लब ही लब हम ने तो देखे किस को पैमाना कहें
बढ़ाई मय जो मोहब्बत से आज साक़ी ने
ये कांपे हाथ कि साग़र भी हम उठा न सके
गुलों से भी न हुआ जो मिरा पता देते
सबा उड़ाती फिरी ख़ाक आशियाने की
मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर
मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
कुछ बता तू ही नशेमन का पता
मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया
'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से
दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते
रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या 'मजरूह'
हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहां से हम
उठने को उठ तो आए तिरे आस्तां से हम