Meeraji Selected Shayari In Hindi 2 Line Shayari of Meeraji Fb, Whatsapp Quotes | मीर तक़ी मीर की शायर
अगर आप मीर राजी मीर mir raji mir selected poetry, मीर राजी मीर कविता कोश, मीर की ग़ज़ल, मीर राजी मीर zikr i mir, मीर का शेर, मीर तक़ी मीर mir taqi mir selected poetry translated into english by kc kanda, ख्वाजा मीर दर्द, दाग देहलवी की शायरी, मीर तक़ी मीर शायरी के बारे में अधिक जानकारी या शेरी जानना चाहे तो यहाँ से जान सकते है :
हँसो तो साथ हँसेंगी दुनिया बैठ अकेले रोना होगा
चुपके चुपके बहा कर आँसू दिल के दुख को धोना होगा
ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें
ग़म भी रास न आया दिल को और ही कुछ सामान करें
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया
दिल में हर लहज़ा है सिर्फ़ एक ख़याल
तुझ से किस दर्जा मोहब्बत है मुझे
पहले तेरा दीवाना था अब है अपना दीवाना
पागल-पन है वैसा ही कुछ फ़र्क़ नहीं दीवाने में
जैसे होती आई है वैसे बसर हो जाएगी
ज़िंदगी अब मुख़्तसर से मुख़्तसर हो जाएगी
अब अपना ये हाल हो गया है
जीना भी मुहाल हो गया है
सुब्ह-सवेरे कौन सी सूरत फुलवारी में आई है
डाली डाली झूम उठी है कली कली लहराई है
पास तो क्या है अपने फिर भी मगर
उस पे सब कुछ निसार है अपना
अगर ज़िंदगी मुख़्तसर थी तो फिर क्या
इसी में बहुत ऐश करता गया दिल
मीर तक़ी मीर की शायरी – Meer Taqi Meer Shayari in Hindi – 2 Line Poetry, Urdu Sher & Ghazalमीर तक़ी मीर की शायरी
MEER TAQI MEER POETRY 2 LINES
अगर आप मीर तक़ी मीर mir taqi mir selected poetry, मीर तक़ी मीर कविता कोश, मीर की ग़ज़ल, मीर तक़ी मीर zikr i mir, मीर का शेर, मीर तक़ी मीर mir taqi mir selected poetry translated into english by kc kanda, ख्वाजा मीर दर्द, दाग देहलवी की शायरी, मीर तक़ी मीर शायरी के बारे में अधिक जानकारी या शेरी जानना चाहे तो यहाँ से जान सकते है :
कौन लेता था नाम मजनूँ का
जब कि अहद-ए-जुनूँ हमारा था
इक़रार में कहाँ है इंकार की सी सूरत
होता है शौक़ ग़ालिब उस की नहीं नहीं पर
किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक
मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया
आए हो घर से उठ कर मेरे मकाँ के ऊपर
की तुम ने मेहरबानी बे-ख़ानुमाँ के ऊपर
Meer Taqi Meer Shayari in Hindi
किसू से दिल नहीं मिलता है या रब
हुआ था किस घड़ी उन से जुदा मैं
मीर तक़ी मीर की गजलें
इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम क्या है इश्क़
कितनी बातें बना के लाऊँ लेक
याद रहतीं तिरे हुज़ूर नहीं
आदम-ए-ख़ाकी से आलम को जिला है वर्ना
आईना था तो मगर क़ाबिल-ए-दीदार न था
कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है
इश्क़ है तर्ज़ ओ तौर इश्क़ के तईं
कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़
MEER TAQI MEER POETRY IMAGES
अगर आप mir taqi mir poetry 2 line, meer taqi meer shayari on love, meer taqi meer sher o shayari, mir taqi mir shayari with meaning, mir taqi mir 2 line shayari in hindi, meer taqi meer 2 line poetry, mir taqi mir quotes, mir taqi mir shayari with translation, meer taqi meer shayari pdf, mir taqi mir selected poetry, meer taqi meer poetry images, mir taqi mir ghazals tashreeh in urdu के बारे में यहाँ से जान सकते है :
कोहकन क्या पहाड़ तोड़ेगा
इश्क़ ने ज़ोर-आज़माई की
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
कुछ हो रहेगा इश्क़-ओ-हवस में भी इम्तियाज़
आया है अब मिज़ाज तिरा इम्तिहान पर
इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क़
कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की
धूम है फिर बहार आने की
MEER TAQI MEER 2 LINE SHAYARI
आह-ए-सहर ने सोज़िश-ए-दिल को मिटा दिया
इस बाद ने हमें तो दिया सा बुझा दिया
कुछ नहीं सूझता हमें उस बिन
शौक़ ने हम को बे-हवास किया
इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
क्या आज-कल से उस की ये बे-तवज्जोही है
मुँह उन ने इस तरफ़ से फेरा है ‘मीर’ कब का
आशिक़ों की ख़स्तगी बद-हाली की पर्वा नहीं
ऐ सरापा नाज़ तू ने बे-नियाज़ी ख़ूब की
MIR TAQI MIR SHAYARI PAR TABSARA
क्या जानूँ चश्म-ए-तर से उधर दिल को क्या हुआ
किस को ख़बर है ‘मीर’ समुंदर के पार की
इश्क़ का घर है ‘मीर’ से आबाद
ऐसे फिर ख़ानमाँ-ख़राब कहाँ
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता
आवरगान-ए-इश्क़ का पूछा जो मैं निशाँ
मुश्त-ए-ग़ुबार ले के सबा ने उड़ा दिया
क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
MEER TAQI MEER BEST SHAYARI
इश्क़ करते हैं उस परी-रू से
‘मीर’ साहब भी क्या दिवाने हैं
क़बा-ए-लाला-ओ-गुल में झलक रही थी ख़िज़ाँ
भरी बहार में रोया किए बहार को हम
अब देख ले कि सीना भी ताज़ा हुआ है चाक
फिर हम से अपना हाल दिखाया न जाएगा
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
इश्क़ माशूक़ इश्क़ आशिक़ है
यानी अपना ही मुब्तला है इश्क़
Meer Taqi Meer Poetry 2 Lines
मेरे ताकि मेरे शायरी
अगर आप meer taqi meer ghazals mp3 download, kulliyat e meer taqi meer, deewan e meer taqi meer, mir taqi mir vs ghalib, kalam e mir taqi mir pdf, mir taqi mir ranjish.com, mir taqi mir ki halat zindagi, meer taqi meer urdu shayari, meer taqi meer shayari facebook के बारे में यहाँ से जान सकते है :
उम्र गुज़री दवाएँ करते ‘मीर’
दर्द-ए-दिल का हुआ न चारा हनूज़
अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है
उस के फ़रोग़-ए-हुस्न से झमके है सब में नूर
शम-ए-हरम हो या हो दिया सोमनात का
इश्क़ में जी को सब्र ओ ताब कहाँ
उस से आँखें लड़ीं तो ख़्वाब कहाँ
उस के ईफ़ा-ए-अहद तक न जिए
उम्र ने हम से बेवफ़ाई की
MEER TAQI MEER SHAYARI IN URDU
अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे
उस पे तकिया किया तो था लेकिन
रात दिन हम थे और बिस्तर था
इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़
चाह का दावा सब करते हैं मानें क्यूँकर बे-आसार
अश्क की सुर्ख़ी मुँह की ज़र्दी इश्क़ की कुछ तो अलामत हो
अब के जुनूँ में फ़ासला शायद न कुछ रहे
दामन के चाक और गिरेबाँ के चाक में
MIR TAQI MIR SHAYARI WITH TRANSLATION
'
चमन में गुल ने जो कल दावा-ए-जमाल किया
जमाल-ए-यार ने मुँह उस का ख़ूब लाल किया
काबे में जाँ-ब-लब थे हम दूरी-ए-बुताँ से
आए हैं फिर के यारो अब के ख़ुदा के हाँ से
चश्म हो तो आईना-ख़ाना है दहर
मुँह नज़र आता है दीवारों के बीच
अब मुझ ज़ईफ़-ओ-ज़ार को मत कुछ कहा करो
जाती नहीं है मुझ से किसू की उठाई बात
दे के दिल हम जो हो गए मजबूर
इस में क्या इख़्तियार है अपना
2 Line Poetry, Urdu Sher & Ghazal
मीर तक़ी मीर के शेर
काम थे इश्क़ में बहुत पर ‘मीर’
हम ही फ़ारिग़ हुए शिताबी से
ग़म रहा जब तक कि दम में दम रहा
दिल के जाने का निहायत ग़म रहा
अब तो जाते हैं बुत-कदे से ‘मीर’
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
गुफ़्तुगू रेख़्ते में हम से न कर
ये हमारी ज़बान है प्यारे
कासा-ए-चश्म ले के जूँ नर्गिस
हम ने दीदार की गदाई की
MIR TAQI MIR SHAYARI COLLECTION
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
जाए है जी नजात के ग़म में
ऐसी जन्नत गई जहन्नम में
कहा मैं ने गुल का है कितना सबात
कली ने ये सुन कर तबस्सुम किया
जब कि पहलू से यार उठता है
दर्द बे-इख़्तियार उठता है
MIR TAQI MIR FAMOUS SHAYARI
अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर
कि हम ग़रीब हुए हैं इन्हीं की दौलत से
जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा ‘मीर’ ज़ि-बस
उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते
कहते तो हो यूँ कहते यूँ कहते जो वो आता
ये कहने की बातें हैं कुछ भी न कहा जाता
जौर क्या क्या जफ़ाएँ क्या क्या हैं
आशिक़ी में बलाएँ क्या क्या हैं
इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा
इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मसजूद जानते हैं