'ज़िंदगी' के एहसास पर शायरों के जुबानी
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ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई ग़मगुसार होता
- ग़ालिब
माज़ी की याद, आज का ग़म, कल की उलझनें
सबके मिलाइए मेरी तस्वीर बन गयी
- आरज़ू लखनवी
ज़ख़्म तलवार के गहरे भी हों मिट जाते हैं
लफ़्ज़ तो दिल में उतर जाते हैं भालों की तरह
- साग़र पालनपुरी
अच्छा हुआ कि छुटी मुझसे फ़िक्रे-दुनिया
जितना ख़याल करते उतना मलाल होता
- दर्द
अभी से क्यूं छलक आए तुम्हारी आंख में आंसू
अभी छेड़ी कहां हैं दास्ताने-ज़िंदगी मैंने
- अमीर मीनाई
ज़ख़्मी न हुआ था दिल ऐसा, सीने में खटक दिन-रात थी
पहले भी हुए थे सदमें बहुत, रोये थे, मगर यह बात न थी
- सौदा
वक़्त दो गुज़रे हैं मुश्किल, मुझ पै सारी उम्र में,
आप के आने के पहले, आप के जाने के बाद
- अदम
तेरी नज़रों से गिर जाना, तेरे दिल से उतर जाना,
ये वो अफ़साना है, जिससे बहुत अच्छा है मर जाना
- अख़्तर अंसारी