पटखनी : समीर और अनीता की मुलाकात कहा हुई थी
पटखनी |
लेखक-डा. गीता यादवेंदु
डीएम साहब की मीटिंग में अनीता की समीर से मुलाकात हुई. उस का तबादला यहीं नोएडा में हो गया है. डीएसपी हो गया है वह. अनीता नार्कोटिक्स महकमे में अफसर है. वह डीएम, कमिश्नर वगैरह के साथ मीटिंग में अकसर शामिल होती है. आज समीर मिला, डीएसपी समीर. खूब जंच रहा था. पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग के दौरान वह उस से पहली बार मिली थी. समीर उस से सीनियर था और ट्रेनिंग पूरी कर के उसे पोस्टिंग पहले मिली, जबकि अनीता को बाद में. अनीता की पहली पोस्टिंग नोएडा में ही हुई. प्रशासनिक बैठकों के दौरान अकसर ही समीर के साथ उस की मुलाकातें होने लगीं. समीर शानदार शख्सीयत का मालिक था, अच्छे ओहदे पर था. पत्नी भी प्रशासनिक सेवाओं में हो, ऐसा वह चाहता था. अनीता को भी समीर पसंद ही था. बस, अपनी बात कहने में उसे जो हिचकिचाहट थी, वह खुद समीर ने उसे प्रपोज कर के पूरी कर दी थी. दोनों के परिवार वालों को भला क्या एतराज हो सकता था.
चट मंगनी पट ब्याह हो गया. ‘‘जैसा मैं चाहता था वैसा ही हुआ. मु झे तुम जैसी लड़की ही पत्नी के रूप में चाहिए थी,’’ समीर कह रहा था. ‘‘कैसे?’’ अनीता ने पूछा. ‘‘नई शादी, मनपसंद जीवनसाथी…’’ समीर का मन खुशियों की तरंगों में डूबा हुआ था. ‘‘अरे, तुम नार्कोटिक्स जैसे कमाऊ विभाग में हो और मैं प्रशासनिक अफसर. दोनों मिल कर खूब कमाएंगे,’’ समीर तपाक से यह बोला, तो अनीता के मन की खुशी बु झ सी गई. अनीता का महकमा ‘नार्कोटिक्स’ घूसखोर और पैसा कमाने की चाहत रखने वालों के लिए ‘सोने का अंडा देने वाली मुरगी’ के समान था. नौजवान पीढ़ी की नशे की लत के चलते चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन जैसी नशीली चीजों की तस्करी को बढ़ावा मिलता था और तस्करों को सरपरस्ती देने के एवज में नार्कोटिक्स महकमे के अफसरों की लाखों की कमाई. पर, अनीता का टारगेट कभी ऐसा नहीं रहा. उलटे, वह तो देश की नौजवान पीढ़ी को बरबाद कर रहे इस नशे के कारोबार पर रोक लगाना चाहती थी. पर समीर की पैसे की हवस से उसे निराशा सी महसूस हुई.
भीतर से लगा, जैसे जीवनसाथी चुनने में कोई गलती तो नहीं हो गई. ‘अपनीअपनी सोच है, समीर अपना काम करेगा, मैं अपना,’ यह सोच कर अनीता ने सिर झटक दिया. दोनों अपनेअपने काम में बिजी हो गए और जिंदगी चलने लगी. एक दिन समीर रात में देर तक घर नहीं आया. अनीता ने फोन किया, तो जवाब मिला, ‘कुछ अर्जेंट काम आ गया है, देर से घर आऊंगा.’ रात के 10, फिर 12 और फिर 2 बज गए. 2 बजे के बाद समीर घर आया नशे की हालत में लड़खड़ाते हुए. अनीता को धक्का लगा. एक डीएसपी रैंक का अफसर और उस का पति इस तरह नशे में लड़खड़ाते हुए घर आ रहा था. उसे बड़ी शर्म आई. अनीता के मुंह से निकल ही गया, ‘‘तुम इतनी शराब पीते हो, मु झे तो कभी पता नहीं चला.’’ ‘‘तो क्या, अब शराब भी तु झ से पूछ कर पीऊंगा? एक तो कुछ कमातीधमाती नहीं है, ऊपर से बातें और बनाती है.’’ समीर का यह रूप देख कर अनीता के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह तो उसे मारने पर उतारू हुआ जा रहा था.
नशे में लड़खड़ाता हुआ ही वह सो गया. नफरत और बेइज्जती से दुखी अनीता एक पल भी न सो सकी. पुलिस महकमे का एक सीनियर अफसर, उस का पति उस से भ्रष्टाचार कर पैसा कमाने को कहता है और मना करने पर शराब पी कर उस से गलत बरताव भी शुरू कर रहा है. अनीता को समीर की इस हिमाकत पर बड़ा गुस्सा आया. उस के भीतर का अफसर जाग उठा. मन किया, जगा कर 2 झापड़ दे इस आदमी के. उपपुलिस निरीक्षक जैसे जिम्मेदार पद पर रह कर वह अपने फर्ज से भाग रहा था और भ्रष्टाचार की राह पकड़ रहा था. अनीता दुखी हो कर रह गई. उसे कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि क्या करे. सुबह जब समीर सो कर उठा, तो उस का नशा उतरा हुआ था. रात का वाकिआ याद आया, तो सम झ गया कि अब अनीता को मनाना पड़ेगा. बेचारा, रोना सा मुंह बना कर धीरे से अनीता के पास पहुंचा और उस के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘मु झे माफ कर दो अनीता. कल रात साथियों के साथ पार्टी हो गई थी.
उन्हीं लोगों ने पिला दी. आगे से कभी ऐसा न होगा, तुम्हारी कसम.’’ अनीता कुछ न कह सकी, पर इस आदमी पर से उस का यकीन उठने लगा था. उस की आंखों में सचाई की झलक न हो कर धूर्तता और कांइयापन झलकता था. शांति बनाए रखने के लिए कुछ सोच कर अनीता चुप रह गई. उन की शादीशुदा जिंदगी जबरदस्ती की गाड़ी सी चल रही थी. समीर तनिक न बदला, बल्कि और बेशर्म होता गया. चला जाता तो 2-2 दिन तक घर न आता. पूछने पर डिपार्टमैंट के काम से दौरे पर जाना बता देता. कभी कह देता कि बदमाशों पर दबिश डालनी है, उन की ही खोजखबर इकट्ठी की जा रही है. कईकई रातों को घर न आना तो अब उस का अकसर का काम बन गया था. पूछने पर वह काट खाने को दौड़ता, कभीकभी हाथ भी उठा देता. अनीता की इज्जत और पद का कोई मोल नहीं है उसे. अनीता को सम झ नहीं आता कि इस आदमी को पहचानने में उस से इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई. रोनेधोने से कोई फायदा नहीं था. उसे पता करना था कि आखिर समीर किस के साथ रहता है और किस लालच में फंसा है. एक जिम्मेदार अफसर का ऐसा गैरजिम्मेदाराना आखिर उस के फर्ज के प्रति भी लापरवाही थी और इस की सजा भी किसी दिन उस को ही मिलनी थी. अनीता ने जी कड़ा कर कुछ ठान लिया था. आज समीर का मूड कुछ ठीक लग रहा था.
वह अपने दफ्तर जाने को तैयार हो रहा था. ‘‘आज हमारे डिपार्टमैंट को दवा विक्रेताओं पर रेड डालनी है. मैं बहुत बिजी रहूंगी. तुम कब तक घर आ जाओगे?’’ अनीता ने यों ही बात शुरू करने को पूछा. ‘‘मैं कभी आऊं, तुम्हें क्या? तुम अपना काम करो और मेरे काम में टांग मत अड़ाया करो. वैसे भी, तुम्हें कौन सा कुछ कमानाधमाना है,’’ उस ने मुंह बनाते हुए कहा. अनीता ने सोचा, फुजूल में ही बात की. वैसे भी, घर के मेन हिस्से की चाबी तो दोनों के पास थी ही, और नौकरचाकर भी तो थे घर में. समीर को मिला सरकारी बंगला काफी बड़ा था. खानसामा, माली, चपरासी तो हमेशा रहते ही थे और सरकारी बंगलों में चोरीचकारी का भी कोई डर नहीं था. हकीकत तो यह थी कि अनीता इस बहाने समीर से बात शुरू करना चाहती थी, पर उस अडि़यल आदमी ने तो उस के मुंह का स्वाद ही खराब कर दिया. आखिर वह भी एक पीसीएस अफसर थी और अपने स्वाभिमान को यों तारतार होते देखना उसे गवारा न था.
अब वह समीर को एक पत्नी की नजर से नहीं, बल्कि एक इंवैस्टिगेटिंग अफसर की नजर से देख रही थी. ‘‘नमस्कार मैनेजर साहब,’’ अनीता ने मुसकरा कर कहा. ‘‘नमस्कार अनीताजी, आज आप कैसे?’’ मैनेजर ने थोड़ी हैरानी जताई. ‘‘जी, उन्हें प्रशासनिक कामों के चलते फुरसत नहीं मिल पाती है, मैं भी बिजी रहती हूं. पर आज मेरे पास समय था, इसलिए आ गई. दरअसल, मु झे अपना लौकर खोलना था.’’ बैंक अकाउंट और लौकर जौइंट थे, तो अनीता का हक था अपना लौकर देखना. मैनेजर साहब ने रजिस्टर मंगा कर अनीता के दस्तखत और समय की एंट्री करा कर उसे लौकर रूम में भेज दिया. बैंक कर्मचारी बैंक की चाबी से अनीता की चाबी मिलवा कर लौकर ओपन कर अनीता को लौकर रूम में छोड़ कर चला गया. इस से पहले अनीता समीर के साथ बैंक तभी आई थी, जब लौकर खुलवाया था. थोड़ी सी अपनी ज्वैलरी उस ने लौकर में रख छोड़ी थी. उस के बाद वह नहीं आई थी.
आज किसी तरह से लौकर की चाबी समीर की अलमारी से ले कर वह यहां आई थी. उस का दिल धड़क रहा था. कांपते हाथों से उस ने लौकर का दरवाजा खोला. अनीता की आंखें खुली की खुली रह गईं. लौकर में 2 रिवौल्वर और रुपया भरा हुआ था. समीर ने ही जिद कर के बड़ा लौकर लिया था. अनीता ने अभी उसे वैसा का वैसा बंद कर दिया. नोट कितने थे, यह तुरंत गिनना मुमकिन न था. सो, उस ने इस समय चुप रहना ही ठीक सम झा. अभी उसे अपने और समीर के जौइंट अकाउंट की भी छानबीन करनी थी. अनीता ने खुद को रुपएपैसे के हिसाब से इतना अलग कर रखा था कि समीर जो भी घालमेल कर रहा था, उसे कुछ पता ही नहीं था. पढ़ीलिखी हो कर भी वह इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है, उसे अपने इस अनजानेपन पर बड़ा गुस्सा आया. समीर पर बहुत ज्यादा यकीन का ही नतीजा था कि आज उसे यह दिन देखना पड़ रहा था. उस के नाम से समीर अपना भ्रष्टाचार का धंधा चला रहा था और उसे कुछ मालूम ही न था. उस से ज्यादा होशियार, जागरूक और सयानी तो कम पढ़ीलिखी घरेलू औरतें होती हैं. खैर, अब आगे क्या करना है, अनीता सोचने लगी, फिर से बैंक जा कर अपने खाते की डिटेल्स लेनी होगी. अनीता समय पर घर पहुंच गई थी. समीर हमेशा की तरह देर रात घर आया.
अनीता ने अपनी तरफ से समीर को तनिक भी आभास न होने दिया कि वह क्या देखसम झ चुकी है. उसे बहुत सावधानी से फूंकफूंक कर कदम रखने थे, समीर जैसे शातिर आदमी की पूरी सचाई जो जाननी थी. सवेरे समीर उठा, तो उस का मूड तो ठीक था, पर अनीता से तो जैसे उसे कोई मतलब ही नहीं था. ‘‘कब तक आओगे लौट कर?’’ ‘‘प्रशासनिक अधिकारी हूं, हजारों काम होते हैं. कोई खाली तो घूमता नहीं रहता. जब काम निबट जाएगा, आ जाऊंगा,’’ हमेशा की तरह उलटे व कड़वे बोलता. वैसे, अनीता को भी अब उस से बोलने में कोई दिलचस्पी न थी. वह तो माहौल को सामान्य दिखाने के लिए औपचारिक सवाल कर रही थी, ताकि समीर को कोई शक न हो. समीर के निकलते ही अनीता भी तैयार हो कर निकल ली. बैंक होते हुए अपने दफ्तर जाने की सोची उस ने. आखिर उसे अपनी नौकरी भी तो देखनी थी.
खाली समीर की जांचपड़ताल में ही तो नहीं लगी रह सकती थी वह. जिन 2 बैंकों में उस के खाते थे, उन में एक तो सामान्य था, जिस में कि उस की तनख्वाह आती थी. उस खाते में सब सही था. एक और अकाउंट था, अनीता का जिसे वह बहुत कम इस्तेमाल करती थी. सालों पहले अपनी सेविंग्स जोड़ने को खुलवाया था, जो कि उसी बैंक में था, जिस में लौकर था. अनीता ने उस खाते को भी देखने का फैसला लिया. घर से पासबुक ले कर चली थी, जिस में सालभर से कोई ऐंट्री नहीं करवाई थी. बैंक पहुंच कर ऐंट्री मशीन में डाल कर जब लेनदेन का हिसाब देखा, तो उस के होश उड़ गए. खाते में करोड़ों रुपए का लेनदेन था. अनीता की सब से बड़ी खूबी यह थी कि वह जोश में नहीं आती थी. वह सोचसम झ कर, ठंडे दिमाग से ही फैसला लेती थी, वरना नार्कोटिक्स जैसा खतरनाक विभाग, जहां रोजाना नशीली दवाओं, नशीली चीजों की तस्करी होती है, न संभाल पाती. सीधे बैंक मैनेजर की मिलीभगत के बिना उस का पति उस के खाते से ऐसा फर्जीवाड़ा न चला रहा होता.
ऐसे में मैनेजेर से मिल कर समीर की पोल खोलने का इरादा बेकार था, क्योंकि मैनेजर निश्चित ही समीर की ही मदद करता. बैंक से औफिस जा कर, फिर शाम को अनीता जल्दी ही घर आ गई. घर की तलाशी लेते समय अलमारियों को खंगाल डाला. एक दराज में समीर की एक डायरी मिली, जिस में कुछ लोगों के फोन नंबर थे. अनीता ने जल्दी से वे नंबर अपने पास नोट कर लिए. रात को समीर के आने के बाद तो कुछ कर नहीं सकती थी, इसलिए समय रहते होशियारी से सब काम करना था. समीर की डायरी से मिले नंबरों को मिस्ड कौल के बहाने मिला कर देखा, तो दोनों नंबर औरतों के थे. ‘तो क्या समीर के दूसरी औरतों से भी ताल्लुकात हैं?’ अनीता सोचती रह गई. पर अब उसे कुछ भी अजूबा नहीं लग रहा था. समीर जैसा आदमी किसी भी हद तक गिर सकता था. इस बात को अब वह अच्छी तरह सम झ चुकी थी. नारकोटिक्स महकमे की अफसर अपनी टीम के साथ जांच करने आई है, यह जान कर समीर की महिला दोस्त कुछ घबराई. पर तुरंत ही वह सचेत हो गई.
अनीता भी पीछे हटने वाली नहीं थी. पूछताछ के दौरान उस ने लीला नामक उस औरत के मुंह से सचाई उगलवा ही ली. समीर उसे धोखा दे रहा था. घूस और रिश्वत की कमाई उस के खातों में डलवा कर वह खुद बचा रहना चाहता था. मौका पड़ने पर वह उसे फंसा भी देता, इस में भी अनीता को बिलकुल भी शक न था. लीला को मुंह बंद रखने की सीख दे कर अनीता ने छोड़ दिया. लीला भी उस के पद और रसूख को सम झ गई और चुप रहने में ही उस ने सम झदारी सम झी. समीर के साथ जो होगा, वह खुद देखेगा. उसे तो खुद को बचाना और महफूज रखने में ही सम झदारी लगी. अब आगे… अनीता के मन की उधेड़बुन का कोई अंत न था… इस धूर्त और शातिर आदमी को कैसे पटकनी दे और खुद भी बची रहे… अगले दिन से समीर और अनीता की जिंदगी में कुछकुछ सामान्य सा लगने लगा था. समीर रात को पी कर आता, तो भी अनीता कोई शिकायत न करती.
कई बार तो वह समीर का घर पर ड्रिंक बनाने में साथ भी देने लगी थी. अब समीर को उस से कम शिकायत रहने लगी थी. अनीता ने उस की ऐयाशियों से आंखें मूंद ली थीं. उसे कोई शिकायत न थी कि समीर घर के बाहर क्या करता है, किस से मिलता है. उसे क्या करना, बस, घर में शांति बनी रहे. ऐसे ही 6 महीने बीत गए. समीर अकसर शराब पी कर आता. महकमे में उस की इमेज खराब हो गई थी. अकसर वह औफिस भी पी कर नशे में पहुंच जाता. एक भ्रष्ट और ऐयाश अफसर के रूप में अपने महकमे में उस की बदनामी खूब फैल गई थी. समीर का अपने ऊपर काबू न रहा था. औफिस जाना छोड़ दिया था उस ने और डिप्रैशन का शिकार हो गया था. दिनरात घर पर पड़ा रहता. एक दिन अखबार में खबर निकली, ‘डीएसपी समीर कुमार अपने घर में मरे पाए गए. ज्यादा नशा और डिप्रैशन मौत की वजह.’