बदल गया जमाना Badate jamane par kahani
आदित्य और वसुंधरा की शादी एक महीना पहले हुई थी. वसुंधरा ने सभी के पैर छुए और गाड़ी में आ कर बैठ गई. रास्तेभर आदित्य और उस के पापा ने अम्मा को खूब छेड़ा. "पापा, कबाब इतने शानदार बने थे कि मजा आ गया.” बदल गया जमाना यारों, बदल गया जमाना रागनी, सैया कितना बदल गया जमाना,
लेखिका -डा. रंजना जायसवाल
आदित्य और वसुंधरा की शादी एक महीना पहले हुई थी. घर के सारे मेहमान चले गए थे. अम्मा दिनभर फैले हुए घर को समेटने में लगी रहतीं. आदित्य ने कई बार कहा, “अम्मा, वसुंधरा को खाना बनाने दिया करो, ज्यादा नहीं तो कम से कम वह तुम्हारी मदद तो कर ही देगी.”
पर, अम्मा तो अम्मा थीं. “अभी सवा महीना भी नहीं हुआ है शादी को हुए, दुनिया क्या कहेगी. बहू के हाथ की अभी मेहंदी भी नहीं छुटी और उसे चूल्हे में झोंक दिया. तुम लोग तो नए जमाने के बच्चे हो, कुछ भी कहतेकरते हो पर दुनियादारी तो हमें देखनीसमझनी है.”
वसुंधरा मांबेटे के बीच दर्शक की तरह ताकती रहती थी. “अम्मा, अम्मा.” “क्या है आदि?” अम्मा सब्जी छौंकने में व्यस्त थीं. “अम्मा, बाहर लल्लू चाचा आए हैं.” “अरे, लल्लू भाईसाहब आए हैं.” लल्लू चाचा मेरे बाबू जी के बचपन के दोस्त थे. सुखदुख, अमीरीगरीबी के साथी. पहले तो बगल वाले घर में रहते थे. लल्लू चाचा…पड़ोसी कम, रिश्तेदार ज्यादा थे. आज के जमाने में तो रिश्तेदार भी इतना नहीं सोचते जितना कि ये दोनों परिवार एकदूसरे के लिए सोचा करते थे. पर समय ने करवट बदली और लल्लू भाईसाहब को यह महल्ला छोड़ कर दूसरे महल्ले में जाना पड़ा.
“अम्मा, चलोगी भी कि बस यहीं खड़ेख़ड़े मुसकराती रहोगी,” आदित्य ने अम्मा का कंधा हिलाया. “आदित्य, बेटा जरा दौड़ कर नुक्कड़ से गुलाबजामुन ले आ. तुम्हारे चाचा को हरिया की दुकान के गुलाबजामुन बहुत पसंद हैं.” आदित्य अम्मा की बात सुन कर मुसकराने लगा.
“सुन बहू वसुंधरा, अंदर जा कर अच्छी सी साड़ी पहन कर बाहर आ जा. ये चाचा तुम से मिले बिना नहीं जाएंगे. जरा सिर पर पल्ला कायदे से रखना, थोड़ा पुराने विचार के हैं. जनेऊ धारण करते हैं, लहसुनप्याज नहीं खाते. जल्दी किसी के यहां खातेपीते नहीं. वह तो हमारा घर है, जानते हैं हम कितना साफसफ़ाई से काम करते हैं.”अम्मा के चेहरे पर गर्व का भाव उभर आया. ‘कितना नाराज होंगे भाईसाहब, सालभर हो गया, ऐसा बापबेटे के बीच फंसी रहती हूं कि उन के घर नहीं जा पाती,’ अम्मा बड़बड़ाए जा रही थीं.
“प्रणाम भाईसाहब, बहुत दिनों बाद आना हुआ?”“प्रणाम, हां, बस ऐसे ही.” लल्लूजी मतलब… हम सब के लल्लू चाचा. दोहरे बदन के, पान से रंगे हुए दांत, झक दूध की तरह सफेद कुरताधोती, माथे पर चंदन का टीका, गरदन के पास से जनेऊ झांक रहा था. आदित्य बचपन से उन्हें ऐसे ही देख रहा था. मजाल था कि कुरते पर एक सिलवट मिल जाए.
“और लड्डू, कैसे हो?” चाचा ने कहा तो आदित्य पत्नी वसुंधरा के सामने अपना यह नाम सुन कर झेंप गया. अम्मा ने वसुंधरा को ऊपर से नीचे तक देखा. ऐसे देखा जैसे कोई मैटल डिटैक्टर से जांच कर रहा हो. फिर वसुंधरा को आंखों से इशारा किया. वसुंधरा चाचाजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, चाचाजी रामराम कह कर उठ खड़े हुए.
“क्या हुआ भाईसाहब, कोई गलती हो गई क्या बहू से?” “अरे नहीं भाभी, काहे की गलती, जइसे निशा वईसे वसुंधरा. ई सब तो लक्छमी की अवतार हैं. इन से क्या पैर छुआना.” अम्मा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया, “और घर में सब ठीकठाक है न?” अम्मा के ठीकठाक के पीछे एक प्रश्नचिन्ह की महक आ रही थी. लल्लू चाचा का बेटा वैभव ने चाचाजी और चाचीजी के खिलाफ जा कर कोर्टमैरिज की थी. लड़की दूसरी बिरादरी की थी. वैभव के साथ ही नौकरी करती थी. प्यार हुआ और झटपट शादी कर ली. लल्लू भाईसाहब और भाभीजी ने तो गुस्से के मारे कोई पार्टी भी नहीं करी थी.
“हां भाभी, घर में सब ठीकठाक है.” “भाईसाहब, चाय तो पिएंगे न?” पूजापाठ किए बिना चाचाजी कुछ खातेपीते नहीं थे. “हां, सिर्फ चाय पिलाइए, नाश्ता कर के आए हैं.” अम्मा आश्चर्य से चाचाजी को देख रही थीं. इतनी सुबहसुबह शकुंतला… उस के तो हमेशा घुटनों में ही दर्द होता रहता है, हो सकता है बहू ने जिम्मेदारियां संभाल ली हों. अरे भैया, आए हैं तो खा कर जाइए. आप की पसंद के गुलाबजामुन मंगाए हैं.”
गुलाबजामुन के नाम से चाचाजी का चेहरा खिल उठा, “गुलाबजामुन, अरे वही हरिया के हैं क्या?” “हांहां, भाईसाहब, आप की पसंद के मंगवाए हैं.” “तब तो हम जरूर खाएंगे. भाभी वह ऐसा है न, निशा बिटिया कहती है, खाली पेट गैस बनने लगती है. दवा भी खानी होती है, इसलिए अब पहले नाश्तापानी, फिर कोई काम दूजा.”
आदित्य और वसुंधरा की शादी एक महीना पहले हुई थी. घर के सारे मेहमान चले गए थे. अम्मा दिनभर फैले हुए घर को समेटने में लगी रहतीं. आदित्य ने कई बार कहा, “अम्मा, वसुंधरा को खाना बनाने दिया करो, ज्यादा नहीं तो कम से कम वह तुम्हारी मदद तो कर ही देगी.”
पर, अम्मा तो अम्मा थीं. “अभी सवा महीना भी नहीं हुआ है शादी को हुए, दुनिया क्या कहेगी. बहू के हाथ की अभी मेहंदी भी नहीं छुटी और उसे चूल्हे में झोंक दिया. तुम लोग तो नए जमाने के बच्चे हो, कुछ भी कहतेकरते हो पर दुनियादारी तो हमें देखनीसमझनी है.”
वसुंधरा मांबेटे के बीच दर्शक की तरह ताकती रहती थी. “अम्मा, अम्मा.” “क्या है आदि?” अम्मा सब्जी छौंकने में व्यस्त थीं. “अम्मा, बाहर लल्लू चाचा आए हैं.” “अरे, लल्लू भाईसाहब आए हैं.” लल्लू चाचा मेरे बाबू जी के बचपन के दोस्त थे. सुखदुख, अमीरीगरीबी के साथी. पहले तो बगल वाले घर में रहते थे. लल्लू चाचा…पड़ोसी कम, रिश्तेदार ज्यादा थे. आज के जमाने में तो रिश्तेदार भी इतना नहीं सोचते जितना कि ये दोनों परिवार एकदूसरे के लिए सोचा करते थे. पर समय ने करवट बदली और लल्लू भाईसाहब को यह महल्ला छोड़ कर दूसरे महल्ले में जाना पड़ा.
“अम्मा, चलोगी भी कि बस यहीं खड़ेख़ड़े मुसकराती रहोगी,” आदित्य ने अम्मा का कंधा हिलाया. “आदित्य, बेटा जरा दौड़ कर नुक्कड़ से गुलाबजामुन ले आ. तुम्हारे चाचा को हरिया की दुकान के गुलाबजामुन बहुत पसंद हैं.” आदित्य अम्मा की बात सुन कर मुसकराने लगा.
“सुन बहू वसुंधरा, अंदर जा कर अच्छी सी साड़ी पहन कर बाहर आ जा. ये चाचा तुम से मिले बिना नहीं जाएंगे. जरा सिर पर पल्ला कायदे से रखना, थोड़ा पुराने विचार के हैं. जनेऊ धारण करते हैं, लहसुनप्याज नहीं खाते. जल्दी किसी के यहां खातेपीते नहीं. वह तो हमारा घर है, जानते हैं हम कितना साफसफ़ाई से काम करते हैं.”अम्मा के चेहरे पर गर्व का भाव उभर आया. ‘कितना नाराज होंगे भाईसाहब, सालभर हो गया, ऐसा बापबेटे के बीच फंसी रहती हूं कि उन के घर नहीं जा पाती,’ अम्मा बड़बड़ाए जा रही थीं.
“प्रणाम भाईसाहब, बहुत दिनों बाद आना हुआ?”“प्रणाम, हां, बस ऐसे ही.” लल्लूजी मतलब… हम सब के लल्लू चाचा. दोहरे बदन के, पान से रंगे हुए दांत, झक दूध की तरह सफेद कुरताधोती, माथे पर चंदन का टीका, गरदन के पास से जनेऊ झांक रहा था. आदित्य बचपन से उन्हें ऐसे ही देख रहा था. मजाल था कि कुरते पर एक सिलवट मिल जाए.
“और लड्डू, कैसे हो?” चाचा ने कहा तो आदित्य पत्नी वसुंधरा के सामने अपना यह नाम सुन कर झेंप गया. अम्मा ने वसुंधरा को ऊपर से नीचे तक देखा. ऐसे देखा जैसे कोई मैटल डिटैक्टर से जांच कर रहा हो. फिर वसुंधरा को आंखों से इशारा किया. वसुंधरा चाचाजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, चाचाजी रामराम कह कर उठ खड़े हुए.
“क्या हुआ भाईसाहब, कोई गलती हो गई क्या बहू से?” “अरे नहीं भाभी, काहे की गलती, जइसे निशा वईसे वसुंधरा. ई सब तो लक्छमी की अवतार हैं. इन से क्या पैर छुआना.” अम्मा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया, “और घर में सब ठीकठाक है न?” अम्मा के ठीकठाक के पीछे एक प्रश्नचिन्ह की महक आ रही थी. लल्लू चाचा का बेटा वैभव ने चाचाजी और चाचीजी के खिलाफ जा कर कोर्टमैरिज की थी. लड़की दूसरी बिरादरी की थी. वैभव के साथ ही नौकरी करती थी. प्यार हुआ और झटपट शादी कर ली. लल्लू भाईसाहब और भाभीजी ने तो गुस्से के मारे कोई पार्टी भी नहीं करी थी.
“हां भाभी, घर में सब ठीकठाक है.” “भाईसाहब, चाय तो पिएंगे न?” पूजापाठ किए बिना चाचाजी कुछ खातेपीते नहीं थे. “हां, सिर्फ चाय पिलाइए, नाश्ता कर के आए हैं.” अम्मा आश्चर्य से चाचाजी को देख रही थीं. इतनी सुबहसुबह शकुंतला… उस के तो हमेशा घुटनों में ही दर्द होता रहता है, हो सकता है बहू ने जिम्मेदारियां संभाल ली हों. अरे भैया, आए हैं तो खा कर जाइए. आप की पसंद के गुलाबजामुन मंगाए हैं.”
गुलाबजामुन के नाम से चाचाजी का चेहरा खिल उठा, “गुलाबजामुन, अरे वही हरिया के हैं क्या?” “हांहां, भाईसाहब, आप की पसंद के मंगवाए हैं.” “तब तो हम जरूर खाएंगे. भाभी वह ऐसा है न, निशा बिटिया कहती है, खाली पेट गैस बनने लगती है. दवा भी खानी होती है, इसलिए अब पहले नाश्तापानी, फिर कोई काम दूजा.”
अम्मा का चेहरा देखने लायक था. आदित्य मन ही मन मुसकरा रहा था. अम्मा दिन में चारचार बार चाचाजी और उन के परिवार के बारे में बात करती थीं. ‘देखो और सीखो, उस महल्ले में क्या गए, लोगों ने पंडितजी के सारे रीतिरिवाज अपना लिए. तुम लोग हो, पूजा से मतलब न दानपुण्य से. बिना नहाएधोए गायभैंस की तरह कचरकचर जब देखो तब मुंह में कुछ न कुछ भर लेते हो. कितनी बार कहा, बिना नहाएधोए चौके में मत घुसा करो, लक्ष्मी की हानि होती है. पर कौन समझाए इन बापबेटे को,’ अम्मा वसुंधरा से बुदबुदाए जा रही थीं, ‘जानती हो वसुंधरा, शकुंतला ने अपनी बहू के लिए कितने सपने देखे थे. भैया से चुराचुरा कर बड़ेबड़े गहने बनवाए थे कि बहू को शादी में चढ़ाएंगे. पर वह नासपीटा वैभव, अपनी मरजी की शादी कर बैठा. शकुंतला के मन का शौक मन ही में रह गया.’
“भाभी, आप लोगों को परसों का न्योता देने आए हैं. बहू और लड्डू को साथ ले कर आइएगा. कम से कम बहू भी हमारा घर देख ले.” “हांहां भैया, जरूर. हम भी कितने दिनों से सोच रहे थे आप के घर आने के लिए. पर काम से फुरसत ही नहीं मिल रही थी. हम जरूर आएंगे.” लल्लू चाचा हमें निमंत्रित कर के चले गए और अम्मा वसुंधरा के सामने पूरा पिटारा खोल कर बैठ गईं. “ध्यान रखना बेटा, एक अच्छी सी साड़ी पहन कर चलना और अपने सारे भारी वाले गहने पहन कर चलना. शकुंतला बहुत ध्यान देती है इन सब चीजों पर. जानती नहीं हो तुम उस का स्वभाव, सारे महल्ले में रिपोर्ट देगी कि बहू के मायके से कुछ मिला ही नहीं. आंखें नीची कर के बैठना, जितना कम हो सके उतना कम बोलना. ये सब औरतें…क्या कहते हैं अंग्रेजी में कैमरे की तरह काम करती हैं, सबकुछ रिकौर्ड कर लेती हैं अपने दिमाग में. इसलिए थोड़ा कोशिश करना कि कोई गलती न हो तुम्हारी तरफ से. उन के चौके में लहसुनप्याज नहीं बनता है, तो हो सकता है, तुम्हें खाने में स्वाद न लगे पर चुपचाप सब खा लेना. एक दिन की बात है बेटा, हमारी इज्जत रख लेना.”
वसुंधरा चुपचाप उन की हां में हां मिलाए जा रही थी. आखिर वह दिन भी आ गया. वसुंधरा अपनी सासुमां के कहे अनुसार भारी सी लाल बनारसी साड़ी, गहनों से लदीफंदी चाचाजी के घर पहुंची थी. सब की आवाज को सुन कर चाचीजी चौके से बाहर आ गईं. वसुंधरा ने उन के पैर छुए. चाचीजी ने आशीर्वाद का पिटारा खोल दिया, “दूधो नहाओ, पूतो फलो. घरभर का नाम रोशन करो. बैठोबैठो बेटा, कितने दिनों बाद आई है. तुम्हारी सास को फुरसत ही नहीं.”
“अरे ऐसा क्यों कहती हो शकुंतला, तुम तो जानती हो अकेले प्राणी हैं हम. क्याक्या देखें और कहाकहां देखें.” “जीजी, सही कह रही हैं आप. महल्ला क्या छूटा, आनाजाना भी छूट गया. पर प्रेम वैसा ही है आज भी हमारे बीच, बिटिया.” “अरे बात ही करती रहोगी या बहू को कुछ खिलाओ भी,” लल्लू चाचा ने जोर से आवाज लगाई.’अरे हांहां, खिलाती हूं. काहे गला फाड़ रहे हो वैभव के पापा.’ तभी एक दुबलीपतली सी स्मार्ट और बिंदास सी दिखने वाली लड़की, जिस ने जींस के ऊपर कुरती डाल रखी थी और गले में एक पतली से सोने की चेन, हाथ में ट्रे ले कर प्रकट हुई. “नमस्ते चाचाजी, नमस्ते चाचीजी.”
“अरे नमस्ते से कैसे काम चलेगा निशा, तुम्हारे घर पहली बार आईं चाचीजी के पैर तो छुओ,” चाचीजी ने कहा. “ओएमजी, सौरीसौरी, मैं भूल गई थी,” निशा खिलखिला कर हंस पड़ी. सब के पैर छूने के बाद निशा वसुंधरा की ओर मुड़ी, “वैलकम भाभी, मैं निशा, आप की देवरानी.” निशा ने अपनी बड़ीबड़ी, गोलगोल आंखों को घुमा कर कहा. वसुंधरा उसे आश्चर्य से देखती रह गई. “आप परेशान मत होइए. वैसे तो आप मुझ से पद में बड़ी हैं यानी जिठानी हैं पर शादी के मामले में मैं आप से सीनियर हूं.” उस के चेहरे पर एक अजीब सी शरारत थी, “एक्चुअली, हमारी लवमैरिज है, थोड़ा मेलो ड्रामा भी हुआ था,” उस ने धीरे से कानों में फुसफुसाया.
शकुंतला मौसी निशा के आने से थोड़ी असहज हो गई थीं. “क्या शकुंतला, अपनी बहू के लिए तुम ने इतने सारे गहने गढ़वाए थे. यह क्या एकदम मरी सी चेन पहने हुए है. निशा बेटा, तुम्हारी सास ने तुम्हें कुछ पहनने को नहीं दिया क्या?” शकुंतला मौसी का चेहरा उतर गया था. पर निशा ने बड़ी बेफिक्री और चपलता से जवाब दिया, “चाचीजी, आज के जमाने में गहने पहनता ही कौन है. हर समय यही डर लगा रहता है कि कहीं कोई चोर छीन न ले. वैसे भी, साड़ी तो मेरे बस की नहीं. औऱ जींस और सलवार सूट पर भारी गहने अच्छे नहीं लगते. मैं तो बस ऐसे ही फंकी टाइप के गहने पहनती हूं. चाचीजी, ये लीजिए गरमागरम प्याज की पकौड़ी, लहसुनधनिया की चटनी के साथ खा कर देखिए, मैं ने बनाई हैं, मजा आ जाएगा.”
आज तो एक के बाद एक विस्फोट हो रहे थे. अम्मा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उन के साथ क्या हो रहा है. या तो जमाना आगे बढ़ गया है या फिर वही पीछे रह गई हैं. तभी शंकुतला चाचीजी ने अम्मा के कान में धीरे से फुसफुसाया, ‘जीजी, बहू के पैर तो देखो.’ “क्या हुआ शकुंतला जीजी?”
“आप की बहू की बीच की उंगली बड़ी है. अम्मा कहती थीं, जिस लड़की के पैर की उंगलियां बड़ी होती हैं वह अपने पति पर राज करती है राज. जीजी, पहले दिन से ही लगाम कस कर रखना वरना तुम्हारा बेटवा फ़ुर्र हो जाएगा. फिर न कहना, हम सचेत नहीं किए.” वसुंधरा चुपचाप उन दोनों की बातों को सुन रही थी. फिलहाल तो उसे उन के बेटे की कमान निशा के हाथों में ही दिख रही थी.
वहीं, अम्मा क्यों पीछे रहतीं. उन्हें अपनी बहू के सामने यह बताना था कि वह कितना भी अपने रूप का जादू अपने पति के ऊपर चला दे पर उन का बेटा तो सिर्फ उन का ही है. “अरे शकुंतला, दुनिया का मैं नहीं जानती, पर मेरा बेटा तो गऊ है, गऊ. मेरी मरजी के बिना तो वह घर के बाहर कदम भी नहीं रखता. पान, बीड़ी सिगरेट तो बहुत दूर की बात है. जमाने की हवा तो उसे बिलकुल भी नहीं लगी.”
वसुंधरा चुपचाप उन दोनों की बातों को सुन कर मुसकरा रही थी. उस की मम्मीजी अपने लल्ला का गुणगान करने से नहीं थक रही थीं और उन का लल्ला तो शादी की पहली रात ही उस के सामने यह स्वीकार कर चुका था कि वह कभीकभी दोस्तों के साथ शराब पी लेता है पर आदत नहीं है. पानगुटके का भी कोई विशेष शौक नहीं है पर कसम भी नहीं है. वसुंधरा सास के इस भ्रम को तोड़ना नहीं चाहती थी.
तभी एक और बम फूटा. निशा की नजर अचानक अपनी सास की तरफ गई और वह झुंझला उठी, “क्या मम्मीजी, कितनी बार कहा है आप से कि मैचिंग कपड़े पहना कीजिए. देखिए न, आप फिर से वही लालपीली चूड़ियां पहन कर खड़ी हो गई हैं.”
अभी तक शकुंतला मौसीजी वसुंधरा की सासुमां को दिव्यज्ञान दे रही थीं, अब उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. “अरे बिटिया, अब हमारी उम्र थोड़ी है यह सब मैचिंगवैचिंग पहनने की.”
“क्या मम्मी, आप भी न किस जमाने की बात कर रही हैं और हां, हम जो आप के लिए रात में पहनने के लिए गाउन लाए थे, एक बार भी पहना कि नहीं… कि वैसे ही अलमारी में पड़ा हुआ है,” निशा नौनस्टौप बोले जा रही थी, “वसुंधरा भाभी, आप ही बताइए, आज के जमाने में कैसे लोग 5 मीटर की साड़ी लपेट कर सोते हैं, मुझे तो टीशर्ट और कैपरी के बिना नींद ही नहीं आती.”
अम्मा का चेहरा देखने लायक हो रहा था. आदित्य की हंसी रुक न रही थी. दिनभर लल्लूजी घर के खूबियों का आलाप करने वाली अम्मा सोचसोच परेशान हो रही थीं कि वसुंधरा तो कुछ भी नहीं कहेगी पर घर पहुंच कर बापबेटे उस का जीना हराम कर देंगे. तभी शकुंतला ने कहा, “जीजीजी, चलिए खाना लग गया है. खाना खा लीजिए, ठंडा हो जाएगा.” एक बड़ी सी मेज पर बहुत सारे स्वादिष्ठ व्यंजन लगे हुए थे. खाने की खुशबू ने सब की भूख को और भी बढ़ा दिया.
“निशा बेटा, क्याक्या बनाया है हमारी बहू के लिए,” लल्लू चाचा ने बड़ी जिज्ञासा से पूछा.
“पापाजी, गोभी मुसल्लम, सोयाबीन के कबाब और मुगलई परांठा. मैं ने तो मम्मीजी से कहा था कि चिकन टिक्का भी बना दूं पर मम्मीजी तैयार नहीं हुईं.”
अम्मा का मुंह पर एक के बाद एक उतारचढ़ाव आ रहे थे. वे समझ नहीं पा रही थीं कि उन के साथ यह क्या हो रहा है. आखिर उन्होंने धीरे से पूछ ही लिया, “शकुंतला, अब तुम्हारी तबीयत कैसी रहती है?”
“जीजीजी, डाक्टर ने बताया हैं कि विटामिन बी12 बहुत कम हो गया है, अच्छा खाना खाने को बोले हैं.” तभी निशा ने एक और बम फोड़ा. “आंटीजी, डाक्टर ने कहा है मीटमुरगा ज्यादा से ज्यादा खाइए. पर मम्मीजी तैयार नहीं होतीं. मैं चिकन सूप बहुत शानदार बनाती हूं. एक बार खा लेंगी तो उंगलियां चाटती रह जाएंगी. पर मम्मीजी तैयार ही नहीं होतीं.”
अब अम्मा के लिए वहां बैठना और भी मुश्किल होता जा रहा था. उन्होंने जल्दीजल्दी दोचार निवाले गले के नीचे उतारे और आदित्य की तरफ इशारा किया. “कल औफिस भी है न तुम्हारा? जल्दी करो पहुंचतेपहुंचते लेट हो जाएंगे. खाना वाकई बहुत स्वादिष्ठ था.”
वसुंधरा ने सभी के पैर छुए और गाड़ी में आ कर बैठ गई. रास्तेभर आदित्य और उस के पापा ने अम्मा को खूब छेड़ा. “पापा, कबाब इतने शानदार बने थे कि मजा आ गया.” तब आदित्य के पापा ने कनखियों से आदित्य को देखते हुए कहा, “गोभी मुसल्लम अगर बताई न जाए तो एकदम नौनवेज की तरह लग रही थी.”
“अम्मा, अगली बार निशा के हाथ का चिकन सूप पीने जरूर चलेंगे.” वसुंधरा दोनों बापबेटे की छेड़खानी को अच्छी तरह से समझ रही थी और अम्मा खिसियाई हुई चुपचाप खिड़की के बाहर देख रही थीं, सोच रही थीं कि वाकई में जमाना बहुत बदल गया है.
जमाना बदल गया न्यू सॉन्ग, नई दुनिया बदल गया जमाना, जमाना बदल गया 2020 , बदल गया है जमाना उस्मान मीर, badal gaya jamana