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Selected Shayari Collection Of Kaleem Aajiz कलीम आजिज़ के चुनिंदा न मुद्दआ' Shayari

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मेरी शाइ'री में तिरे सिवा कोई माजरा है न मुद्दआ'
जो तिरी नज़र का फ़साना था वो मिरी ग़ज़ल ने सुना दिया

तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं 


दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो 


वही होगा जो हुआ है जो हुआ करता है
मैं ने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं 

हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो 


दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है 

दिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए
इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओ 


अब लुत्फ़ इसी में है मज़ा है तो इसी में
आ ऐ मिरे महबूब सताने के लिए आ 

दिल दर्द की भट्टी में कई बार जले है
तब एक ग़ज़ल हुस्न के साँचे में ढले है 





हम को तो ख़ैर पहुँचना था जहाँ तक पहुँचे
जो हमें रोक रहे थे वो कहाँ तक पहुँचे 




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