कुरुक्षेत्र आज तक सहती ही तो आई थी वह । काश , पहले ही दिन कसकर डांट दिया होता या शिकायत कर दी होती तो उनकी इतनी हिम्मत न पड़ती ।
Hindi kahani kurukshetra |
कुरुक्षेत्र
कमरे में काला स्याह अंधेरा था , बाहर बरामदे में जलती बत्ती से रोशनी छनकर आ रही थी । पड़ोस में किसी के गेट के खुलने की आवाज से आकांक्षा की नींद खुल गई । " कौन है ? " दीवार पर पड़ती परछाई लंबी और लंबी होती जा रही थी । आकांक्षा पसीने से तर - बतर थी , उसने घबराकर बगल में पड़े लैंप का स्विच दबा दिया । कमरा रोशनी से नहा गया , परछाईं रोशनी के साथ ही कहीं गुम हो गई ।
" म्याऊं- म्याऊं ! " A आकांक्षा की सांस में सांस आई । उसने पास पड़े दुपट्टे को देखा । उस दिन का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर गया । कॉलेज से लौटते वक्त उन मनचलों ने उसका फिर से रास्ता रोक लिया था । यह पहली बार तो नहीं था , कभी सीटी मारना , कभी अश्लील जुमले तो कभी वह गंदी वाली चिट्ठियां । " इनका तो काम ही यही है , तू चिंता मत कर , अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे । आखिरी साल है तेरा , तेरी दादी को पता चल गया न , तो घर बिठा देगी । ” यही तो कहा था उस दिन मां ने । आज तक सहती ही तो आई थी वह । काश ! पहले ही दिन कसकर डांट दिया होता या शिकायत कर दी होती तो उनकी इतनी हिम्मत न पड़ती , पर उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि आज तो उन लड़कों ने उसका दुपट्टा तक खींच लिया ।
कितना रोई थी वह । " नहीं ! बस अब और नहीं । उनकी हिम्मत आज इतनी बढ़ गई , उन्हें आज न रोका तो वे कल उसके साथ कुछ भी कर सकते हैं । " उसके अंतर्मन ने झकझोर दिया था उसे और वह चल पड़ी थी पुलिस स्टेशन उन मनचलों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने । वह दिन था और आज का दिन , कोई पापा को फोन से धमकी देता तो कोई कागज की पर्ची घर पर फेंककर धमकाने का प्रयास करता , “ शिकायत वापस ले लो , वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा । " जिंदगी भर निडरता का पाठ पढ़ाने वाली मां भी आज डर गई थी । “ तू मेरी बेटी नहीं , बेटा है " हर समय कहने वाले पापा सिर पर हाथ धरे हैरान परेशान से बैठे रहते । . आज शाम की ही तो बात है ।
मन बहुत बेचैन था , कहीं सचमुच उसने गलती तो नहीं कर दी । दादी हमेशा कहती थीं कि जब सारे रास्ते बंद हो जाएं , तब गीता पढ़ लिया करो । जीवन का सार है यह । आकांक्षा हाथ में गीता लिए पढ़ने का प्रयास कर ही रही थी कि दादी ने कमरे में प्रवेश किया । " हम भी अपने जमाने में जवान और खूबसूरत थे । क्या हमसे कभी किसी ने कुछ नहीं कहा ? तुम्हारी तरह हम भी चल देते पुलिस के पास तो हो जाता । अरे लड़की का जन्म लिया तो थोड़ा बर्दाश्त करने सीखो । अभी तो जीवन की शुरुआत है , आगे चलकर न जाने क्या - क्या सहना पड़ेगा ।
गीता लेकर बैठी हो , जरा सोचो , अगर द्रौपदी ने जिद न की होती , उसने कर्ण का उपहास न उड़ाया होता , दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा न कहा होता , तो वह इतनी लाशों की गुनाहगार न होती । खून से लथपथ रक्तरंजित कुरुक्षेत्र को देखकर क्या उसे तनिक भी पश्चाताप न हुआ । उसकी एक जिद ने न जाने कितनी मांगों के सिंदूर उजाड़ दिए । मांओं से उनके लाल को छीन लिया । क्या मिला ऐसी जीत से ? लाशों के ढेर पर खड़े होकर द्रौपदी ने कौन - सी जीत का जश्न मना लिया ? आकांक्षा चुपचाप आंख बंद किए बैठी रही । जीवन का कुरुक्षेत्र उसे निर्विकार भाव से देख रहा था और वह सोचती रही , “ द्रौपदी कल भी अकेली थी , द्रौपदी आज भी अकेली ही है । "