वैसे तो मुनीमजी हर दिन शाम को अपने घर लौटते समय सेठजी को दिनभर का सारा हिसाब सम?ा, रुपए उन्हें दे कर और साथ में तिजोरी की चाबी उन की गद्दी के पास रख कर आते थे पर आज वे ऐसा कर नहीं पाए थे.
उल्टा पासा |
उल्टा पासा लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव कंजूस सेठ अपने कर्मचारियों को हमेशा कड़की का हवाला दे कर कम तनख्वाह देता पर लौकडाउन के चलते मुनीम की पत्नी सुमन ने ऐसा पासा फेंका कि सेठजी का सारा कांइयांपन रखा रह गया.
एक तो जब मुनीमजी घर लौट रहे थे, तब सेठजी दुकान पर थे नहीं और दूसरे, आज वे भी वसूली के लिए गए हुए थे. वसूली करतेकरते उन्हें शाम हो गई थी. इस जल्दबाजी में वे न तो रुपए तिजोरी में रख पाए और न ही तिजोरी की चाबी सेठजी को दे पाए. रुपए काफी ज्यादा थे. इतने रुपए वे दुकान पर देखते तो रोज ही थे पर अपने घर में वे पहली बार देख रहे थे. उन का दिल जोरों से धड़क रहा था. उन्होंने सारे रुपए अपनी अलमारी में किताबों के नीचे रख दिए थे.
‘किसी को क्या मालूम कि इस टूटी हुई अलमारी में किताबों के नीचे रुपए होंगे,’ यह सोच कर मुनीमजी ने गहरी सांस ली. उन के सामने सेठजी का कांइयां चेहरा घूम गया.यदि सेठजी को मालूम होता कि उन के पास इतने सारे रुपए हैं तो वे उसे कभी भी अपनी दुकान से हिलने तक न देते.
सेठजी एक नंबर के कंजूस हैं. पैसा बचाने के चक्कर में वे अपने काम करने वाले मजदूरों तक से भी ?ाठ बोल जाते हैं. ‘देख भई, तू ने इस हफ्ते 4 दिन ही काम किया है तो उतने ही दिन के पैसे मिलेंगे.’
‘नहीं हुजूर, मैं ने तो 5 दिन काम किया है. आप ध्यान कीजिए. आप को याद आ जाएगा,’ मजदूर गिड़गिड़ाते हुए कहता, पर वे उस की ओर देखते तक नहीं थे.‘जब मैं ने कह दिया कि काम 4 दिन ही किया है तो किया है. कोई चिकल्लस नहीं चाहिए.’
ऐसा कहते हुए वे नोटों को गिनने में लगे रहते.‘नहीं माईबाप, आप को ध्यान नहीं आ रहा है, मैं ने 5 दिन काम किया है.’‘क्यों मुनीमजी, इस ने कितने दिन काम किया है, जरा बताओ?’मुनीमजी को सेठजी आंख से इशारा करते. मुनीमजी न चाहते हुए भी सेठजी की हां में हां मिलाते.मु?ो तो अब याद नहीं. पर, सेठजी कह रहे हैं तो 4 दिन ही काम किया होगा.’
मुनीमजी की नजरें सफेद ?ाठ बोलने के कारण नीचे ?ाक जातीं. वे चाह कर भी सेठजी से पंगा नहीं ले सकते थे. अच्छीभली नौकरी है. इस आमदनी से ही तो परिवार पल रहा है. यदि उस ने सेठजी की हां में हां न मिलाई तो वे उसे ही नौकरी से निकाल देंगे. पर सच कहो तो उन का जमीर ऐसे ?ाठ बोलने पर उन को ही शर्मिंदा कर देता था.
सेठजी के पास इतने रुपए हैं पर औलाद के नाम पर एक बिगड़ैल बेटा है, बस. फिर भी सेठजी की तृष्णा खत्म नहीं हो रही थी. वे एक मजदूर तक की मजदूरी के पैसे काट लेते हैं.यह सोच कर मुनीमजी का मन नफरत से भर जाता. पर, वे मजबूर थे.
मजदूर मुनीमजी की हां सुन कर चुप हो जाता. उसे सेठजी से ज्यादा भरोसा मुनीमजी पर था. जब मुनीमजी ने ही हां बोल दिया तो अब उस की रहीसही आस भी खत्म हो गई.‘सेठजी पिछले सप्ताह भी आप ने एक दिन की मजूरी ऐसे ही काट ली थी. अब आप रोज लिख लिया करें, ताकि हिसाब में गड़बड़ न हो.’
मजूदर को अपनी एक दिन की मजूरी काटे जाने की पीड़ा हो रही थी, जो उस के माथे पर उभर आई थी.मुनीमजी तिरछी निगाहों से उस मजदूर की ओर देखते, ‘मु?ो माफ करना भाई.’ उन के चेहरे पर भी दर्द उभर आता.
मजदूर मन ही मन कुछ बोलता सा बाहर निकल जाता और सेठजी कुटिल मुसकान लिए काम पर लग जाते.मुनीमजी सेठजी के यहां सालों से काम कर रहे हैं. मुनीमी का काम करते रहने के कारण ही उन का नाम ही मुनीम हो गया है.वैसे तो उन का नाम विजय है, पर उन का असली नाम थोड़ेबहुत लोगों को ही पता था. वे खुद अपना असली नाम भूल चुके थे. यदि उन्हें कोई विजय नाम से पुकार ले तो वे उस की ओर देखते तक नहीं.
मुनीमजी दिनभर सेठजी की दुकान पर बैठ कर काम करते रहते. वैसे तो उन का काम केवल हिसाबकिताब रखना होना चाहिए था, पर वे सेठजी का सारा काम करते.‘अरे दुकान के हिसाबकिताब में कितना टाइम लगता है. बाकी समय तुम क्या करोगे, सो दुकान के बाकी काम भी किया करो,’ सेठजी ने शुरू में ही मुनीमजी से बोल दिया था.
‘पर सेठजी, हिसाबकिताब का काम कितना महत्त्वपूर्ण होता है, आप नहीं जानते क्या. मैं दूसरे कामों में लग गया तो हिसाबकिताब में गड़बड़ भी हो सकती है,’ मुनीमजी ने सेठजी की ओर पासा फेंका.‘नहीं भाई, मु?ो हिसाबकिताब में कोई गड़बड़ नहीं चाहिए पर ऐसा सम?ा लो कि दुकान पर जो कुछ भी काम हो रहा है, वह तुम्हारे हिसाबकिताब का ही तो काम है. तुम्हें यह पता होना चाहिए कि कौन सा सामान बिक चुका है और उसे कितना मंगवाना है तो यह तुम्हारा ही काम हुआ न.’
‘इस के लिए तो मैनेजर रखा जाता है, सेठजी.’‘उस को भी तो पैसे देने पड़ेंगे. मैं सारे पैसे ऐसे ही कर्मचारियों पर लुटाता रहूंगा तो मु?ो बचेगा क्या?’ सेठजी के चेहरे पर नाराजगी के भाव उभर रहे थे.मुनीमजी खामोश हो गए. उन्हें खामोश देख सेठजी ने एक अंतिम बाण और छोड़ दिया, ‘अच्छा रहने दो, तुम से न हो पाएगा. मैं ऐसा मुनीम रख लेता हूं जो यह सारा काम भी कर सके.’एकाएक सेठजी के चेहरे से विनम्रता गायब हो गई. उन का चेहरा पथरीला दिखाई देने लगा. मुनीमजी को लगा कि उन की नौकरी खतरे में पड़ रही है. सो, वे मान गए. उन के पास और कोई चारा भी तो न था.
सेठजी के चेहरे पर कुटिल मुसकान खिल गई. मुनीमजी सेठ की चाल में फंस चुके थे. अब वे वेतन तो केवल मुनीमी का लेते थे, पर काम मुनीमी और मैनेजर दोनों का करते थे. उन्हें दुकान पर आते ही सारी दुकान का सामान चैक करना होता, फिर नए सामान का और्डर देना होता, कितने मजूदर काम कर रहे हैं, उस का भी हिसाबकिताब रखना होता.
सेठजी ने तो उन्हें अपने घर का भी काम सौंप दिया था. वे उन के बच्चे की कौपीकिताब से ले कर स्कूल की फीस तक का हिसाब रखते, उन की पत्नी की जरूरतों का भी ध्यान रखते. घर में क्याक्या सामान चाहिए, इस का ध्यान रखना भी उन की ही जिम्मेदारी में आ चुका था.
मुनीमजी का काम अब बढ़ चुका था. वे दिनभर चकरी बने रहते और शाम को दिनभर का हिसाब करते, खाताबही लिखते, सेठजी को रुपए गिनवा कर तिजोरी में रखते. इन रुपयों को दूसरे दिन बैंक में जमा करने का काम भी उन का ही रहता. वे बैंक की परची सेठजी को दिखाते, फिर उसे अपनी फाइल में रख देते.
सेठजी अपने रिश्तेदारों को भी नहीं छोड़ते थे, कहते, ‘अरे भैया, पैसों से कोई रिश्तेदारी नहीं. बगैर पैसों से रिश्ता रखना है तो रखो, वरना रामराम.’
उन्होंने मुनीमजी को भी हिदायत दे रखी थी, ‘देख भाई, मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है. रिश्तेदार ही क्यों, मेरी बीवी भी यदि पैसे मांगे तो देना नहीं, वरना मैं तुम्हारे वेतन से पैसे काट लूंगा और हां, सुनो, मैं तो अपने रिश्तेदारों से मना करने से रहा तो तुम ही मेरी तरफ से मना कर दिया करो.
‘मैं तो वैसे ही तुम से कहूंगा कि इन को रुपए दे दो, पर तुम देना नहीं.’ उन के चेहरे पर हमेशा रहने वाली कुटिल मुसकान फैल गई थी.तब से ले कर आज तक मुनीमजी ही सारे रिश्तेदारों को मना करते रहे हैं और विलेन बनते रहे हैं.
मुनीमजी ने बैग में से पैसे निकाल कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. ऐसा करते समय उन की पत्नी सुमन ने उन्हें देख भी लिया था, ‘‘अरे, आप सेठजी से पैसे मांग लाए. अच्छा किया. देखो, हमें पैसों की कितनी जरूरत है. अब आप कल ही बैंक में जमा कर अपना कर्जा चुकता कर देना.‘‘और सुनो, चिंटू की फीस भी देनी है.
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10 हजार रुपए तो उस में लग ही जाएंगे.’’पत्नी के चेहरे पर राहत ?ालक रही थी. हो भी क्यों न, वह तो पिछले कई दिनों से रोज उस से कह रही थी कि वह सेठजी से लाखपचास हजार रुपए ले लें, बैंक वाले भी जान खाए जा रहे हैं और घर के कई जरूरी काम भी होने हैं. उसे भी लगता था कि सुमन कह तो सही रही है. सेठजी से कुछ एडवांस ले लूं और अपना पिछला हिसाब भी कर लूं. उस से भी कुछ पैसे आ जाएंगे. सेठजी ने तो अभी उस का हिसाब किया ही नहीं है. जब भी उन से हिसाब की कहो, तो ‘हां कर देंगे, ऐसी भी क्या जल्दी है,’ कह कर बात काट देते.
वैसे तो मुनीमजी हर महीने सेठजी से पैसा लेते रहते पर सेठजी हमेशा उन के निर्धारित वेतन से कम पैसे ही उन्हें देते हुए कहते, ‘बाकी का जमा रहा. अरे, जमा रहने दो, वक्तबेवक्त काम आएगा.’सेठजी जानबू?ा कर ऐसा कह कर उस का पैसा जमा कर लेते. मुनीमजी ने हिसाब लगा कर देखा था. उसे तो सेठजी से अपने ही लाखों रुपए लेना बैठ रहा है. उस ने अपनी पत्नी के कहने पर सेठजी से पैसे मांगे भी थे.
‘सेठजी, मु?ो पैसों की सख्त जरूरत है. आप मेरा हिसाब कर दें और जितना पैसा मेरा निकलता है, वह दे दें. कुछ पैसा एडवांस भी दे दें.’‘अरे मुनीमजी, अभी हमारे पास पैसा है ही कहां? कितनी कड़की चल रही है. अभी तो मैं तुम्हें पैसा दे ही नहीं सकता.’
जबकि मुनीमजी जानते थे कि सेठजी ?ाठ बोल रहे हैं. सारा हिसाब तो उस के ही पास है और वह जानता है कि इस समय सेठजी लाखों रुपयों के फायदे में चल रहे हैं पर वह बोला कुछ नहीं. वह जानता था कि वह कितना भी गिड़गिड़ा ले पर सेठजी उसे पैसे नहीं देंगे.सेठजी के पैसों को अलमारी में रखते हुए पत्नी सुमन ने देख लिया था. इस कारण उस की पत्नी के चेहरे पर उत्साह आ गया था पर मुनीमजी इस से ज्यादा सशंकित हो गए थे.
‘‘अरे, ये सेठजी की वसूली के पैसे हैं. आज मैं उन्हें दे नहीं पाया. कल जा कर दे दूंगा,’’ कह कर वह हाथपैर धोने बाथरूम में चला गया.दरअसल, वह अपनी पत्नी सुमन के चेहरे के बदलते रंग को नहीं देखना चाह रहा था. उस ने कुछ नहीं सुना. हो सकता है कि सुमन बड़बड़ाई हो.
बाथरूम से आ कर वह पलंग पर लेट गया और टैलीविजन चालू कर लिया. यह उस का रोज का नियम था. वह दिनभर में इतनी देर ही टैलीविजन देख पाता था. टैलीविजन भी पुराना ही था. वह तो उसे शादी में मिल गया था, इसलिए है भी, वरना वह अपनी कमाई से तो कभी नहीं खरीद पाता. उस ने टैलीविजन चालू कर अपनी आंखें बंद कर लीं. उसे तो केवल समाचार सुनना है.
‘‘आज के मुख्य समाचार- बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से लौकडाउन लगा दिया है. आज आधी रात से ही लौकडाउन लग जाएगा. मुख्यमंत्री ने सभी से अनुरोध किया है कि लौकडाउन का पालन करें और अपने घरों में ही रहें.’’ यह खबर सुन कर उस की आंखें अपनेआप ही खुल गई थीं. वह समाचार को बड़े ही ध्यान से देखने लगा. उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. उस के पास सेठजी के ढेर सारे पैसे रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उस के पास ही है. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. पिछली बार भी लौकडाउन में वह ऐसे ही फंस गया था. 2 महीने तक वह घर से नहीं निकल पाया था. कहीं अब की बार भी ऐसा न हो. वैसे, इस बार प्रधानमंत्री ने तो लौकडाउन घोषित नहीं किया है. हो सकता है कि जल्दी खत्म हो जाए.मुनीमजी के माथे से पसीने की बूंदें ?ाल?ाला रही थीं. उन का मन हुआ कि वे सेठजी को फोन लगा कर बता दे कि उस के पास वसूली और दिनभर की आवक के पैसे सुरक्षित रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उसी के पास है.
‘अब रहने दो. रात हो गई है. सुबह देखते हैं,’ सोच कर उस ने करवट बदल ली.सुबह उस की नींद अपने नियमित समय पर ही खुल गई थी. उसे सुबह जल्दी दुकान पर जाना होता था, इसलिए वह जल्दी उठ कर तैयार हो जाता.सुमन उस के सामने नाश्ते की प्लेट रख देती और भोजन का डब्बा भी. वह भोजन दुकान पर ही दोपहर को कर लेता था. कई बार तो उस का डब्बा खुल ही नहीं पाता था. ज्यों का त्यों वापस घर आ जाता.
सुमन भरे डब्बे को देखती तो नाराज होती, ‘मैं इतनी सुबह उठ कर तुम्हारे लिए खाना बनाती हूं और आप के पास इतना भी समय नहीं होता कि खाना खा लें.’वह कुछ न बोलता, चुप ही रहता. सेठजी उस से कभी खाने को न पूछते. उलटे, यदि वह कहे कि सेठजी मैं खाना खा लूं, तो भी वे नाकभौं सिकोड़ लेते.
आज वह दुकान पर जाने को तैयार तो हो गया, पर उसे कहीं जाना ही नहीं था. लौकडाउन लग चुका था, सामने चौराहे पर पुलिस बैठी थी. उसे सेठजी के पैसे का ध्यान आया. उस ने अलमारी खोल कर पैसे टटोले, फिर इतमीनान से बैठ गया. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा ले, पर ‘रहने दो, उन का फोन आने दो’ सोच कर रह गया.सेठजी का फोन शाम को आया.‘‘मुनीमजी, तिजोरी की चाबी नहीं मिल रही है. कहां रख दी?’’‘‘चाबी तो मेरे पास है,’’ कहते हुए वह घबरा गया था.
‘‘अरे, तुम चाबी अपने पास क्यों रखे हो?’’ सेठजी ने पूछा.‘‘कल आप नहीं थे न, इसलिए अपने साथ ले आया था.’’यह सुनते ही सेठजी आगबबूला हो गए. वे डपटते हुए बोले, ‘‘तिजोरी की चाबी अपने साथ ले गए. तुम्हारी तो थाने में रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी,’’ उन्हें शायद ज्यादा ही गुस्सा आ रहा था.
‘‘इस में रिपोर्ट लिखाने की क्या बात है सेठजी. मैं तो कई बार चाबी अपने साथ ले कर आया हूं.’’मुनीमजी की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था कि सेठजी इतने नाराज क्यों हो रहे हैं?सेठजी ने शायद गाली दी थी, ‘‘तिजोरी में लाखों रुपए होते हैं और चाबी तुम रखे हो. कुछ भी गोलमाल हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं.’’
‘‘आप किस तरह से बात कर रहे हैं सेठजी. चाबी मेरे पास है और आज यदि लौकडाउन नहीं लगा होता तो मैं चाबी और पैसे ले कर आप के पास आता ही.’’‘‘तुम्हारे पास पैसे भी हैं?’’‘‘हां, कल की आवक और वसूली के.’’‘‘तुम तत्काल सारा कुछ ले कर मेरे पास आओ.’’‘‘लौकडाउन लगा है. मैं नहीं आ सकता. पुलिस मारती है.’’‘‘तुम्हारे तो बाप को भी आना पड़ेगा,’’ सेठजी का गुस्सा कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था.
‘‘सेठजी, आप इस तरह से बात क्यों कर रहे हैं? आप के पैसे मैं खा तो नहीं रहा हूं.’’‘‘वह तो तुम खा भी नहीं सकते. अब तुम पैसे ले कर तुरंत आ जाओ.’’‘‘सौरी सेठजी, मैं नहीं आ सकता. आप आ कर ले जाएं.’’इस के पहले सेठजी कुछ और बोलें, उस ने फोन रख दिया. वैसे, वह बुरी तरह घबरा चुका था.
वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा सेठजी की राह देखता रहा, पर वे नहीं आए. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा कर पूछे कि वे आ रहे हैं कि नहीं पर उस ने सोचा कि रहने दो.सेठजी ने जिस तरह उसे गाली दी थी, वह उसे बुरी लगी थी.
सेठजी वैसे तो हर कर्मचारी से ऐसे ही बात करते हैं, पर उस के साथ उन्होंने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. उस का मन सेठजी के प्रति नफरत से भरता जा रहा था.सुमन अपने पति को इस तरह परेशान देख दुखी हो रही थी. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. वह भी चिंतित थी.
‘‘आप इतने परेशान क्यों हैं?’’ सुमन ने आखिर पूछ ही लिया.मुनीमजी ने सुमन से एक ही सांस में सारी बात बता दी. उस ने सेठजी द्वारा दी गई गालियों के बारे में भी बताया.यह सुन कर सुमन का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया था.‘‘अब आप सेठजी को न तो पैसे वापस करोगे और न ही तिजोरी की चाबी. देखते हैं कि वे हमारा क्या बिगाड़ते हैं?’’
सुमन ने अब सेठजी से बदला लेने के बारे में सोच ही लिया था.‘‘सुनो, अब की बार सेठजी का फोन आए तो फोन मु?ो पकड़ा देना. मैं उन से बात करूंगी.’’मुनीमजी कुछ नहीं बोले, पर वे अपनी पत्नी की बातों से सहमत जरूर नजर आए.सेठजी का फोन देररात आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘हां, बोलिए सेठजी.’’‘‘मुनीमजी कहां हैं? मु?ो उन से बात करनी है.’’‘‘वे तो सो रहे हैं. आप मु?ा से बात करो,’’ सुमन की आवाज कड़क थी.‘‘वो मुनीमजी चाबी और पैसे ले कर नहीं आए अभी तक.’’
‘‘वे क्यों आएंगे, लौकडाउन लगा है. आप जानते नहीं हैं क्या?’’‘‘लौकडाउन लगा है तो क्या, वे मेरे पैसे नहीं देंगे?’’‘‘जब लौकडउान खुल जाएगा औरवे दुकान आएंगे तब सारा हिसाबहो जाएगा.’’‘‘ऐसा थोड़े ही न होता है. आप उन से बोलो कि वे तुरंत पैसे ले कर आएं.’’‘‘नहीं आएंगे. आप तो पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले थे, अब आप वही करा लो,’’ कह कर सुमन ने फोन काट दिया.
मुनीमजी के हाथपैर कांप रहे थे.दूसरे दिन सुबहसुबह किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला, ‘‘कहिए?’’‘‘मैं मुनीमजी से मिलने आया हूं, वे मेरी दुकान पर काम करते हैं.’’‘‘इतनी सुबह किसी भले आदमी के घर आने में आप को जरा भी शर्म नहीं आई.’’‘‘लौकडाउन लगा है, पुलिस गश्त कर रही है तो मैं दोपहर में कैसे आता?’’
‘‘आप तो मुनीमजी को कह रहे थे कि दोपहर में ही आ जाओ, उन के लिए लौकडाउन नहीं है क्या?’’ सुमन की आवाज में अजीब सा रोबीलापन था.‘‘हां हां, ठीक है. मुनीमजी को बुलाओ और मेरे पैसे दे दो.’’‘‘अभी तो मुनीमजी सो रहे हैं. आप दोपहर में आना,’’ कह कर सुमन दरवाजा बंद करने को हुई.‘‘पैसा मेरा है और मु?ो चाहिए.’’
‘‘हां, दे देंगे. आप दोपहर में आएं.’’‘‘नहीं, मु?ो अभी चाहिए. मैं किस तरह बचतेबचाते यहां आया हूं. दोपहर में तो बिलकुल नहीं आ सकता. आप मुनीमजी को बुलाएं. मैं उन से ही बात करूंगा.’’‘‘आप से बोल दिया न कि मुनीमजी सो रहे हैं. आप चले जाएं, वरना मैं पुलिस को बुलाऊं क्या,’’ सुमन आज सेठजी से सारा बदला ले लेना चाहती थी.
सेठजी कुछ नहीं बोले. वे पुलिस का नाम सुनते ही चले गए.सेठजी का फोन दोपहर को आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘महाराजजी सो कर उठ गए होंगे. जरा मेरी बात करा दो.’’सेठजी का व्यंग्य सुमन सम?ा चुकी थी. वह बोली, ‘‘उठ तो गए हैं, पर आप मु?ा से बात करो. बताएं, फोन क्यों किया है?’’‘‘मु?ो अपने पैसे चाहिए.’’‘‘तो आ कर ले जाओ.’’‘‘अभी मैं नहीं आ सकता.’’
‘‘तो जब आप आ सकें, तब ले लेना.’’‘‘आप मुनीमजी को बोलो कि वह मेरा पैसा ले कर आएं.’’‘‘लौकडाउन लगा है. वे नहीं आ सकते.’’‘‘देखो, बहुत हो गया. अब यदि मेरा पैसा मु?ो नहीं मिला, तो मैं रिपोर्ट कर दूंगा कि मुनीमजी मेरा पैसा ले कर गायब हो गए हैं,’’ सेठजी ने धमकाया.‘‘ठीक है, अब आप रिपोर्ट कर ही दें. पैसा पुलिस को ही दे दिया जाएगा.’’सेठजी को लग रहा था कि पुलिस का नाम सुनते ही मुनीमजी भागते हुए आएंगे पर सुमन ने जिस तरह उन से बात की थी, उस में कोई भय था ही नहीं.
‘‘तो ठीक है, मैं तो इसलिए बोल रहा था कि मुनीमजी मेरे पुराने कर्मचारी हैं. फालतू के ?ां?ाट में न पड़ें, इस कारण से उसे सम?ा रहा हूं. वरना सम?ा लेना क्या गत होगी?’’‘‘मुनीमजी पुराने कर्मचारी हैं तो उन पर इतना भरोसा तो रखते कि वे आप के पैसे गायब नहीं करेंगे. आप तो उन की रिपोर्ट करने वाले हैं तो आप रिपोर्ट कर ही दें.’’ऐसा कह कर सुमन ने फोन काट दिया.
उसी दिन शाम को सेठजी ने मुनीमजी के घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला. उसे भरोसा था कि सेठजी आएंगे जरूर, वरना इस लौकडाउन में कौन आएगा.सेठजी के कपड़े फटे हुए थे. वे हांफ रहे थे, ‘‘मैं अपने पैसे लेने आया हूं.’’‘‘मुनीमजी तो हैं नहीं. वे अस्पताल गए हैं. उन को सर्दीजुकाम हो रहा है,’’ सुमन ने सफाई से ?ाठ बोला था.
‘‘तो आप ही पैसे दे दो.’’‘‘मु?ो नहीं पता कि पैसे कहां रखे हैं. उन को ही आ जाने दो. वे ही देंगे.’’‘‘तो मैं क्या करूं?’’‘‘घर जाओ, जब मुनीमजी आ जाएं तब आना.’’‘‘बड़ी मुश्किल से तो अभी आया हूं, पुलिस ने बड़ी जोर से मारा है. मैं फिर कैसे आऊंगा?’’ सेठजी कराह रहे थे.‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. आप जाएं और थाने में रिपोर्ट लिखा दें. आप यही तो करने वाले थे न.’’
सेठजी कुछ नहीं बोले. वे याचनाभरी निगाहों से सुमन को देख रहे थे. अंदर बैठे मुनीमजी सारी बातें सुन रहे थे. मुनीमजी का मन हो रहा था कि वे बाहर निकल आएं और सेठजी को बैठा कर उन का सारा पैसा और तिजोरी की चाबी सौंप दें, पर वे सुमन के भय के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे थे.
वैसे भी सेठजी ने जिस ढंग से मुनीमजी से बात की थी और उन्हें धमकाया था, उसे वह सबकुछ अच्छा नहीं लगा था. उस के मन में सेठजी के प्रति सम्मान के कोई भाव नहीं रह गए थे. सेठजी अभी भी सुमन के सामने हाथ जोड़े खड़े थे और पैसा दे देने का निवेदन कर रहे थे पर सुमन कठोर बन चुकी थी. उस ने एक बार और उन से जाने को बोला और दरवाजे बंद कर लिए.
सेठजी कुछ देर तक तो असमंजस की स्थिति में खड़े रहे, फिर वापस हो गए.