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Hindi Poetry Han Wah Kaise Din The हां वह कैसे दिन थे Hindishayarih

 


हां वह कैसे दिन थे , 
हां वह कैसी शाम ,
 बस तुम्हारी याद थी ,
 और हाथों में थी जाम ।


 सिसक सिसक के थक गए , 
ठिठुर ठिठुर के थक गए , 
तन्हाई के आलम को , 
अब सहते सहते थक गए ।



 कसूर न कोई मेरा था , 
कहूं तो खुद से क्या कहूं ।
 
अल्फाज़ जो मिलते नहीं , 
किसी को क्या बयां करूं । 

ये मुद्दतों से जानता था , 
फिर भी मैं उड़ा रहा ।

 ना तुझको कोई चाह थी ,
 फिर भी मैं जुड़ा रहा ।

 औकात अपनी भुला था , 
पाने की तुझको चाह में ।

 शमा कभी क्या आती है ?
 परवानों की पनाह में ! 

गुजर रहा जो शख्स है ,
 मुझ में से ये अभी - अभी ।

 ना और कोई समझ इसे ,
 आशिक वो तेरा था कभी ।

 यह जो रंजो ग़म कि स्याही है , 
बड़ी मुद्दतों से आई है । 

फितूर इश्क का उतर गया ,
 अब जुनून शायरी ही है । 

अब खुशनुमा सुबह हो या , 
जाफरानी शाम । 

सब कुछ है फीका फीका सा ,
 जो हो ना तेरा नाम । 

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