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2 Line Khumar Barabankvi Selected Shayari Collection ख़ुमार बाराबंकवी: पढ़ें चुनिंदा शेर और शायरी - Hindishayarih

 
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हवाएँ चलीं और न मौजें ही उट्ठीं
अब ऐसे भी तूफ़ान आने लगे हैं


भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए 

खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है 


कोई धोका न खा जाए मेरी तरह
ऐसे खुल के न सब से मिला कीजिए 

कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया 


तिरे दर से उठ कर जिधर जाऊँ मैं
चलूँ दो क़दम और ठहर जाऊँ मैं 

वो अकेले में भी जो लजाते रहे
हो न हो उन को हम याद आते रहे 


रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
ऐसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बा'द 

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए 


झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं
किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं 



 

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